नॉस्त्रेदमस के जीवन तथा भविष्यवाणियों पर आध्यात्मिक शोध

सारांश :

यह लेख प्रसिद्ध भविष्यवक्ता नॉस्त्रेदमस के जीवन तथा भविष्यवाणियों पर आध्यात्मिक दृष्टिकोण प्रदान करता है । उनके जीवन का आध्यात्मिक उद्देश्य था अनेक जन्मों की साधना के उपरांत प्राप्त हुई पराशक्ति की आसक्ति से मुक्त होना । प्रसिद्धि की इच्छा तथा अपनी पराशक्ति के प्रति तीव्र आसक्ति के कारण वे पृथ्वी पर अपने जीवन के आध्यात्मिक उद्देश्य के पथ से भटक गए । हम में से वे लोग जो पराशक्ति अथवा छठवीं इंद्रिय से संपन्न हैं, उनके लिए नॉस्त्रेदमस का जीवन एक सतर्क करनेवाली कथा है ।

१. नॉस्त्रेदमस के जीवन तथा भविष्यवाणियों का परिचय

HIN_Nostradamus-artमाईकल डी नॉस्त्रेदम (१५०३-६६), जो नॉस्त्रेदमस के नाम से विख्यात थे, विश्‍व के अनेक प्रसिद्ध भविष्यद्रष्टाओं में से एक थे । उनकी भविष्यवाणियों का विस्तार अपने समय से ५०० वर्षों तक है, जिन्होंने पूरे विश्‍व को मंत्रमुग्ध किया है । स्पिरिच्युअल साइंस रिसर्च फाऊंडेशन (SSRF) ने कुछ समय पूर्व नॉस्त्रेदमस के आध्यात्मिक जीवन पर आध्यात्मिक शोध किया, जिसमें उनकी असाधारण क्षमता भी सम्मिलित है । इस लेख की विषयवस्तु प्रगत छठवीं इंद्रिय (अतींद्रिय संवेदी क्षमता) के माध्यम से प्राप्त की गई है ।

उन सभी प्रसंगों में, जिनमें किसी व्यक्ति के पास अलौकिक क्षमता अथवा भविष्य को देख पाने की क्षमता होती है, तो यह सामान्यतः उसके पिछले जन्मों की साधना का फल होता है । इस क्षमता के उपयोग के आधार पर हमारी आध्यात्मिक यात्रा प्रभावित होने के साथ -साथ मृत्यु के उपरांत हम किस लोक में जाएंगे, यह निश्‍चित होता है ।

 

 

 

२. नॉस्त्रेदमस को भविष्यवाणी की क्षमता मिलने के कारण पर आध्यात्मिक शोध

पृथ्वी पर जीवन मिलने के पूर्व उन्होंने स्वर्गलोक में साधना की थी । इस साधना के फलस्वरूप, नॉस्त्रेदमस को दो प्रकार की पराशक्तियां प्राप्त हुईं :

१. दृष्टि से संबंधित पराशक्ति अर्थात भविष्य में जो होनेवाला है, वे उसे देख सकते थे ।

२. वाणी से संबंधित पराशक्ति अर्थात वे जो भी देखते अथवा सूक्ष्म से उन्हें बताई जा रही बातों को वे शाब्दिक रूप में प्रस्तुत कर सकते थे और वह सत्य भी हो जाता था ।

३. नॉस्त्रेदमस का जन्म तथा उनकी भविष्यवाणियों के उद्देश्य पर आध्यात्मिक शोध

जिन लोगों के पास पराशक्ति होती है, वे सामान्यतः अपने अथवा समाज के सांसारिक उद्देश्यों के लिए उसका उपयोग करते हैं । अध्यात्मशास्त्र के अनुसार, पराशक्ति का प्रयोग किसी व्यक्ति की सांसारिक इच्छा की पूर्ति अथवा प्रसिद्धि प्राप्त करने के उद्देश्य से करने पर व्यक्ति की आध्यात्मिक प्रगति पर विपरीत प्रभाव पडता है । इस कारण जिन व्यक्तियों के पास पराशक्ति है, उनके लिए सुझाव है कि वे अपनी शक्ति का प्रयोग आगे की साधना अर्थात ईश्‍वरप्राप्ति हेतु केवल आध्यात्मिक रूप से उन्नत व्यक्ति (गुरु) के मार्गदर्शन में करें । एक गुरु अपने शिष्य को उसकी आध्यात्मिक शक्तियों का ईश्‍वरप्राप्ति हेतु प्रयोग करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं ।

भविष्यवाणी करने की उनकी पराशक्ति ने उनपर अपनी पकड/नियंत्रण दृढ कर ली थी, जिससे मुक्ति पाने के लिए नॉस्त्रेदमस को पृथ्वी पर जन्म लेना पडा । उनका आध्यात्मिक लक्ष्य आगे के इष्ट लोकों में आध्यात्मिक यात्रा कर पाने हेतु आवश्यक साधना करने के लिए मार्गदर्शन प्राप्त करना था ।

