श्राद्ध विधि के लिए पूर्वजों को अर्पण करने हेतु बनाया गया भोजन

यह अध्यात्म शोध केंद्र एवं आश्रम की साधिका श्रीमती श्वेता क्लार्क, जो २० वर्षों से अधिक समय से साधना कर रही हैं, उनके द्वारा वर्णित श्राद्ध विधि से संबंधित एक अनुभूति है ।

हमारे जीवन में पितृपक्ष की अवधि (मृत पूर्वजों की आत्माओं के लिए पखवाडा) का विशिष्ट स्थान होता है । शॉन और मैं, हम दोनों को इसका महत्त्व तब ध्यान में आया जब हमने, इस अवधि में हम अपने मृत पूर्वजों की सहायता कैसे कर सकते हैं, इसके पीछे का अध्यात्मशास्त्र जाना । पितृपक्ष और श्राद्ध विधि से संबंधित ऐसी अनेक अनुभूतियां हैं, जो हमें पिछले कुछ वर्षों से अनुभव होती आई हैं तथा जिसने हमें वास्तव में मृत पूर्वज और हम, (उनके वंशज) दोनों के लिए इसकी आवश्यकता और महत्त्व को समझाया है ।

कुछ वर्षों से अध्यात्म शोध केंद्र एवं आश्रम में रहने से, हम बहुत भाग्यशाली रहे हैं कि हमें आश्रम द्वारा साधक-निवासियों के लिए श्राद्ध विधि आयोजित करने का अवसर प्राप्त हुआ । साधक पुरोहित भक्ति और भाव के साथ श्राद्ध विधि करते हैं, फलस्वरूप आध्यात्मिक रूप से यह अधिक प्रभावी हो जाती है ।

यद्यपि, पितृपक्ष २०२० भिन्न था । पितृपक्ष की अवधि में हमें भारत के मुंबई स्थित परिवार के साथ उपस्थित रहना (निवास करना) आवश्यक था । यद्यपि हमारे पुरोहित साधकों से हमारा मिलना संभव नहीं था, तो भी हमें अपने दिवंगत/मृत पूर्वजों के लिए श्राद्ध विधि करने की बहुत इच्छा थी । चुनौती/समस्या यह थी कि हम एक ऊंचे भवन के १०वें तले (मंजिल) पर रह रहे थे, इसलिए हम इस सोच में थे कि अपने दिवंगत/मृत पूर्वजों को भोजन कैसे अर्पण किया जाए । अध्यात्मशास्त्र के अनुसार, मर्त्यलोक से मृत पूर्वज सूक्ष्म के माध्यम से अथवा किसी कौवे में प्रवेश करके चढाए गए भोजन को ग्रहण करने में सक्षम होते हैं ।

नीचे दिया गया हमारा यह लेख पढें जो इसके आधारभूत शास्त्र को समझाता है ।

श्राद्ध के समय विधिवत अर्पित किए गए भोजन/ग्रास पर कौवे के चुगने का आध्यात्मिक महत्त्व

प्रायः (अर्थात, पितृपक्ष की अवधि में नहीं), हम अपने परिवार में पक्षियों के लिए ब्रेड के टुकडे, रोटी इत्यदि जैसे कुछ खाद्य पदार्थ रखते थे । सामान्यतया, कबूतर, मैना, चिडियां तथा कौवे इसे ग्रहण करने हेतु १०वें तले पर स्थित भोजनकक्ष की खिडकी पर आते थे । किंतु, पितृपक्ष के लिए विधिवत अर्पित किया जाने वाला भोजन एक अधिक विशिष्ट भोजन होता है, इसलिए हम इस सोच में थे कि इसे बाहर खिडकी के किनारे पर, जो कि चौडाई में छोटा था, कैसे रखा जाए जिससे वह नीचे न गिरे । साथ ही, हमें आश्चर्य था कि क्या भोजन ग्रहण करने हेतु कौवे यहां आने में समर्थ होंगे ?

पितृपक्ष के अंतिम दिन, जिसे सर्वपितृ अमावस्या (इस दिन, श्राद्ध विधि करने से व्यक्ति के सभी पूर्वजों को लाभ होता है) कहते हैं । हमने दत्तात्रेय देवता से यह कहकर आर्तता से प्रार्थना की कि हम अपने दिवंगत/मृत पूर्वजों की सहायता करने में असमर्थ हैं ।

“कृपया आप ही सहायता कीजिए जिससे उन्हें (मृत पूर्वजों को) चढाया गया भोजन उन्हें स्वीकार हो, जिससे वे तृप्त हों तथा मर्त्यलोक में आगे जाने की गति प्राप्त हो ।”

हम पूरे दिन नामजप करते रहे । भोजन के लिए, हमने ऐसे खाद्य पदार्थ बनाए जो हमारे दिवंगत/मृत पूर्वजों को पसंद थे । उदाहरण के लिए, शॉन के दादाजी को दाल पसंद थी, जिसे वे प्रतिदिन ग्रहण करते थे । इसके साथ ही, हमने अलग-अलग प्रकार की सब्जियां, पूरी (भारतीय तली हुई रोटी), मीठा हलवा, दही मिश्रित सलाद, अचार आदि बनाए थे । हमने इसे एक बडी थाली में रख दिया और इसे खिडकियों के मध्य स्थिर कर दिया जिससे यह प्रबलता से अपने स्थान पर टिकी रहे ।

एक ऊंचे भवन की खिडकी के निकट भोजनकक्ष के पटल पर रखा गया अर्पण किया जाने वाला भोजन

