इस लेख का आकलन पूर्ण रूप से हो सके, इसके लिए कृपया निम्नलिखित लेखों का अध्ययन करें१. सत्त्व, रज एवं तम — सूक्ष्म तत्त्व २. केश संवर्धन एवं केश रचना पर आध्यात्मिक शोध३. कुंडलिनी क्या है
१. प्रस्तावना : जूडों की सर्वोत्तम केश रचना का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य
२. जूडे की केश रचना पर आध्यात्मिक शोध
२.१ सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित आदर्श जूडे की केश रचना का रेखाचित्र
हमारे आध्यात्मिक शोध दल में ऐसे साधक हैं जिनके पास प्रगत छठवीं ज्ञानेंद्रिय है । परमात्मा की असीम अनुकंपा एवं अनेक वर्षों की साधना के फलस्वरूप इन साधकों को आध्यात्मिक सूक्ष्म दृष्टि प्राप्त है, जैसे हम स्थूल दृष्टि से स्थूल जगत देखते हैं, ठीक वैसे ही वे सूक्ष्म स्पंदनों से निर्मित जगत देख सकते हैं । इनमें से एक हैं कु. प्रियांका लोटलीकर, जिन्होंने, एक स्त्री द्वारा जूडे की केश रचना करते समय प्रसारित होने वाले सूक्ष्म स्पंदनों को देख कर सूक्ष्म–ज्ञान के आधार पर चित्र बनाया है । इस चित्र के माध्यम से वे हमें सूक्ष्म जगत एवं एक स्त्री जब जूडे की केश रचना करती है तब उसके चारों ओर निर्मित सकारात्मक आध्यात्मिक वलय की एक झलक दिखलाती हैं ।
सूक्ष्म-ज्ञान के आधार पर निर्मित उपरोक्त चित्र में दिखाई देता है कि स्त्री द्वारा जूडा बनाने पर स्त्री अनेक प्रकार की सकारात्मक शक्तियों से जुडती है । जब अच्छे प्रकार से जूडा बनाकर केशों में पारंपरिक पद्धति से एक गांठ लगाई जाती है, तब उसमें वातावरण के आध्यात्मिक दृष्टि से सात्त्विक स्पंदन आकर्षित एवं प्रक्षेपित करने की क्षमता आ जाती है । वास्तव में स्त्री की आवश्यकतानुसार जूडा वातावरण से सात्त्विक स्पंदनों को ग्रहण और प्रक्षेपित करता है । जब आवश्यक हो तब जूडा स्त्री के मस्तक की रिक्ति में ईश्वरीय चैतन्य को स्पर्श के माध्यम से संक्रमित भी करता है । जूडे का आकार एक महत्वपूर्ण पहलू है जो जूडे को यह शक्ति ग्रहण करने में सहयोग करता है । जूडे का गोलाकार आकार ईश्वरीय चैतन्य को घडी की दिशा में गतिमान रख शक्ति को स्त्री के शरीर में ही केंद्रित रखता है ।
उपरोक्त कारणों से स्त्री की देह सात्त्विक स्पंदनों को ग्रहण करने में अधिक संवेदनशील बनती है और परिणामस्वरूप वह आध्यात्मिक दृष्टि से शुद्ध भी हो जाती है । केश की लंबार्इ अधिक होने से शक्ति अधिक गति से ग्रहण की जाती है ।
२.२ जूडे को सिर के किस स्थान पर रखना चाहिए ?
