प्रकरण अध्ययन : मुंह के छालों पर आध्यात्मिक उपचार

SSRF द्वारा प्रकाशित प्रकरण-अध्ययनों (केस स्टडीस) का मूल उद्देश्य है, उन शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के विषय में पाठकों का दिशादर्शन करना,  जिनका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक हो,  तो यह ध्यान में आया है कि सामान्यतः आध्यात्मिक उपचारों का समावेश करने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं । SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को जारी रखने का परामर्श देता है । पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचारी पद्धति का पालन करें ।

१. कु.मधुरा भोसले का परिचय

1-HIN-Article-Madhura२२ वर्षीय कु. मधुरा भिकाजी भोसले, वाणिज्य शाखा की स्नातक हैं । वे स्पिरिच्युअल साइंस रिसर्च फाउंडेशन (SSRF) के मार्गदर्शन में वर्ष १९९७ से साधनारत हैं । वे अप्रैल २००५ से SSRF के सूक्ष्म-ज्ञान विभाग में पूर्ण काल के लिए नि:शुल्क सत्सेवा के लिए समर्पित हैं । वर्तमान में उनका निवास SSRF के भारत में गोवा स्थित आश्रम में है । इनकी छठवीं ज्ञानेंद्रिय अतिविकसित है, जिससे वे पंचज्ञानेंद्रियां, मन एवं बुद्धि से परे सूक्ष्म आयाम में होनेवाली घटनाएं प्रत्यक्ष देख सकती हैं । वे अपनी सत्सेवा के रूप में आसपास के धार्मिक विधियों में सूक्ष्म आयाम में होनेवाली घटनाओं तथा उनमें अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) द्वारा डाली जानेवाली बाधाओं का अध्ययन करने हेतु उपस्थित रहती हैं ।

एक व्याधि,  जो एक शारीरिक व्याधि के रूप में सामने उभरी, परंतु चिकित्सकीय उपचारों का जिस पर कोई प्रभाव नहीं पडा और अंत में वह किस प्रकार ठीक हुई, इसका विवरण उनके ही शब्दों में नीचे दिया है ।

SSRF के सूक्ष्म-ज्ञान विभाग में ऐसे साधक हैं, जो सूक्ष्म आयाम में देख सकते हैं, सूक्ष्म जगत के चित्र (सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित चित्र)बना सकते हैं तथा आध्यात्मिक उपचार बता सकते हैं । इस विभाग के कुछ साधकों को ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त होता है तथा कुछ साधक ईश्वरीय कला का अनुसरण कर रहे हैं । SSRF के शोधकार्य प्रधानता से इसी विभाग द्वारा किए जाते हैं ।

२. व्याधि (गले में सूजन, खांसी और छाले)

२ फरवरी २००६ में मेरी नाक से पानी बहने लगा और उपरांत मुझे बहुत कष्टप्रद जुकाम हो गया । साथ ही मेरे गले में बहुत सूजन आ गई और खाना निगलना भी मेरे लिए कठिन हो गया । शीघ्र ही मुझे खांसी भी हो गई । ज्वर भी आया । परिणामस्वरूप मैं बहुत दुर्बल हो गई और मुझे चक्कर जैसा लगता । मेरी इस दुर्बल स्थिति में मुंह में छाले भी आ गए । मुंह की रिक्ति तथा मसूढे वस्तुतः छालों से भर गए थे । जीभ का रंग अंगारों की भांति लाल होकर उसमें सर्वत्र व्रण भी दिखाई देने लगे । छालों के कारण इतनी वेदना हो रही थी कि मेरे लिए खाना तथा बात करना भी असंभव सा हो गया ।

३. चिकित्सकीय निदान

मेर मां एक चिकित्सक हैं, जो इसी आश्रम में रहती हैं । उन्होंने तुरंत मेरे छालों की जांच की और पाया कि मेरे गले में बहुत सूजन है । साथ ही बहुत छालें हो गए थे, जिसमें बाईं ओर की दाढ (चबानेवाले दांत) के पास का छाला बहुत बडा था । मां ने मेरे शरीर का तापमान जांचा, जो कि ९९ डिग्री फारेनहाईट था ।

