HIN_Why--addicts

किन कारणों से एक व्यक्ति व्यसनी बन जाता है ? किसी व्यक्ति के व्यसनी बनने हेतु अनेक कारण होते हैं ।

१. प्रारब्ध: किसी व्यक्ति का नकारात्मक प्रारब्ध व्यक्ति के व्यसनी बनने में बडी भूमिका निभाता है । हम सभी पूर्व निश्चित प्रारब्ध के साथ जन्म लेते हैं, जो हमारे पूर्व जन्मों के कर्मों पर आधारित होता है । व्यक्ति को विविध पदार्थों का व्यसन लगना अथवा उसका उनपर निर्भर रहना, नकारात्मक प्रारब्ध का प्रकटीकरण हो सकता है । इससे निश्चितरूप से हमें यातना होती है तथा यह भी सुनिश्चित हो जाता है कि हम निम्न स्तरीय जीवन व्यतीत करेंगे ।

२. पाप: एक व्यसनी के खाते में पुण्य से अधिक पाप की संभावना होती है । पाप से हमारा तात्पर्य है पूर्व जन्मों तथा इस जन्म में किए गए अनुचित कर्म, जो हमें इस जन्म में भुगतने हैं ।

. पूर्वजों के प्रकार: कुछ परिवारों में ऐसे मृत पूर्वज होते हैं जो पृथ्वी पर अपने जीवनकाल में व्यसनी थे । इन परिवारों के वंशजों का अपने मृत पूर्वजों से अत्यधिक मात्रा में लेन-देन होता है । मृत्योपरांत सूक्ष्म देह बने मृत पूर्वज, अपने वंशजों को आविष्ट करने हेतु इस लेन-देन का दुरुपयाेग कर (अपने वंशजों को माध्यम बनाकर) अपने इच्छित पदार्थ ग्रहण करते हैं

४. समय: कालानुसार अर्थात किसी व्यक्ति के जीवन का वह विशेष समय जब वह आध्यात्मिक रूप से दुर्बल होता है । साधना के अभाव, अत्यधिक पापकर्म तथा तीव्र अहं के कारण व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से दुर्बल हो जाता है

५. आध्यात्मिक विकास: निम्न आध्यात्मिक स्तर के व्यक्ति पर आक्रमण होने की संभावना अधिक होती है । ऐसे व्यक्ति जो नियमित, गुणात्मक रूप से, अध्यात्म के छः सिद्धांतों के अनुसार साधना कर रहा हो उनके व्यसनी होने अथवा भविष्य में बनना दुर्लभ है ।

६. प्रेम: व्यक्ति की किसी पदार्थ, वस्तु अथवा गतिविधि में तीव्र रूचि हो तो उसके किसी सूक्ष्म जीव द्वारा आवेशित होने की संभावना अधिक होती है ।

७. अभिभावकों का आध्यात्मिक स्तर : अभिभावकों का आध्यात्मिक स्तर जितना अधिक होगा, गर्भधारण काल में भ्रूण पर प्रभाव उतना अल्प होता है । (संदर्भ हेतु देखें लेख – व्यसन का आरंभ गर्भावस्था से ही कैसे होता है

स्रोत: स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन द्वारा किया गया आध्यात्मिक शोध

SSRF की टिप्पणी : हम देख सकते हैं कि ऊपरोक्त दी गर्इ सूची में अधिकांश कारकों का मूल कारण आध्यात्मिक है । यद्यपि पदार्थ अथवा वस्तु की ओर मानसिक आकर्षण के रूप में व्यसन आरंभ होते हैं, तथापि आध्यात्मिक आयाम के जीव शीघ्र ही इसका लाभ उठाते हैं । आध्यात्मिक कारणों से उत्पन्न की किसी भी समस्या पर विजय प्राप्त करने हेतु साधना ही एकमात्र उपाय है ।