जलवायु परिवर्तन अद्यतन – कारण और समाधान

सार

हाल के दिनों में पूरे विश्व में प्राकृतिक आपदाओं और तीव्र जलवायु परिवर्तन की घटनाओं में भयानक वृद्धि देखी गई है । आध्यात्मिक शोध के अनुसार, भूकंप, बाढ और ज्वालामुखी विस्फोट जैसी प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि का मूल कारण है, ब्रह्मांड में निर्धारित कालावधि के उपरांत होनेवाले चक्रीय परिवर्तन । प्राकृतिक आपदाओं के जो परिणाम आज तक हमने अनुभव किए हैं, वास्तव में वह एक विध्वंसक आपातकाल का प्रारंभ है, जिसकी तीव्रता आगामी ५ वर्षों अर्थात वर्ष २०२४ तक और भी बढेगी । विनाशकारी चरण में तृतीय विश्वयुद्ध भी देखने को मिलेगा, जिसमें अत्यधिक प्राणहानि होगी । इस कठिन समय (संकटकाल) से बचने के लिए साधना ही एकमात्र विकल्प है ।

यह लेख पहली बार वर्ष २००७ में प्रकाशित हुआ था और इसे मार्च २०२२ तक अद्यतन (अपडेट )किया गया था ।

संदर्भ

इस लेख को समझने के लिए निम्नलिखित मूलभूत लेखों का अध्ययन करने का सुझाव दिया जाता है :

विषय सूची

१. प्राकृतिक आपदाओं की बढती हुई तीव्रता

पिछले एक दशक से हम पूरे विश्व में प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता में वृद्धि होते देख रहे हैं । कभी प्रसारमाध्यमों द्वारा तो कभी हममें से कुछ लोगों ने प्रत्यक्ष अनुभव द्वारा प्रकृति के इस भयावह सामर्थ्य को अनुभव किया है । कुछ समय पूर्व दक्षिण-पूर्व एशिया एवं जापान में आई सुनामी, पाकिस्तान, हैती तथा चीन में हुए भूकंप, साथ ही कटरिना एवं उत्तर और मध्य अमेरिका में आए अन्य चक्रवात आदि द्वारा हुए प्राकृतिक संकट हमने देखे हैं । इनकी तीव्रता के कारण हुआ अभूतपूर्व विध्वंस तथा जन-हानि हमारे मन पर बुरी तरह से अंकित है ।

क्या परिस्थिति इससे भी अधिक बिगड सकती है ? यदि हां, तो हमारे पास कितना समय है? क्या इस संदर्भ में कुछ किया जा सकता है?

निम्नलिखित ग्राफ (रेखा चित्र) से पता चलता है कि विश्वस्तर पर आपदाओं की संख्या बढ रही है, विशेष रूप से पिछले दो दशकों से ऐसा हो रहा है ।

जलवायु परिवर्तन अद्यतन - कारण और समाधान

वर्ष १९७० से धरती पर भूकंप, भूस्खलन और ज्वालामुखी विस्फोट जैसी भूभौतिकीय आपदाओं की संख्या कुछ सीमा तक स्थिर रही है किंतु जलवायु से संबंधित विनाश की संख्या में भारी वृद्धि हुई है वास्तव में, किसी बडे परमाणु युद्ध के पश्चात अब जलवायु परिवर्तन को मानवता के लिए एक अस्तित्त्ववादी संकट के रूप में देखा जा रहा है

जलवायु परिवर्तन अद्यतन - कारण और समाधान

विश्व के अधिकांश वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के लिए इस तथ्य को उत्तरदायी मानते हैं कि पृथ्वी मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों की अभूतपूर्व वृद्धि के कारण गर्म (ऊपर ग्राफ देखें) हो रही है । सन २०१३ में, लिखित इतिहास में पहली बार कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर ४०० भाग प्रति दस लाख (पीपीएम) से अधिक अंकित किया गया । मई २०१९ (नासा, २०१९) में ४११ पीपीएम अंकित किए जाने के साथ ही इसमें वृद्धि) जारी है ।

इसके विपरीत, औद्योगिक युग के आगमन से पूर्व, पिछले ८००००० वर्षाें से प्रति मिलियन (पीपीएम) भागों में वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता, कभी भी ३०० पीपीएम को पार नहीं कर पाई थी । यह EPICA (आइस कोर) डेटा (नीचे ग्राफ देखें) (लिंडसे, २०१८) पर आधारित है । co2 की सांद्रता में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है कार्बन डाइऑक्साइड की वायुमंडलीय सांद्रता में औद्योगिक युग से पूर्व (१००० – १७५० ई) की लगभग २८० भाग प्रति दस लाख (पीपीएम) की सांद्रता से लेकर आज की ४०० भाग प्रति दस लाख (पीपीएम) से भी अधिक (लिंडसे, २०१८) की सांद्रता तक नाटकीय वृद्धि हुई है ।

जलवायु परिवर्तन अद्यतन - कारण और समाधान

इस भयानक स्थिति का संज्ञान लेते हुए, संयुक्त राष्ट्र ने जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान का आकलन करने के लिए जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC) की स्थापना की । आईपीसीसी स्वयं अनुसंधान नहीं करता, अपितु अपने आकलन के माध्यम से, आईपीसीसी जलवायु परिवर्तन पर उपलब्ध जानकारी की स्थिति को निर्धारित करता है । वह इस बात की पहचान करता है कि जलवायु परिवर्तन से संबंधित विषयों पर वैज्ञानिक समुदाय में कहां सहमति है और कहां पर और शोध की आवश्यकता है । प्रमुख प्रश्नों में से एक प्रश्न यह है, कि क्या मनुष्य जलवायु परिवर्तन के लिए उत्तरदायी है । इसके लिए पैनल ने निम्नलिखित निर्णय दिया है ।