उनके द्वारा मेरी स्थिति का किया गया निदान था एक्युट फैरिंजाईटिस (गले में तीव्र सूजन (दाह) के साथ मुंह में छाले ।

४. चिकित्सकीय उपचार

जुकाम के लिए उन्होंने कुछ औषधि दी । साथ ही कुछ वेदनाशामक, प्रतिजैवक (एंटीबायोटिक्स), मल्टी-विटामिन कैप्सूल्स और मुंह के छालों की वेदना अल्प करनेवाली मलहम भी दी । उनके द्वारा अनुशंसित औषधियां नीचे दिएनुसार थी ।

Pills

मैंने सभी औषधियां बडी तत्परता से लीं, परंतु ४ दिनों के उपरांत भी केवल ज्वर में आई कमी को छोड कर अन्य लक्षणों में कोई सुधार नहीं दिखाई दिया । वास्तव में स्थिति और बिगड गई थी । मेरी स्थिति इतनी दयनीय हो गई थी कि मेरे मुंह में लगातार कांटे चुभनेसमान वेदना हो रही थी । मां के परामर्श के अनुसार मैंने एक और सप्ताह तक उपचार जारी रखे ।

इसी के साथ मैं निम्न आध्यात्मिक उपचार भी कर रही थी :

पवित्र विभूति : यज्ञ से प्राप्त ईश्वरीय शक्ति से युक्त राख को विभूति कहते है । यज्ञ में आहुति के रूप में पुरोहितों द्वारा मंत्रोच्चारण करते हुए ईश्वर को अर्पित की गई विभिन्न वनस्पतियों (जडी बूटियों) से यह विभूति प्राप्त होती है ।
  • नामजप
  • प्रार्थना
  • छालों पर पवित्र विभूति लगाना
  • इसी के साथ मैं संतों द्वारा दिया गया पवित्र प्रसाद और विभूति मिश्रित पवित्र तीर्थ ग्रहण कर रही थी ।

इसके पश्चात भी ९ फरवरी तक कोई सुधार नहीं हुआ ।

फरवरी ९ और १० को मुझे एक धार्मिक कार्यक्रम में विभिन्न विधियों का सूक्ष्म परीक्षण करने के लिए जाना था । मेरा स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण मैं जा पाऊंगी अथवा नहीं, इसकी मुझे निश्चिति नहीं थी । परंतु परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी ने मुझे विधियों का सूक्ष्म परीक्षण करने के लिए उस धार्मिक कार्यक्रम में जाने के लिए कहा, इसलिए स्वास्थ्य ठीक न होने पर भी मैंने जाने का निर्णय लिया । कार्यक्रम में जाने से पहले मैंने परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी से बात की । उन्होंने मेरे स्वास्थ्य के विषय में पूछताछ की । मैंने उन्हें बताया कि मैं अभी भी ठीक नहीं हूं । उन्होंने ऐसे ही सामान्य रूप से कहा कि कार्यक्रम की विधियों में उपस्थित रहने से मेरे कष्ट अल्प हो जाएंगे ।

कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने के पश्चात मैं कार्यक्रम में मग्न हो गई । विधियों के समय मुझे बहुत चैतन्य प्रतीत हुआ । जैसे-जैसे विधियां होती रहीं, मुझे मुंह के छालों में हो रही वेदनाएं न्यून होने का अनुभव हुआ और सायंकाल तक मुझे होनेवाले कष्ट ६० प्रतिशत तक अल्प हो गए । दर्पण में देखने पर पता चला कि मेरे मुंह में आए छालों की लालिमा और आकार न्यून हुए थे । दूसरे दिन के अंत तक लगभग वे सभी लक्षण समाप्त हो गए । मेरे लिए यह बहुत ही आश्चर्यजनक अनुभव था ! अत्यल्प कालावधि में मुझे व्याधि से मुक्त करने के लिए मैं ईश्वर के प्रति कृतज्ञ हूं ।

५. व्याधि का मूल आध्यात्मिक कारण क्या था ?

