सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र क्या हैं ?

सार : सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र आध्यात्मिक शोध का एक महत्वपूर्ण साधन है । चिकित्सा विज्ञान में जो स्थान क्षय-किरणों(एक्स-किरणों) का है वही स्थान इसका अध्यात्म विज्ञान में है । जो लोग सूक्ष्म-जगत में देख नहीं सकते उनके लिए ये आधिकारिक (विश्वसनीय) झलक प्रदान करते हैं । स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन (SSRF) ने अनेक साधकों की छठवीं इंद्रिय अथवा अतींद्रिय संवेदी ग्रहण क्षमता का प्रयोग सूक्ष्म-जगत के संदर्भ में जानकारी लेने तथा उसे मानवता की भलाई के लिए संरक्षित कर है । इसने इसका प्रयोग जीवन की विविध समस्याओं के मूल आध्यात्मिक कारण समझने हेतु एक निदानात्मक साधन के रूप में किया है । SSRF अपने द्वारा खोजे गए आध्यात्मिक उपचारों के प्रभाव की पुष्टि करने के लिए भी इस साधन का प्रयोग करता है । इस लेख में हम सू्क्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्रों के संदर्भ में व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत कर रहे हैं ।

१. सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र क्या हैं ?

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जो विश्व पंचज्ञानेंद्रिय, मन और बुद्धि के परे है, उस विश्व को SSRF ‘सूक्ष्म विश्व’ अथवा ‘आध्यात्मिक आयाम’ कहता है । सूक्ष्म विश्व देवदूत, अनिष्ट शक्तियां, स्वर्ग आदि अदृश्य विश्व से संबंधित है जो केवल हमारी छठी इंद्रिय से ही देखा जा सकता है ।

स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन (SSRF)  के कुछ साधक अति विकसित छठवीं इंद्रिय से युक्त हैं । अतींद्रिय संवेदी ग्रहण क्षमता, सूक्ष्मस्तरीय ग्रहण क्षमता, अलौकिक क्षमता, दिव्य दृष्टि, पूर्वसूचना, अंतर्ज्ञान, ये सभी छठवीं इंद्रिय के समानार्थी शब्द हैं । अपनी छठवीं इंद्रिय से वे सूक्ष्म-जगत में देख सकते हैं, जिसे सामान्य मनुष्य नहीं देख सकते । अपनी छठवीं इंद्रिय की क्षमता के गहनता के आधार पर वे सूक्ष्म-जगत को अलग-अलग स्तर में तथा उसके अनुरूप उतने विस्तार से देख सकते हैं । साथ ही, वे समय तथा स्थान के अवरोध को भी पार कर सकते हैं । इसका अर्थ है कि वे जो सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र बनाते हैं, वे पूर्व में हुई घटना अथवा विश्व के किसी भी भाग में हुई घटना के हो सकती हैं, उस स्थान में बिना गए, वहां के लोगों को बिना जाने अथवा वहां की पृष्ठभूमि की कोई भी जानकारी ना होते हुए भी वे चित्र बना सकते हैं । सूक्ष्म आयाम में इन साधकों को दिखे चित्रों तथा दृष्टांतों को सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र कहते हैं । अपनी छठवीं इंद्रिय के माध्यम से सूक्ष्म-जगत में देखकर साधक पहले पेंसिल से प्रारंभिक चित्र बना लेता है । इसके उपरांत वह चित्र प्रकाशन हेतु संगणकीय जनित कलाकृति में बनाने के लिए दे दिया जाता है ।

२. सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र कौन बना सकता है ?

इन्हें सूक्ष्म कलाकार अथवा दिव्य दृष्टिवाले कलाकार कहा जाता है । सामान्यतः ४० प्रतिशत अथवा उससे अधिक आध्यात्मिक स्तर वाले तथा विकसित छठवीं इंद्रिय क्षमता से युक्त, विशेषतः सूक्ष्म-दृष्टि की क्षमतावाले सूक्ष्म-आयाम में देख सकते हैं । जैसे हम स्थूल विश्व देखते हैं वैसे वे अदृश्य सूक्ष्म-विश्व को देख सकते हैं । इन लोगों में कुछ प्रतिभावान कलाकार भी होते हैं, वे जो भी देखते हैं उसे यथार्थ स्वरूप में प्रस्तुत भी कर सकते हैं ।

चित्रों की अचूकता बढती है :

