तृतीय विश्वयुद्ध की भविष्यवाणियां तथा इससे पूर्व और पश्चात घटित होने वाली घटनाएं
विषय सूची
- तृतीय विश्वयुद्ध की भविष्यवाणियां तथा इससे पूर्व और पश्चात घटित होने वाली घटनाएं
- 1. तृतीय विश्वयुद्ध की भविष्यवाणियां – परिचय
- 2. तृतीय विश्वयुद्ध एवं सूक्ष्म युद्ध
- 3. तृतीय विश्व युद्ध कब प्रारंभ होगा ? घटनाओं का समय
- 4 धर्मयुद्ध एवं तृतीय विश्वयुद्ध की तीव्रता की भविष्यवाणी
- 5. सूक्ष्म युद्ध एवं तृतीय विश्व युद्ध के मुख्य चरण
- 6. क्या तृतीय विश्व युद्ध को रोका जा सकता है ?
- 7. इस सूक्ष्म युद्ध में ईश्वर के पक्ष से लड रही शक्तियां कौन हैं ?
- 8. निष्कर्ष
1. तृतीय विश्वयुद्ध की भविष्यवाणियां – परिचय
पिछले कुछ वर्षों से विश्व प्राकृतिक आपदाओं, आतंकवादी गतिविधियों और राजनीतिक उथल-पुथल में बढोतरी अनुभव कर रहा है । इन घटनाओं में कमी होने के अथवा इसकी तीव्रता घटने की कोई संभावना नहीं दिख रही है । विशेष रूप से, पिछले कुछ समय से हम देख रहे हैं कि तृतीय विश्व युद्ध की संभावना तथा ऐसे संभावित स्थान जहां तृतीय विश्व युद्ध आरंभ हो सकता है, इस प्रकार के समाचारों में भारी वृद्धि हुई है । यहां तक कि ऐसी भी खबरें आईं जो अनुमान लगा रही है कि क्या तृतीय विश्व युद्ध आरंभ हो चुका है ? हममें से अधिकांश लोगों को इस विश्व को अनियंत्रित गति से और अनिश्चित भविष्य की ओर बढता देख असहाय अनुभव होता होगा ।
अनेक द्रष्टाओं, जैसे नॉस्त्रेदमस , और उन्होंने तृतीय विश्व युद्ध के आरंभ होने का भी उल्लेख किया है ।
SSRF ने तृतीय विश्व युद्ध के आरंभ की संभावना तथा यह कब हो सकता है और इसके आगे क्या होगा, इसका पता लगाने के लिए वर्ष २००६ से आध्यात्मिक शोध किया है । हमने, इन भयावह घटनाओं के लिए कारणीभूत सूक्ष्म आयाम में घटनेवाला धर्मयुद्ध एवं तृतीय विश्वयुद्ध, जैसी घटनाओं और भविष्य में हमारे लिए क्या है, इसका पता लगाने हेतु भी आध्यात्मिक शोध किए हैं । इस लेख का उद्देश्य, आध्यात्मिक शोध के माध्यम से निम्नलिखित विषयों से संबंधित प्राप्त जानकारी उपलब्ध कराना है –:
- आध्यात्मिक शक्तियां, जो कि वैश्विक घटनाओं और भविष्य में होनेवाली घटनाओं एवं समय को क्रमबद्ध करने में कार्यरत हैं |
- विश्वयुद्ध जैसी इन घटनाओं के प्रभाव को अल्प करने के लिए मानवजाति द्वारा करनेयोग्य उपाय |
2. तृतीय विश्वयुद्ध एवं सूक्ष्म युद्ध
इस समय विश्व अत्यंत व्यापक स्तर पर हो रहे सूक्ष्म युद्ध के बीच खडा है, जिससे अधिकांश लोग अनभिज्ञ हैं । युद्ध का अधिकांश भाग सूक्ष्म आयाम में अच्छी एवं बुरी शक्तियों के बीच लडा जा रहा है । आध्यात्मिक आयाम में होनेवाली घटनाओं से भौतिक लोक अर्थात्, पृथ्वी भी प्रभावित हो रही है । इस सूक्ष्म युद्ध का परिणाम मुख्यतः विभिन्न स्तरों पर तीव्र गति से बढ रहे विश्व के अध:पतन के बीजों के रूप में है । ये दो प्रकार से कार्य करते हैं :
- यह विश्व की कुल सात्त्विकता घटाता है ।
- यह मानवजाति पर अनिष्ट शक्तियों के नियंत्रण को दृढ करता है ।