अध्यात्मशास्त्र के अनुसार किसी भी समस्या अथवा व्याधि का मूल आध्यात्मिक कारण दो प्रकार का होता है :

१. सामान्यतः तमोगुण की मात्रा बढने के साथ उसी मात्रा में सत्त्वगुण न्यून होने से ऐसा होता है । (त्रिगुणों के संदर्भ में अधिक जानकारी पढें )

२. और अधिक विशेष स्तर पर, यह किसी विशिष्ट कारण से, उदा.विशिष्ट अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच इत्यादि) के आक्रमण से होता है ।

इस प्रकरण में उपर्युक्त अनुभव के मेरे सूक्ष्म परीक्षण से यह दिखाई दिया

अनिष्ट शक्ति से प्रभावित व्यक्ति की देह में जहां अनिष्ट शक्तियां काली शक्ति का संग्रह करती है, उसे काली शक्ति का केंद्र कहते है ।
१. अनिष्ट शक्ति सामान्यतः स्थूल अथवा भौतिक देह में प्रथम अपना केंद्र बनाती है; क्योंकि इस पर आक्रमण करना सरल होता है । जहां रज-तम की मात्रा में वृद्धि हुई है, ऐसा शरीर का कोई भी प्रभावित भाग उदा. हड्डी के जोडों में आई सूजन, दमे से प्रभावित फेफडे इत्यादि; अनिष्ट शक्ति के लिए केंद्र प्रस्थापित करने का भावी स्थान बन जाता है । २. भौतिक देह में केंद्र स्थापित करने के उपरांत अनिष्ट शक्ति धीरे-धीरे मन, बुद्धि जैसे अन्य सूक्ष्मदेहों पर आक्रमण करती है ।
  • मूल कारण – अनिष्ट शक्ति : मेरे गले में में आई सूजन के मूल आध्यात्मिक कारण थे -सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक, अर्थात एक प्रकार की अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) द्वारा गले में निर्मित सूक्ष्म कंटीला जाल, साथ ही अनिष्ट शक्ति के काली शक्ति के केंद्र की निर्मिति और गले के सर्व ओर बनाया काली शक्ति का आवरण आदि ।
  • संतों द्वारा दिया गया प्रसाद तथा ईश्वरीय चैतन्य का प्रभाव : परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी द्वारा दिए गए प्रसाद में विद्यमान चैतन्य से युद्ध करने के लिए जालों में विद्यमान कांटों में प्रथम वृद्धि हुई और प्रसाद में विद्यमान चैतन्य के अधिक शक्तिशाली हो जाने पर वे कांटे घट गए । सूक्ष्म कांटों के नुकीले सिरे टूट कर धार्मिक विधियों से प्रक्षेपित ईश्वरीय चैतन्य में नष्ट हो गए । काला आवरण तथा काली शक्ति का केंद्र भी न्यून हुआ । परिणामस्वरूप मेरे गले की पीडा न्यून होकर मेरे स्वर में सुधार आया ।

 

  • चिकित्सकीय उपचारों में परिणामकारकता न होना : छालों का मूल कारण आध्यात्मिक स्तर पर होने से योग्य चिकित्सकीय उपचार पर्याप्त समय तक लेने पर भी मेरे छाले ठीक नहीं हुए । मुझे कष्ट पहुंचाने वाली अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच इ.), जो सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक था, उसने मेरे मुंह के छालों में बहुत काली शक्ति भर दी थी । साथ ही मुझे तीव्र वेदना देने के लिए कांटों समान नुकीले सूक्ष्म अस्त्रों का भी उपयोग किया था । यह बहुत बडा आक्रमण था । चूंकि औषधियां स्थूल (भौतिक) स्तर पर ही कार्य करती हैं; इसलिए छालों में विद्यमान अतिसूक्ष्म काली शक्ति को वे नष्ट नहीं कर पाई । औषधियों को मिला अत्यल्प प्रतिसाद इससे स्पष्ट होता है ।

६. नामजप, प्रार्थना इत्यादि जैसे नित्य आध्यात्मिक उपचारों से भी व्याधि ठीक न होने का कारण

