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१. अलंकार धारण करना -प्रस्तावना

विविध संस्कृति के लोग प्रतिदिन अलंकार पहनते हैं । कुछ अलंकारों का विशेष अर्थ होता है, जैसे परिवार में यदि वह पैतृक संपत्ति के रूप में मिले हो I सामान्यतः जब हम स्त्रियों के अलंकारों का विचार करते हैं, उस समय पुरुषों के लिए भी अंगूठी तथा ब्रेसलेट (कलाई में पहना जानेवाला अलंकार)का विचार करते हैं । जब हम इतिहास में पीछे मुडकर देखते हैं, तब हम पाते हैं कि विभिन्न संस्कृतियों में लोग विविध धातुओं तथा रत्नों से बने अनेक प्रकार के अलंकार पहनते आए हैं । लोग अलंकार क्यों धारण करते हैं तथा क्या अलंकार धारण करने का केवल सौंदर्य बढाने के अतिरिक्त भी कोई अन्य कारण है, यह जानने के लिए हम अति उत्सुक थे ।

SSRF में किए आध्यात्मिक शोध से हमें यह ज्ञात हुआ कि अलंकार धारण करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ प्राप्त हो सकता है । इन लाभों में व्यक्ति में चैतन्य समाहित करना, शरीर की काली शक्ति घटाना, अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) से रक्षण करना तथा सूचीदाब (एक्यूप्रेशर) पद्धतिसे आध्यात्मिक उपचार होने जैसे लाभ सम्मिलित हैं ।

२. अलंकार धारण करने के आध्यात्मिक प्रभाव के संदर्भ में सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र

निम्नलिखित सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र SSRF के साधकोंने अपनी विकसित छठवीं इंद्रिय का उपयोग कर बनाए गए हैं।

SSRF के सूक्ष्म-विभाग के साधकों के पास सूक्ष्म में देखकर सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र बनाने की क्षमता है । यह वे अपनी साधना तथा सत्सेवा के एक भाग के रूप में करते हैं ।

सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र विविध प्रकार के अलंकार जैसे -सोने की अंगूठी, कर्णफूल, सोने की सिकडी (चेन), तांबे का ब्रेसलेट तथा फ्रेंडशीप बैंड (फीता)इत्यादि धारण करने के प्रभाव दर्शाते हैं ।

२.१ अनामिका (सबसे छोटी उंगली के पास वाली उंगली)में अलंकार (सोने की अंगूठी)धारण करने का सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र

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सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित इस चित्र से हम निम्नलिखित सूत्र समझ सकते हैं :

  • अनामिका में सोने की अंगूठी धारण करने से, चैतन्य आकर्षित तथा सक्रिय होकर अंगूठी से प्रक्षेपित होता है । दैवी शक्ति भी सक्रिय होकर अंगूठी से प्रक्षेपित होती है ।
  • अंगूठी का चैतन्य ऊंगली में दबाव निर्मित करता है जिससे सूचीदाब हो जाता है । इससे ऊंगली से कष्टदयक शक्ति निकल जाती है तथा ऊंगली चैतन्य ग्रहण करती है ।
  • अनामिका में अंगूठी धारण करना सर्वाधिक अच्छा है । इसके बाद मध्यमा में अंगूठी धारण करें । आध्यात्मिक लाभ के लिए, स्त्रियां बांए तथा पुरुष दांए हाथ में अंगूठी धारण कर सकते हैं ।

२.२ कर्णाभूषण धारण करने का सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र

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सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित इस चित्र से हम निम्नलिखित सूत्र समझ सकते हैं :

  • सात्त्विक कर्णाभूषण धारण करने से ईश्‍वरीय तत्त्व आकर्षित होकर कर्णाभूषण से प्रक्षेपित होता है ।
  • आनंद का प्रवाह कर्णाभूषण की ओर आकर्षित होता है तथा इससे आनंद के कण इससे प्रक्षेपित होते हैं ।
  • चैतन्य आकर्षित होता है तथा पूरे शरीर तथा वातावरण में फैल जाता है ।

२.३ गले पर अलंकार धारण करने का सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र

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सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित इस चित्र से हम निम्नलिखित सूत्र समझ सकते हैं :