४. आध्यात्मिक दृष्टिकोण से नॉस्त्रेदमस के जीवन तथा भविष्यवाणियों पर आध्यात्मिक शोध

अपनी पराशक्तियों के माध्यम से नॉस्त्रेदमस ने अनेक यथार्थ भविष्यवाणियां कीं । अनेक बार ध्वनि अथवा दृश्य के माध्यम से वे स्पष्ट रूप से भविष्य को सुनते अथवा देखते थे । उनके कार्य के आरंभ में उच्च सूक्ष्म-लोक से तीन ईश्‍वरीय शक्तियों ने उनकी दृष्टि से संबंधित पराशक्ति के माध्यम से उनका मार्गदर्शन किया ।

अनेक वर्षों के उपरांत, नॉस्त्रेदमस अति महत्त्वकांक्षी बन गए तथा भविष्य देखने में अत्यधिक समय गंवाया । अपनी पराशक्ति से उन्हें अनेक घटनाओं की पूर्वसूचना प्राप्त हुई । वे जो भी देखते उसे बताते, इस कारण लोगों को भविष्य में आनेवाले संकटों का पता चल जाता और उनसे बचने के लिए लोग सुरक्षात्मक उपाय करने लगे । इससे अनिष्ट शक्तियां क्रोधित हो गईं क्योंकि इससे लोगों के लिए कठिनाई निर्माण करने की उनकी योजना बाधित हो सकती थी । परिणामस्वरूप चौथे पाताल के सूक्ष्म मांत्रिकों ने उनके मस्तिष्क पर काली शक्ति के धागों के माध्यम से आक्रमण करना आरंभ किया । उन सूक्ष्म मांत्रिकों में काल्पनिक दृश्य निर्मित करने की क्षमता थी ।

अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण के कारण, उनका मस्तिष्क प्रभावित हुआ तथा उद्दीपकों के मस्तिष्क तक पहुंचने में बाधाएं निर्मित की गईं । परिणामस्वरूप, उनका व्यवहार विचित्र तथा सनकी-सा होना प्रारंभ हो गया ।

इसके परिणामस्वरूप, जीवन की सांझ में वे निराशा से पीडित हो गए । उनके कोई गुरु भी नहीं थे, अर्थात उनके जीवन में ऐसा कोई भी नहीं था जो उन्हें आध्यात्मिक स्तर पर मोड सके । इसलिए गुरु की आध्यात्मिक शक्ति भी उनका रक्षण तथा व्यक्तिगत रूप से उनका आध्यात्मिक मार्गदर्शन करने के लिए उपलब्ध नहीं थी । आध्यात्मिक शोध दर्शाते हैं, कि उनका निजी जीवन आंतरिक दुःख से भरा था, जिसके संदर्भ में उनके आसपास के लोगों को संभवतः ज्ञात नहीं था  ।

आरंभ में, अपनी दृष्टि की पराशक्ति के गुण के कारण नॉस्त्रेदमस दृष्टि एवं दृश्य के माध्यम से भविष्य में होनेवाली घटनाओं के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करते थे । समय के साथ अपनी प्रसिद्धि तथा लोगों द्वारा मिलनेवाली प्रशंसा के कारण वे इसी में तल्लीन हो गए । उनके व्यक्तित्व के इस दोष ने उन्हें आध्यात्मिक स्तर पर दुर्बल बना दिया । सूक्ष्म-मांत्रिक ने उनकी इस आध्यात्मिक दुर्बलता का अनुचित लाभ उठाया । नॉस्त्रेदमस की अपनी पराशक्ति के कारण दिखनेवाले दृश्यों में मायावी सूक्ष्म-मांत्रिकों ने अपने कुछ भ्रामक दृश्य मिश्रित करना प्रारंभ कर दिया । उन्होंने  अपने भ्रामक दृश्यों के साथ काली शक्ति मिश्रित कर नॉस्त्रेदमस पर आक्रमण किया । अनिष्ट शक्तियों की भविष्यवक्ताओं पर आक्रमण करने की यह एक सामान्य पद्धति है । इससे, उनकी आंखें पैनी तथा आक्रामक दिखने लगीं तथा सूक्ष्म-मांत्रिकों की काली शक्ति का प्रभाव भी दिखना आरंभ हो गया।

अनिष्ट शक्तियों का सूक्ष्म-प्रभाव तथा उनकी अपनी प्रसिद्धि की इच्छा के कारण उनके आसपास के सूक्ष्म-वातावरण में सूक्ष्म दुर्गंध आने लगी । उनके सान्निध्य में सकारात्मकता अनुभव होने के स्थान पर लोगों को कष्ट अनुभव होने लगा । उनके अनेक सात्त्विक मित्रों तथा सहकर्मियों ने उनसे दूरी बनानी आरंभ कर दी । सूक्ष्म-मांत्रिक वास्तव में यही चाहते थे ।

