प्रकरण अध्ययन – एक आध्यात्मिक कार्यक्रम की तैयारी के समय अनेक नारियलों का बारबार अपनेआप चटकना

यह प्रकरण अध्ययन दो साधकों का वास्तविक अनुभव है जिन्होंने एक आध्यात्मिक कार्यक्रम के समय अपनी आंखों से अनेक नारियलों को बार-बार चटकते देखा, जिसे वे और वहां उपस्थित अन्य जिज्ञासु अविश्‍वास से देखते रह गए ।

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भारत के मुंबई की कुमारी प्रणाली परब और श्रीमती प्रज्ञा करंदीकर प.पू. जयंत आठवलेजी के मार्गदर्शन में साधना करती हैं और अपना अतिरिक्त समय विविध आध्यात्मिक कार्यक्रमों के आयोजन में देती हैं । फरवरी २००९ में ये दोनों एक सत्सेवा के रूप में एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत कर रही थी । यह कार्यक्रम पनवेल (मुंबई के निकट) क्षेत्र के एक खुले मैदान में आयोजित किया गया था । जिसमें हजारों लोगों के आने की संभावना थी । उनकी आंखों के सामने हुई इन विचित्र घटनाओं का वर्णन यहां दिया है ।

उस दिन हमें कार्यक्रम में आनेवाले अतिथियों के स्वागत की सेवा दी गई थी । अतिथियों के स्वागत के अतिरिक्त स्वागत समिति, कार्यक्रम में आए वक्ताओं और संतों की सेवा के लिए भी उत्तरदायी थी । प्रचलित प्रथा के अनुसार उनके सम्मान हेतु उन्हें नारियल भेंट करने का दायित्व भी हम पर था ।

आध्यात्मिक शोध समूह की टिप्पणी : SSRF में अनेक वर्षों के अध्यात्मिक शोध से हमने नारियल में आध्यात्मिक उपाय करने की क्षमता का अध्ययन कर उसमें यह विशेषता पाई । इसके अतिरिक्त नारियल सर्वाधिक सात्विकता प्रदान करने वाला फल है । अत: आध्यात्मिक कार्यक्रमों में संतों एवं विशेष अतिथियों को प्रायः नारियल भेंट किया जाता है ।

हमने कार्यक्रम आरंभ होने से ४५ मिनट पूर्व ४.४५ पर सत्सेवा प्रारंभ की ।

मंच की तैयारी करते समय साधक आंखों पर निरंतर दबाव का अनुभव कर रहे थे और वहां अत्यधिक बेचैनी थी । हमने निरीक्षण किया कि जब हम मंच से दूर जाते थे दबाव घट जाता था और मंच के निकट आने पर दबाव बढ जाता था । तब भी हम अपनी सेवा करते रहे ।

हमने आदरणीय वक्ताओं और संतों के स्वागत में उन्हें भेंट दिए जाने के क्रम में, उनके लिए शाल, माला और ग्रंथ तैयार किए थे । यह सब अलग-अलग थाली पर रखा गया था । हमने प.पू. परशराम पांडे महाराज और अन्य संतों की भेंट वस्तु एक मेज पर रखी थी । एक अन्य मेज पर हमने कार्यक्रम के प्रारंभ में वैदिक मंत्रों का पाठ करनेवाले पुजारियों को भेंट की जानेवाली वस्तु रखी थी ।
इसके उपरांत हमने प्रत्येक थाली में रखे सामान के ऊपर ध्यानपूर्वक एक-एक नारियल रखा । नारियल खरीदते समय हम सर्तक थे और यह जांच की थी कि उनमें दरारें न हों । दोपहर में हमने उन्हें संभाल कर रखा था और थाली में रखने से पूर्व उनकी जांच की थी। सभी नारियल पूर्णतया अखंड थे ।

लगभग १०-१५ मिनट उपरांत हमने पाया कि संतों के लिए (अलग) रखे हुए नारियल चटक गए थे । हमने उनके स्थान पर नए नारियल रख दिए । हम यह देखकर अचंभित रह गए कि कुछ ही समय पश्चात वे भी चटक गए । हमने एक साधक को भेजकर और नारियल मंगवाए । जब वह वापस आए तो हमने देखा कि उनके द्वारा लाए गए तीनों नए नारियल भी तुरंत चटक गए और उनमें से एक पर गहरा काला धब्बा था जैसे उसे जलाया गया हो । इस प्रकार हमने संतों के नारियल को तीन बार बदला ।

पुजारियों के लिए अलग रखे गए नारियल भी चटक गए और उनमें से पानी निकलने के कारण उसके नीचे रखी शाल खराब हो गई ।

(नीचे चटके हुए नारियल का छायाचित्र दिखाया गया है ।)

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श्रीमती करंदीकर और कुमारी परब ने (आगे) बताया कि ‘‘हमने इससे पहले भी अनेक आध्यात्मिक कार्यक्रमों के समय नारियलों को चटकते देखा था, अत: हम पहले से ही सतर्क थे कि ऐसा हो सकता है । ऐसा अत्यधिक ठंड अथवा गर्मी के कारण नही; अपितु अनिष्ट शक्ति के आक्रमण के कारण हो रहा था । विकसित छठी इंद्रियवाले अनेक साधकों से पनवेल में नारियल चटकने की घटना का विचार विमर्श करने पर उन्होंने पुष्टि की, कि यह एक गंभीर आक्रमण था । परंतु यह पहला अवसर था, जब हमने नारियलों को इतनी शीघ्रता से एक के उपरांत एक चटकते देखा ।

सभी साधकों ने एकत्रित हो कर कष्ट निवारण होने एवं स्थल के चारों ओर सुरक्षा कवच निर्माण होने के लिए प्रार्थना की । अन्य उपाय के रूप में नारियलों के ऊपर विभूति फूंकी और गौमूत्र मिश्रित जल छिडका ।’’