  • बढते आध्यात्मिक स्तर से,
  • व्यक्ति के उत्साह से,
  • आध्यात्मिक रूप से उन्नत व्यक्ति के आशीर्वाद से,
  • यदि सूक्ष्म-परीक्षण मानवता की भलाई के लिए जानकारी उपलब्ध करवाने के दृष्टिकोण से अपनी साधना के रूप में किया गया हो ।

३.SSRF में प्रकाशित होनेवाले अनिष्ट शक्तियों के सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र के संदर्भ में

नीचे दी गई सारणी में SSRF के जालस्थल (वेबसाईट) पर प्रकाशित अनिष्ट शक्तियों (राक्षस, शैतान, दैत्य इत्यादि) के सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्रों का कुछ विवरण दिया गया है ।

  • आदर्श परिदृश्य – आदर्श परिस्थिति में, हम एक उच्च आध्यात्मिक स्तरवाले साधक द्वारा निम्न स्तर की अनिष्ट शक्तियों जैसे भुवर्लोक तथा पहले अथवा दूसरे पाताल की अनिष्ट शक्तियों के सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्रों को बनाए जाने का चयन करेंगे (प्रधानता देंगे) । इस प्रसंग में, इस काल के लिए आवश्यक चित्र की सटीकता अधिकतम हो सकती है तथा अनिष्ट शक्ति द्वारा साधक को न्यूनतम कष्ट हो सकते हैं ।
  • वास्तविक परिदृश्य – वर्त्तमान परिदृश्य यह है कि SSRF के सूक्ष्म-दृष्टिवाले साधक उच्च स्तरीय पांचवे पाताल के सूक्ष्म-मांत्रिकों के सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र बना रहे हैं । इस कारण वे अत्यधिक मात्रा में कष्ट का सामना कर रहे हैं ।

2.HIN_Subtle-pictures-tableटिप्पणियां : (लाल अक्षर में दिए आंकडों के लिए)

१. हम ब्रह्मांड में तीन युगों से होकर आए हैं तथा अभी हम चौथे तथा अंतिम युग कलियुग में हैं । इस युग में अधिकतर लोग २० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर पर हैं । इस युग में तुलनात्मक रूप से सूक्ष्म दृष्टि की अल्प क्षमता के कारण, वे सकारात्मक शक्ति तथा देवताओं के चित्र अधिकतम ३० प्रतिशत तक अचूकता से बना सकते हैं । साथ ही, सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र ३० प्रतिशत से अधिक अचूक होने पर भी वर्त्तमान समय में मनुष्य, अपने आध्यात्मिक स्तर की अल्पता के कारण उस चित्र को देखकर उससे लाभान्वित नहीं हो सकते । उदाहरण के लिए, यदि किसी देवता का चित्र ३० प्रतिशत से अधिक अचूक बन जाए,  तो हम उस चित्र अथवा प्रतिमा से प्रक्षेपित होनेवाली शक्ति/चैतन्य सहन नहीं कर पाएंगे । देवताओं के व्यावसायिक चित्र औसत रूप से उस देवता का १-२ प्रतिशत शक्ति/चैतन्य ही ग्रहण कर पाने में समर्थ होते हैं । अचूकता से हमारा अर्थ, देवता अथवा अनिष्ट शक्ति की सभी सूक्ष्मताओं (बारीकियों) को ग्रहण कर पाने की सूक्ष्म-क्षमता है । ऐसा करते समय हम अपनेआप देवता का चित्र बनाते समय चैतन्य तथा अनिष्ट शक्ति का चित्र बनाते समय काली शक्ति ग्रहण करते हैं ।

