इस विधि के लिए आपको किन वस्तुओं की आवश्यकता है ?
* मिर्चों की संख्या अनुभव किए जा रहे कष्ट की तीव्रता पर निर्भर करता है । विधि में कष्ट की तीव्रता अनुसार कितनी संख्या में मिर्च का उपयोग किया जाए इसके लिए मार्गदर्शक सूत्र नीचे दी गर्इ सारणी में हैं ।
कष्ट की तीव्रता | मिर्च की संख्या |
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निरंतर शरीर भारी लगना, जी मिचलाना | ३ |
अधीरता (बेचैनी), अचानक पसीना आना, नकारात्मक विचार | ५ |
वाणी पर नियंत्रण न होना, दृष्टि में अचानक धुंधलापन आना, मुंह सूखना, अपशब्द बोलना, आत्महत्या के विचार | ७ |
अचेतना (बेहोशी), अनिष्ट शक्ति का प्रकटीकरण, हत्या का विचार | ९ |
कुदृष्टि (नजर) उतारने के लिए नमक, राई और मिर्च से की जानेवाली विधि
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प्रथम कृत्य : – प्रार्थना करना
- जिसकी कुदृष्टि उतारनी है वह श्री हनुमानजी से प्रार्थना करे : मैं (अपना नाम लें) प्रार्थना करता हूं कि मुझे लगी कुदृष्टि उतर जाए और (जो कुदृष्टि उतार रहा है उसका नाम लें) पर किसी प्रकार का अनिष्ट प्रभाव न पडे ।
- जो कुदृष्टि उतार रहा है वह श्री हनुमानजी से प्रार्थना करे कि उस पर कष्टदायक नकारात्मक शक्ति का कोई प्रभाव न हो ।
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द्वितीय कृत्य : अपना स्थान ग्रहण करें
जिस अनिष्ट शक्ति से आवेशित व्यक्ति की कुदृष्टि उतारनी है उसे लकडी की चौकी पर पूर्व दिशा की ओर मुख कर, घुटनों को छाती से लगाकर उकडूं बैठने के लिए कहें तथा उसकी हथेली को घुटनों के ऊपर आकाश की ओर कर रखने के लिए कहें ।
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तृतीय कृत्य : विधि करना
जो व्यक्ति कृत्य कर रहा हो उसे दूसरे व्यक्ति के समक्ष खडा होना चाहिए । जितनी मात्रा में रवेदार नमक और राई मुट्ठी में लिए जा सकते हैं वह दोनों हाथों में लें । यदि बार्इं मुट्ठी में एक मिर्च ली हो, तो दाहिनी मुट्ठी में दो मिर्च लें ।
इसके उपरांत अपने सामने दोनों मुट्ठियां गुणाकार चिन्ह के आकार में रखें । दोनों मुट्ठियां बाधित व्यक्ति के मस्तक से पैरों तक एक दूसरे की विपरीत दिशा में घुमाते हुए नीचे लाएं एवं धरती का स्पर्श करें ।
हाथों को केवल प्रारंभ में गुणाकार स्थिति में रखा जाता है, किंतु जैसे ही क्रिया का आरंभ होता है और हाथ विलग होते हैं, एक साथ दाहिनी मुट्ठी घडी की दिशा में तथा बार्इं मुट्ठी घडी की विपरीत दिशा में मस्तक से पैरों तक घुमाएं |
धरती को स्पर्श करने के उपरांत पहले की भांति क्रिया करते हैं अर्थात हाथाें को अलग कर एक साथ, दाहिनी मुट्ठी को घडी की दिशा में तथा बार्इं मुट्ठी को घडी की विपरीत दिशा में पैरों से मस्तक तक ले जाते हैं ।
कुदृष्टि (नजर) उतारने की विधि करते समय यह बोलें ‘‘आने-जानेवालाें की, यात्रियाें की, पशु-पक्षियाें की, ढाेर-डंगर की, भूत-प्रेताें की, मांत्रिकाें की अथवा इस विश्व की किसी भी शक्ति की कुदृष्टि (नजर) लगी हाे, ताे वह उतर जाए और इसकी रोगों अथवा चोट से रक्षा हो ।’’
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चतुर्थ कृत्य :
अंत में मुट्ठियों में लिए हुए सभी पदार्थ एक साथ सिगडी अथवा तवे पर जलते हुए कोयले पर डाल दें ।