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१. शिशु गोद लेने का परिचय

जब दंपति संतानप्राप्ति में असमर्थ हों, तो बच्चा गोद लेने की प्रथा, भावी माता-पिता को शिशु होने का अनुभव तथा सुख देती है । प्रत्येक वर्ष पूरे विश्‍व में सैकडों-सहस्रों बच्चे गोद लिए जाते हैं । विकसित देशों में, एक बच्चे को गोद लेने में लगभग ५०,००० यू.एस. डॉलर्स तक का व्यय हो सकता है । जबकि एक सामान्य धारणा है कि शिशु गोद लेने से उस बच्चे का भविष्य अधिक अच्छा तथा स्थिर हो जाता है, इस लेख में हम निम्न दो बातों पर आध्यात्मिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करेंगे :

  • बच्चा गोद देना
  • लेने की प्रथा

२. बंध्यापन तथा गर्भधारण न कर पाने के आध्यात्मिक कारक

जिन परिवारों में बच्चे नहीं होते, उनमें बच्चे गोद लेने की इच्छा स्वाभाविक है । गर्भधारण न कर पाना अत्यंत पीडादायक है, विशेष रूप से तब, जब हम इसका कारण नहीं जानते ।

नीचे दी गई सारणी में हमने गर्भधारण न कर पाने के कारणों का विभाजन दिया है ।

गर्भधारण न कर पाने के कारण
प्रकार प्रतिशत
१. आनुवांशिक (जैविक कारक) २०
२. मानसिक कारक ३०
३. प्रारब्ध के कारण आध्यात्मिक कारक ५०
३ अ. पूर्वजों के कष्ट (३५)
३ आ. अनिष्ट शक्तियों से संबंधित कष्ट (१५)

स्रोत : वर्ष २०१४ में SSRF.org द्वारा किया गया आध्यात्मिक शोध

१. अनुवांशिक अथवा जैविक कारकों में अंडोत्सर्जन(ऑव्यूलेशन) में समस्या, अवरुद्ध गर्भाशय नलिकाएं (फैलोपियन ट्यूब्स), हॉर्मोन संबंधी असंतुलन, शुक्राणु विकार इत्यादि हो सकते हैं ।

२. मानसिक स्थितियां, जैसे निराशा तथा तनाव, यौन इच्छा को घटा सकती हैं तथा हॉर्मोन (शरीर द्वारा निर्मित रसायन)के स्तर में परिवर्तन ला सकती हैं ।

३. आध्यात्मिक कारक :

अ. बंध्यापन आध्यात्मिक कारण से है, इसका एक संभाव्य लक्षण है, रोगी का निदान करने पर चिकित्सकों द्वारा अकारण बंध्यापन की समस्या बताया जाना अथवा उनका गर्भधारण में बाधा का कारण न ढूंढ पाना ।

आ. पितृदोष के कारण गर्भधारण करने में कठिनाई हो, तो भगवान दत्तात्रेय के नामजप से इस कष्ट से मुक्ति मिल सकती है ।

इ. जिन परिवारों में बच्चे नहीं होते, वे अध्यात्म के छः सिद्धांतों के अनुसार साधना कर अपने प्रारब्ध  की तीव्रता को न्यून कर सकते हैं ।

ई. सर्वोत्तम उपाय करने पर भी यदि दंपति गर्भधारण न कर पाते हों, तो आध्यात्मिक दृष्टिकोण से इसे र्इश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार कर लेना ही श्रेयस्कर होगा और अपने जीवनकाल में आध्यात्मिक उन्नति के प्रयासों पर केंद्रित करना चाहिए ।

उ. तथापि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से हम यह समझ सकते हैं, कि बच्चे न होना ही हमारा प्रारब्ध है तथा हमें इसे स्वीकार कर लेना चाहिए । जो दंपति बच्चा गोद लेना चाहते हैं उनके लिए आगे के खंडों में हमने कुछ दृष्टिकोण भी दिए हैं ।

पितृदोष , प्रारब्ध  तथा भूतावेश एवं आध्यात्मिक समस्याओं से मुक्ति पाने की जानकारी संबंधी खंड SSRF के जालस्थल (वेबसाईट) पर उपलब्ध हैं ।

३. बच्चा गोद लेने का बच्चे तथा गोद लेनेवाले परिवार पर होनेवाला आध्यात्मिक प्रभाव

वर्तमान समय में, लगभग हम सभी किसी न किसी रूप में पितृदोष (मृत पूर्वजों की आत्माओं द्वारा दिया जानेवाला कष्ट) अनुभव करते ही हैं । जिन परिवारों में बच्चे नहीं हो सकते, प्रायः उन्हें मध्यम से तीव्र स्वरूप का पितृदोष होता है । अधिकतर बंध्यापन तथा गर्भधारण न कर पाने का मूल कारण यही होता है । तीव्र पितृदोष से युक्त कोई परिवार जब एक बच्चा गोद लेता है, तो उस परिवार के तीव्र पितृदोष को वह बच्चा स्वत: ही अपना लेता है । वास्तव में आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह बच्चे के लिए हानिकारक है । इसके साथ ही, बच्चा कर्म बंधन द्वारा अपने जैविक परिवार के मृत पूर्वजों की आत्मा से भी जुडा होता है । इस प्रकार बच्चा अनजाने में ही दोनों परिवारों के मृत पूर्वजों के दो समूहों का वारिस बनता है । गोद लेने से नए परिवार के साथ नया लेन-देन भी निर्मित होता है, जिससे संबंधित व्यक्ति के जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसे रहने की संभावना बढ जाती है ।