एक ऊंचे भवन की खिडकी के निकट भोजनकक्ष के पटल पर रखा गया अर्पण किया जाने वाला भोजन

भोजन अर्पण करते समय, हमने शॉन के पिता (परिवार के सबसे बडे/व्यस्क पुरुष सदस्य) से अनुरोध किया कि वे आकर थाली को छूकर भोजन अर्पण करें । यद्यपि, वह एक नास्तिक (अनीश्वरवादी) व्यक्ति हैं, हमने उनसे इस धार्मिक विधि में भाग लेने का आग्रह किया और वे सहमत हो गए । परिवार के उपस्थित सभी सदस्यों ने एक साथ दत्तात्रेय देवता से प्रार्थना की और दिवंगत/मृत पूर्वजों के लिए बनाया गया भोजन अर्पित किया । हमने प्रार्थना की कि दिवंगत/मृत पूर्वज आएं और उनके लिए विशेष रूप से बनाया गया भोजन ग्रहण करें ।

हम उस स्थान से दूर चले गए और पश्चात दूर से ही खिडकी को देखते रहे ।

इसके पश्चात जो हुआ वह बहुत आश्चर्यजनक था ।

  • सर्वप्रथम, भले ही वहां कबूतर, चिडिया/गौरैया आदि जैसे अनेक पक्षी आस पास की भित्तियों पर बैठे थे, किंतु केवल कौवे ही भोजन करने आए । अन्य किसी भी दिन, कबूतरों को कोई भोजन दिखाई देने पर वे निर्भीकता से भोजनकक्ष की खिडकी से घुस जाते थे और उन्हें भगाना पडता था । किंतु उस दिन, ऐसा लगा जैसे पक्षियों में कुछ आपस में सामान्य समझ हो कि यह भोजन किसी पक्षी के लिए नहीं है । हमने अनुभव किया कि अध्यात्मशास्त्र इतना सटीक और परिपूर्ण है कि प्राणी जगत में भी इस शिष्टाचार का पालन किया जात है जहां दूसरे पक्षी समझ पाएं कि यह भोजन भिन्न था और इसलिए, वे धार्मिक विधि के भोजन के मार्ग में नहीं आए ।
  • एक और बात जो हमने देखी वह यह थी कि एक साथ बहुत कौवे खिडकी पर नहीं आए । इसके विपरीत, वे एक-एक करके भोजन ग्रहण करने हेतु आए । उन्होंने टुकडों के लिए झगडने वाली चिडियों की तरह व्यवहार नहीं किया, अपितु वे आए और बहुत शांति से (सहजता से/धैर्यपूर्वक) भोजन ग्रहण किया ।
  • प्रायः, सामान्य दिनों में जब कौवे आते हैं, तो खाने में किसी सरल पदार्थ को चुगते हैं, जैसे ब्रेड का टुकडा और उसे लेकर उड जाते हैं । किंतु हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि जो पहला कौवा आया, उसने केवल दाल ग्रहण की, जो तरल होती है ।

    एक कौवे ने केवल प्लास्टिक के डिब्बे में परोसी/रखी दाल ग्रहण की

    उसने कुछ देर तक केवल उसे ही खाया, कुछ और नहीं खाया । उसके पश्चात, वो जोर से कांव कांव करने लगा जैसे वह बता रहा है कि उसने अर्पण स्वीकार कर लिया है और वह कृतज्ञता व्यक्त कर रहा था, इसके पश्चात वह उड गया । शॉन और मेरा भाव जागृत हुआ क्योंकि शॉन के दादाजी को दाल बहुत पसंद थी । हमें अनुभव हुआ कि कौवे के माध्यम से अर्पण किया गया भोजन उनके दादाजी ने स्वीकार कर लिया था, और वे संतुष्ट/तृप्त हुए ।

  • इसके पश्चात, एक-एक करके दूसरे कौवे खिडकी पर आने लगे और अर्पण किया गया भोजन चुगने लगे ।

    कौवे एक-एक करके आकर बाहर रखे हुए भोजन के विभिन्न पदार्थों को खाने लगे

    एक कौवा झांककर हमें देखते हुए

  • प्रत्येक कौवा भोजन ग्रहण करता और ऐसा करते समय वह घर के भीतर झांककर सीधे हमारी ओर देखता था । उनमें से प्रत्येक ने जाने से पूर्व कांव कांव किया ।

संध्या तक, लगभग सारा भोजन ग्रहण कर लिया गया । हमने इस अनुभूति के लिए दत्तात्रेय देवता और परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी (जिन्होंने हमें श्राद्ध विधि का अध्यात्मशास्त्र तथा नियमित साधना करने के महत्व के विषय में मार्गदर्शन किया है) के प्रति अपार कृतज्ञता व्यक्त की । हमने सीखा कि यदि किसी को श्राद्ध विधि करने के लिए पुरोहित नहीं मिलते हों और मन में श्राद्ध विधि करने की इच्छा हो, तो हमारे मृत पूर्वजों के लिए श्राद्ध करने में ईश्वर हमारी सहायता करते हैं । हमने अपना अनुभव इसलिए लिखा है जिससे कोई भी व्यक्ति जो ऐसी परिस्थिति में हो – जहां पुरोहित न मिलते हों अथवा उनकी स्थिति के आधार पर वे पूर्ण विधि करने में सक्षम न हों, तो देखें कि पूर्ण निष्ठा से किए गए सरल कृत्य/चरण भी अत्यधिक आध्यात्मिक लाभ देते हैं और हमारे मृत/दिवंगत पूर्वजों को गति देने में एक बडा/महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं ।