परम पूज्य सिरियाक वालेजी की अनुभूतियां

१. परात्पर गुरु डॉ.  आठवलेजी से प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति अनुभव करना

दिसम्बर १९९९ में, परात्पर गुरु डॉ.  आठवलेजी से पहली बार मेरी भेंट हुई । जब मैं उनके चरणों में अपना मस्तक रखा, तब मेरा पूरा शरीर हिलने लगा । ऐसा लग रहा था जैसे मुझे उनके चरणों से अत्यधिक मात्रा में शक्ति प्राप्त हो रही है ।

तदोपरान्त उन्होंने मेरी पीठ पर अपना हाथ रखा तथा मुझे स्मरण है कि उन्होंने कहा, “मैं आपको एक नया जीवन देता हूं ।”

उस क्षण, मैं भाव विभोर हो गया तथा रोने लगा । तब मेरी आंखों के सामने पूरा वातावरण श्वेत हो गया, मुझे उसके आगे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था तथा मुझे समय का भान नहीं रहा । एक साधक जो मेरी इस अनुभूति के दौरान उपस्थित थे, उन्होंने मुझे संभाला और खडे होने में मेरी सहायता की । मुझे स्मरण है कि उस समय, मैं अगले २० मिनट तक न तो कुछ सोच सका और न ही हिल सका ।

यह अनुभूति इतनी प्रबल थी एवं मेरे मन में इस प्रकार अंकित हो गई थी कि उसके उपरांत जब भी मेरे मन में कोई शंका हुई अथवा मेरी साधना में बाधा आई तब इस अनुभूति के स्मरण से, मुझे उन पर सहजता से विजय प्राप्त करने में सहायता प्राप्त हुई ।

संपादक की टिप्पणी : संत के चरणों से अत्याधिक मात्र में आध्यात्मिक शक्ति प्रक्षेपित होती है । समय का भान न रहना, यह एक उच्च स्तर की आध्यात्मिक अनुभूति है ।

२. परात्पर गुरु डॉ.  आठवलेजी द्वारा उनकी सर्वव्यापकता दिखाना

अप्रैल २००७ में, मैं फ्रांस में एक सेल्स एग्जीक्यूटिव के रूप में नौकरी कर रहा था । प्रतिदिन मुझे पेरिस तथा इले-डी-फ्रांस जो कि एक जिला है जिसमें पेरिस भी आता है, के बीच औसतन १५० किमी. वाहन चलाना पडता था ।

एक दोपहर, जब मैं एक सुरंग (टनल) में से वाहन चलाते हुए निकल रहा था तब मुझे जीवन को बदल देनेवाला एक अनुभव हुआ । सुरंग में आने तथा जानेवाले वाहनों के लिए दो लेन (पथ) थी । मेरे वाहन की गति ५० से ८० किमी प्रति घंटा थी तथा वहां कहीं भी वाहन रोकने की कोई संभावना नहीं थी क्योंकि वह एक भूमिगत (अंडरग्राउंड) सुरंग थी । मैं अपनी अगली नियोजित भेंट के विचार में खोया हुआ था और तभी अचानक, मुझसे अत्यधिक तीव्रता से ईश्वर का नामजप होना आरंभ हो गया । जिस तीव्रता से नामजप होना आरंभ हुआ, उससे  वास्तव में मैं चकित था ।

दो मिनट के नामजप के उपरांत मैंने दांई ओर अपनी बगलवाली यात्री सीट पर देखा तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा । मैंने देखा कि परात्पर गुरु डॉ.  आठवलेजी मेरे पास बैठे हैं । वह रूप परात्पर गुरु डॉ.  अाठवलेजी का पूर्णतया सगुण रूप लग रहा था । उस क्षण में, मुझे शांति अनुभव हुई जो कि इतनी गहन थी कि मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मुझे चेतानाशून्य कर दिया गया हो ।

तदोपरान्त कुछ ही क्षणों में एक व्यक्ति अचानक मेरी कार पर कूद पडा । मुझे उसका मुख अपनी विंडशील्ड से स्पष्ट दिखाई दे रहा था । इस असाधारण घटना के होते हुए भी, मैं बहुत शांत रहा (धैर्य रखा) तथा अपनी कार को झटके से नहीं मोडा । यदि मैं ऐसा करता, तो यह घातक होता क्योंकि मेरी गाडी के पीछे ही अन्य वाहन आ रहे थे । चूंकि मैं सुरंग में था इसलिए मैं नहीं रुक सका, किंतु मैंने पीछे की स्थिति दिखानेवाले दर्पण में देखा कि वह व्यक्ति सडक के बीच में खडा था तथा प्रतीत हो रहा था कि उसे कोई क्षति नहीं पहुंची है ।

इस अनुभूति ने परात्पर गुरु डॉ.  आठवलेजी के प्रति मेरी श्रद्धा को विलक्षण रूप से बढा दिया । उनकी उपस्थिति ने एक घातक दुर्घटना से मेरी रक्षा की तथा मुझे समझ आया कि वे पेरिस में भी उसी प्रकार मेरे जीवन में वैसे ही थे जैसे आश्रम में जब मैं उनसे मिलता था तब रहते थे ।

संपादक की टिप्पणी: एक व्यक्ति के जीवन में, ऐसे कुछ काल आते हैं जिसमें उसे एेसी परिस्थिति का सामना भी करना पड सकता है जिसका परिणाम अकाल मृत्यु हो । ईश्वर एवं गुरुतत्व काल एवं स्थल से परे हैं तथा ऐसी परिस्थितियों में वे साधक की रक्षा के लिए आते हैं जहां जीवन और मृत्यु की संभावना हो । इसी कारण साधक की रक्षा होती है तथा वह अपनी आध्यत्मिक यात्रा (साधना) निरंतर जारी रख पाता है ।