वायुमंडल और महासागर के गर्म होने में, वैश्विक जलचक्र के परिवर्तन में, बर्फ और उसके पिघलने में, वैश्विक समुद्र तल में वृद्धि और कुछ जलवायु में तीव्र परिवर्तन होने के पीछे मानव के हाथ होने की जानकारी सामने आई है । चौथी मूल्यांकन रिपोर्ट (AR4) के उपरांत से ही मानव का हाथ होने की मात्रा बढी है । इस बात की तीव्र संभावना (९५-१००%) है कि २० वीं सदी के मध्य से इस तापमान का प्रमुख कारण मानव ही रहा है ।
– जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल (IPCC) की पांचवीं आकलन रिपोर्ट (AR5) जिसे वर्ष २०१४ में अंतिम रूप दिया गया था ।

जलवायु परिवर्तन के सिद्धांत पर संशयवादी तर्क देते हैं कि मनुष्य, वैश्विक तापमान एवं जलवायु परिवर्तन के संबंधों की सीमा के विषय में कोई निर्णायक प्रमाण नहीं है ।

तो जलवायु परिवर्तन कौन उत्पन्न कर रहा है और प्राकृतिक आपदाओं की संख्या एवं तीव्रता में वृद्धि क्यों हो रही है ? चूंकि यह एक ऐसी घटना है जिसका समाज पर वैश्विक प्रभाव है, इसलिए महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के साथ मिलकर SSRF ने जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं की बढती तीव्रता के मूल कारणों का पता लगाने के लिए आध्यात्मिक शोध किया ।

२. प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के क्या कारण हैं ?

जब जलवायु-वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन का अध्ययन करते हैं, तो वे मुख्य रूप से भौतिक कारणों और भौतिक समाधानों पर ध्यान केंद्रित करते हैं ।

इसके विपरीत, आध्यात्मिक शोध (प्रगत छठी ज्ञानेंद्रिय द्वारा किया गया) जलवायु परिवर्तन के मूल कारणों का विश्लेषण करते समय एक समग्र दृष्टिकोण रखता है । इसमें मौसम में हुए परिवर्तन तथा प्राकृतिक आपदा की पुनरावृत्ति एवं तीव्रता में हो रही वृद्धि के मूल कारणों को समझने के लिए तीनों आयामों (शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक) का विश्लेषण किया गया है ।

निम्नलिखित सारणी आध्यात्मिक शोध से प्राप्त जलवायु परिवर्तन के मूल कारणों की व्याख्या करती है

जलवायु परिवर्तन अद्यतन - कारण और समाधान

आध्यात्मिक शोध से यह ज्ञात हुआ कि,

  • जलवायु परिवर्तन होने में मनुष्य स्वयं केवल २ प्रतिशत ही उत्तरदायी है ।
    • मानव निर्मित भौतिक कारणों के अंतर्गत जीवाश्म ईंधन का जलना, वनों की कटाई, आदि अंतर्भूत हैं ।
    • मनोवैज्ञानिक कारणों के अंतर्गत लोगों के स्वभाव दोष हैं ।
    • आध्यात्मिक कारणों के अंतर्गत लोगों में व्याप्त प्रबल अहं, वैश्विक सिद्धांतों के अनुसार साधना का अभाव, मानवजाति का निम्न औसत आध्यात्मिक स्तर आदि सम्मिलित हैं ।
  • जलवायु परिवर्तन होने का ९८ % मूल कारण पृथ्वी पर नियमित रूप से होनेवाले चक्रीय परिवर्तन हैं । इन चक्रीय परिवर्तनों के अंतर्गत लोगों पर चक्र का प्रभाव, पर्यावरण और अदृश्य जगत जिसे आध्यात्मिक आयाम भी कहा जाता है, उसमें व्याप्त सूक्ष्म शक्तियां भी सम्मिलित हैं । इस वर्तमान चक्र का निचला भाग उनसे इस तरह से व्यवहार कराता है, जो उनके सामान्य व्यवहार से भिन्न होता है ।

किंतु वास्तव में इसका क्या अर्थ है ?

आइए इसे थोडा और विस्तार से समझने का प्रयास करते हैं । ब्रह्मांड की उत्पत्ति से ही, ब्रह्मांड अपने लय होने तक ४ मुख्य युगों गुजरता है । अभी हम चौथे युग में है जिसे कलियुग अथवा ´संघर्ष का युग´ कहते हैं । इस वर्तमान युग की विशेषता यह है कि पिछले युगों की तुलना में इसमें आध्यात्मिक प्रदूषण (अपवित्रता, जिसे नीचे समझाया गया है) का स्तर उच्च है । ये मुख्य युग भी ब्रह्मांड के छोटे युग अथवा छोटे चक्रों से बने होते हैं । वर्ष १९९९-२०२४ की अवधि भूलोक के आसपास के ब्रह्मांड के लोक में एक छोटे-चक्र का अंत दर्शाती है । वर्ष  २०२५  ही वह वर्ष है, जब एक नए चक्र का आरंभ होगा ।