इसी के साथ यदि गोद लिया बच्चा भूत अथवा उच्च स्तर की अनिष्ट शक्ति से प्रभावित अथवा आविष्ट हो, तो इसका गोद लेनेवाले परिवार पर नकारात्मक प्रभाव होता है । इससे परिवार को अनुभव होनेवाले कष्ट में वृद्धि हो सकती है । यद्यपि शारीरिक पीडा चिकित्सकीय उपचार से ठीक हो सकती है, तथापि तीव्र आध्यात्मिक कष्ट केवल तीव्र साधना से ही दूर हो सकते हैं । अन्यथा ये कष्ट अगले जन्म तक भी जारी रहते हैं । यदि हम इन दृष्टिकोणों पर ध्यान दें, तो बच्चा गोद लेने के विषय पर पुनर्विचार कर सकते हैं ।

३.१ अपना बच्चा गोद देने का उद्देश्य

माता-पिता द्वारा अपना बच्चा गोद देने के अनेक कारण हो सकते हैं । उदाहरणार्थ, कुछ लोग इस विचार से अपना बच्चा गोद देते हैं, कि उनके बच्चे को कम से कम आर्थिक रूप से स्थायी भविष्य तो मिलेगा । यह  सत्य है कि बच्चा गोद लेनेवाला परिवार संभ्रांत हो, इसकी संभावना होती है; परंतु इसके विपरीत, यदि गोद लेनेवाला परिवार अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित हो, तो बच्चे के वास्तविक माता-पिता अपने बच्चे को और अधिक आध्यात्मिक कष्ट की ओर धकेल रहे होते हैं । इसके स्थान पर यदि माता-पिता बच्चे को अपने साथ ही रखकर उसे अपने साथ साधना करने के लिए प्रेरित करें तो र्इश्वर उनकी आर्थिक स्थिति परिवर्तित कर दें, ऐसी संभावना है ।

३.२ बच्चा गोद लेने के निर्णय का उद्देश्य

गोद लेनेवाले दंपति के बच्चा गोद लेने के निर्णय का उद्देश्य भिन्न हो सकते हैं । गोद लेना भले ही हमें अपनी इच्छा पर आधारित कृत्य प्रतीत होता हो; पर वास्तविकता यह है, कि हमारे ६५ प्रतिशत निर्णय केवल आध्यात्मिक कारणों  से लिए जाते हैं । कभी कभी बच्चा गोद लेना हमें एक पुण्य कर्म प्रतीत होता है; परंतु आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह हमें सांसारिक जीवन में और अधिक लिप्त करता है । जो हमें हमारे जीवन के मूल उद्देश्य आध्यात्मिक प्रगति से विमुख कर सकता है ।

४. गोद लेने की प्रथा का सारांश तथा लोगों को इसका चयन करना चाहिए अथवा नहीं

जो परिवार गोद लेने की इच्छा रखते हैं :

इस पृथ्वी पर मनुष्य के रूप में हमारा जन्म, र्इश्वर द्वारा दिया आशीर्वाद है; क्योंकि पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा लोक है, जहां हम जीवन का मूल उद्देश्य, आध्यात्मिक प्रगति करने हेतु सर्वाधिक प्रयास कर सकते हैं । इसलिए पूरे प्रयत्न करने पर भी यदि दंपति को बच्चा न हो रहा हो, तो शुद्ध आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, इसे अपना प्रारब्ध मानकर स्वीकार लेना ही श्रेयस्कर होगा । उन्हें आध्यात्मिक रूप से उन्नति करने के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए । इससे गोद लिए बच्चे के साथ कोई भी लेन-देन निर्मित नहीं होगा ।

यदि यह संभव नहीं है और उन्हें ऐसा लगे कि बच्चा होना ही चाहिए, तब भी नियमित साधना कर वे अपनी तथा गोद लिए बच्चे की सहायता कर सकते हैं । परिणामस्वरूप, गोद लेने से किसी भी कारण से उत्पन्न हो सकनेवाले कष्ट को न्यून किया जा सकता है ।

जो परिवार अपना बच्चा गोद देने की इच्छा रखते हैं :

बच्चे का आध्यात्मिक स्वास्थ्य सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है तथा प्राथमिकता में भी आर्थिक संपन्नता से आगे है । यदि हम आध्यात्मिक हैं तथा आध्यात्मिक उन्नति हेतु समर्पित हैं, तब इस भौतिक संसार में जीवनयापन हेतु आवश्यक सब कुछ र्इश्वर हमें देते हैं । बच्चे का जन्म भी, एक आशीर्वाद ही है तथा किसी को भी देने योग्य सर्वोत्तम भेंट है, उन्हें उनकी साधना के लिए समर्थन देना तथा सहायता करना; पर साधना अध्यात्म के छ: मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार  होनी चाहिए न कि सांप्रदायिक साधना

अंतत: जीवन के बडे निर्णय जैसे बच्चा गोद लेना अथवा देना प्राय: प्रारब्धानुसार तथा लेन-देन के हिसाब के कारण होता है । साधना हमें सदैव उच्च मार्ग चुनने की शक्ति प्रदान करती है, जो परिवार की आध्यात्मिक उन्नति हेतु सर्वाधिक योग्य होती है एवं इस प्रकार तीव्र नकारात्मक प्रारब्ध से मुक्ति मिल सकती है ।