नामजप की आध्यात्मिक पद्धति अध्यात्म के मूलभूत सिद्धांतों के अनुरूप कैसे है ?

अध्यात्म शास्त्र बताता है कि जिस धर्म / पंथ में हमारा जन्म हुआ है उस धर्म के / पंथ के देवता का नामजप करना आज के कलियुग में साधना के लिए महत्त्वपूर्ण नींव है । नामजप संपूर्ण आध्यात्मिक यात्रा में उपयुक्त है । यह नामजप कहीं भी और किसी भी समय किया जा सकता है । आज के युगके लिए यह सर्वाधिक सुलभ साधना है ।

यह आध्यात्मिक पद्धति सुविधाजनक होनेके साथ साथ, पूर्व उल्लेखित अध्यात्म के छ: मूलभूत सिद्धांतों के अनुरूप है ।

आध्यात्मिक सिद्धांत ‘नामजप’ आध्यात्मिक सिद्धांतों के अनुरूप कैसे है

जितने व्यक्ति, उतने ही ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग

सभी लोगों के लिए एक ही देवता का नामजप करना अपेक्षित नहीं है । प्रत्येक व्यक्ति अपने जन्मजात धर्म के / पन्थ के अनुसार उपयुक्त नामजप करे । हिन्दू अपने कुलदेवता का नामजप करें ।

अनेक से एक की ओर

प्रार्थना के अनेक शब्दों से हम एक शब्द की ओर जाते हैं । यह एक शब्द (नाम) ईश्वर की शक्ति का केंद्रित रूप है ।

स्थूल से सूक्ष्म की ओर

स्थूल कर्मकांड भक्ति से व्यक्ति सूक्ष्म साधना की ओर बढता है, जैसे देवता का नामजप करना, जो कहीं पर भी बिना किसी बंधन के किया जा सकता है ।

आध्यात्मिक स्तर के अनुसार

‘नामजप’ साधना की नींव है । जैसे-जैसे व्यक्ति साधना में आगे बढता है, वह उच्च स्तर का नामजप करने लगता है, जैसे – बिना होंठ हिलाए नामजप करना, मन ही मन नामजप करना और अंततः निरंतर नामजप करना ।

काल के लिए उपयुक्त

अध्यात्म शास्त्र के अनुसार नामजप करना वर्तमान युग में मानवजाति के लिए उपयुक्त साधना है । कलियुग के संतों ने और उन्नत आध्यात्मिक मार्गदर्शक अथवा गुरुजनों ने भी इसका समर्थन किया है ।

कौशल्य अथवा क्षमता के अनुसार ईश्वर को अर्पित करना दिनभर नामजप द्वारा हम ईश्वर का स्मरण करते हैं और इस प्रकार अनावश्यक, नकारात्मक भौतिक विचारों में उलझने की अपेक्षा ईश्वर को अपना मन अर्पित करते हैं ।