यदि अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) साधना करती हैं, तो वे अच्छी क्यों नहीं बन जाती ?

एक साधक और अनिष्ट शक्ति के साधना करने में अनेक अंतर हैं ।

  • अलग उद्देश्य : प्राथमिक अंतर साधना करने का उद्देश्य है । साधक के लिए साधना करना अर्थात अपनी पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि का र्इश्वरप्राप्ति हेतु लय करना है । पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि का लय करने से हमारा तात्पर्य है, जीवन की सभी गतिविधियों में स्वयं में विद्यमान आत्मा अथवा र्इश्वर से तादात्म्य रखना । इसके विपरीत अनिष्ट शक्ति की साधना का उद्देश्य है आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करना । साधक की साधना का उद्देश्य है, अपना अहं क्षीण करना, जो कि पंचज्ञानेंद्रियों, मन एवं बुद्धि का कार्य है तथा अनिष्ट शक्ति के लिए साधना का अर्थ अहं को बढाना है ।
  • इच्छाओं को न्यून करते जाना विरुद्ध इसे बढाते जाना : एक सच्चा साधक इच्छाओं को न्यून करने के लिए संघर्षरत रहता है, जबकि अनिष्ट शक्तियां अपनी आध्यात्मिक शक्ति का उपयोग लोगों को आविष्ट कर अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु करती है ।
  • समाज का उत्थान विरुद्ध समाज को हानि पहुंचाना : एक सच्चा साधक समाज की भलार्इ के लिए यदि वैश्विक संदर्भ में कहा जाए तो आध्यात्मिक स्तर पर कार्य करता रहता है, जबकि अनिष्ट शक्तियां समाज को हानि पहुंचाने के लिए आध्यात्मिक शक्ति एकत्रित करती है ।

सारांश यही है कि साधना करना तथा आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करना, कंपनी में काम कर धन अर्जित करने समान है । साथ ही, व्यक्ति उस धन का उपयोग कैसे करना चाहता है, यह उस पर निर्भर करता है । आध्यात्मिक शक्ति के उपयोग का उद्देश्य यह निश्चित करता है कि अपनी मृत्यु के उपरांत हम ‘साधक’ के मार्ग से जाते हैं अथवा ‘अनिष्ट शक्ति’ के मार्ग से ।