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महत्वपूर्ण टिप्पणी : शरीर में दैवीय परिवर्तन होने के कारण किसी की उंगलियों के नख का पीला होना दुर्लभ घटना है, यह केवल आध्यात्मिक रूप से प्रगत उसी व्यक्ति के साथ हो सकता है जो दिन-रात मानवता के आध्यात्मिक लाभ हेतु प्रयत्नरत हो । अन्यथा उंगलियों के नख के पीले होने के सभी प्रकरणों में, उसका कारण चिकित्सकीय होता है ।

परम पूज्य डॉ.आठवलेजी के शरीर में हो रहे दैवीय परिवर्तन के साक्ष्य बनने तथा इस अद्वितीय आध्यात्मिक घटना के आध्यात्मिक शोध में सम्मिलित करने हेतु हम ईश्वर तथा गुरुतत्त्व के अत्यंत कृतज्ञ हैं ।

 प्रिय पाठकों, परम पूज्य डॉ.आठवलेजी के शरीर में हो रहे दैवीय परिवर्तन की पृष्ठभूमि जानने हेतु कृपया निम्नलिखित लेख पढें ।

  • परम पूज्य डॉ.आठवलेजी के शरीर में हो रहे दैवीय परिवर्तन
  • दैवीय कारणों से नख के रंग में हो रहे परिवर्तन (लेख शीघ्र ही आनेवाला है )

१.  दैवीय कारणों से नख के पीले रंग के होने की प्रस्तावना

वर्ष २०११ में, परम पूज्य डॉ.आठवलेजी के नख गहरे पीले रंग के होने आरंभ हुए । इसका कोई वैद्यकीय कारण न होने से इस प्रकार के परिवर्तन का कारण ढूंढने के लिए हम आध्यात्मिक शोध की ओर बढे । भूत काल में भी परम पूज्य डॉ.आठवलेजी के शरीर में अनेक परिवर्तन हुए, जिसका हम आधुनिक विज्ञान के माध्यम से वर्णन करने में असमर्थ रहे । उदाहरण के लिए, उनके शरीर से तथा जो भी वस्तुएं वे स्पर्श करते, उससे विविध प्रकार की सुगंध जैसे चंदन इत्यादि सुगंध प्रक्षेपित होती, जिसकी पृथ्वी पर कोई तुलना नहीं है ।

इस लेख में हम आध्यात्मिक रूप से प्रगत व्यक्ति के शरीर में हो रहे दैवीय परिवर्तन होने के कारण हाथ तथा पैरों की उंगुलियों के पीले नख के विविध पहलू साझा करेंगे । परम पूज्य डॉ.आठवलेजी के संदर्भ में उनके पीले होते नख के आध्यात्मिक महत्व का भी हम वर्णन करेंगे । इस घटना को भली प्रकार से अंकित करने के लिए परम पूज्य डॉ.आठवलेजी ने अपने नखों को बढने दिया ।

२.  दैवीय कारणों से नखों के पीले रंग के होने का कारण

भौतिक स्तर पर, नखों के पीले होने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं तथा इसमें कवक (fungal) संक्रमण, फुफ्फुस (फेफडे)का रोग अथवा गंभीर थायरॉयड रोग सम्मिलित हैं । किंतु जब यह आध्यात्मिक कारणों से हो, तो यह एकदम विपरीत तथा सकारात्मक होता है ।

२.१ उनके दिव्य कार्य के कारण

ईश्वर का अवतार : जब ईश्वर अपना कार्य पूर्ण करने के लिए पृथ्वी पर जन्म लेते हैं तो इसे अवतार लेना कहते हैं । परमेश्वर किसी जानवर अथवा मनुष्य का भौतिक रूप धारण कर पृथ्वी पर कुछ काल अथवा पूर्ण जीवन उसी रूप में व्यतीत करते हैं । ईश्वर के अवतार के अनेक प्रकार हैं, जिनमें से सर्वोच्च है पूर्णावतार (उदाहरण के लिए भगवान श्रीकृष्ण) । परात्पर गुरु ईश्वर के अंशावतार होते हैं ।

प्रत्येक युग तथा उप युग में, पृथ्वी पर धर्म की स्थापना के लिए ईश्वर सदैव अवतार लेते हैं । ईश्वर के अवतार कार्य के आधार पर उनके भौतिक शरीर का रंग अलग-अलग हो सकता है । परम पूज्य डॉ.आठवलेजी परात्पर गुरु हैं (गुरु जिनका आध्यात्मिक स्तर ९० प्रतिशत से उच्च हो)। वे भी ईश्वर के अंशावतार हैं । उनका कार्य दिव्य ज्ञान से संबंधित है । पीला रंग ब्रह्मांड में ज्ञान का सर्वोच्च स्रोत है । चूंकि वे दिव्य ज्ञान से एकरूप हो गए हैं, उनकी स्थूल देह एवं उनके नख भी पीली छटा लेने लगे हैं ।