३. तीन सूक्ष्म घटक और चक्र

प्रत्येक चक्र उत्पत्ति, स्थिति और लय के चरणों से गुजरता है । ये चक्र स्वाभाविक रूप से आध्यात्मिक होते हैं और ‘ब्रह्मांड के ३ सूक्ष्म घटकों के (त्रिगुणों के) अनुपात में परिवर्तन’ होने के कारण निर्मित होते हैं । सृष्टि की रचना मूल त्रिगुणों से हुई है, सत्त्व, रज एवं तम । आधुनिक विज्ञान इससे अनभिज्ञ है । ये तीनों घटक सजीव-निर्जीव तथा स्थूल-सूक्ष्म वस्तुओं में विद्यमान होते हैं । सत्त्व पवित्रता और ज्ञान का, रज क्रिया का और तम अज्ञानता और निष्क्रियता का प्रतीक है ।

जब सत्त्वगुण में वृद्धि होती है तो मौसम आनंददायी, अनुकूल और संतुलित होता है । जब रज-तम गुणों में वृद्धि अथवा उसका प्रसार होता है तो अस्थिरता उत्पन्न होती है, और यह अंततः कुछ अवांछित अथवा विनाश की ओर ले जाता है । तमोगुण की मात्रा में वृद्धि से आध्यात्मिक प्रदूषण होता है । रजोगुण सत्त्व अथवा तम दोनों में से किसी एक गुण को गति प्रदान करता है । जब रज-तम में वृद्धि होती है, तो परिणामस्वरूप आध्यात्मिक अशुद्धि अथवा तमोगुण का प्रसार होने लगता है ।

३.१ सूक्ष्म चक्र का एक उदाहरणदिन और रात

यहां तक कि प्रत्येक दिन भी, एक चक्र से गुजरता है जैसे प्रातःकाल के समय जब सूरज उदय होता है, और उसके उपरांत देर सुबह, दोपहर, देर दोपहर, गोधूलि वेला, संध्या एवं रात्रि आती हैं । अगले दिन सवेरा होने पर एक चक्र पूरा होता है ।

दिन के प्रत्येक भाग के अपने भौतिक और आध्यात्मिक गुण होते हैं । दिन के समय के आधार पर व्यक्ति का व्यवहार भी बदलता है । उदाहरण के लिए, प्रातःकाल के समय हमें उठने का मन करता है, तथा हमें ताजगी अनुभव होती है और हम सतर्क एवं कार्य पर जाने के लिए तैयार होते हैं । दोपहर तक, हम अधिक सुस्त हो जाते हैं । संध्या समय, हमें बाहर घूमने जाने, मौजमस्ती करने अथवा आराम करने जैसा लगता है । रात्रि के समय, लोगों द्वारा अनियंत्रित व्यवहार दर्शाने की अधिक संभावना होती है । आंकडे बताते हैं कि वयस्कों द्वारा किए गए हिंसक अपराध आम तौर पर प्रायः ९-१० बजे के आस पास शिखर पर होते हैं और सुबह ६ बजे के आस पास (ojjdp.gov) सबसे कम (न्यूनतम) होते हैं । जैसे जैसे रात्रि का समय निकट आता है, हम थक जाते हैं और हम सोना चाहते हैं । हमारे व्यवहार पर भी पूरे दिन के इन क्रिया-कलापों प्रभाव पडता है ।

जिस प्रकार रात्रि का समय (जो दैनिक चक्र के अंत को दर्शाता है) लोगों के व्यवहार पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, ठीक उसी प्रकार, जब एक छोटे-चक्र का अंत होता है, तब मानव व्यवहार पर उसका प्रतिकूल प्रभाव पडता है ।

३.२ मानव पर चक्र का प्रभाव

एक चक्र के आरंभ में, सत्वगुण की मात्रा तुलनात्मक रूप से अधिक होती है और इसलिए शांति और सुखसमृद्धि रहती है । इसके विपरीत, जब ब्रह्मांड के किसी भी चक्र के पूर्ण होने का समय आता है, तो स्वाभाविकरूप से इसका अर्थ है कि इस समय वातावरण में विद्यमान रज-तम गुणों की मात्रा उस चक्र में अन्य समय की तुलना में बढी हुई है । व्यक्ति और वातावरण पर इसका हानिकारक प्रभाव पडता है ।

इसे और अधिक सरलता से समझने के लिए, चलिए पुनः उस दिन और रात के छोटे चक्र पर आते हैं जिसकी पहले चर्चा की गई थी । ब्रह्ममुहूर्त में, सूक्ष्म सत्त्व गुण प्रबल होता है और आध्यात्मिक रूप से इसे दिन का सबसे शुद्ध (सात्त्विक) समय माना जाता है । इसी कारण, दिन के दूसरे समय की तुलना में सुबह के समय लोगों की गतिविधियां अपेक्षाकृत अधिक सात्त्विक होती हैं । किंतु रात में वातावरण में तमोगुण प्रबल होता है, लोगों के व्यवहार पर इससे प्रतिकूल प्रभाव पडता है । इसलिए रात में लोग तामसिक गतिविधियों में अधिक लिप्त रहते हैं ।

एक चक्र के अंत में, जैसा कि वर्तमान विश्व जिस स्थिति से गुजर रहा है, जहां आध्यात्मिक अशुद्धता (रज तम) के बढे स्तर के कारण लोग चारों ओर अनुचित कृति करने लगे हैं (जब वातावरण आध्यात्मिक रूप से सकारात्मक (सात्त्विक) होता है, तब लोगों का आचरण भी अधिक अच्छा होता है) ।

