रात में देर से सोना - इससे हम कैसे प्रभावित होते है ?

१. रात में देर से सोना – प्रस्तावना

जागने के उपरांत अच्छा लगे, इस दृष्टि से अच्छी नींद कैसे में, यह जानने की सभी की इच्छा होती है । अच्छी नींद कैसे लगे, इससे सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण सूत्रों में से एक है, सोने का समय । हममें से अधिकतर लोगों का अनुभव है कि रात में देर से सोने के पश्चात सवेरे हमारी स्थिति स्वस्थचित्त नहीं होती । हममें से कुछ लोग रात में देर से सोने से होने वाले शारिरीक तथा मानसिक स्तर के दुष्प्रभावों से ज्ञात होते हैं । तत्पश्‍चात भी कार्य में व्यस्त रहने तथा पार्टियों के कारण अधिकाधिक लोग रात में देर से सोने लगे हैं । इस लेख में रात में देर से सोने से सूक्ष्म स्तर पर होने वाले प्रभावों के सन्दर्भ में हम समझ लेंगे । इस लेख से रात में हमें कब सोना चाहिए, इस दृष्टि से अच्छी नींद लेने के उद्देश्य से योग्य निर्णय लेने में हमें सहायता होगी ।

२. अच्छी नींद कैसे लें, इस सन्दर्भ में आध्यात्मिक शोध – सोने का समय

अच्छी नींद कैसे लें, इससे सम्बन्धित निकषों में से सोने का समय और नींद पर होने वाले उसके प्रभावों के सन्दर्भ में एसएसआरएफ के जिन साधकों की छठवी ज्ञानेन्द्रिय अतिजाग्रत है अथवा जिनके पास इन्द्रियातीत ग्रहण क्षमता है, ऐसे साधकों ने आध्यात्मिक स्तर पर अन्वेषण किया । इस शोध द्वारा प्राप्त ईश्वरीय ज्ञान की जांच प.पू. डॉ. आठवले ने की ।

३. सूर्यास्त के उपरान्त के समय के अनुसार कर्म करने से लाभ

सूर्योदय सूर्यास्त तक वायुमण्डल में अच्छे अथवा घडी की सुई की दिशा में घूमने वाले स्पन्दन कार्यरत रहते हैं । सूर्यास्त के उपरान्त वायुमण्डल में घडी की सुई की विपरीत दिशा में घूमने वाले अथवा अनिष्ट स्पन्दनों का घूमना आरम्भ होता है । इसलिए हमारे द्वारा किए कर्मों से मिलनेवाला लाभ क्रमशः घटता जाता है । इस सूत्र को अधिक विस्तार से समझने के लिए आईए सूर्यास्त से सूर्योदय तक के १२ घण्टों को ४ घण्टों के ३ भागों में / कालखण्डों में विभाजित करते है । सूर्यास्त के उपरान्त हमारे द्वारा किए कर्मों से मिलने वाले लाभ किस प्रकार प्रभावित होते हैं, यह निम्नांकित आकृति दर्शाती है । (इस उदाहरण में हमने सायंकाल का सूर्यास्त का समय ६.०० बजे का और प्रातः ६.०० बजे का समय सूर्योदय का समझा है ।)

रात में देर से सोना - इससे हम कैसे प्रभावित होते है ?

४. रात में मूलभूत सूक्ष्म रज-तम का बढता प्रभाव

सूर्यास्त के उपरान्त के काल में मूलभूत रज-तमगुण कार्य में वृद्धि होती है । रात के बढने के साथ इस मूलभूत सूक्ष्म रज-रामगुण में भी वृद्धि होती जाती है । मूलभूत सूक्ष्म रज-तमगुण अच्छे कर्मों के लिए अनुकूल नहीं होते । इसलिए जब हम सूर्यास्त के उपरान्त कुछ करने जाते हैं, तब हमें इस वृद्धिंगत मूलभूत सूक्ष्म रज-तमगुणों के विरोध में काम करना पडता है । परिणामस्वरूप वृद्धिंगत मूलभूत सूक्ष्म रज-तमगुणों के नकारात्मक प्रभावों पर मात करने में अधिक शक्ति का व्यय होता है । अन्त में कोई कार्य पूरा करते-करते हमारी शक्ति का विपुल मात्रा में व्यय होता है ।

मूलभूत सत्त्व, रज-तम गुणों में होने वाला उतार-चढाव ५% तक होता है । प्रातः के पहले कुछ घण्टों के कालखण्ड में मूलभूत सूक्ष्म सत्त्वगुण अत्यधिक मात्रा में होता है । जैसे-जैसे सूर्य माथे पर आने लगता है; अर्थात दिन के समय में मूलभूत सूक्ष्म रजोगुण धीरे-धीरे बढने लगता है । सूर्य ढलने के उपरान्त मूलभूत सूक्ष्म तमोगुण बढने लगता है और रात के १२.०० बजे से ३.०० बजे के मध्य में वह अत्यधिक मात्रा में होता है । इसलिए प्रातः समय के कुछ घण्टे अच्छा कार्य पूर्ण करने के लिए अनुकूल होते हैं । इसका कारण यह है कि वायुमण्डल में विद्यमान वृद्धिंगत सात्त्विकता व्यक्ति की कार्य क्षमता में वृद्धि होती है और मूलभूत सूक्ष्म रज-तमोगुण अत्यल्प होने के कारण कार्य को होने वाला विरोध अल्प होता है ।

५. अनिष्ट शक्तियों का रात में होने वाला प्रभाव

अन्य एक महत्त्वपूर्ण घटक का यहां विचार करना आवश्यक है और वह है – अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) । सूर्यास्त के उपरान्त मूलभूत सूक्ष्म तमोगुण में धीर-धीरे वृद्धि होने के कारण अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव भी दो प्रकार से बढता है ।

  • वायुमण्डल की काली शक्ति संग्रहित करने की क्षमता में वृद्धि होना ।
  • इस शक्ति का उपयोग करने की क्षमता में वृद्धि होना, उदा. लोगों की प्राणशक्ति खींच लेना और उनके मन में नकारात्मक विचार डालना ।

इनका प्रभाव साईसांझ के (गोधुली के) समय से बढने लगता है और मध्यरात्रि में वह अत्यधिक मात्रा में रहता है । रात्रि के १२.०० बजे से ३.०० बजे तक का कालखण्ड उनके अत्यधिक प्रभाव का कालखण्ड होता है । उपर किए विवेचन के अनुसार इस कालखण्ड में की साधना का फल भी न्यूनतम होता है । इसलिए हमपर आक्रमण होने की आशंका भी अधिक होती है ।

६. सारांश

इस प्रकार रात में देर से सोने से होने वाले शारीरिक और मानसिक दुष्प्रभावों के अतिरिक्त, रात में देर से सोना आध्यात्मिक स्तर पर भी हानिप्रद होता है । साथ ही रात में देर से सोने पर हम सवेरे भी देर से ही उठते हैं । उपर्युक्त विवेचन के अनुसार मूलभूत सूक्ष्म सत्त्वगुण सूर्योदय के पूर्व के तथा तुरन्त पश्चात के कुछ घण्टों में अत्यधिक होता है । अतः प्रातः समय के घण्टों में कार्य न करने से हमें वृद्धिंगत सात्त्विकता का लाभ नहीं मिलता है । इसलिए हमारे द्वारा प्रयुक्त समय का अधिकाधिक लाभ करवाने के दृष्टिकोण से, रात में देर से सोना उचित नहीं है ।