परम पूज्य डॉ.आठवलेजी द्वारा अध्यात्म पर २०० से भी अधिक ग्रंथ प्रकाशित किए जा चुके हैं । उनके मार्गदर्शन में अनेक साधकों को मिलनेवाला ईश्वरीय (दिव्य) ज्ञान, सूक्ष्म प्रयोग तथा सूक्ष्म परीक्षण से प्राप्त ज्ञान अद्वितीय है । उनके द्वारा संकलित अधिकतर ग्रंथों में ७० प्रतिशत सार ईश्वरीय ज्ञान का है, जो प्रथम बार प्रकाशित हुआ है ।

 २.२ साधकों की रक्षा हेतु आवश्यक शक्ति का प्रकटीकरण

हमने हमारे लेख तृतीय विश्वयुद्ध तथा धर्मयुद्ध में आनेवाले प्रतिकूल काल का उल्लेख किया है, परम पूज्य डॉ.आठवलेजी के अवतारी कार्य का एक पहलू साधकों की रक्षा भी है । किनारों (हाथ तथा पैरों पर) जैसे नखों का पीला होना चैतन्य के प्रकटीकरण तथा उनके शरीर के माध्यम से कार्यरत होने का लक्षण है । इस चैतन्य के कारण, उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण से साधकों की रक्षा होती है । जिससे वे प्रतिकूल समय में भी जीवित रहकर अपनी साधना कर रहे हैं । अन्यथा उच्च स्तरीय संतों के माध्यम से प्रदत ईश्वरीय संरक्षण के अभाव में हजारों साधक उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों के ग्रास बन जाते तथा इस प्रतिकूल काल में साधना नहीं कर पाते ।

२.३ आध्यात्मिक रूप से प्रगत होने के कारण कुंडलिनी की प्रवृति होना

संदर्भ हेतु पढें – कुंडलिनी क्या है ?

आध्यात्मिक मार्ग कुंडलिनीयोगानुसार, मनुष्य को क्रिया करने के लिए आवश्यक चैतन्य को चेतना कहते हैं । चेतना का क्रियाशील भाग प्राणशक्ति कहलाता है तथा सुप्त भाग को कुंडलिनी कहते हैं । कुंडलिनी मुख्य रूप से आध्यात्मिक प्रगति होने के लिए प्रयुक्त होती है । कुंडलिनी तंत्र की तीन मुख्य सूक्ष्म नाडियां तथा छः सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र जिसे चक्र कहते हैं, होती हैं । नियमित साधना के कारण, जब कुंडलिनी जागृत होती है, सक्रिय चैतन्य ऊपर की दिशा में प्रवाहित होता है । यह सबसे नीचे के चक्र मूलाधार से मध्य नाडी (सुषुम्ना)से होकर मस्तिष्क के ऊपर विद्यमान एक सूक्ष्म छिद्र ब्रह्मरंध्र तक प्रवाहित होता है ।

आध्यात्मिक रूप से अति प्रगत व्यक्ति के प्रकरण में कुंडलिनी ब्रह्मरंध्र से होकर ब्रह्मांड में जाती है और इस प्रकार वातावरण को ऊपर की दिशा में शुद्ध करती है । इसके उपरांत यह पुनः ब्रह्मरंध्र के माध्यम से मध्य नाडी में प्रवाहित होते हुए नीचे मूलाधार चक्र में वापस आती है । यह अधोदिशा चैतन्य का प्रवाह नखों के माध्यम से वातावरण में प्रक्षेपित होता है । यह चैतन्य पृथ्वी तथा निम्न सूक्ष्म लोकों को शुद्ध करना प्रारंभ करता है । इस प्रकिया में चूंकि चैतन्य का रंग पीला होता है, नख पीले हो जाते हैं ।

३. कुछ आध्यात्मिक सिद्धांत

नीचे दिए गए हाथ तथा पैरों के पीले नखों के स्लाईड शो के पहलुओं को अच्छे से समझने के लिए यहां दो आध्यात्मिक सिद्धांत दिए गए हैं ।

३.१ कुंडलिनी की बाईं तथा दाईं नाडी

कुंडलिनी तंत्र की तीन प्रमुख नाडियां होती हैं :3-HIN-Kundalini-Dormant-and-Active

  • सुषुम्ना नाडी, यह मध्य नाडी है जो रीढ की हड्डी के मूल से लेकर सिर के ऊपर तक जाती है ।
  • सूर्य नाडी (पिंगला नाडी)यह सुषुम्ना नाडी के दांए से जाती है, तथा
  • चंद्र नाडी (इडा नाडी)यह सुषुम्ना नाडी के बांए से जाती है ।