मृदा एवं जल परीक्षण

SSRF एवं महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय ने पूरे विश्व की मिट्टी एवं जल के सूक्ष्म पहलुओं का अध्ययन किया । इसके निष्कर्ष विश्व की वर्तमान स्थिति के विषय में बहुत कुछ बताते हैं । १८ फरवरी २०२० तक ३३ देशों से प्राप्त ४६७ मिट्टी के तथा ४६२ जल के नमूने एकत्र किए । ऑरा तथा ऊर्जा स्कैनर का उपयोग कर इन नमूनों के सूक्ष्म पहलुओं का अध्ययन किया गया । भारत के बाहर के लगभग ८२ प्रतिशत मिट्टी और जल के नमूनों में नकारात्मक स्पंदन पाए गए । इस बात के संकेत भी मिले हैं कि समय के साथ इन स्पंदनों की नकारात्मकता बढ रही है ।

ये निष्कर्ष आध्यात्मिक शोध से प्राप्त इन निष्कर्षाें से मेल खाते हैं कि वातावरण में तमोगुण का अनुपात बढ जाने के कारण आध्यात्मिक प्रदूषण में वृद्धि हुई है ।

मृदा एवं जल परीक्षण के बारे में अधिक जानने के लिए पढें

४. जलवायु परिवर्तन में अनिष्ट शक्तियों की भूमिका

चक्र पूर्ण होने के पीछे आध्यात्मिक आयाम की शक्तिशाली अनिष्ट शक्तियों की भी एक प्रमुख भूमिका होती है । चक्र के पूर्ण होने के समय में आध्यात्मिक रूप से प्रदूषित वातावरण, समाज को अनिष्ट शक्तियों के नियंत्रण में जाने के लिए अधिक पूरक होता है और ये शक्तियां मुख्य रूप से लोगों के स्वभावदोषों के कारण ऐसा कर पाती हैं । अनिष्ट शक्तियां अपने लाभ के लिए लोगों के अनुचित आचरण को बढावा देती हैं, फलस्वरूप तमोगुण में वृद्धि होती है । विश्व की वर्तमान दुर्दशा का मुख्य कारण है – एक चक्र पूर्ण होना तथा उसमें निहित अनिष्ट शक्तियां एवं मानव के स्वभावदोष का एक प्रबल संयोजन होना । यह भी एक प्रमुख कारण है कि क्यों मनुष्य ने पर्यावरण और अपने एकमात्र घर, पृथ्वी ग्रह की उपेक्षा कर उसका दुरुपयोग किया ।

इसलिए, चक्र के प्रभाव के बिना, जलवायु परिवर्तन के कारणों में मानव का योगदान केवल २% है ।

किंतु, एक चक्र के पूर्ण होने के प्रभाव में और अनिष्ट शक्तियों के उकसाए जाने के कारण, भूलोक में मनुष्य एक ऐसा महवपूर्ण माध्यम बन जाता है जिसके माध्यम से वैश्विक तापमान (ग्लोबल वार्मिंग) और जलवायु परिवर्तन की घटना होती है । इसलिए, यद्यपि जलवायु परिवर्तन मुख्य रूप से चक्रीय कारणों के कारण होता है, किंतु यह ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है कि भौतिक जगत (भूलोक) में इस कार्य की प्रक्रिया मनुष्य के माध्यम से होती है, और इस प्रकार जलवायु परिवर्तन के ९८% कारणों में इसका योगदान होता है ।

५. जलवायु परिवर्तन में कार्बन डाइऑक्साइड की भूमिका

इससे पूर्व हमने वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के बढती सघनता (सांद्रता) को दिखाया था, जो ४०० पीपीएम से ऊपर तक जा चुकी है । वैज्ञानिकों का कहना है कि कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) वायुमंडल में ऊष्मा अवशोषित करनेवाली प्रमुख गैस है जो पिछले कुछ दशकों में औसत तापमान अधिक होने के लिए कुछ सीमा तक उत्तरदायी है (ucsusa.org, २०१७) । संशयवादी लोग जलवायु परिवर्तन में मानवजाति की गतिविधियों के परिणामों को यह तर्क देकर अनदेखा कर देते हैं कि ग्रह की वनस्पतियों के लिए CO2 का उत्सर्जन सकारात्मक होता है । इतना ही नहीं, वे यह तर्क भी देते हैं, कि जीवित रहने के लिए वनस्पति/पौधे कार्बन डाइऑक्साइड पर निर्भर होते हैं और यदि वायुमंडल में यह गैस अधिक मात्रा में होगी, तो इससे वनस्पतियों के विकास में वृद्धि हो सकती है ।

जलवायु परिवर्तन में कार्बन डाइऑक्साइड की भूमिका के संदर्भ में प्रश्न और आध्यात्मिक शोध के माध्यम से प्राप्त उत्तर ।

१. क्या CO2 में उल्लेखनीय वृद्धि, ग्रह और जलवायु परिवर्तन को प्रभावित कर रही है ?

उत्तर : हां

२. क्या यह जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण है?

उत्तर : यदि हम इसे केवल भौतिक दृष्टि से देखें, तो ! अन्यथा यह मुख्य रूप से चक्रीय परिवर्तनों के कारण होता है ।

3. क्या CO2 के स्तर में वृद्धि केवल मनुष्य के कारण हो रही है ?