वर्ष १९९३ से सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियों ने समाज के अध:पतन एवं अधर्म की गति बढाने हेतु बीज बोने आरंभ कर दिए थे । पतन (रज-तम में वृद्धि) की यह प्रक्रिया विविध प्रकार से समाज में पहले से ही चल रही है । साधना न करने के फलस्वरूप मनुष्य की भौतिकवादी वृत्ति में बढोत्तरी और धर्माचरण के अभाव के कारण ऐसा हुआ है । उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियों के कारण पतन की तीव्रता एवं गति में वृद्धि हुई है । समय बीतने के साथ-साथ यह बीज अंकुरित हो कर समाज का और अधिक पतन करेंगे । जैसे-जैसे समाज और अधिक अधर्मी बनता जाएगा, वह अनिष्ट शक्तियों के हाथों का खिलौना बनकर वातावरण के रज-तम गुणों में आैर वृद्धि करेगा । विश्व में रज-तम गुणों की वृद्धि मनुष्य और पर्यावरण में अस्थिरता का कारण बनेगी । वर्त्तमान परिस्थिति प्राकृतिक आपदाओं और तृतीय विश्व युद्ध का रूप ले लेगी ।
3. तृतीय विश्व युद्ध कब प्रारंभ होगा ? घटनाओं का समय
आगे दी गई सारणी में, घटनाओं का वर्णन मनोवैज्ञानिक युद्ध, जो २०१८ में समाप्त हुआ, से वास्तविक स्थूल तृतीय विश्व युद्ध, जो २०१९ में प्रारंभ होगा, इस क्रम में किया गया है । उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों के द्वारा सूक्ष्म लोकों में पहले ही क्रियान्वित की जा चुकी कुछ प्रक्रियाओं के उदाहरण दिए गए हैं । हमने आरंभ में इस लेख को वर्ष २००६ में प्रकाशित किया था, और वर्ष २०१५ से हमने उन घटनाओं के बारे में एक अतिरिक्त अनुमानित दिशानिर्देश प्रदान किया है जो आगे घटित होने वाली है । जैसे-जैसे तृतीय विश्व युद्ध अपने अंतिम चरण में पहुंचता जाएगा, तब सूत्र कमांक ६ – क्या तृतीय विश्व युद्ध से बचा जा सकता है ?, इस लेख में बताए गए विभिन्न कारकों के आधार पर विशिष्ट घटनाओं के लिए समय सारणी बदल सकती है ।
वर्ष | घटना |
---|---|
२००० | समाज में घरेलू झगडों में तीव्रता का बीज बोया गया |
२००१ | समाज में असामाजिक तत्त्व बढाने का बीज बोया गया |
२००२ | धार्मिक स्थलों में अनाचार की वृद्धि के बीज बोए गए, जिससे रज-तम बढे । धार्मिक स्थल समाज का सत्त्वगुण बढाने में सहायक होते हैं । जब वहां अधर्माचरण होता है तो सात्त्विकता घटती है और उसके कारण रज-तम बढने में सहायता होती है । |
२००६ | धार्मिक स्थलों के विनाश प्रारंभ होने के बीज बोए गए |
२०११ | अनिष्ट शक्तियों द्वारा नियंत्रित आतंकवादियों के माध्यम से समाज के कल्याण के लिए कार्यरत आध्यात्मिक संस्थाओं को नष्ट करने का बीज बोया गया |
२०१४ | प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि होना |
२०१५ | बाढ और ज्वालामुखी से प्रलयंकारी विनाश |
२०१५ -२०१८ |
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२०१९-२०२४ |
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२०२५ के उपरांत |
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क्या तृतीय विश्व युद्ध को रोका जा सकता है, यह अनुभाग देखें ।
4 धर्मयुद्ध एवं तृतीय विश्वयुद्ध की तीव्रता की भविष्यवाणी
जैसा कि पूर्व में बताया गया कि स्थूल लोक अर्थात् पृथ्वी पर होनेवाले इस युद्ध का कारण प्रधानता से सूक्ष्म आयाम होगा । अत: इस युद्ध के होने की जानकारी पृथ्वी पर केवल आध्यात्मिक रूप से उन्नत व्यक्तियों तक ही मर्यादित है । वास्तव में पृथ्वी पर इस युद्ध का एक बहुत छोटा-सा अंश ही अनुभव होगा; परंतु यह आंशिक रूप भी महाप्रलयकारी होगा और व्यापक विनाश का कारण बनेगा । युद्ध के इस आंशिक रूप में प्रकृति की विनाशकारी शक्तियों के तांडव और तृतीय विश्व युद्ध, जिसमें सामूहिक विनाश के शस्त्र उपयोग किए जाएंगें, जिसकी साक्षी संपूर्ण मानवजाति बनेगी । प्राकृतिक आपदाएं, जैसे- बाढ, भूकंप और ज्वालामुखी इत्यादि रजोगुण एवं तमोगुण के बढने के कारण बढेंगी और पृथ्वी पर बढता अधर्म इसमें आग में घी का कार्य करेगा । इस घटना पर किया गया आध्यात्मिक शोध प्राक्रतिक आपदाएं – आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य, इस लेख में वर्णित है । वे लोग जो तृतीय विश्व युद्ध का प्रारंभ करेंगे, वे उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियों, जिन्हें सूक्ष्म-मांत्रिक कहा जाता है, के नियंत्रण में होंगे ।
निम्नांकित सारणी विभिन्न विश्व युद्धों में सूक्ष्म और स्थूल दोनों स्तरों की तुलनात्मक तीव्रता को प्रदर्शित करती है –
युद्ध का नाम | वर्ष | स्थूल एवं सूक्ष्म युद्ध की तुलनात्मक तीव्रता |
---|---|---|
प्रथम विश्वयुद्ध | १९१४-१९१८ | १ |
द्वितीय विश्वयुद्ध | १९३९-१९४५ | १.५ |
तृतीय विश्वयुद्ध | २०१५-२०२४ | ४.५* |
टिप्पणी : तृतीय विश्वयुद्ध के अंत तक, युद्ध के कारण हुए विनाश की तीव्रता प्रथम विश्व युद्ध की तुलना में ४.५ गुणा तथा द्वितीय विश्व युद्ध की तुलना में ३ गुणा होगी ।
उपरोक्त सारणी से हमें सूक्ष्म युद्ध एवं तृतीय विश्व युद्ध की व्यापकता का बोध होता है । पिछले कुछ वर्षों में हुई आतंकवादी गतिविधियां और बडी आपदाएं, सूक्ष्म युद्ध से सीधे संबंधित होने का संकेत करती हैं । उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियां, जैसे सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक, उन व्यक्तियों को अपने प्रभाव में ले लेते हैं जो समाज को हानि पहुंचाने की मानसिकता रखते हैं और उनके माध्यम से मानवजाति पर आतंकी आक्रमण करवाते हैं ।
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हमारे पाठकों के लिए सूचना :
यह लेख पहली बार सितंबर २००६ में प्रकाशित हुआ था ।
इस लेख को आैर अच्छे से समझने हेतु हमारा सुझाव है कि आप यह लेख पढें : सत्व, रज और तम, ब्रह्मांड की रचना करनेवाले तीन सूक्ष्म मूलभूत घटक क्योंकि यह लेख उन मूलभूत अवधारणाओं पर जानकारी प्रदान करता है जिसका उल्लेख प्रस्तुत लेख के संदर्भ में किया गया है ।
साथ ही आप हमारे लेख तृतीय विश्व युद्ध से जीवन रक्षक मार्गदर्शिका
5. सूक्ष्म युद्ध एवं तृतीय विश्व युद्ध के मुख्य चरण
5.1 तृतीय विश्व युद्ध के पीछे किसका हाथ है और इसका प्रारंभ कैसे होगा ?