१. मैं नामजप, प्रार्थना तथा ऊपर दिए सभी आध्यात्मिक उपचार करती रही, परंतु आक्रमण की तीव्रता अत्यधिक होने के कारण उससे भी अधिक प्रभावी आध्यात्मिक उपचारों की आवश्यकता पडी ।

२. व्याधि तथा अनिष्ट शक्ति के निरंतर आक्रमण के कारण नामजप, प्रार्थना इत्यादि उतने भावपूर्ण ढंग से नहीं हुए ।

यद्यपि नामजप, प्रार्थना इत्यादि जैसे नित्य आध्यात्मिक उपचारों से मेरी व्याधि ठीक नहीं हुई; किंतु इन उपचारों के कारण व्याधि की तीव्रता में और अधिक वृद्धि होने पर रोक लगी और साथ ही वेदना सहने की क्षमता बढने से आश्रम में मेरी सत्सेवा में कोई बाधा नहीं आई ।

७. धार्मिक कार्यक्रम में हुर्इ विधियों से तुरंत उपचार कैसे हुआ ?

धार्मिक विधियां करनेवाले पुरोहितों द्वारा किए जा रहे मंत्रोच्चरण से वातावरण में अत्यधिक चैतन्य प्रक्षेपित हो रहा था । कार्यक्रम स्थल में विद्यमान स्व-निर्मित अत्यधिक चैतन्य (जो कि अतिसूक्ष्म था) का मुझे बहुत लाभ हुआ ।

१. मेरे नामजप तथा प्रार्थना में लक्षणीय संख्यात्मक और गुणात्मक रूप से वृद्धि हुर्इ । इससे मेरी शारीरिक दुर्बलता न्यून हुई । मेरे उत्साह एवं आस्था में भी वृद्धि हुई ।

२. छालों में विद्यमान काली शक्ति नष्ट हुई । इसीलिए प्रथम वेदना न्यून हुईं और पश्चात छाले भी ठीक हुए ।

तुरंत सुधार के कारण इस प्रकार हैं :

१. धार्मिक विधियों से मुझे लाभ होगा, ऐसा परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी का संकल्प ।

२. ठीक न होने पर भी धार्मिक विधियों का सूक्ष्म परीक्षण करने की सत्सेवा के प्रति मेरा दृढ निश्चय ।

८. सारांश

१. कु.मधुरा को शारीरिक व्याधि के कारण होनवाले लक्षणों से कष्ट हो रहा था । पारंपारिक औषधियों को प्रतिसाद न मिलने से यह प्रमाणित हुआ कि व्याधि का कारण शारीरिक नहीं है ।

२. कु.मधुरा द्वारा किए गए सूक्ष्म परीक्षण से आध्यात्मिक मूल कारण स्पष्ट हुआ ।

३. कु.मधुरा के धार्मिक कार्यक्रम में उपस्थित रहने पर हुए आश्चर्यजनक सुधारों से इस बात की पुष्टि हुई ।

४. इस प्रकरण के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि हमारी कर्इ व्याधियां, जो ऊपर से शारीरिक स्तर की लगती हैं, उनका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है ।

५. केवल आध्यात्मिक रूप से उन्नत ही इस संदर्भ में निश्चितरूप से बता सकते हैं ।

६. आध्यात्मिक उपचार करने पर कष्ट में न्यूनता आने से निदान निश्चित हो जाता है ।

७. धार्मिक विधियों के महत्त्व को समझते हुए, भाव-भक्तिसहित उनमें उपस्थित रहकर उनसे होनेवाला असीम लाभ उठाएं ।

८. छठवीं ज्ञानेंद्रिय (सूक्ष्म जानने की क्षमता) न होने पर भी बौद्धिक स्तर पर आध्यात्मिक मूल कारण का होना निम्न परिस्थितियों में समझा जा सकता है ।

• व्याधि की तीव्रता सामान्य की तुलना में अधिक होने पर

• चिकित्सकीय उपचारों को प्रतिसाद न मिल रहा हो तो