  • गले में सोने की सिकडी धारण करने से चैतन्य से पूरित अग्नि तत्त्व (तेज तत्त्व)की तरंगें आकर्षित होकर वातावरण में प्रक्षेपित होती हैं ।
  • गले में सोने की सिकडी धारण किए व्यक्ति के आसपास के वातावरण में विद्यमान रज-तम कण नष्ट हो जाते हैं ।
  • व्यक्ति में अग्नितत्त्व (तेज तत्त्व) की निर्मिति सेके कारण क्षात्रभाव जागृत होता है । साधना कर पाने तथा अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस, इत्यादि)के विरुद्ध युद्ध करने हेतु क्षात्रभाव एक साधक का एक महत्त्वपूर्ण गुण है ।

२.४ कलाई पर अलंकार धारण करने का सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र

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सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित इस चित्र से हम निम्नलिखित सूत्र समझ सकते हैं :

  • तांबे के ब्रेसलेटकडे (कलाई पर पहना जानेवाला अलंकार)से चैतन्य आकर्षित तथा सक्रिय होकर प्रक्षेपित होतीता हैं है । हाथ के सर्व ओर चैतन्य का एक सुरक्षात्मक वलय भी निर्मित होता है ।
  • तांबे के कडे (ब्रेसलेट) में सूर्य देवता का तत्त्व आकर्षित तथा सक्रिय होकर प्रक्षेपित होता है ।
  • हाथ में तारक शक्ति भी सक्रिय होकर प्रक्षेपित होती है ।

२.५ कलाई पर फ्रेंडशीशिप ब्रेसलेटबैंड (फीता)बांधने का सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र

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सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित इस चित्र से हम निम्नलिखित सूत्र समझ सकते हैं :

  • फ्रेंडशीप बैंड बांधने से भावनाओं के कुंडलीाकार वलय की निर्मिति होकर सक्रिय होता हैते हैं । आसपास के वातावरण में भी भावना के कणों का प्रक्षेपण होता है ।
  • हाथ के सर्व ओर आकर्षण तथा मायावी शक्ति का भी प्रक्षेपण होता है । मायावी शक्ति उस बैंड को पहननेवाले अथवा देखनेवाले व्यक्ति में सुखदायक भावना निर्मित करती है । जबकि उससे प्रक्षेपित होनेवाले स्पंदन नकारात्मक होते हैं ।
  • उस बैंड को पहननेवाले व्यक्ति की देह में तथा आस-पास के वातावरण में काली शक्ति के कण प्रक्षेपित होते हैं ।

३. विविध पदार्थों घटकों से बने अलंकार पहनना

३.१ प्रयुक्त धातु का प्रकार

अलंकार पहननेवाला कितनी मात्रा में आध्यात्मिक लाभ आत्मसात कर पाएगा यह अलंकार बनाने के लिए किस प्रकार की धातु का प्रयोग हुआ है, उसपर निर्भर करता है । नीचे दी गई सारणी में प्रत्येक धातु के प्रकार में पाए जानेवाले चैतन्य की मात्रा दर्शाई गई है । स्वर्ण अर्थात सोना सर्वाधिक सात्त्विक है, उसके उपरांत चांदी आता है ।

धातु का प्रकार चैतन्य का परिमाण (प्रतिशत)
सोना ७०
चांदी ३५
तांबा १५
अन्य (लोहा, जिंक, कांस्य)

अध्यात्मशास्त्र के अनुसार, शक्तिशाली अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि)से रक्षण हेतु कटि (कमर)से ऊपर पहने जानेवाले अलंकार सोने के होने चाहिए । सोना तेजतत्त्व में वृद्धि करता है जिससे कटि से ऊपर के चक्र सकारात्मक शक्ति अवशोषित करते हैं ।

कनिष्ठ अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि)से रक्षण हेतु कटि (कमर)से नीचे पहने जानेवाले अलंकार चांदी के होने चाहिए । चांदी में रजप्रधान इच्छा-तरंगों को ग्रहण करने की क्षमता होती है ।

३.२ प्रयुक्त रत्न का प्रकार

अलंकारों में जडे रत्न जैसे हीरा, माणिक, नीलम, मूंगा तथा पन्ना हम पर आध्यात्मिक रूप से लाभदायक प्रभाव डालते हैं । सूर्य, चंद्रमा तथा अन्य खगोलीय पिंडों से आनेवाली सूक्ष्म-किरणें इन रत्नों से आकर्षित होनेवाले तत्त्वों के आधार पर परावर्तित होती हैं ।

निम्नलिखित सारणी प्रत्येक रत्नों के लाभ बताती है ।

रत्न के प्रकार व्यक्ति पर प्रभाव
माणिक स्थूल देह को सुरक्षा तथा शक्ति प्रदान करता है ।
हीरा स्थूलदेह तथा मनाेदेह को शुद्ध करता है । यह तेज तत्त्व से संबंधित है ।
मूंगा प्राणशक्ति के रूप में चैतन्य को शरीर में संरक्षित करता है । यह व्यक्ति का विविध कार्य करने हेतु उत्साहवर्द्धन करता है ।
मोती चैतन्य के निरंतर सक्रिय रहने के कारण व्यक्ति को और अधिक सतर्क तथा प्रसन्नचित्त व्यक्तित्ववाला बनने में सक्षम बनाता है । यह आप तत्त्व से संबंधित है ।
पन्ना निर्गुण ईश्वरीय शक्ति तत्त्व की निरंतरता बनाए रखता है ।

जब अलंकार में सात्त्विक धातु अथवा रत्न होता है, उसकी ओर ईश्‍वरीय तत्त्व पंचतत्त्वों के माध्यम से आकृष्ट होता है । व्यक्ति द्वारा धारण किए गए अलंकार के प्रति भाव उससे सर्वाधिक लाभ प्राप्त करने में सहायता करता है ।

४. विभिन्न कलाकृतियोंवाले अलंकार धारण करना

जब हम अलंकारों की सूची-पुस्तिका देखते हैं, तब अलंकारों की विविध कलाकृतियां, उनके आकार तथा उनकी बनावट हमें विस्मित कर देते हैं । अधिकतर हमारे चयन का आधार होता है सुंदरता बढानेवाला ; किंतु आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अनेक हमें घटकों का ध्यान रखना चाहिए ।

अलंकारों की कलाकृति सात्त्विक हो सकती है अथवा तामसिक । सात्त्विक कलाकृति सकारात्मक शक्ति प्रक्षेपित करती है तथा आनंद प्रदान करती है । अधिकतर वे गोलाकार अथवा पंखुडी के आकर में होते हैं । तामसिक कलाकृति नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित करती है । ये नकारात्मक स्पंदन व्यक्ति के शरीर के चक्रों को प्रभावित कर उसके स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डाल सकते हैं ।

आगे एक सात्त्विक कलाकृतिवाली सोने की सिकडी तथा एक तामसिक कलाकृतिवाली सोने की सिकडी का उदाहरण दिया गया है :

सात्त्विक कलाकृतिवाला अलंकार

तामसिक कलाकृतिवाला अलंकार

अलंकार धारण करने के आध्यात्मिक प्रभाव

अलंकार धारण करने के आध्यात्मिक प्रभाव

इन उदाहरणों से हम केवल सुंदर दिखने के आधार पर नहीं; आध्यात्मिक सिद्धांतों के आधार पर अलंकार चयन करने का महत्त्व समझ सकते हैं । अलंकार चयन करते समय हम उससे प्रक्षेपित हानेवाले सूक्ष्म-स्पंदनों को सूक्ष्म-परीक्षणद्वारा प्राप्त करने का प्रयास कर सकते हैं । कुछ मिनटों तक ईश्‍वर के नाम का जप करने के पश्‍चात सूक्ष्म-परीक्षण करना श्रेयस्कर होगा क्योंकि इससे मन केंद्रित होता है ।

५. अलंकार की शुद्धता

काली शक्ति : अनिष्ट शक्तियों द्वारा उपयोग किया जाने वाला प्राथमिक अस्त्र है काली शक्ति । काली शक्ति, एक आध्यात्मिक शक्ति है, जिसमें पृथ्वी पर होनेवाली किसी भी घटना को बडी धूर्तता से प्रभावित करने की क्षमता होती है । आक्रमण करनेवाली अनिष्ट शक्ति कितनी बलिष्ट है, उस पर इसका विस्तार निर्भर करता है ।