आध्यात्मिक परिप्रेक्षय से देखा जाए तो जूडे का सर्वोत्तम स्थान मस्तक का पार्श्व भाग होता है । इसका कारण यह है कि वह स्थान कुंडलिनी की तीन प्रमुख नाडियों – सुषुम्ना नाडी, सूर्य नाडी एवं चन्द्र नाडी के संगम का (त्रिपुटी) स्थान है । जूडे का मध्य भाग मस्तक की रिक्ति से (त्रिपुटी से) प्रक्षेपित होनेवाली शक्ति को ग्रहण कर उसे संजोकर रख सकता है । पारंपरिक जूडा आध्यात्मिक शक्ति को एकत्रित करके रखने का आदर्श माध्यम है ।
२.३ केशों को मध्य से विभाजित कर मांग निकालने का महत्त्व
जूडा बनाने से पहले केश मध्य भाग से विभाजित करने से सहस्त्रार चक्र के माध्यम से ईश्वरीय चैतन्य ग्रहण करने की स्त्री की क्षमता सर्वाधिक होती है, जो तदुपरांत संपूर्ण शरीर में प्रसारित की जाती है, जिससे अन्य सभी चक्रों को सकारात्मकता प्राप्त होती है ।
२.४ जूडा बनाने के अन्य आध्यात्मिक लाभ
जूडे के कारण आध्यात्मिक सकारात्मकता में वृद्धि होने के अन्य लाभ भी हैं
- सबसे प्रमुख लाभ यह है कि जूडा महिला को सकारात्मक शक्ति प्रदान कर उसकी नकारात्मक शक्ति से रक्षा करता है ।
- बुद्धि पर आए सूक्ष्म काली शक्ति के आवरण को न्यून करता है ।
- जूडे के कारण महिला को बुद्धि की तीक्ष्णता अनुभव होती है, जिससे उसके व्यवहार में परिपक्वता आती है ।
- इससे महिला को सांसारिक जीवन में रहकर भी साधना जारी रखने में सहायता होती है ।
२.५ आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से जूडे की सर्वोत्त्म केश रचनाएं
पारंपारिक जूडा
महिलाएं जूडे की रचना विविध प्रकार से करती हैं, किंतु वातावरण से ईश्वरीय चैतन्य ग्रहण करने की जितनी क्षमता उपरोक्त चित्र में दिखाए गांठवाले जूडे में होती है, उतनी अन्य प्रकार की केश रचनाओं में नहीं होती ।
चोटी को गूंथकर बनाए गए जूडे की केश रचना (भारत में ‘खोपा’ नाम से प्रचलित)
जूडे की यह एक अन्य केश रचना है जो लेख में उल्लेखित पारंपरिक जूडे की अपेक्षा अधिक अच्छे आध्यात्मिक स्पंदन प्रक्षेपित करती है । भारत के कुछ क्षेत्रों मे इसे ‘खोपा’ नाम से जाना जाता है । खोपा पद्धति का जूडा बनाने के लिए प्रारंभ में केशों को दो भागों में विभाजित करें, तदोपरांत तीन लटों वाली एक चोटी बनाएं, इसके बाद चोटी को ऊपर की ओर लपेटकर सिर के पिछले भाग में फंसाकर स्थापित करें ।
२.६ आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से अयोग्य जूडे बनाने के उदाहरण
- जब जूडे की केश रचना उपरोक्त उल्लेखानुसार नहीं होती, तब उसकी सात्त्विकता क्षीण हो जाती है । वास्तव में ऐसे जूडे सात्त्विकता ग्रहण करने के विपरीत रज-तम अथवा आध्यात्मिक दृष्टि से अनिष्ट स्पंदनों को ग्रहण करते हैं ।
- जूडे को गर्दन के पार्श्व भाग में न रखें क्योंकि उस बिंदू पर वह आध्यात्मिक शक्ति को ग्रहण नहीं कर सकता ।
- दाहिनी अथवा बांयीं ओर मांग निकालने से तथा केश को किसी भी प्रकार से विभाजित न करने से (मांग न निकालने से) कष्टदायक शक्ति का आवरण सहजता से निर्माण हो सकता है ।
- अनावश्यक रूप से जूडे के भीतर अथवा बाहर केश को ऐंठने से जूडे की सकारात्मक शक्ति ग्रहण करने की क्षमता का ह्रास होता है तथा माथे पर भारीपन अनुभव होता है ।
