प्रकरण अध्ययन – स्वयं घटित दहन / पूजाघर का जलना

SSRF द्वारा प्रकाशित प्रकरण-अध्ययनों (केस स्टडीस) का मूल उद्देश्य है, उन शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के विषय में पाठकों का दिशादर्शन करना, जिनका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक हो, तो यह ध्यान में आया है कि सामान्यतः आध्यात्मिक उपचारों का समावेश करने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं । SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को जारी रखने का परामर्श देता है । पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचारी पद्धति का पालन करें ।

टिप्पणी: इस प्रकरण अध्ययन की पृष्ठभूमि समझने के लिए और ऐसी घटनाएं विशेष रूप से SSRF के संबंध में क्यों हो रही हैं, कृपया जानने के लिए पढें – भयावह अतींद्रिय घटनाएं – प्रस्तावना

प्रकरण अध्ययन - स्वयं घटित दहन / पूजाघर का जलना

इस प्रकरण अध्ययन में हमने बताया है कि कैसे एक पूजाघर तथा उसमें रखे देवताओं के सभी चित्र अपनेआप जल उठे । इस घटना का विवरण परम पूजनीय डॉ. जयंत आठवलेजी के मार्गदर्शन में साधना कर रहे साधक श्री. सुरेंद्र भासमे के शब्दों में प्रस्तुत है ।

यह घटना वर्ष २००५ में रात्रि के समय कराड सेवाकेंद्र में घटित हुर्इ । (सेवाकेंद्र वह स्थान होता है जहां साधक अध्यात्मप्रसार हेतु सामूहिक रूप से सेवा करते हैं ।) हम सेवाकेंद्र में अत्यधिक सूक्ष्म दबाव अनुभव कर रहे थे । पटिया (फर्श) पर भी रक्त के धब्बे अपनेाप उभरे थे । उसी रात्रि, सेवाकेंद्र के ऊपरी तले पर नामजप के लिए बैठे साधक श्री. नागनाथ मुलजे को अनुभव हुआ कि कोर्इ उन्हें थप्पड मार रहा है, जबकि वहां आसपास कोर्इ नहीं था । थप्पड का स्वर इतना अधिक था कि सभी दौडकर देखने गए कि क्या हुआ है । हमने नागनाथ के मुख पर थप्पड के कारण उभरे निशान देखे थे । सेवाकेंद्र की गतिविधियों में व्यवधान डालने हेतु अनिष्ट शक्तियों(भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) की बढती सूक्ष्म गतिविधियों को भांपकर हम सभी ने निचले तल पर एकसाथ सोने का निर्णय लिया ।

उस रात्रि कोर्इ और घटना नहीं घटी; किंतु सवेरे हमने ध्यानमंदिर की खिडकी से धुंआ निकलते देखा । हम सभी ऊपर देखने के लिए दौडकर पहुंचे और जो हमने देखा उससे हम सभी अचरज में पड गए । पूजाघर में देवताओं के प्रत्येक चित्र से आग की लपटें निकल रही थीं । पीछे लगे गुरु-शिष्य का चिन्ह (लोगो) बने पीले कपडे में भी आग लगी थी । हमने पानी डालकर आग बुझाने का प्रयत्न किया । किंतु उससे कोर्इ लाभ नहीं हो रहा था । आग थोडे समय के लिए बुझती और पुनः जल उठती । अंतिमतः जब हमने जल में पवित्र विभूति तथा गोमूत्र मिलाकर श्रीरामजी का नामजप करते हुए प्रत्येक चित्र को पानी में डुबाया, तब ही आग की लपटें शांत हुर्इ । चर्चा के उपरांत हममें से किसी को यह समझ में नहीं आ रहा था कि आग कैसे लगी; क्योंकि वहां आग लगने जैसा कुछ भी नहीं था ।

आध्यात्मिक शोध दल की टिप्पणी :

दूसरी बात जिससे हम चकित थे वह यह थी कि देवता का प्रत्येक चित्र ऐसे जल गया था मानो किसी ने जानबूझकर प्रत्येक चित्र पर एक-एक करके आक्रमण किया हो । यह एक सामान्य दहन नहीं था जिसमें सभी वस्तुएं एकसमान जल जाती हैं ।

आगे दिए गए स्लार्इड शो में कराड के पूजाघर के दृश्य तथा वहां जले देवताओं के चित्रों को दर्शाया गया है ।