उत्तर : नहीं । COमें ७०% वृद्धि सूक्ष्म कारणों से और ३०% वृद्धि मनुष्य के कारण होती है । मनुष्यों के कारण होनेवाली ३०% वृद्धि,  शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कारणों से होती है । यद्यपि यह अनुपात समय के साथ भिन्न हो सकता है ।

६. वैश्विक तापमान-वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) का मूल कारण

राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन (एनओएए) जो वैश्विक तापमान पर दृष्टि रखते हैं, उनके द्वारा २०१४ से २०१८, ये पांच वर्ष १३९ वर्षों में अब तक के सबसे ऊष्ण वर्ष अंकित किए गए हैं । वर्ष १९५१ से १९८० के औसत में, वर्ष २०१६, ०.९८  डिग्री सेल्सियस पर अंकित किया गया सबसे गर्म वर्ष था (नासा, वैश्विक तापमान, २०१८)। आईपीसीसी ने देशों से वैश्विक तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से १.५ डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का आग्रह किया है, अन्यथा इस तापमान में वृद्धि से, जलवायु पर विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं (आईपीसीसी, २०१८) ।

भौतिक स्तर पर वैज्ञानिक इस वैश्विक तापमान-वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) का कारण भौतिक मानते हैं, जो मुख्य रूप से हरितगृह (ग्रीनहाउस) प्रभाव है । किंतु, यदि हम आध्यात्मिक शोध के माध्यम से कारणों का विश्लेषण करते हैं, तो तीनों आयामों से मूल कारणों का अनुपात आगे बताए अनुसार होगा ।

  • ६७% – तेजतत्त्व को प्रभावित करनेवाले रज और तम घटकों के साथ चक्रीय (आध्यात्मिक) कारण
  • ३३% – मानव द्वारा अपनी बौद्धिक प्रक्रियाओं का अनुचित उपयोग कर, अपशिष्ट उत्सर्जन, वनों की कटाई आदि के माध्यम से पर्यावरण को हानि पहुंचाने के कारण । इसके अंतर्गत मानसिक स्तर पर लोगों के स्वभावदोष द्वारा निर्मित आध्यात्मिक अशुद्धता (रज तम) भी आती है ।
  • 0% – भौतिक कारण- भौतिक कारण शून्य प्रतिशत हैं; क्योंकि भौतिक समस्याओं का मूल कारण मानव की अनुचित वैचारिक प्रक्रियाओं (मनोवैज्ञानिक और बौद्धिक स्तरों पर)में निहित है ।

जलवायु परिवर्तन अद्यतन - कारण और समाधान

कुछ लोग सोच सकते हैं कि १.५० सेल्सियस इतना अधिक उच्च नहीं है । एक उदाहरण के साथ इसके प्रभाव को समझ लेते हैं, यह उसी प्रकार है जब किसी व्यक्ति को ज्वर (बुखार) आता है । यदि उस व्यक्ति का तापमान ३७° सेल्सियस के सामान्य तापमान से ३८° सेल्सियस को पार कर जाता है, तो यह माना जाता है कि उसे बुखार हो गया है । मात्र १° सेल्सियस की वृद्धि से उसे कष्टदायक अनुभव होने लगता है ।

७. प्राकृतिक आपदाओं के कारण चक्र का अंत और विनाश

किसी चक्र का अंत भी एक नया चक्र आरंभ होने से पूर्व भयंकर विनाश से होता है । जब तमोगुण में वृद्धि होती है, तो इससे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन मूलभूत ब्रह्मांडीय तत्त्वों पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है । जैसा कि हम जानते हैं, ये ब्रह्मांडीय तत्त्व (महाभूत) प्रकृति के निर्माण के आधार हैं और विश्व और मौसम को संतुलित रखते हैं ।

  • जब आपतत्त्व प्रभावित होता है, तो इससे बाढ, सुनामी अथवा जल का अभाव उत्पन्न हो जाता है, जिससे सूखा पडता है ।
  • जब तेजतत्त्व प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है, तो  परिणामस्वरूप अत्यधिक गर्म लहरें चलना, ज्वालामुखी संबंधी गतिविधि, वनों में आग लगना अथवा अत्यधिक ठंड (जो उष्णता की अनुपस्थिति में होती है) होने जैसी घटनाओं में वृद्धि होती है । इस तरह, मूल ब्रह्मांडीय तत्त्वों (मूलभूत महाभूतों) के माध्यम से विनाश होता है और यह विनाश एक नए युग के प्रारंभ होने का मार्ग प्रशस्त करता है ।

निम्न तालिका में, मूल ब्रह्मांडीय तत्त्व(मूलभूत महाभूत) और उनसे संबंधित आपदाएं दी गई हैं ।

जलवायु परिवर्तन अद्यतन - कारण और समाधान

कृपया ध्यान दें कि ब्रह्माण्डीय तत्त्वों (महाभूतों) के संयोजन के प्रभाव से भी आपदाएं उत्पन्न हो सकती हैं ।

मनुष्य, अपनी गतिविधियों (शारीरिक/मनोवैज्ञानिक/आध्यात्मिक) के कारण केवल पृथ्वी, जल और अग्नि जैसे निचले ब्रह्माण्डीय तत्त्वों को प्रभावित कर सकता है । उच्च स्तर के ब्रह्माण्डीय तत्त्व के मानव व्यवहार से प्रभावित होने की संभावना अल्प रहती है । वायु और आकाश जैसे उच्च-स्तरीय ब्रह्मांडीय तत्त्व अधिकतर चक्रीय परिवर्तनों से प्रभावित होते हैं ।