हम जो अलंकार धारण करते हैं, वे प्रभावी रूप से अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि)से हमारा रक्षण करता है । जब अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि)हम पर अपनी काली शक्ति के माध्यम से आक्रमण करने का प्रयास करती हैं तब हम पर प्रत्यक्ष रूप से आक्रमण करने के पूर्व वे प्रथम हमारे पहने हुए अलंकारों पर आक्रमण करती हैं । इस कारण से, काली शक्ति को हटाने के लिए हमें नियमित रूप से अपने अलंकारों की शुद्धि करनी चाहिए ।

पंचतत्त्वों का प्रयोग कर हम अनेक विधियों के माध्यम से अपने अलंकारों की आध्यात्मिक रूप से शुद्धि कर सकते हैं ।

तेजतत्त्व : SSRF द्वारा निर्मित अगरबत्तियों की राख से बनी पवित्र विभूति को अलंकारों के सभी भागों में लगा सकते हैं ।

वायुतत्त्व : SSRF द्वारा निर्मित अगरबत्तियों की राख से बनी पवित्र विभूति को अलंकारों पर फूंकें अथवा SSRF द्वारा निर्मित अगरबत्ती से निकलनेवाले धुंए को अलंकारों से स्पर्श कराएं ।

आकाशतत्त्व : अलंकारों को रिक्त डिब्बे में कुछ समय के लिए रखें ।

६. अलंकार धारण करना -एक आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य

इस लेख में हमने सात्त्विक धातु तथा सात्त्विक कलाकृतिवाले अलंकारों से कैसे आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं, इसका वर्णन किया । सात्त्विक अलंकारों में समाहित चैतन्य के कारण हम निरंतर दैवी शक्ति के संपर्क में रहपाते हैं और इससे साधना में हमारी सहायता होती है । जैसे-जैसे हमारी साधना बढती है, अलंकार धारण करने की हमारी आवश्यकता घटती जाती है; क्योंकि तब हम साधना से ही सात्त्विकता तथा आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने में सक्षम हो जाते हैं ।

हम जो विविध प्रकार के अलंकार धारण करते हैं वे शरीर के विशिष्ट भागों से संबंधित है । शरीर का प्रत्येक भाग विशिष्ट चक्र से संबंधित होता है । जिस स्थान पर अलंकार धारण किया गया हो, वह शरीर के सर्व ओर चैतन्य सक्रिय कर शरीर के उस भाग से संबंधित चक्र को जागृत करता है । उदाहरण के लिए यदि अनाहत चक्र जागृत हो जाता है तब ईश्‍वर के प्रति भाव भी जागृत होता है ।

अलंकार धारण करने का अन्य लाभ सूचीदाब (एक्यूप्रेशर)पद्धति से प्राप्त होनेवाला लाभ भी है । जहां अलंकार पहने जाते हैं वहां पर विद्यमान सूचीदाब बिंदु भी दब जाते हैं । इससे शरीर की काली शक्ति दूर होती है तथा चैतन्य स्वतंत्र रूप से प्रवाहित होने में सक्षम हो जाता है । सूचीदाब (एक्यूप्रेशर)पद्धति से शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक कष्ट दूर हो सकते हैं ।

७. सारांश

  • अलंकार धारण करने से हममें दैवी शक्ति समाहित होती है, अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि)से रक्षा तथा आध्यात्मिक उपचार होते हैं ।
  • जो अलंकार हम पहनते हैं वह सात्त्विक धातु तथा सात्त्विक कलाकृति युक्त होने चाहिए ।
  • नियमित साधना करने से हम आध्यात्मिक रूप से विकसित होने लगते हैं तथा हममें सात्त्विक स्पंदन तथा आध्यात्मिक शक्ति निर्मित होती है । तब सात्त्विकता ग्रहण करने के लिए अलंकार धारण करने की हमारी आवश्यकता घट जाती है ।