१. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी से तीव्र आध्यात्मिक शक्ति अनुभव होना
अप्रेल २००२ में, गोवा में स्थित आश्रम से जाने से ठीक पहले मुझे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी से भेंट करने का अवसर प्राप्त हुआ । उस समय, मैं जिस संस्कृति से आया था उससे यह बिलकुल भिन्न होने पर भी, मैंने उनसे उनको दंडवत करने तथा उनके चरणों में अपना मस्तक रखने की विनती की । प्रायः परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी साधकों को इस प्रकार के प्रणाम करने (अनुष्ठानिक औपचारिकताएं) की अनुमति नहीं देते । किंतु उस दिन उन्होंने मुझे ऐसा करने दिया । वे खडे थे तथा मैं उनके पैर के अंगूठे पर अपना ललाट रखने के लिए आगे झुका । जैसे ही मैंने अपने मस्तक को उनके चरणों पर रखा तो मुझे लगा जैसे ऊर्जा की तरंगें मेरे आज्ञा चक्र से प्रवेश करते हुए तथा मेरे पीठ की ओर लहर समान बहते हुए निकल रही है । यह विशिष्ट एवं वास्तविक था । उसके उपरांत अगले २-३ घंटे मेरा सिर भारी रहा । तदोपरान्त मुझे समझ आया कि जिस शक्ति को मैंने अनुभव किया वह सूक्ष्म सकारात्मक शक्ति थी । इसकी तीव्रता अधिक होने के कारण मैं इसे सहन नहीं कर सका और इसलिए मेरा सिर भारी हो गया ।
२. स्वप्न में समझाना एवं मेरे मन की अवस्था जानना
मैं फरवरी २००५ में, एक प्रकार से पूर्णकालिक साधक बन गया था – यद्यपि उस समय, मैं तब भी अंशकालिक रूप से कार्य कर रहा था, किंतु प्रतिदिन अधिकतर मेरा ध्यान एवं समय साधना एवं सत्सेवा के लिए ही समर्पित होता । अगस्त २००५ तक, मैं जो अंशकालिक नौकरी कर रहा था उसे भी छोड दिया तथा SSRF जालस्थल की तैयारी के लिए गंभीरतापूर्वक सत्सेवा आरम्भ की । मैं उस समय ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में रह रहा था । मेरा मूल स्वभाव ऐसा था कि मुझे अपनी बैंक राशि पर बहुत विश्वास था । मेलबर्न में रहते हुए प्रति माह बहुत अधिक व्यय हो रहा था तथा मैं अपने बैंक राशि को न्यून होते हुए देख रहा था क्योंकि अब आय कुछ नहीं थी । कभी-कभी मैं ऐसे विचारों से घबरा जाता था कि ‘मैं क्या कर रहा हूं ?’, ‘मैं कैसे रहूंगा ?’ ‘मेरा धन जा रहा है’ इत्यादि । जब मुझमें ऐसे विचार आने लगते तब मैं वास्तव में चिंतित हो जाता कि भविष्य में क्या होने वाला है तथा इन विचारों से अत्यधिक भय लगने लगता ।
तब एक रात, मुझे ऐसी अनुभूति हुई जिससे स्थिति के प्रति देखने का मेरा दृष्टिकोण बदल ही गया । मुझे विश्वास नहीं है कि मैं स्वप्न देख रहा था अथवा जागृत अवस्था में था किंतु मुझे स्वर सुनाई दिए जो मुझसे कह रहे थे, “देखो शॉन, सांसारिक जीवन में जब तुम कार्य पर जाते हो, तब तुम्हारा सांसारिक अधिकारी तुम्हे माह के अंत में वेतन प्रदान करता है । अतः यदि तुम गुरु अथवा ईश्वर के लिए कार्य कर रहे हो जो कि सम्पूर्ण विश्व (दोनों सूक्ष्म एवं स्थूल) का ध्यान रखते हैं तो क्या तुम्हें नहीं लगता कि वे तुम्हारा ध्यान रखेंगे ?”
यह विचार इतना प्रबल था कि इसने मेरे अंतर्मन को छू लिया । उस क्षण से, अपने व्यय के विषय में मेरा भय समाप्त हो गया । गुरु ने मुझे धन न होने के विषय में एक उच्च दृष्टिकोण तथा एक विशिष्ट स्तर का आश्वासन प्रदान किया जिसे मैंने पहले कभी अनुभव नहीं किया था ।
उपरांत दिसंबर २००६ में, मैं भारत आया । यद्यपि मैं उस समय यह नहीं जानता था कि आश्रम में रुकना मेरे कल्याण के लिए होगा । उस समय मेरे पास कदाचित ही कोई धन बचा था क्योंकि मैंने अपनी पूर्णकालिक नौकरी लगभग २ साल पहले ही छोड दी थी । मैं नही जानता था कि मैं ऑस्ट्रेलिया में अपने बिल कैसे भरूंगा तब भी मेरे मन में कोई भय नहीं था क्योंकि अर्ध जागृत अवस्था में मिले उस मार्गदर्शन का प्रभाव अभी भी मुझमें प्रबल था । मैंने कभी भी अपने भय अथवा स्वप्न के विषय में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को नहीं बताया ।
एक माह के उपरांत जब मैं आश्रम में था तब परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने मेरे विषय में दूसरे साधकों से पूछा है, यह पता चला । उन्होंने कहा कि परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने मुझसे पूछा, “क्या तुम्हें पूर्णकालिक साधक बनने में भय नहीं लग रहा तथा कोई धन शेष नहीं बचेगा । तब मैंने उत्तर दिया, “ईश्वर ध्यान रखेंगे ।” वास्तव में, मेरा ऐसा कोई संवाद परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के साथ नहीं हुआ था, किंतु उन्होंने मेरे उस भाव को समझ लिया जो स्वप्न आने के उपरांत मुझे अनुभव हो रहा था । इस बात से मुझे यह भी सुनिश्चित हो गया कि परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी ने स्वयं मुझे स्वप्न में यह अनुभूति दी थी ।
३. दिव्य ज्ञान को देख पाने के कारण अद्वितीय विश्लेषणात्मक क्षमताएं होना
जब भी हम परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी से कुछ समीक्षा लेने के लिए जाते, तब वे सदैव अल्पतम संभव समय में वह कर देते तथा कभी-कभी तो हमें बताते भी कि कहां हमें अपने शोध में पुनः काम करना है ।
ऐसी ही एक घटना थी, जब श्री. योगेश शिंदे एवं मैं प्रसारण कक्ष (स्टूडियो) में प्रकाश ग्रिड तथा उसके लिए कितने तारों की आवश्यकता होगी इसका विश्लेषण करने की सेवा कर रहे थे । इस प्रकरण में, मैं आवश्यकताओं का विश्लेषण करने में गहराई तक नहीं गया था । मुझे लगा कि इसके लिए संक्षिप्त अध्ययन पर्याप्त होगा । पश्चात जब हमने प्रकाश ग्रिड का तकनीकी चित्र परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को बताया तब उन्होंने उस पर अपनी दृष्टि घुमाई और त्वरित हमें उसमें एक भाग पुनः जांचने को कहा ।
योगेश एवं मैं पुनः ड्राइंग बोर्ड के पास आए तथा हमें भान हुआ कि जिस क्षेत्र पर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने इंगित किया था वहां पर हमारे विश्लेषण में त्रुटि थी । इस बार हमने गहन अध्ययन किया एवं जब हम पूर्ण रूप से संतुष्ट हो गए तभी हम उसे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पास पुनः लेकर गए । जैसे ही हमने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कक्ष में प्रवेश किया तथा उनसे पूछा कि क्या वे इसे जांचना चाहेंगे तब उन्होंने त्वरित कहा कि अब इसकी आवश्यकता नहीं है ।
इस प्रकार की घटनाएं अनेक बार हुई हैं जिनमें परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने सांसारिक स्तर पर वस्तुओं की सटीकता के संबंध में बताया है तथा आध्यात्मिक स्तर पर किसी की साधना ठीक प्रकार से चल रही है अथवा नहीं एेसे भी बताया है । वह भी जब उन्होंने उस व्यक्ति को प्रत्यक्ष में देखा भी नहीं होता है ।