तृतीय विश्व युद्ध मुख्यतः बलशाली सूक्ष्म स्तरीय शक्तियों से प्रेरित होगा । उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियां मनुष्यों के कनिष्ठ आध्यात्मिक स्तर, स्वभावदोष एवं उच्च अहं से उत्पन्न इस अति संवेदनशीलता का उपयोग कर उन्हें चरम सीमा तक धकेलने में और राष्ट्रों को एक दूसरे के विरुद्ध युद्ध छेडने हेतु उकसाएंगी ।
तीन विश्वयुद्धों में (अर्थात प्रथम विश्व युद्ध से तृतीय विश्व युद्ध तक) पाताल के उत्तरोत्तर उच्चतर लोकों की शक्तिशाली अनिष्ट शक्तियां ही देशों को एक दूसरे से युद्ध करने के लिए भडकाने का वास्तविक मूल कारण रही हैं । पाताल के किन लोकों की कौन सी शक्तियां विश्व युद्ध उकसाने के लिए उत्तरदायी थीं, इसका विस्तृत विवरण निम्नांकित बिंदुओं में किया गया है –
- प्रथम विश्व युद्ध : दूसरे पाताल के सूक्ष्म-स्तरीय मांत्रिक ।
- द्वितीय विश्व युद्ध : दूसरे युद्ध के क्रियान्वन में मुख्यतः तीसरे पाताल के मांत्रिकों ने भाग लिया था । उदाहरण के लिए, हिटलर अपने कार्यकाल में पांचवें पाताल के सूक्ष्म-स्तरीय मांत्रिक से प्रभावित था । उसका आश्चर्यजनक रूप से सत्ता में आने का यही कारण था । उसके शासनकाल में उसमें विद्यमान सूक्ष्म-स्तरीय मांत्रिक पूर्ण रूप से प्रकट था ।
- तृतीय विश्व युद्ध : तृतीय विश्व युद्ध में जो युद्ध स्थूल स्तर पर लडा जाएगा उसके नेपथ्य में चौथे पाताल के सूक्ष्मस्तरीय मांत्रिक होंगे । सूक्ष्म युद्ध में सातवें पाताल के सूक्ष्म-स्तरीय मांत्रिकों का सहभाग होगा । वर्ष २०१७-२०२४ में, सूक्ष्म युद्ध में छठवें एवं सातवें पाताल के सूक्ष्म-स्तरीय मांत्रिकों का सहभाग होगा ।
तृतीय विश्व युद्ध का प्रारंभ २०१५ में होगा और यह वर्ष २०२४ तक, अर्थात् लगभग ९ वर्षों तक चलेगा । इस कालावधि में लडे जानेवाले सभी युद्ध आपस में सम्बंधित होंगे । विश्व को प्रत्यक्ष रूप से यह ज्ञात नहीं होगा । इस कालावधि के अंत तक सामूहिक विनाश के अस्त्र-शस्त्रों का उपयोग होगा, जिसमें नाभिकीय शस्त्र भी सम्मिलित होंगे । जनजीवन की अप्रत्याशित हानि होगी और लगभग ५०% जनसंख्या नष्ट हो जाएगी । कुछ देश अन्य देशों से अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित होंगे । निःसंदेह आंतरिक रूप से जुडे इस विश्व के सभी देश इससे प्रभावित होंगे ।
आगे दी गई सारणी में अच्छी एवं बुरी शक्तियों के परिप्रेक्ष्य से, तृतीय विश्वयुद्ध तथा ईश्वरीय राज्य की स्थापना के समय होनेवाले सूक्ष्म युद्ध की समय सारणी ।
वर्ष | तृतीय विश्वयुद्द के चरण |
---|---|
२०१५ | प्रारंभ |
२०१६-२०१८ | दुर्जन शक्तियों के प्रभाव में अधर्मी लोगों की विजय होना |
२०१९-२०२१ | धर्म और अधर्म की शक्तियों का बल बराबर होना |
२०२२-२०२४ | ईश्वर के पक्ष के धार्मिक लोगों की बढती विजय |
२०२५ से आगे | ‘ईश्वरीय राज्य’ की स्थापना |
5.2 तृतीय विश्व युद्ध में भारत की भूमिका
आदिकाल से ही भारत विश्व का अध्यात्मिक गुरु रहा है । आध्यात्मिक शोध से ज्ञात हुआ है कि यह युद्ध जो प्रारंभ हो रहा है इसमें आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से भारत की केंद्रीय भूमिका होगी । भारत के सर्वोच्च स्तरीय संत विश्व में सत्त्व गुण बढाने हेतु हर संभव प्रयास कर रहे हैं, जिससे तृतीय विश्व युद्ध की तीव्रता न्यून होने में सहायता हो सके । इस युद्ध के समय, अनिष्ट शक्ति पडोसी देशों को भारत पर आक्रमण करने के लिए उकसाएगी जिससे भारत जो केंद्रीय भूमिका निभानेवाला है, उससे विमुख हो जाए । इसके परिणामस्वरूप भारत की लगभग ५० प्रतिशत जनसंख्या नष्ट हो जाएगी ।
6. क्या तृतीय विश्व युद्ध को रोका जा सकता है ?