इसे कदाचित अच्छी तरह घर की स्वच्छता करने के उदाहरण से सर्वोत्तम रूप से समझा जा सकता है । हम प्रतिदिन अपने घरों की स्वच्छता करते हैं और पूरे दिन में आई बहुत सारी धूल और मिट्टी को हटाते हैं । लेकिन कुछ महीने में, घर को पूरी तरह से स्वच्छ करने के लिए, हम उचित ढंग से स्वच्छता करते हैं । वर्तमान में भी ऐसा ही होनेवाला है अर्थात पृथ्वी का पूर्ण शुद्धीकरण । यह दो प्रकार से हो रहा है – प्राकृतिक आपदाओं के माध्यम से और तीसरे विश्व युद्ध से । इसमें अंतर यह है कि जब हम अपने घरों की स्वच्छता करते हैं, तो यह केवल भौतिक स्तर तक सीमित होता है । किंतु ईश्वर जब पृथ्वी की शुद्धि करते हैं, तो मुख्य रूप से उनका ध्यान भूलोक की आध्यात्मिक शुद्धि करने पर होता है अर्थात सत्त्वगुण में वृद्धि करना और तमोगुण को अल्प करना । ऐसे लोग जिनमें अनेक स्वभावदोष हैं और जो तम-प्रधान हैं, वे इस प्रकार की शुद्धीकरण प्रक्रिया में नष्ट हो जाएंगे ।

८. जलवायु परिवर्तन और तृतीय विश्व युद्ध के कारण होनेवाले विनाश की मात्रा

जिस तरह भौतिक आयाम में तापमान और प्रवृत्त रेखाओं को कोई रेखांकित कर सकता है, उसी तरह प्रवृत्त रेखाओं और पूर्वानुमान को भी भौतिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक पक्षों को ध्यान में रखते हुए रेखांकित किया जा सकता है । इस विनाश के स्वरूप की कल्पना हमारे पाठकों को हो, इसलिए कहना होगा कि एशिया में वर्ष २००४ में जो सुनामी आई थी और उससे जो विनाश हुआ वह २०१९-२०२४ के बीच होनेवाले विध्वंस का मात्र १/१००० भाग (अंश) है ।

उपरोक्त तालिका में वक्र आनेवाले समय में विनाश की वृद्धि को दर्शाता है । तालिका के आरंभ में दिखाया गया विनाश का स्तर, १९९९-२०१९ के मध्य होनेवाले सभी विनाश का एकत्र परिणाम है । अंत में, यह वक्र दर्शाता है कि अगले ५ वर्षाें में प्राकृतिक आपदाओं और तृतीय विश्वयुद्ध के माध्यम से होनेवाले विनाश में लगभग ५०-५० का अनुपात होगा । तृतीय विश्वयुद्ध और प्राकृतिक आपदाओं के कारण, विश्व का ७०% बुनियादी ढांचा नष्ट हो जाएगा । पूरे विश्व के अधिकांश नगर पूरी तरह से नष्ट हो जाएंगे । आध्यात्मिक शोध के माध्यम से हमने देखा कि इससे पूर्व पूरी पृथ्वी के स्तर पर इस स्तर का विनाश लगभग ३०,००० वर्ष पूर्व हुआ था ।

आनेवाले समय में प्राकृतिक आपदाओं की अपेक्षा तृतीय विश्व युद्ध के कारण, अधिक लोग मारे जाएंगे । तब भी भौतिक विनाश दोनों से लगभग समान होगा । इस अवधि में विश्व की लगभग आधी जनसंख्या नष्ट हो जाएगी ।

८.१ विनाश में योगदान देनेवाली प्राकृतिक आपदाओं के प्रकार

आध्यात्मिक शोध के माध्यम से, हम विभिन्न प्रकार की अपेक्षित प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव के संदर्भ में स्पष्ट ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम हुए ।

प्राकृतिक आपदाएं (२०१९ – २०२४) समग्र भौतिक विनाश का प्रतिशत जो इस प्रकार की आपदा के लिए उत्तरदायी होगा
ज्वालामुखी १०
भूकंप
सुनामी
समुद्र का बढता जलस्तर
बाढ २२
उष्णकटिबंधीय तूफान
सूखा ३०
अत्यधिक गर्मी १०
जंगल की आग
अन्य
कुल १००

स्रोत : आध्यात्मिक शोध, जून २०१९

८.२ जलवायु पुन: कब सामान्य होगी ?

वर्ष २०२५ से प्रकृति (मौसम) का पूर्ववत होना आरंभ होगा तथा इ.स. २०२५ से आगे के ५०-६० वषों में वह पूर्णतः पूर्ववत हो जाएगी । इस अवधि के दौरान, लोगों की एक नई पीढी का जन्म होगा जो अपेक्षाकृत अधिक सात्विक होगी ।

९. जैविक आपदाएं

आध्यात्मिक शोध द्वारा अन्य एक विलक्षण वास्तविकता हमें ज्ञात हुई कि पृथ्वी पर आनेवाले एड्स, एबोला तथा बर्ड फ्ल्यू जैसे भयंकर विषाणु (वायरस) संकट जैसी अधिकांश जैविक आपदाओं के पीछे उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियों का हाथ होता है । इ.स. २०२५ के उपरांत जब अच्छी एवं बुरी शक्तियों में चल रहे कलियुगांतर्गत इस छोटे चक्र का युद्ध समाप्त होगा, तब ऐसे प्राणघातक विषाणु पृथ्वी पर प्रवेश नहीं कर पाएंगे । जो जीवाणु उत्पन्न हुए हैं, वे यहीं रहेंगे और उन पर कुछ उपाय ढूंढना पडेगा ।