२. अनिष्ट शक्तियों के सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्रों के माध्यम से संचारित काली शक्ति के कारण होनेवाले कष्टों को मर्यादित करने के लिए हमने उन चित्रों की अचूकता को ८ प्रतिशत तक सीमित किया है । यह विशेष रूप से पाताल के निचले लोकों से आनेवाली अत्यधिक शक्तिशाली अनिष्ट शक्तियों (राक्षस, शैतान, दैत्य इत्यादि) के संदर्भ में है, क्योंकि हम स्वाभाविक रूप से उनकी ८ प्रतिशत काली शक्ति को चित्र में ग्रहण कर लेते हैं । अनिष्ट शक्तियों के सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र यदि अधिक अचूक हों तो उससे इतनी अधिक मात्रा में नकारात्मकता प्रक्षेपित होगी, जो हमारे पाठकों के लिए अति कष्टदायक होगी । ८ प्रतिशत की अचूकता युक्त सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित अनिष्ट शक्ति का चित्र उसकी स्थूल विशेषताओं से समानता दर्शाता है । अर्थात, यदि सूक्ष्म-दृष्टिवाला अन्य व्यक्ति अनिष्ट शक्ति को देखेगा तब उसे वह उस चित्र के समान ही दिखेगी ।
८ प्रतिशत की अचूकता से हमारा अर्थ है, ऐसा चित्र जो अनिष्ट शक्ति से इतनी समानता दर्शाता हो कि वह उसकी ८ प्रतिशत आध्यात्मिक शक्ति को ग्रहण कर पाए । शेष २२ प्रतिशत (अधिकतम ३० प्रतिशत ग्रहण करनेयोग्य का) तभी संभव होगा यदि हम अनिष्ट शक्ति के रंग की प्रत्येक छटा तथा सूक्ष्मताओं को ग्रहण कर पाएं ।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि ८ प्रतिशत किसी भी प्रकार से अल्प मात्रा नहीं है । जैसे यदि हम इसकी तुलना एक साधारण व्यक्ति से करें, जिसके पास सूक्ष्म-विश्व में देख पाने की कोई भी क्षमता नहीं है ।

३. १०० प्रतिशत मृत्यु के समान है ।

४. पहले दो पातालों में रहनेवाली अनिष्ट शक्तियां सूक्ष्म होती हैं । पहले पाताल से अधोदिशा (नीचे की दिशा) में जाते-जाते वे और अधिक सूक्ष्म होती जाती हैं । जो पांचवे से सातवें पाताल में हैं वे सूक्ष्मतम होती हैं, जो प्रगत छठवीं इंद्रिय के लिए भी लगभग पारदर्शी होती हैं । इसलिए उन्हें पहचानना तथा अचूकता से उनका चित्रण करना अत्यंत कठिन है । SSRF के साधक अति प्रगत छठवीं इंद्रिय द्वारा उनका चित्र बना रहे हैं, क्योंकि वर्त्तमान में उच्चतर पदक्रमवाले पांचवे से सातवें पाताल की अनिष्ट शक्तियां SSRF के साधकों को कष्ट दे रही हैं । अधिक शक्तिशाली अनिष्ट शक्तियों के SSRF के साधकों पर आक्रमण करने का मुख्य कारण है उनके ज्ञान के लिए शोध करने का तथा अध्यात्मप्रसार का विरोध करना ।

४. सुरक्षात्मक किनार (चौखट)

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आपने ध्यान दिया होगा कि हमारे द्वारा दिए गए अनिष्ट शक्तियों से संबंधित प्रत्येक सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र तथा कुछ प्रसंगों में पूरे लेख के चारों ओर हमने सुरक्षात्मक किनार (चौखट) डाली है । किनार (चौखट) के प्रत्येक ओर एक विशेष देवता का नाम है । हमें यह नाम प्रगत छठवीं इंद्रिय के माध्यम से प्राप्त हुआ है । सुरक्षात्मक किनार डालने का कारण है, अनिष्ट शक्तियों से संबंधित सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्रों अथवा लेख से प्रक्षेपित होनेवाली हानिकारक सूक्ष्म-स्पंदनों को निष्क्रीय करना । फलस्वरूप हमारे पाठक इन हानिकारक सूक्ष्म-स्पंदनों से सुरक्षित हैं ।

यह भी ध्यान दें कि किनार में प्रयुक्त देवता के नाम के अनुसार उसका रंग भी परिवर्तित होता रहता है । इसका यह कारण है कि हमने आध्यात्मिक शोध के माध्यम से पाया है कि देवता (ईश्वर का रूप) आध्यात्मिक आयाम में एक विशेष रंग के माध्यम से दिखाए जाते हैं । वही रंग किनार में प्रयोग कर हमने किनार की क्षमता बढाई है जिससे उस देवता की सुरक्षात्मक ईश्वरीय शक्ति आकर्षित हो सके ।

कृपया इन सुरक्षात्मक किनारों पर सूक्ष्म-प्रयोग करें ।

५. सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्रों की अचूकता की प्रतिशत मात्रा का निर्धारण कैसे किया जाता है ?

सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र की अचूकता का प्रतिशत एवं इसलिए सर्व परीक्षण की अचूकता तब बढ जाती है, जब उससे संबंधित विवरण प्रमाण के अनुसार वर्णित हों । उदाहरण के लिए, सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र में दर्शाए गए व्यक्ति का वास्तविक नाम भी यदि परिवर्तित कर दिया जाता है तब उस चित्र की अचूकता घट जाती है ।

सूक्ष्म-कलाकार (दिव्यद्रष्टा कलाकार) के चित्र की अचूकता को प्रभावित करनेवाले विविध कारकों का पूर्ण विभाजन निम्नलिखित हैं ।

अनुचित सूक्ष्म-चित्रों का क्या कारण है ?
१. अनिष्ट शक्तियों (राक्षस,  शैतान,  दैत्य इत्यादि)  द्वारा निर्मित भ्रम ३० प्रतिशत
२. अनिष्ट शक्तियों द्वारा रूप अथवा आध्यात्मिक शक्ति में परिवर्तन करना १० प्रतिशत
३. कल्पना १० प्रतिशत
४. अनिष्ट शक्तियों के कष्ट के कारण चित्रण न कर पाना १० प्रतिशत
५. वास्तविक रूप में कष्ट निर्माण करनेवाली अनिष्ट शक्ति का चित्र है अथवा वह मात्र उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों के माध्यम के रूप में उनके आदेशानुसार कार्य कर रही है,  इसमें भ्रम होना १० प्रतिशत
६. समय,  चंद्रमा की दशा इत्यादि १० प्रतिशत
७. मानसिक स्थिति ५ प्रतिशत
८. शारीरिक स्थिति ३  प्रतिशत
९. अन्य १२  प्रतिशत
कुल १००  प्रतिशत

टिप्पणी

  • भ्रम का अर्थ है कुछ ऐसा देखना जो वहां न होI वह पांच इन्द्रियों में से किसी के भी माध्यम से हो सकता हैI यह आम तौर पर हमारे बाहर किसी रूप में देखा जाता है (अनुभव किया जाता है) I
  • कल्पना एक आतंरिक घटना है जो व्यक्ति के मन में घटित होती हैI

ऊपर दिए गए सारणी में आप देख सकते हैं कि सूक्ष्म-आयाम के अचूक चित्र बनाने में अनेक कारक प्रभाव डालते हैं ।

कई बार हम अनेक सूक्ष्म-कलाकार (दिव्यद्रष्टा कलाकार) को देखते हैं जो लोगों के लिए सूक्ष्म-लोकों से आई मार्गदर्शक आत्माओं अथवा देवदूतों के चित्र बनाते हैं । प्रायः सभी प्रसंगों में वे चित्र अनिष्ट शक्तियों (राक्षस, शैतान, दैत्य इत्यादि) द्वारा सूक्ष्म-कलाकार (दिव्यद्रष्टा कलाकार) को दिए गए झूठे दृश्य होते हैं । चूंकि सूक्ष्म-कलाकार स्वयं आध्यात्मिक रूप से उन्नत नहीं होते और ना ही उनके आध्यात्मिक रूप से उन्नत मार्गदर्शक होते हैं, इसलिए अनेक बार वे अत्यधिक आध्यात्मिक शक्तिवाले उच्चस्तरीय अनिष्ट शक्तियों द्वारा मार्ग से भटका दिए जाते हैं । इन सबसे अनभिज्ञ व्यक्ति जो सोचते हैं कि उनके पास देवदूत का चित्र है वास्तव में वह पाताल के किसी लोक की अनिष्ट शक्ति का चित्र होता है । जब वह चित्र घर ले जाया जाता है, तब वह अनिष्ट शक्ति के लिए काली शक्ति प्रक्षेपित करने का एक माध्यम बन जाता है ।

६. सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्रों की अचूकता की वैद्यता को हम कैसे जाचंते हैं ?