उपरोक्त उल्लेखित बिंदुओं के फलस्वरूप जूडे की असात्त्विक केश रचना से किसी को आध्यात्मिक लाभ के विपरीत हानि हो सकती है ।
३. जूडे की केश रचना में क्या करें और क्या न करें
यद्यपि जूडे की केश रचना स्त्री में सात्त्विकता बढाने में सहायक होती है; परंतु फिर भी कुछ ऐसे बिंदू हैं जो प्राप्त आध्यात्मिक लाभ न्यून कर सकते हैं ।
कुछ स्त्रियां जूडा सिर पर स्थिर रहे इस हेतु अपने जूडे को बाहर से नायलोन की रंग-बिरंगी जाली लगाती हैं । ऐसा करने से जूडे की वातावरण से ईश्वरीय चैतन्य ग्रहण करने की क्षमता घट जाती है । अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण से सुरक्षा प्रदान करनेवाले जूडे के लाभ ऐसा करने से न्यून होते हैं ।
जूडे को आधुनिक प्रचलन के अनुरूप आकर्षक बनाने के लिए उसमें रंग-बिरंगे कांटे अथवा चिमटियां लगार्इ जाती हैं । वे सात्त्विक नहीं होते तथा रज-तम स्पंदन प्रक्षेपित करते हैं । इसके परिणामस्वरूप इन्हें धारण करने वाली स्त्री की ओर अनिष्ट स्पंदन भी आकृष्ट होते हैं ।
केश के सिरे जूडे के बाहर नहीं निकलना चाहिए । केश के सिरे जूडे में ही सहेज कर रखने से अधिकाधिक सात्त्विकता को जूडे में संचित किया जा सकता है, जिससे वातावरण के रज-तम घटकों से स्त्री का संरक्षण होता है ।
४. अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव
SSRF में भिन्न भिन्न प्रकार की अनिष्ट शक्तियों से पीडित साधक हैं । जैसे कि चित्र में दर्शाया गया है, जब ऐसी अनिष्ट शक्तियां प्रकट होती हैं, हम सहज ही समझ सकते हैं कि उनकी रुचि क्या है, उन्हें क्या चाहिए अथवा क्या नहीं चाहिए । इसके विपरीत इन्हें क्या अच्छा लगता है यह देखकर हमारे लिए क्या अयोग्य है इसकी हमें प्रत्यक्ष जानकारी मिलती है । लगभग सभी घटनाओं में यदि किसी ने जूडा बनाया है, तो प्रकट अनिष्ट शक्ति उन्हें खोल देती है, क्योंकि पारंपरिक जूडे की सात्त्विकता उसे सहन नहीं होती । प्रदर्शित चित्र में एक पीडित स्त्री को दर्शाया गया है तथा अनिष्ट शक्ति ने प्रकट होते ही पहले जूडे में बंधे केशों को खुला छोड दिया ।
कृपया यह लेख पढें : विश्व की कितनी प्रतिशत जनसंख्या अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) से प्रभावित अथवा आवेशित है ?
५. सारांश
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि पारंपरिक पद्धति से जूडे की केश रचना सात्त्विकता बढाती है तथा अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों की आशंकाएं न्यून करती है, इसलिए महिला पाठकों से हमारा अनुरोध है कि वे आधुनिक चलन के बहकावे में न आएं एवं पारंपरिक जूडे की केश रचना को अपनाएं ।
साधना करने से जूडे की केश रचना की सात्त्विकता को अनुभव करने की आपकी संवेदनशीलता में वृद्धि होती है । एक बार जब आप सात्त्विकता को अनुभव करने लगते हैं तब जूडेवाली केश रचना के लाभ का शास्त्र जानने की आवश्यकता नहीं रह जाती, वरन आप अपने अनुभव से स्वयं उत्साहित होकर जूडेवाली केश रचना अपना लेते हैं ।
जब अगली बार आप जूडा बनाने का विचार करें तो उस समय उपरोक्त विधि को अवश्य ध्यान में रखें । यदि आप पारंपरिक विधि से जुडा बांधने पर सकारात्मकता अनुभव कर पाते हैं तो अपने अनुभव हमें अवश्य बताएं, हमें अच्छा लगेगा ।