१०. प्रतिकूल समष्टि प्रारब्ध

प्रारब्ध हमारे जीवन का वह भाग है जो हमारे नियंत्रण में नहीं है और यह हमारे पूर्व जन्मों के कर्माें के कारण होता है । यदि किसी ने पूर्व जन्म में अनेक बुरे कर्म किए हैं जिससे दूसरों को कष्ट हुआ हो, तो उसके वर्तमान जीवनकाल में प्रारब्ध के अनुसार अधिक कष्ट और पीडा होगी । हमारे जीवन का कुछ भाग क्रियमाण से नियंत्रित होता है, और हम इसे जिस तरह से चाहें (अपनी इच्छा के अनुसार), उपयोग कर सकते हैं ।

यद्यपि, प्रारब्ध का एक और पक्ष है जिसे समष्टि प्रारब्ध कहते हैं और वह सामान्यतया लोगों के समूह, एक नगर अथवा राष्ट्र के लिए लागू होता है ।

जीवन का पहलू सामान्य काल
(प्रतिशत में )
२०१९-२०२४
(प्रतिशत में )
१. समष्टि प्रारब्ध १० ३०
२. व्यष्टि प्रारब्ध ६० ४५
३. क्रियमाण कर्म ३० २५
Total १०० १००

स्त्रोत : आध्यात्मिक शोध , मई २०१९

जैसा कि उपरोक्त तालिका से आप देखेंगे, वर्तमान युग में, एक सामान्य व्यक्ति का समष्टि प्रारब्ध लगभग १०% होगा, जबकि उसका व्यष्टि प्रारब्ध ६०% होगा और शेष ३० प्रतिशत उसके क्रियमाण के अनुसार होगा । किंतु जैसे जैसे हम चक्र के अंतिम चरण में जाते हैं, हमारे जीवन पर समष्टि प्रारब्ध अधिक प्रभाव डालना आरंभ कर देगा, जो कि अधिकाधिक ३०% तक होगा । इसलिए, २०१९ से २०२३ तक हमारे जीवन पर पूर्व नियोजित घटनाओं का अधिकाधिक प्रतिकूल प्रभाव ७५% होगा । जहां का समष्टि प्रारब्ध अधिक प्रतिकूल है,  ऐसे स्थानों पर रहने वाले लोगों के अधिक तीव्र प्राकृतिक आपदाओं और तृतीय विश्वयुद्ध के समय होनेवाले भयंकर विनाश की चपेट में आने की संभावनाएं अधिक हैं ।

११. इसके लिए हम क्या कर सकते हैं ?

इस लेख का उद्देश्य भय उत्पन्न करना नहीं है, अपितु लोगों को पृथ्वी के इतिहास में होनेवाले आगामी विनाशकारी चरण के विषय में सतर्क करना और जीवित रहने के लिए क्या करना है, इस पर समाधान प्रस्तुत करना है ।

आइए सर्वप्रथम हम पूरे विश्व के जलवायु परिवर्तन के प्रचलित विचारों को शीघ्रता से दोहरा लें ।

  संशयवादी आम सहमति और IPCC /आईपीसीसी SSRF/ एसएसआरएफ
क्या जलवायु परिवर्तन हो रहा है? क्या जलवायु परिवर्तन हो रहा है? एक स्पष्ट हां हां, और यह तीव्रता से और बढता जा रहा है
क्या मनुष्य की कोई भूमिका है? हो सकती है, लेकिन यह नहीं कह सकते कि कितनी हां मुख्य रूप से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण मनुष्यों के कारण केवल २%, मुख्य रूप से मनुष्यों और पर्यावरण/वातावरण पर समय के प्रभाव के कारण
क्या यह एक संकट बनने जा रहा है? यह हो सकता है, यह संभव है – लेकिन हम इसके भय-प्रसारक नहीं बनने जा रहे हां – निस्संदेह, यदि हम इसी प्रकार चलते रहे तो हां, और बहुत ही कम समय/अवधि में
क्या कोई ऐसा उपाय है जो हम कोई महत्वपूर्ण/सार्थक अंतर लाने हेतु कर सकें ? बिलकुल नहीं हां, यदि हम उत्सर्जन को सीमित करते हैं और वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से २ डिग्री सेल्सियस के नीचे तक सिमित रख पाते हैं्। यदि ऐसा होता है तो यह जलवायु परिवर्तन के खतरों और प्रभावों को बहुत मात्रा में न्यून कर देगा नहीं, किंतु यदि हम साधना करें तो स्वयं को बचा सकते

छोटे चक्रों का बदलना एक ऐसी घटना है जिस पर हम मनुष्यों का कोई नियंत्रण नहीं । हालांकि, वे परिवर्तन जो पूरे ग्रह को प्रभावित करते हैं, स्वाभाविक रूप से आध्यात्मिक स्वरूप के हैं । इस उथल-पुथल (चाहे वह प्राकृतिक आपदा अथवा तृतीय विश्वयुद्ध हो) का दैवी उद्देश्य पृथ्वी पर पुनः सात्विकता (आध्यात्मिक शुद्धता) लाना है । तदनुसार, नए युग में प्रवेश पाने हेतु एक व्यक्ति के लिए इसकी पूर्व-आवश्यकता यह है कि उसमें उच्च स्तर की सात्विकता होना आवश्यक होगा । साधना (वैश्विक सिद्धांतों के अनुसार) स्वयं का आध्यात्मिक स्तर बढाने एवं स्वयं में सत्त्वगुण की वृदि करने का सबसे उत्तम मार्ग है । भले ही हम इस भयानक समय के आक्रमण को रोकने में सक्षम नहीं हैं, किंतु हम साधना करने के गंभीर प्रयास करके इसमें जीवित रहने हेतु प्रयास तो कर सकते हैं ।

हम अपने पाठकों को निम्नलिखित ४ सूत्रों को करने का सुझाव देते हैं, जो इस अवधि में उन्हें जीवित रहने में सहायक होगा ।

१. भगवान के नाम का जप करना । आगामी काल में सुरक्षा के लिए हम दो नामजप करने का सुझाव देते हैं ।

अ. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय (यह नामजप वर्तमान समय से वर्ष २०२४ तक के लिए आध्यात्मिक रूप से अनुकूल नामजप है)

आ. श्री गुरुदेव दत्त (पितृदोष दूर होने के लिए)। प्रतिदिन न्यूनतम २ घंटे यह नामजप करने का सुझाव दिया जाता है ।

२. स्वभाव दोष निर्मूलन प्रक्रिया का अध्ययन करके स्वयं के स्वभाव दोषों को दूर करना । इससे मन की शांति बढाने और सूक्ष्म तमोगुण को अल्प करने में सहायता होगी ।

३. शक्ति प्राप्त करने एवं इस समय नियमित रूप से धैर्य रख पाने तथा अपनी साधना बढाने के लिए प्रार्थना बढाना । भौतिक लाभ के लिए प्रार्थना करने का कोई आध्यात्मिक मूल्य नहीं होता ।

४. अध्यात्मप्रसार की सेवा करना, इसे सत्सेवा कहते हैं । एक शिष्य के गुणों (अर्थात विनम्रता, भाव, आदि) के साथ अध्यात्म प्रसार की सेवा करना ईश्वर की कृपा अर्जित करने के सबसे प्रखर मार्गा में से एक है ।

इस लेख को पढते समय आपको लग सकता है कि यह लेख चिंता तथा भय उत्पन्न करनेवाला है, क्योंकि यद्यपि पूरी दुनिया में स्थिति प्रतिकूल है, किंतु यह इतना कठिन भी नहीं है जितना इस लेख में वर्णित है । आपको लग सकता है, ‘हमारे पास अभी और समय है । आखिरकार, बाढ और सूखा किसी दूरवर्ती क्षेत्र में आते हैं और पूरी दुनिया में होनेवाले युद्धों का वास्तव में हम पर प्रभाव नहीं पड रहा है । किंतु, शीघ्र ही घटनाएं बढना प्रारंभ हो जाएंगी । हम भीषण प्रलयंकारी विनाश होने की दिशा के अंतिम चरण में हैं और विश्व की कोई भी सरकार अथवा जलवायु-वैज्ञानिक इस बात का पूर्वानुमान नहीं लगा सकते अथवा न ही ऐसी घटना के लिए तैयार होंगे जो इतनी अल्पावधि में होने वाली है तथा जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की गई थी । इस लेख में दिए गए संदेश को गंभीरता से लेने और साधना के ठोस प्रयास करने के लिए हम पूरे विश्व से प्रार्थना करते हैं ।

कृपया ध्यान दें : जीवन रक्षक मार्गदर्शिका पर हमारे लेख में हम कुछ जीवन रक्षक जानकारी और उपचार तकनीकों को प्रकाशित करेंगे

१२. ग्रंथ सूची

आईपीसीसी । (2018)। ग्लोबल वार्मिंग 1.5  ºC। IPCC से लिया गया : https://www.ipcc.ch/sr15/chapter/summary-for-policy-makers/

लिंडसे, आर। (2018, 01 अगस्त)।क्लाइमेट चेंज : एटमोस्फियरिक कार्बन डाईऑक्साइड Climate gov से लिया गया: https://www.climate.gov/news-features/understanding-climate/climate-change-atmospheric-carbon-dioxide

नासा (2018) ग्लोबल टेम्परेचर वैश्विक जलवायु परिवर्तन (ग्लोबल क्लाइमेट चेंज) से लिया गया : https://climate.nasa.gov/vital-signs/global-temperature/

नासा। (2019, मई) कार्बन डाइऑक्साइड वैश्विक जलवायु परिवर्तन(ग्लोबल क्लाइमेट चेंज) से लिया गया : https://climate.nasa.gov/vital-signs/carbon-dioxide/

(2018, 22 अक्टूबर) वयस्कों और किशोर द्वारा अपमानजनक तुलना (कंपेयरिंग ओफेंडिंग बाय एडल्ट्स एंड जुवेनिल्स) न्याय कार्यक्रमों के कार्यालय (ऑफिस ऑफ जस्टिस प्रोग्राम) से लिया गया : https://www.ojjdp.gov/ojstatbb/offenders/qa03401.asp?qaDate=2016

ucsusa.org्। (2017, 1 अगस्त) हम कैसे जानते हैं कि मनुष्य ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख कारण हैं (हाउ डू वी नो दैट ह्यूमन बीइंग्स आर मेजर कॉज ऑफ ग्लोबल वार्मिंग )? चिंतित वैज्ञानिकों के संघ (यूनियन ऑफ कंसर्न्ड साइंटिस्ट्स) से लिया गया : https://www.ucsusa.org/global-warming/science-and-impacts/science/human-contribution-to-gw-faq.html