SSRF के साधक अपनी क्षमता को जांचने के लिए निम्नलिखित तकनीक का उपयोग करते हैं ।

  • छठवीं इंद्रिय अतींद्रिय संवेदी क्षमता युक्त साधकों की जांच करने के लिए विविध प्रयोग किए जाते हैं जिनकी सत्यता तत्काल जांची जा सके । उदाहरण के लिए :
    • एक पुस्तक से ऐसे ही किसी पृष्ठ का चयन कर उसे बिना देखे पृष्ठ संख्या का अनुमान लगा लेना ।
    • एक ताश के पूरे पैकेट से ऐसे ही किसी एक पत्ते का चयन कर उसे बिना देखे पहचान लेना ।
    • अनजान व्यक्ति के घर का विवरण बताना
    • किसी मृत व्यक्ति की चिता की राख को मात्र देखकर उसके जीवन का वर्णन करना ।
  • ऐसे ३०० प्रश्‍नों के ९० प्रतिशत उत्तर जांचे जाने पर अचूक निकले । जांचने योग्य उत्तर अचूक मिलने पर हमने जांचे जाने में असमर्थ उत्तरों पर भी विश्‍वास करना आरंभ किया ।
  • विविध साधकों द्वारा विविध विषयों पर छठवीं इंद्रिय के माध्यम से मिले ज्ञान समान थे । उदाहरण के लिए जब एक आविष्ट व्यक्ति पर आध्यात्मिक उपचार किए जा रहे होते हैं, तब वास्तव में सूक्ष्म आयाम में क्या होता है इसका विविध साधकों द्वारा दिया गया विवरण समान पाया गया ।
  • इसके अतिरिक्त सभी साधकों द्वारा प्राप्त सभी निष्कर्ष परम पूज्य डॉ. आठवलेजी अपनी अति प्रगत छठवीं इंद्रिय के माध्यम से सत्यापित करते हैं ।

७. SSRF के साधकों द्वारा बनाए सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्रों की कुछ प्रमुख विशेषताएं

सूक्ष्म-दृष्टि से युक्त अनेक सूक्ष्म-कलाकार (दिव्यद्रष्टा कलाकार) काले तथा श्‍वेत रंगों में दृश्य देखते हैं । अधिकतर प्रसंगों में, वे सूक्ष्म-आयाम के केवल स्थूलतम भाग को देख पाने में सक्षम होते हैं । उदाहरण के लिए, भुवर्लोक की अनिष्ट शक्ति कैसी दिखती है । पाताल के निचले लोकों की अनिष्ट शक्तियां जो अत्यधिक सूक्ष्म होती हैं जिन्हें सूक्ष्म अथवा दिव्यदृष्टि से युक्त लोगों द्वारा देख पाने की उनकी क्षमता से परे होता हैं । SSRF के साधक सूक्ष्म-आयाम के सर्वाधिक सूक्ष्म विवरणों तथा रंगों को ग्रहण करने की क्षमता से युक्त हैं । SSRF के साधक और गहरे आयाम में भी देख सकते हैं, जैसे अनिष्ट शक्ति का लोक, विशिष्ट समय में वे क्या कर रही हैं, ऐसा क्यों कर रही हैं, किसके आदेश पर वे ऐसा कर रही हैं, उसकी ऐसी गतिविधि करने की प्रक्रिया क्या है इत्यादि ।

  • SSRF की एक साधिका, अनुराधा वाडेकरजी ने एक अपरिचित व्यक्ति द्वारा भुगते जा रहे लक्षणों का विवेचन किया । जब उस व्यक्ति का साक्षात्कार किया गया, तब उनके लक्षण ८० प्रतिशत तक समान मिले । किसी मनोचिकित्सक को इन तथ्यों को पता करने में अनेकों घंटे लग जाते जो अनुराधाजी ने अपनी छठवीं इंद्रिय से जान लिया था ।
  • SSRF की एक और साधिका, योया वालेजी सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्रों को अनेक भागों में ग्रहण करती हैं, अर्थात पहले आंखें, पश्‍चात पैर इत्यादि इसके उपरांत वे उन सभी भागों को जोडकर चित्र पूरा करती हैं ।

सूक्ष्म-आयाम में जो दिखता है, वही सबकुछ नहीं होता । उदाहरण के लिए, सूक्ष्म-कलाकार को लगता है कि उन्हें मार्गदर्शक आत्मा का दृश्य दिख रहा है जबकि वे अनिष्ट शक्तियां हो सकती हैं जो उन्हें झूठे दृश्य दिखा रही होती हैं । सूक्ष्म-आयाम में एक अनिष्ट शक्ति उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्ति के नियंत्रण में होती हैं । इसमें नियंत्रण के अनके स्तरों का होना सामान्य है । निम्न स्तर की अनिष्ट शक्तियों द्वारा किए जा रहे कार्य के लिए उत्तरादायी सातवें पाताल के सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक का सफलतापूर्वक पता लगाने हेतु सर्वोच्च स्तर की छठवीं इंद्रिय (अतींद्रिय संवेदी क्षमता) का होना अनिवार्य है ।

कृपया संदर्भ हेतु हमारा लेख असामान्य गतिविधि को समझने हेतु छठवीं इंद्रिय की गहन क्षमता पढें ।