सत्संग से पूर्व दुर्गंध की अनुभूति होना

आध्यात्मिक आयाम से अच्छी एवं बुरी दोनों प्रकार की अनुभूति हो सकती है । इस खंड में हमारे द्वारा अंकित अधिकांश अनुभूतियां सकारात्मक रहीं । इस विशेष प्रकारण में स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन के हमारी एक साधिका को दुर्गंध के रूप में नकारात्मक सूक्ष्म अनुभूति हुर्इ ।

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साधना के एक अंग के रूप में साधक सप्ताह में एक बार मिलते हैं एवं अपनी साधना के प्रयासों तथा साधना में आ रही बाधाओं के बारे में अध्ययन तथा चर्चा करते हैं । इससे उनकी साधना को पोषण मिलता है तथा साधना में निरंतरता तथा आगे के चरणों में जाकर आध्यात्मिक प्रगति करने में सहायता मिलती है । इस प्रकार की बैठक को सत्संग कहा जाता है ।

सत्संग में सम्मिलित होने के पश्चात अगले कुछ दिनों में, मुझे व्यक्तिगत रूप से अपनी साधना में गुणात्मक सुधार अनुभव हुआ । अपने काम के कारण मैं युनाइटेड स्टेट्स तथा भारत के विभिन्न भागों में यात्रा करती हूं । मैं जहां भी रहूं, साप्ताहिक सत्संग में उपस्थित रह सकूं, इसके लिए प्रयास करती हूं । युनाइटेड स्टेट्स तथा भारत के विभिन्न भागों में स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन के केंद्र हैं । इससे यात्रा के समय भी सत्संग में सम्मिलित हो पाना मेरे लिए संभव होता है ।

अपने एक कार्य के लिए मुझे ब्लूमिंगटन, इलिनॉयस जाना था । वहां रहते हुए मुझे साप्ताहिक सत्संग में सम्मिलित होना था । काम के अगले दिन अपने सहसाधक के घर में होनेवाले सत्संग के लिए मैं बहुत उत्सुक थी । जैसे ही हमने सत्संग प्रारंभ किया, हमें दुर्गंध आने लगी । दुर्गंध के कारण हमें उल्टी जैसा लगने लगा और हम व्याकुल हो उठे । उस दुर्गंध का कोर्इ भी स्थूल स्रोत अथवा कारण न होने के कारण हमें संदेह हुआ कि संभवतः यह काम अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) का होगा । हमने शीघ्र ही इस समस्या को दूर करने के लिए आध्यात्मिक उपचार किए । हमने घर को आध्यात्मिक रूप से स्वच्छ करने के लिए हमने आध्यात्मिक उपाय के रूप में घर के चारों ओर तीर्थ (अर्थात विभूति मिश्रित जल) छिडका । जैसे ही हमने तीर्थ छिडकना प्रारंभ किया, तत्काल दुर्गंध घटने लगी लगा । वातावरण में जो सूक्ष्म स्तरीय अदृश्य दबाव था वह घट गया । हमें वातावरण में हलकापन स्पष्ट रूप से अनुभव होने लगा । उसके उपरांत हम सत्संग में बिना किसी बाधा के सम्मिलित हो सके । श्रीमती शिल्पा मक्दुम, ब्लूमिंगट्न, इलिनॉयस.

इस दुर्गंध की अनुभूति का अध्यात्म शास्त्र

अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) का प्रमुख लक्ष्य हाेता है साधक द्वारा अध्यात्म प्रसार करने पर उनकी साधना में बाधाएं उत्पन्न करना । इस हेतु वे प्राथमिक शस्त्र के रूप में आध्यात्मिक स्वरूप की कष्टदायक शक्ति काे माध्यम बनाते हैं । वे कष्टदायक शक्ति प्रसारित करने हेतु विविध माध्यमों का उपयोग करती हैं । इस प्रकरण में उन्होंने दुर्गंध का उपयोग किया । दुर्गंध के रूप में प्रकट होने के लिए अनिष्ट शक्ति ने पृथ्वीतत्त्व का प्रयोग किया था ।

संदर्भ हेतु पढें – अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) के अस्तित्व का क्या लक्ष्य है ?

दुर्गंध के माध्यम से आक्रमण करने की क्रियाविधि

दुर्गंध का मस्तिष्क कोशिकाओं पर त्वरित प्रभाव पडता है । इससे मन तथा बुद्धि पर कष्टदायक आवरण निर्मित होता है, जिसके फलस्वरूप व्याकुलता उत्पन्न होती है । इससे विचारों के प्रवाह में व्यावधान उत्पन्न होता है और मानसिक अस्थिरता तथा शंका निर्मित होती है । इस कारण साधक जो भी करता है उसमें एकाग्रता नहीं रहती, और इस प्रकार उसके कार्य करने की क्षमता घटती जाती है । धीरे-धीरे यह दुष्प्रभाव साधक की पूर्ण चेतना में फैलता जाता है और साधक की प्राण शक्ति घट जाती है । इस प्रकार के आक्रमणों से अनिष्ट शक्तियां साधकों में मानसिक कष्ट, शंका तथा भय निर्मित करती है ।

अनिष्ट शक्तियों द्वारा निर्मित दुर्गंध से बचने का उपाय

र्इश्वरीय शक्ति की उपस्थिति में अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) के सभी प्रयास शक्तिहीन हैं । जैसे कि ऊपर दी गर्इ अनुभूति में हमने देखा कि जैसे ही घर के चारों ओर तीर्थ का छिडकाव किया गया तत्काल अनिष्ट शक्तियों द्वारा निर्मित दुर्गंध नष्ट हो गर्इ और इस प्रकार वातावरण में कष्टदायक शक्ति की सभी लक्षण दूर हो गए ।