चंद्र नाडी की प्रकृति के कारण ईश्वर के तारक रूप से संबंधित सूक्ष्म-शक्ति तथा अप्रकट (निर्गुण)चैतन्य इससे होकर अच्छे से प्रवाहित हो सकती है । दूसरी ओर सूर्य नाडी ईश्वर के मारक रूप से संबंधित है तथा यह प्रकट (सगुण)स्तर पर अधिक कार्य करती है । मारक तत्त्व के माध्यम से ईश्वर अनिष्ट शक्तियों से भक्तों की रक्षा करते हैं तथा तारक तत्त्व से वे साधकों की आध्यात्मिक उन्नति करने में सहायता करते हैं ।

संक्षिप्त में, परम पूज्य डॉ.आठवलेजी के बांए हाथ से अप्रकट शक्ति तथा दांए हाथ से प्रकट शक्ति अधिक प्रवाहित होती है ।

३.२ उंगलियां तथा पंचतत्त्वों से उनका संबंध

हमारी प्रत्येक उंगली विशेष तत्त्व से संबंधित होती है । नीचे दर्शाए गए चित्र में प्रत्येक उंगली तथा सूक्ष्म तत्त्वों के मध्य संबंध को दिखाया गया है ।

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जब आध्यात्मिक रूप से प्रगत व्यक्ति के हाथ से चैतन्य प्रवाहित होता है, प्रत्येक उंगली से ऊर्जा अलग होगी क्योंकि उस उंगली के प्रधान तत्त्व में परिवर्तन होता है । इसके अनुसार जैसे छोटी उंगली पृथ्वीतत्त्व से संबंधित है, साथ ही प्रकट चैतन्य की अधिकांश मात्रा इससे निकलती है । अंगूठा आकाशतत्त्व से संबंधित है, इसलिए इससे अप्रकट चैतन्य की अधिकांश मात्रा निकलती है ।

४.  दैवीय कारणों से नखों के पीले रंग के होने के विविध पहलू

इस स्लाईडशो में हम परम पूज्य डॉ.आठवलेजी की उंगलियों के नख के रंग के पीले रंग में परिवर्तित होने के विविध पहलू तथा सूक्ष्मता साझा करेंगे । पीला रंग होने से पूर्व, परम पूज्य डॉ.आठवलेजी की उंगलियों के नख का रंग गुलाबी छटा लिए हुए था, जो प्रीति दर्शाता है ।

५. परम पूज्य डॉ.आठवलेजी की उंगलियों के पीले नख सूक्ष्म में कैसे दिखते हैं ?

हमारे आध्यात्मिक शोध दल में,  अनेक साधक अति विकसित छठवीं इंद्रियवाले हैं । ईश्वर की कृपा तथा अनेक वर्षां की नियमित साधना के कारण ये साधक आध्यात्मिक आयाम में ठीक उसी प्रकार देख सकते हैं, जैसे हम स्थूल आयाम में देखते हैं । वैसी ही एक साधिका पूजनीया (श्रीमती)योया वालेजी ने जब परम पूज्य डॉ.आठवलेजी की अंगुलियों के नख के रंग पीले हो गए, उस समय उनके हाथों से प्रक्षेपित सभी आध्यात्मिक स्पंदनों का सूक्ष्म ज्ञान के आधार पर चित्र बनाया । पूजनीया योया वालेजी के सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित सभी चित्र प्रकाशित होने से पूर्व उनकी सूक्ष्म-सत्यता के लिए परम पूज्य डॉ. आठवलेजी द्वारा जांचे जाते हैं ।

सूक्ष्म ज्ञान के आधार पर बनाए गए इस चित्र की सत्यता ८० प्रतिशत है, जो सामान्य सूक्ष्म अथवा दिव्यद्रष्टा से बहुत अधिक है ।

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६. सारांश

हम सभी के लिए आनेवाला काल अत्यंत प्रतिकूल है । अति प्रगत संतों जैसे परम पूज्य डॉ.आठवलेजी ने साधकों की आध्यात्मिक उन्नति के लिए संकल्प किया है, क्योंकि यह काल आध्यात्मिक उन्नति की दृष्टि से अत्यधिक अनुकूल है । जब हम नियमित रूप से साधना करते हैं, तब हम ईश्वर का भी संरक्षण पाने में सक्षम हो जाते हैं । हमारी प्रार्थना है कि अधिक से अधिक लोग साधना करें तथा इस आध्यात्मिक यात्रा में आगे बढने हेतु वर्त्तमान समय का अधिकतम लाभ उठाएं ।