श्री. वामसी कृष्ण गोलामुडी की अनुभूतियां

१. गुरु तत्त्व के सर्वज्ञ एवं सर्वव्यापी होने की अनुभूति होना

कुछ परिस्थितियों के कारण, पिछले कुछ माह से मेरी पत्नी तथा पुत्र भारत में थे और मैं ऑस्ट्रेलिया में नौकरी कर रहा था । मुझे उन दोनों की याद आ रही थी तथा इस कारण मैं अकेला अनुभव कर रहा था । जीवन की अन्य परिस्थितियों के कारण भी मैं तनाव में था ।

एक सुबह जब मैं काम पर जाने के लिए रेल में था तब मैंने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी से श्रद्धापूर्वक प्रार्थना कि, “मैं अकेला अनुभव कर रहा हूं, कृपया मेरी सहायता कीजिए ।”

भीड से भरी रेल में बैठने पर मैं खिडकी में झांकने लगा, मुझे अपने ऊपर आकाश दिखाई दिया । मैं मार्ग में आकाश के व्यापक स्वरूप का अनुभव कर पा रहा था तथा मुझे वैसी अनुभूति पहले कभी नहीं हुई थी । इस अनुभूति से मुझे समझ में आया कि हम ब्रह्मांड की व्यापकता के समक्ष कितने छोटे हैं । मुझे “श्री श्री जयंत बालाजी आठवले, जय गुरुदेव,” नामजप सुनाई देने लगा जिसका अर्थ है “परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी में विद्यमान गुरुतत्त्व की जय हो” । यह मेरे मन में निरंतर चलता जा रहा था ।

मैं इस घटना से इतना आश्चर्यचकित था कि मैंने मन में ईश्वर से पूछा, “मुझे यह क्या अनुभूति हो रही है ? यह आश्चर्यजनक अनुभूति क्या है जो आप मुझे प्रदान कर रहे हैं ?”

मुझे भीतर से उत्तर प्राप्त हुआ कि ईश्वर विभिन्न रूपों में प्रकट होते हैं । आकाश की विशालता की मेरी अनुभूति ईश्वर के सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान तथा सर्वव्यापी स्वरूप का एक प्रकटीकरण थी । यह प्रकटीकरण आकाश में व्याप्त आकाश तत्त्व के माध्यम से हुआ था ।

उसी संध्या, मेरी पत्नी जो वर्तमान में भारत के गोवा स्थित आध्यात्मिक शोध केंद्र (SSRF) तथा आश्रम में है; उसने यह सूचित करने के लिए मुझे दूरभाष किया कि परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी मेरे बारे में पूछ रहे थे । मुझे यह जानकर उनके प्रति अत्यधिक कृतज्ञता व्यक्त हुई कि कैसे उन्हें यह ज्ञात हुआ कि मैं अभी किन परिस्थितियों में हूं तथा मुझमें यह विश्वास दिलाया कि ईश्वर सदैव मेरे साथ हैं ।