इस प्रश्न का संक्षिप्त उत्तर है ‘नहीं’, तृतीय विश्व युद्ध की भविष्यवाणियां सत्य होंगी ही – भले ही तृतीय विश्व युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता और समय-सारणी में बदलाव हो सकते हैं ।
सर्वप्रथम इसका कारण देखेंगे कि इन प्रलयकारी घटनाओं को क्यों नहीं रोका जा सकता है । पिछले कुछ दशकों से विश्व का मूलभूत रज-तम अभूतपूर्व स्तर तक बढ गया । इसका कारण, लोगों में स्वभावदोषों की तीव्रता में वृद्धि होना, भौतिकतावाद में अधिक केंद्रित होना, साधना (वैश्विक सिद्धांतों के अनुसार) का अभाव और आध्यात्मिक आयाम की अनिष्ट शक्तियों द्वारा लोगों को अपनी इच्छानुसार कार्य करवाने हेतु प्रभावित एवं आविष्ट करने जैसे अनेक कारक रहे हैं । जब-जब धरती पर रज तम में वृद्धि होती है, तब-तब लोग तथा पर्यावरण में अस्थिरता बढ जाती है । परिणामस्वरूप, प्राकृतिक आपदाएं, आतंकवाद, युद्ध इत्यादि जैसी अनेक विभिन्न आकस्मिक घटनाएं घटित होती है । यह किसी स्वचालित शुद्धिकरण की प्रक्रिया के समान होता है, जो क्रियाशील होता है तथा इसके फलस्वरूप रज-तम प्रधान लोगों का विनाश हो जाता है । इस प्रक्रिया को उलटने का तथा इस महाप्रलय को रोकने का एकमात्र उपाय है विश्व में सत्त्व गुण को बढाया जाए और रज-तम गुणों को न्यून किया जाए । ऐसा होने हेतु मानवजाति को अपनी जीवनशैली में पूर्ण परिवर्तन लाना होगा और अध्यात्म के ६ मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार साधना करनी होगी । व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होना, ऐसा हम तभी कह सकते हैं जब वह अध्यात्म के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार साधना करता हो । जो पंथ यह शिक्षा देते हैं कि केवल उनके मार्ग पर चलने से ही ईश्वर प्राप्ति हो सकती है और दूसरों का ज़बरदस्ती अथवा धन का लालच देकर धर्म परिवर्तन करते हैं, तब उनके द्वारा अध्यात्म के छः मूलभूत सिद्धांतों का उल्लंघन करने की संभावना रहती है और इस प्रकार ऐसे पंथों का अनुसरण करने वाले लोगों के साधना के प्रयास व्यर्थ जाते हैं । कुछ प्रकरणों में जिनमें कोई पंथ समाज के प्रति हिंसा का प्रचार करते हैं तथा जो लोग ऐसे सिद्धांतों का पालन करते हैं, उनकी आध्यात्मिक रूप से अधोगति होती हैं और वो स्वयं के लिए तीव्र प्रारब्ध का निर्माण करते हैं । उनमें पूर्ण परिवर्तन लाने की संभावना शून्य के बराबर होती है और इसलिए जिस तृतीय विश्वयुद्ध और विनाश की भविष्यवाणी की गई है वह होना अनिवार्य है ।
यद्यपि, घटनाओं की तीव्रता एवं समय सारणी में परिवर्तन हो सकता है ।
जैसा कि विश्व इस प्रलयंकारी घटना की ओर बढता जा रहा है, धरती पर उच्च स्तर के संत मानवजाति को स्वयं की रक्षा करने में एवं विश्वयुद्ध की तीव्रता को न्यून करने में सहायता करने हेतु यथासंभव प्रयास कर रहे हैं । जैसे जैसे अधिकाधिक लोग, जिनमें साधक बनने की क्षमता है, वे साधना करना आरंभ करते हैं, तब ये उन्नत संत अपने संकल्प के माध्यम से युद्ध की समयावधि को यथासंभव आगे कर देते हैं ताकि इन साधकों को अपनी साधना आरंभ करने एवं उसे दृढ करने का समय प्राप्त हो सके ।
प्रयास कौन कर रहा है, इसके आधार पर ही समय और तीव्रता को समायोजित किया जा सकता है ; यदि बुरी शक्तियां अधिक प्रयास कर रही हैं तब तीव्रता अधिक होगी । इसके विपरीत, यदि अनेक लोग साधना करना प्रारंभ करते हैं, तब प्रलयंकारी काल की तीव्रता न्यून हो सकती है ।
व्यष्टि स्तर पर, जो लोग विश्वयुद्ध के पश्चात जीवित रह पाएंगे, वो वही लोग होंगे जिनका आध्यात्मिक स्तर साधना के कारण ५० % से अधिक होगा अथवा जिनमें आध्यात्मिक उन्नति करने की क्षमता होगी ।
7. इस सूक्ष्म युद्ध में ईश्वर के पक्ष से लड रही शक्तियां कौन हैं ?
