१. परिचय
पाप और पुण्य क्या है ? इस लेख में हमने वर्णन किया है कि पाप ऐसे कर्म का परिणाम है, जो किसी अन्य की हानि के लिए उत्तरदायी है ।
इस लेख में हम पाप करनेवालों को किस प्रकार के परिणाम अथवा दंड भोगने पडते हैं, इसका वर्णन करेंगे ।
२. जो लोग पाप करते हैं, उन्हें दंड क्यों नहीं मिलता ?
कई बार हम अपराधियों, भ्रष्ट व्यक्तियों, अधिकारियों और राजनेताओं इत्यादि को पाप कर्म में लिप्त देखते हैं और तब भी वे ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जी रहे होते हैं । तब अनेक लोग, इस प्रश्न से खिन्न हो उठते हैं कि इन लोगों को इनके पाप का दंड क्यों नहीं मिलता ।
ये लोग अपने पूर्व जन्मों के पुण्य के कारण सुखी हैं । जबतक इनके पुण्य का भंडार समाप्त नहीं हो जाता, ईश्वर भी कुछ नहीं कर सकते । एक बार इनके द्वारा संचित पुण्य समाप्त हो जाने पर इन्हें पाप कर्मों का फल बीमारी, दरिद्रता, मृत्यु के पश्चा नरक की यातनाएं इत्यादि के रूप में भुगतना पडता है । संक्षेप में, कोई भी पाप के परिणामों से बच नहीं सकता ।
पूर्वजन्म के पुण्य होने पर भी, दुष्ट वृत्ति होने के कारण, अनिष्ट शक्तियां ऐसे लोगों के मन एवं बुद्धि को नियंत्रित कर इनमें स्वभावदोषों को दृढ करती है । जिससे वे और अधिक पाप करते हैं । फलतः इनके पुण्य शीघ्र समाप्त हो जाते हैं । एक बार उनके पुण्य समाप्त होने पर अनिष्ट शक्तियां उन्हें सर्व ओर से घेर लेती हैं, उन पर नियंत्रण कर लेती हैं और उन्हें अनेक प्रकार के कष्ट पहुंचाती हैं । मृत्यु के पश्चात भी ऐसे व्यक्ति अनेक वर्षों तक नरक की यातनाएं सहते हैं ।
३. नरक की यातनाएं
मृत्यु पश्चात नरक के विभिन्न लोकों में अनुभव होनेवाले कष्टों की जानकारी हमारे लेख ‘मृत्यु पश्चात हम कहां जाते हैं ? में दी गई है ।
४. मृत्यु पश्चात होनेवाले कष्ट और आगे की यात्रा
पाप करनेवालों की नरक की यातनाएं पूर्ण हो जाने पर क्या उनके कष्टों का अंत हो जाता है ?
इसका उत्तर यह है कि पाप करनेवालों की यात्रा निम्न दो प्रकार से चालू रहती है –
४.१ यदि पाप कर्म अल्प थे
अनेक वर्षों के कष्ट और गरीबी के पश्चात पापी की वृत्ति में परिवर्तन आता है । वे निर्धनों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं । उनकी अंतरात्मा अन्यों के प्रति प्रेम से भर जाती है । अनेक जन्मों के पश्चात, उनके स्वार्थ की भावना न्यून हो जाती है और वे सभी से प्रेम करनेवाले बन जाते हैं । अत: नम्रता और मानवता के गुणों के बल पर ऐसे व्यक्ति की वास्तविक अर्थ में आध्यात्मिक उन्नति होने लगती है । इस प्रकार जब लोगों को कष्ट भोगने पडते हैं तो उसका उद्देश्य उनके जीवन की भलाई करना ही होता है ।
४.२ यदि पापकर्म अधिक थे
अत्यधिक पाप करनेवाले अपने मनुष्य जीवन का दुरुपयोग करते हैं । अत: उन्हें सहस्त्रों वर्षों तक पुन: मनुष्य जन्म प्राप्त नहीं होता । नरक के भोग समाप्त होने पर कुछ मनुष्य निम्न प्रकार का जीवन व्यतीत करते हैं –
१. एक वृक्ष अथवा पत्थर का जीवन जीना,
२. कीटक के रूप में जन्म
३. मछली, चमगादड अथवा गिद्ध इत्यादि प्रजातियों में जन्म
४. भार ढोनेवाले पशु के रूप में जन्म (यदि पाप कर्म की मात्रा अत्यधिक है, तो उन्हें तीस-चालीस बार ऐसे जानवरों के रूप में जन्म लेना पडता है, तत्पश्चात अत्यधिक निर्धन परिवार में जन्म मिलता है, जहां प्रत्येक सदस्य को जीवन निर्वाह के लिए अत्यधिक श्रम करना पडता है ।)
५. कुरूप, विकलांग अथवा व्याधिग्रस्त (बीमार) व्यक्ति के रूप में जन्म
६. असाध्य रोग जैसे कैंसर इत्यादि का कष्ट
७. भिखारी बनना
ऊपर दी गई जानकारी से हम समझ सकते हैं कि जो मनुष्य के रूप में अपराध करते हैं, उन्हें दंड अवश्य मिलता है और दंड द्वारा ही पाप का भुगतान होता है । इस प्रक्रिया द्वारा उन्हें स्वयं में परिवर्तन करने का अवसर दिया जाता है । यदि वे और पापकर्म न करें तो वे स्वयं को दंड के इस चक्र से मुक्त कर सकते हैं ।
५. पापकर्मों के परिणामस्वरूप रोग और समस्याएं
निम्न सारणी विभिन्न पापों और अगले जन्मों अथवा मृत्यु पश्चात होनेवाले परिणामों की जानकारी देती है –
अगले जन्म में अथवा नरक में पापकर्मों के मिलनेवाले परिणाम
स्त्री द्वारा किया गया पाप | मनुष्य के रूप में जन्म | पशु के रूपमें जन्म | |
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पति के साथ अयोग्य व्यवहार | पति पर क्रोध करना | बहरापन, सात जन्मों तक निर्धनता | कुतिया, लोमडी |
पति से बिना बांटे अकेले खाना | – | चमगादड, जो केंचुए खाते हैं, और आगे अपना ही मल खाते हैं | |
व्यभिचार | अन्य पुरुषों की ओर वासना की दृष्टि से देखना | निर्धनता, आंख में भेंगापन | – |
अन्य पुरुषों से व्यभिचार | – | कुतिया |
पुरुष द्वारा किया गया पाप | मनुष्य के रूप में जन्म | पशु के रूप में जन्म | |
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दूसरा विवाह | अगले सात जन्मों तक दुर्भाग्य | – | |
किसी स्त्री को गर्भपात के लिए बाध्य करना | प्रजनन अक्षमता, यदि पुत्र का जन्म हुआ तो उसका अल्पायु होना | – | |
परस्त्रीगमन | वासनापूर्वक अन्य स्त्री का मुख देखना | नेत्रविकार | – |
मित्र की पत्नी से शारीरिक संबंध | – | कुत्ता | |
भाई की पत्नी से संबंध | – | गधा, तत्पश्चात सर्प योनि में जन्म और अंत में नरक |
स्त्री और पुरुष दोनों के पाप | मनुष्य के रूप में जन्म | पशु के रूप में जन्म |
---|---|---|
अपने अतिरिक्त अन्यों के धर्म की आलोचना | निर्धनता | – |
यह देखना कि अन्य व्यक्ति कितना खाता है | अंधापन | – |
अन्यों की न्यूनता, दुर्बलता की सदैव चर्चा करना | हृदय के रोग | – |
पापियों के साथ मित्रता करना | – | गधा |
धोखा देना | भोजन के पश्चात उल्टी / मितली | – |
यह सारणी चोरी के परिणामों की विस्तृत जानकारी एवं उदाहरण देती है –
चोरी | मनुष्य के रूप में जन्म | पशु के रूप में जन्म |
---|---|---|
सामान्य | खराब नख | – |
पानी | – | कौआ |
फल | कुरूपता | वन्य पशु |
दूध | कुष्ठ रोग | – |
मधु | – | बाज (गरूड) |
अन्न | प्लीहा संबंधी व्याधियां | – |
वस्त्र, तांबा, लोहा, कपास और नमक | सफेद दाग | – |
घरेलु वस्तुएं और बरतन | – | कौआ |
पुस्तकें | अंधापन | – |
सोना (स्वर्ण) | मूत्ररोग, मधुमेह | कीडा, पतंगा |
जिनकी मृत्यु समीप है, उनकी वस्तुएं | आजीवन कारावास | – |
धन जो समाज का है | त्वचा संबंधी असाध्य व्याधि | – |
६. संक्षेप में – पाप के परिणाम
जो पाप करता है, उसे उसका परिणाम भुगतना ही पडता है । यदि हम इस जन्म में इन्हें नहीं भुगतेंगे, तो मृत्यु पश्चात जीवन में अथवा किसी भावी जन्म में उन्हें अवश्य भुगतना पडेगा । यदि हम जीवन की समस्याओं के प्रति इस सकारात्मक दृष्टि से देखेंगे कि ये समस्याएं हमारे पापकर्मों का फल है, तो हम अपने जीवन में अच्छा परिवर्तन लाकर आध्यात्मिक उन्नति कर सकते हैं । पापों का प्रायश्चित इस प्रक्रिया में हमारी सहायता कर सकता है ।