अपनी पराशक्ति तथा प्रसिद्धि के प्रति अतीव प्रेम के कारण नॉस्त्रेदमस ने अपनी दृढ इच्छाशक्ति (स्वतंत्र इच्छा) का प्रयोग किया । जिसके कारण उन्होंने स्वयं को पृथ्वी पर आगे की साधना से वंचित कर लिया । अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस आदि) के प्रभाव ने इसे और भी बुरा बना दिया । धीरे-धीरे उनके पूर्वजन्मों की साधना का संचित भाग समाप्त होने लगा । आगे मृत्यु के समय नॉस्त्रेदमस की सूक्ष्म-देह को उन्हीं सूक्ष्म-मांत्रिकों ने पकड लिया, जिसके फलस्वरूप उन्हें भुवर्लोक में ही रहना पडा । संक्षेप में, अपने समय का उपयोग पृथ्वी पर साधना कर उच्च सकारात्मक लोक प्राप्त करने की अपेक्षा पर, मृत्योपरांत उन्हें स्वर्ग लोक से नीचे गिरकर अपनी मृत्यु के उपरांत भुवर्लोक की यात्रा करनी पडी ।

५. नॉस्त्रेदमस के जीवन तथा भविष्यवाणियों से सीखने योग्य सचेत करनेवाले सूत्र

हमारी आध्यात्मिक यात्रा हमारे अपने स्वभाव दोषों के संकट के कारण एक फिसलनवाली ढलान से भरी हो सकती है । यद्यपि नॉस्त्रेदमस भविष्यवाणी कर पाने की पराशक्ति से संपन्न थे, तथापि उन्होंने इसका उपयोग अपनी आगे की  आध्यात्मिक उन्नति करने के लिए नहीं किया । केवल भविष्यवाणी करने से स्वतः साधना नहीं हो जाती । यदि उनका प्राथमिक उद्देश्य उनकी साधना होती तो उनका जीवन निश्‍चित रूप से अलग होता ।

केवल पराशक्ति होना पर्याप्त नहीं है; निरंतर साधना करने के साथ ही अपना अहं क्षीण कर अपने मन एवं बुद्धि का लय करना होता है । मन एवं बुद्धि का लय करने से हमारा तात्पर्य है, बाह्य अनुभवों तथा विचारों के परे जाना, जिससे उच्च स्तरीय ईश्‍वरीय विश्‍वमन एवं विश्‍वबुद्धि से संपर्क साध्य हो सके । हमारा मन एवं बुद्धि हमारे अनुभवों एवं स्थितियों से संबंधित होता है और ये समय के अवरोधों से परे भूत अथवा भविष्यकाल को नहीं देख सकते । विश्‍वमन एवं विश्‍वबुद्धि के ईश्‍वरीय होने के कारण, ये पूरे भूत अथवा भविष्यकाल के पूर्ण ज्ञान के माध्यम से कार्य करते हैं और ये व्यक्ति के अनुभवों की स्थिति तक ही सीमित नहीं होते । यह हमें व्यक्तिगत इच्छा के नियंत्रण से मुक्त कर ईश्‍वर की इच्छा को समझने में सक्षम बनाते हैं । परिणामस्वरूप हम अपनी आत्मा (अपने अंतर में विद्यमान ईश्‍वर)को ढूंढकर अध्यात्म के सर्वोच्च लक्ष्य, जो ईश्‍वर में विलीन हो जाना है, उसे अनुभव कर पाने में सक्षम होते हैं ।

संदर्भ हेतु पढें लेख : आध्यात्मिक स्तर जो यह दर्शाता है कि हमारे बढते आध्यात्मिक स्तर से हमारे मन एवं बुद्धि का लय होता जाता है

उदाहरण के लिए, SSRF के कुछ साधक जिनकी दृष्टि से संबंधित छठवीं इंद्रिय प्रगत है, वे इसका प्रयोग समाज को आध्यात्मिक आयाम के संदर्भ में शिक्षित करने के उद्देश्य से सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र बनाने में करते हैं । वे इसे अपनी साधना का एक भाग समझकर परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में ऐसा करते हैं । किसी भी परिस्थिति में वे अपने इस ईश्‍वर प्रदत्त उपहार का प्रयोग लाभ अथवा प्रसिद्धि पाने के लिए नहीं करते । अपनी इस क्षमता पर अहंकार के परिणामस्वरूप उनका अहं न बढे इसके प्रति वे सदैव सर्तक रहते हैं ।

इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पडा है जिसमें, आध्यात्मिक रूप से विकसित लोग  पराशक्ति के प्रदर्शन में फंसकर अपनी आध्यात्मिक अधोगति कर बैठे । वे सूक्ष्म-मांत्रिकों के लिए सरल लक्ष्य बन गए, जो उन्हें इस प्रकार के प्रलोभन में अनेक जन्मों तक फंसाए रखते हैं । आध्यात्मिक रूप से विकसित नॉस्त्रेदमस भी एक ऐसे ही उदाहरण हैं, जो अपनी पराशक्ति के प्रदर्शन में फंसकर अपनी आध्यात्मिक अधोगति कर बैठे ।