यह सूक्ष्म युद्ध १९९९-२०२४ तक लडा जाएगा । इस युद्ध परिणामी काल में पृथ्वी पर इष्ट शक्तियों का नेतृत्व पृथ्वी पर निवास कर रहे ९०% से अधिक आध्यात्मिक स्तर (परात्पर गुरु) के आध्यात्मिक मार्गदर्शक द्वारा किया जा रहा है । १९९३ में युद्ध के प्रारंभिक काल में परात्पर गुरु एवं कुछ साधक ही युद्ध कर रहे थे । जैसे-जैसे समय आगे बढता गया, इस सूक्ष्म-युद्ध में अधिकाधिक संत और साधक जुडते गए । ब्रह्मांड के उच्च स्तर के लोकों से अच्छी शक्तियां (आध्यात्मिक रूप से उन्नत सूक्ष्म देह) भी बुरी शक्तियों को पराजित करने हेतु इस युद्ध में प्रवेश करेंगी ।
8. निष्कर्ष
हम एक युग परिवर्तन के बीच के सबसे महत्वपूर्ण समय में जी रहे हैं । इस लेख का प्रकाशन समाज को भयभीत करने के लिए नहीं किया गया, अपितु उसे विश्वयुद्ध की सटीक भविष्यवाणियों से सचेत एवं सावधान करने हेतु किया गया है । जो लोग अध्यात्म में प्रवृत्त हैं तथा जो साधक हैं, उनसे आग्रह है कि वे इस लेख को समझने हेतु समय निकालें और अपनी साधना आरंभ करें अथवा दृढ करें । यह युग आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी बहुत अनुकूल युग है जैसा कि अच्छाई एवं बुराई, इस लेख में इसका विस्तृत वर्णन किया गया है । तीव्र साधना की सहायता से, साधकों में तृतीय विश्वयुद्ध की तीव्रता को न्यून करने में तथा स्वयं की रक्षा करने की शक्ति निर्माण होगी । जिस प्रकार विदेश जाने के लिए वीजा की आवश्यकता पडती है, ठीक उसी प्रकार ईश्वरीय राज्य में रहने हेतु वीजा व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति करने की क्षमता के अनुसार मिलेगा । ईश्वर को लगना चाहिए कि यह व्यक्ति बचने योग्य है और यह केवल तभी हो सकता है जब हम साधना करने की क्षमता को दर्शाएं और एक साधक बन जाएं ।
अंत में, यह युद्ध किसी एक देश द्वारा दूसरे को हराने तथा उनकी जीवन शैली को संरक्षित करने के विषय में नहीं है । यह स्वतंत्रता अथवा लोकतंत्र अथवा किसी शासन प्रणाली के संबंध में भी नहीं है । यह बुराई विरुद्ध अच्छाई का एक युद्ध है, यह रज- तम के विरुद्ध सात्त्विकता बीच का युद्ध है । यह युद्ध आध्यात्मिक स्वरूप का है और विश्व के आध्यात्मिक शुद्धिकरण से संबंधित है, अतः जिनमें सत्त्व गुण की मात्रा अधिक होगी केवल वे ही इसमें बच पाएंगे ।
“जब कुछ गलत होता है अथवा जब हम मरने वाले होते हैं, तभी हमें ईश्वर का स्मरण होता है । उस समय लोग प्रायः यह शब्द कहते हैं ‘हे ईश्वर’ ।
दूसरी ओर, यदि आप अभी (विश्वयुद्ध से पूर्व) से ही ईश्वर का स्मरण करेंगे, तथा साधना करेंगे, तो जब युद्ध आरंभ होगा, तब वो आपको स्मरण में रखेंगे तथा आपकी रक्षा करेंगे । तब ‘हे ईश्वर’ ऐसा कहने की आवश्यकता नहीं पडेगी । ऐसा होने पर, केवल ‘धन्यवाद ईश्वर’ यह बोलने के स्थान पर, ईश्वर के चरणों में अपनी कृतज्ञता व्यक्त करना स्मरण रखें ।”
-परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी