सारांश : भारत के गोवा स्थित महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के आध्यात्मिक शोध दल ने वातावरण पर यज्ञों के सूक्ष्म प्रभाव का विश्लेषण करने हेतु एक अध्ययन किया था । हमारे शोध से ज्ञात हुआ है कि यह सूक्ष्म प्रभाव वस्तुतः आगे के भौतिक और मनोवैज्ञानिक प्रभावों के लिए उत्प्रेरक है । वातावरण पर होनेवाले सकारात्मक सूक्ष्म प्रभाव के परिणामस्वरूप विभिन्न सकारात्मक परिवर्तन होते हैं, जैसे कि प्रतिकूल मौसम की घटनाओं में न्यूनता होना, मिट्टी, जल और वायु के स्तर पर वातावरण की शुद्धि होना और समाज का भी कल्याण होना । विभिन्न नमूनों के प्रभामंडल का यज्ञों के पूर्व और पश्चात अध्ययन करने पर यह देखा गया कि उनका प्रभामंडल अत्यधिक सकारात्मक हो गया । औसतन, नमूनों में व्याप्त सकारात्मक प्रभामंडल में ३०१ प्रतिशत की वृद्धि हुई । यज्ञों के स्थान की दूरी से यज्ञों द्वारा वातावरण पर होनेवाला परिणाम प्रभावित नहीं हुआ । यज्ञ होने के त्वरित पश्चात यज्ञों के सकारात्मक प्रभाव ६५००० किमी से भी अधिक दूर के स्थानों पर देखे गए ।
विषय सूची
- १. वातावरण पर यज्ञों के प्रभाव पर अध्ययन करने के विषय में प्रस्तावना
- २. वातावरण पर यज्ञों के प्रभाव का अध्ययन करने हेतु प्रयोग की रूपरेखा तैयार करना
- ३. वातावरण पर यज्ञों के प्रभाव के प्रमुख निष्कर्ष
- ३.१ साधना करने से घर में सकारात्मकता निर्मित होना तथा यज्ञों से प्रक्षेपित होनेवाले सकारात्मक स्पंदनों को ग्रहण करने की क्षमता में वृद्धि होना
- ३.२ बढी हुई सकारात्मकता एवं न्यून हुई नकारात्मकता के अवशिष्ट प्रभाव
- ३.३ यज्ञ से मिट्टी एवं जल की तुलना में वायु का अधिक प्रभवित होना
- ३.४ यज्ञों का लाभ प्राप्त करने वाले स्थानों में दूरी की कोई बाधा न होना
- ३.५ सूक्ष्म अनिष्ट शक्ति के आक्रमणों के विरुद्ध संरक्षण
- ४. यज्ञ के सकारात्मक सूक्ष्म प्रभाव
- ५. निष्कर्ष
१. वातावरण पर यज्ञों के प्रभाव पर अध्ययन करने के विषय में प्रस्तावना
यज्ञ एक पवित्र अग्नि अनुष्ठान है, जिसे किसी विशिष्ट उद्देश्य हेतु विधिवत पद्धति से संपन्न किया जाता है । यज्ञों के साथ संस्कृत में मंत्रों का उच्चारण किया जाता है । उन्हें न्यूनतम पद्धति से अथवा अधिक विस्तृत रूप से भी संचालित किया जा सकता है । यज्ञ अनेक उद्देश्य से किया जा सकता है, जिसमें अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करना, वातावरण में सामंजस्य और संतुलन लाना, अनिष्ट शक्तियों से रक्षा हेतु और बाधाओं को दूर कर साधकों को उनकी साधना में सहायता करना सम्मिलित है । यज्ञ ऐसे शक्तिशाली आध्यात्मिक उपकरण हैं जो भारी मात्रा में सकारात्मक आध्यात्मिक शक्ति उत्पन्न करते हैं, फलस्वरूप समाज के कल्याण में वृद्धि होती है ।
यज्ञों के प्रभाव के विषय पर कई बाह्य स्वतंत्र अध्ययन किए गए हैं । हमने आगे ऐसे ही कुछ अध्ययनों को सूचीबद्ध किया है :
क्रं संख्या | यज्ञ पर किया गया अध्ययन | अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष |
---|---|---|
१. | वाजपेय सोमयज्ञ पर शोध एवं समन्वेशी अध्ययन | वातावरण की शुद्धि करना और रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करना |
२. | सोमयाग यज्ञ का वैज्ञानिक अध्ययन | इस यज्ञ को करने से वायु प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है |
३. | कणाकार तत्त्वों (पार्टिकुलेट मैटर) पर यज्ञ का प्रभाव | यज्ञ भीतरी वायु प्रदूषक, विशेष रूप से कणाकार तत्त्व तथा CO2 (कार्बन डाइ ऑक्साइड) को न्यून करने का एक उपाय है |
४. | वातावरण शुद्धीकरण और मान स्वास्थ्य पर यज्ञ के प्रभाव: एक समीक्षा | वातावरण को स्वस्थ करें और स्वस्थ वातावरण आपको स्वस्थ करेगा |
५. | यज्ञ का समन्वित विज्ञान | यज्ञों के लाभ पर विभिन्न अध्ययनों का संकलन |
६. | अग्निहोत्र – वायु प्रदूषण का एक अपारंपरिक उपाय | NO2 (नाइट्रस ऑक्साइड), CO (कार्बन मोनोऑक्साइड), SPM (सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर) और RSPM (रेस्पिरेबल सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर) जैसी हानिकारक गैसों को न्यून करता है । |
सारणी १ : यज्ञों के प्रभाव पर विविध स्वतंत्र शोध अध्ययनों की एक सूची
ये यज्ञों के भौतिक और मानसिक प्रभावों पर किए गए कई अध्ययनों में से कुछ अध्ययन हैं । इसके विपरीत, यज्ञ से उत्पन्न आध्यात्मिक शक्ति और उसके आध्यात्मिक प्रभावों के विषय में बहुत कम अध्ययन उपलब्ध हैं । वास्तविकता में, हमारे शोध से पता चला है कि यज्ञ आध्यात्मिक शक्ति ही इस पहलू का प्राथमिक कारण है कि यह शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर पर्यावरण (वनस्पति और जीवों सहित) और समाज पर व्यापक स्तर पर सकारात्मक प्रभाव डालने में सक्षम है ।
किसी भी यज्ञ की प्रभावशीलता विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है, जिनमें से एक है पीठासीन (मार्गदर्शक) संत का संकल्प । पीठासीन संत का आध्यात्मिक स्तर जितना अधिक होगा, यज्ञ का आध्यात्मिक प्रभाव उतना ही अधिक होगा । जनवरी २०२२ में, भारत के गोवा स्थित आध्यात्मिक शोध केंद्र और आश्रम में छह यज्ञ आयोजित किए गए थे । ये यज्ञ परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी के संकल्प से समर्थ संतों और पुरोहितों द्वारा आयोजित किए गए थे । परात्पर गुरु ९०% आध्यात्मिक स्तर से अधिक स्तर के संत होते हैं । पृथ्वी पर इतने उच्च कोटि के संत का मिलना अत्यंत दुर्लभ है और फलस्वरूप आध्यात्मिक शोध दल को विभिन्न स्तरों पर ६ यज्ञों के आध्यात्मिक प्रभाव का अध्ययन करने का एक अनूठा अवसर प्राप्त हुआ ।
इस लेख में, हमने वातावरण पर यज्ञों के आध्यात्मिक स्तर पर होनेवाले प्रभाव का अध्ययन करते हुए अपने कुछ प्रमुख निष्कर्षों को साझा किया है ।
जो छः यज्ञ किए गए थे, वे इस प्रकार थे :
दिनांक |
आयोजित किए गए यज्ञ |
---|---|
१४ जनवरी २०२२ | राजमातंगी यज्ञ |
१५ जनवरी २०२२ | प्रत्यंगिरा देवी यज्ञ |
१६ जनवरी २०२२ | बगलामुखी देवी यज्ञ |
२१ जनवरी २०२२ | धन्वंतरी यज्ञ |
२२ जनवरी २०२२ | महामृत्युंजय यज्ञ |
२३ जनवरी २०२२ | गरुड यज्ञ |
सारणी २ : जनवरी २०२२ में भारत के गोवा स्थित आध्यात्मिक शोध केंद्र में आयोजित यज्ञ
२. वातावरण पर यज्ञों के प्रभाव का अध्ययन करने हेतु प्रयोग की रूपरेखा तैयार करना
वातावरण पर यज्ञ के सूक्ष्म प्रभाव का अध्ययन करने के लिए, हमने शोध दल की छठी इंद्रिय के साथ-साथ एक प्रभामंडल और ऊर्जा चित्रान्वीक्षक (स्कैनर) का उपयोग किया जिसे यूनिवर्सल ऑरा (प्रभामंडल) स्कैनर (यूएएस) कहते है । डॉ. मन्नम मूर्ति (भारत के एक पूर्व परमाणु वैज्ञानिक) द्वारा विकसित यह यूएएस उपकरण किसी भी वस्तु के प्रभामंडल के विस्तार (अथवा सीमा) के साथ-साथ उस वस्तु के प्रभामंडल में व्याप्त नकारात्मकता और/अथवा सकारात्मकता का भी पता लगा सकता है ।
हमने यज्ञों से पूर्व और पश्चातमें विभिन्न स्थानों के विभिन्न नमूनों को मापने के लिए यूएएस का उपयोग किया । इसका उद्देश्य यह समझना था कि यज्ञ से उनका (नमूनों का) प्रभामंडल कैसे परिवर्तित हुआ तथा कितने विस्तार तक उनका प्रभामंडल प्रभावित हुआ ।
१. स्थानीय स्तर पर गोवा और उसके आसपास से मिट्टी, जल एवं वायु के नमूने एकत्र किए गए । निम्नलिखित स्थानों से नमूने एकत्र किए गए थे :
- गोवा का अध्यात्म शोध केंद्र जहां छः यज्ञ संपन्न हुए थे
- २ साधकों के घर तथा साथ ही उनके पडोसियों के घर (अर्थात कुल ४ भिन्न-भिन्न परिसर) । यज्ञों के स्थल से उनकी दूरी १.५ से १६ किलोमीटर के मध्य थी ।
- यज्ञों के स्थल से एक किलोमीटर की दूरी के भीतर २ धार्मिक स्थल
२. भारत एवं विदेशों के विभिन्न नगरों में स्थित ३ अध्यात्म केन्द्रों के छायाचित्रों का विश्लेषण । ये अध्यात्म केंद्र निम्नलिखित नगरों में स्थित है ।
अध्यात्म केंद्र का स्थल | गोवा में यज्ञों के आसन से किलोमीटर (किमी) में अनुमानित दूरी |
---|---|
भारत में मुंबई के निकट | ५०० किमी. से अधिक |
वाराणसी, भारत | १७०० किमी. से अधिक |
थाल, जर्मनी | ६८०० किमी से अधिक |
सारणी ३ : भारत और विदेशों के नगर जहां यज्ञों के प्रभाव का विश्लेषण किया गया था
यज्ञों से पूर्व और पश्चात में ३ अध्यात्म केंद्रों के छायाचित्र लिए गए । प्रत्येक छायाचित्र के सूक्ष्म स्पंदनों को यूएएस की सहायता से मापा गया । इसके साथ ही एक वीडियो कांफ्रेंसिंग (चलचित्र दूर सम्मलेन) लिंक का उपयोग करते हुए, यूएएस के माध्यम से इन स्थानों से मिट्टी, जल और वायु के नमूनों की प्रत्यक्ष दिख रही (लाइव) छवियों को मापा गया । ये नमूने यज्ञों से पूर्व और पश्चात में एकत्र किए गए थे । जर्मनी में लिए गए छायाचित्र / प्रत्यक्ष दिख रही (लाइव) छवियों को उसी समय लिया गया जब भारत में यज्ञ आयोजित किए गए थे ।
३. छठवीं इन्द्रिय के माध्यम/उपयोग से
यज्ञ के सूक्ष्म प्रभाव का वास्तविक रूप से विश्लेषण करने के लिए, एक उन्नत स्तर की छठवीं इन्द्रिय की आवश्यकता होती है । आध्यात्मिक शोध दल ने सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित चित्र बनानेवाले साधकों के साथ मिलकर यज्ञों के प्रभाव का विश्लेषण किया ।
३. वातावरण पर यज्ञों के प्रभाव के प्रमुख निष्कर्ष
यज्ञ वातावरण को कैसे प्रभावित करते हैं, इस विषय में हमने जिन कुछ प्रमुख निष्कर्षों का अवलोकन किया था, उनका सारांश आगे दिया गया है:
- साधना करने से घर (परिसर के भीतर) में सकारात्मकता निर्मित होती है तथा यज्ञों से प्रक्षेपित होनेवाले सकारात्मक स्पंदनों को ग्रहण करने की क्षमता में वृद्धि होती है ।
- यह देखा गया है कि यज्ञ पूर्ण होने के पश्चात भी वातावरण में सकारात्मकता बढी हुई थी और नकारात्मकता न्यून थी ।
- इन तत्वों में से, मिट्टी एवं जल की तुलना में वायु पर यज्ञों का अधिक सकारात्मक प्रभाव पडा।
- यज्ञ से स्थान की दूरी, उस स्थान पर यज्ञ का लाभ प्राप्त करने में बाधक नहीं हुई ।
- यज्ञ में प्रबल अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों से रक्षा करने की क्षमता होती है ।
३.१ साधना करने से घर में सकारात्मकता निर्मित होना तथा यज्ञों से प्रक्षेपित होनेवाले सकारात्मक स्पंदनों को ग्रहण करने की क्षमता में वृद्धि होना
३.१.१ यज्ञ संपन्न होने से पूर्व ही साधकों के घरों में सकारात्मकता में वृद्धि देखी गई
हमारे लेख – ‘घर में व्याप्त आध्यात्मिक स्पंदन तथा उनके प्रभाव‘, में हमने समझाया था कि कैसे किसी भी परिसर के निवासी, उन परिसरों में पाए जाने वाले सूक्ष्म स्पंदनों के प्रकार के लिए सबसे महत्वपूर्ण उत्तरदाई कारक थे । वे अपने विचारों, दृष्टिकोणों, उद्देश्यों और कार्यों के आधार पर सूक्ष्म स्तर पर परिसर में सकारात्मकता अथवा नकारात्मकता में वृद्धि कर सकते हैं । इन्हीं निवासियों के निर्णय यह निर्धारित करेंगे कि उनके परिसर का तथा उनकी साज सज्जा का उपयोग किस प्रकार किया जाता है । ये दो कारक (अर्थात, निवासियों की प्रकृति और परिसर का उपयोग किस प्रकार किया जाता है) किसी भी परिसर द्वारा प्रक्षेपित आध्यात्मिक स्पंदनों की प्रकृति को निर्धारित करने में एक अभिन्न भूमिका निभाते हैं । हमारे शोध से यह ज्ञात हुआ है कि जो लोग सार्वभौमिक सिद्धांतों के अनुसार नियमित रूप से साधना करते हैं, उनसे सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होने की संभावना अधिक होती है और इसलिए वे अपने निवास के परिसर को सकारात्मक रूप से प्रभावित करेंगे । उनमें ईश्वर से दैवीय सुरक्षात्मक शक्ति को आकर्षित करने की भी अधिक संभावना रहती है ।
सर्वप्रथम, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि हाल ही के दिनों में, हमने पाया है कि विश्वभर के वातावरण में व्याप्त नकारात्मक स्पन्दन वर्ष २०१९ से पूर्व की तुलना में बहुत अधिक परिमाण में हैं । परिणामस्वरूप, दोनों साधकों और अन्य लोगों के निवास स्थान द्वारा समान रूप से उनसे संबंधित नकारात्मक स्पंदनों के स्तर में वृद्धि हुई है । ऐसा इसलिए है क्योंकि वातावरण की समग्र नकारात्मकता से दोनों प्रकार के निवास स्थल प्रभावित हुए हैं । यद्यपि, जब हम साधकों के घरों में व्याप्त नकारात्मक स्पंदनों की तुलना अन्य लोगों के घरों (अथवा यहां तक कि उनके पडोसियों के घरों) से करते हैं, तो साधकों के घरों में पाए जाने वाले नकारात्मक स्पंदन बहुत न्यून मात्रा में होते हैं । उसी प्रकार, साधकों के ऐसे पडोसी जो साधना नहीं करते हैं उनके घरों की तुलना में, साधकों के घरों में सकारात्मक स्पंदन बहुत अधिक मात्रा में पाए जाते हैं ।
इस बिंदु को स्पष्ट करने के लिए, हम प्रथम यज्ञ के प्रारंभ से पूर्व लिए गए एक साधिका के घर बनाम उसके पडोसी के घर के प्रभामंडल के पाठ्यांकों का (ऑरा की रीडिंग) एक उदाहरण साझा करना चाहेंगे । इन प्रभामंडल के पाठ्यांकों को यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यूएएस) की सहायता से लिया गया है ।
सारणी ४ : एक साधिका के घर बनाम उसके पडोसी के घर में पाए गए नकारात्मक स्पंदनों की तुलना
जैसा कि आप २ निकटस्थ घरों से प्राप्त उपरोक्त पाठ्यांकों से देख सकते हैं, साधिका के घर से प्राप्त मिट्टी एवं जल के नमूनों में व्याप्त नकारात्मकता उसके पडोसी के घर, जहां के निवासी साधना नहीं करते, वहां की तुलना में लगभग ४०% न्यून नकारात्मक थी । वायु के नमूने के सम्बन्ध में, साधिका के घर से प्राप्त नमूना उसके पडोसी के घर की तुलना में २५% न्यून नकारात्मक था । वायु के नमूने के पाठ्यांक में न्यून अंतर होने का कारण यह था कि वायु परिसर के मध्य अधिक स्वतंत्र रूप से विचरण कर सकती है ।
सारणी ५: साधिका के घर बनाम उसके पडोसी के घर में पाए गए सकारात्मक स्पंदनों की तुलना
जैसा कि आप उपरोक्त पाठ्यांक (रीडिंग) से देख सकते है कि पडोसी के घर से प्राप्त किसी भी नमूने में कुछ भी सकारात्मकता नहीं पाई गई । इसकी तुलना में, प्रारंभ में, साधिका के घर से प्राप्त सभी नमूनों में सकारात्मक प्रभामंडल था । साधकों के घरों और उनके पडोसी जहां के निवासी कोई साधना नहीं करते, उनके घरों के मध्य मिट्टी, जल और वायु के नमूनों की तुलना करते समय पाठ्यांकों में इस प्रकार के अंतर नित्य देखे गए हैं ।
३.१.२ स्थानीय रूप से एकत्रित सभी मिट्टी, जल एवं वायु के नमूने यज्ञ से सकारात्मक रूप से प्रभावित होना
छः यज्ञों के आयोजित होने के समय में किए गए प्रयोगों में एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि यह धार्मिक अनुष्ठान, यज्ञ के आयोजन स्थल से कई मील दूर स्थित क्षेत्रों में रखे मिट्टी, जल और वायु के नमूनों के सकारात्मक स्पंदनों में वृद्धि करने में सक्षम था । उस क्षेत्र में स्थानीय रूप से एकत्र किए गए मिट्टी, जल और वायु के नमूनों में व्याप्त सकारात्मक प्रभामंडल में यज्ञों के पश्चात लगभग ३०२ % तक वृद्धि हो गई ।
यद्यपि, इस प्रकरण में जो देखा गया वह यह था कि साधिका का घर (यज्ञ स्थल से लगभग १६ किमी दूर) उसके पडोसी के घर (उसके घर के बाजू में ही स्थित) की तुलना में अधिक परिमाण में सकारात्मकता को ग्रहण करने में सक्षम था । (कृपया ध्यान दें : पडोसी साधना नहीं करते हैं ।)
नीचे दिखाए गए रेखाचित्र (ग्राफ) में, यह देखा जा सकता है कि किस प्रकार प्रत्येक यज्ञ से पूर्व और पश्चात में मिट्टी के नमूनों में सकारात्मकता में उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई । ये यज्ञ निरंतर तीन दिन आयोजित किए गए थे । प्रत्येक यज्ञ के साथ, आप देखेंगे कि साधिका के घर (नीचे दिए गए रेखाचित्र में लाल रेखा) में सकारात्मकता में वृद्धि दर्शाने की प्रवृत्ति-रेखा पडोसी के घर (जो नीचे दिए गए रेखाचित्र में धूसर रंग की रेखा है) की तुलना में बहुत शीघ्र बढी । यह दर्शाता है कि साधिका का घर यज्ञ से अधिक मात्रा में सकारात्मकता को ग्रहण करने में सक्षम था ।
रेखाचित्र १ : लगातार ३ दिन आयोजित हुए यज्ञों से मिट्टी के नमूने किस प्रकार सकारात्मक रूप से प्रभावित हुए, इसकी तुलना
३.२ बढी हुई सकारात्मकता एवं न्यून हुई नकारात्मकता के अवशिष्ट प्रभाव
रेखाचित्र १ से आप यह भी देखेंगे कि प्रत्येक दिन आयोजित किए जानेवाले यज्ञ का एक अवशिष्ट सकारात्मक प्रभाव था । उदाहरण के लिए, साधिका के मिट्टी के नमूने में प्रथम यज्ञ से पूर्व १.३५ मीटर सकारात्मक प्रभामंडल था । प्रथम यज्ञ के पश्चात, सकारात्मक प्रभामंडल में ३.७८ मीटर वृद्धि हो गई । दूसरे दिन, जब हमने दूसरे यज्ञ से पूर्व साधिका के घर के परिसर से मिट्टी के नमूने के सकारात्मक प्रभामंडल की जांच हेतु एक और पाठ्यांक लिए, तो यह ३.२० मीटर पाया गया । यह एक दिन पूर्व दर्ज किए गए १.३५ मीटर के सकारात्मक प्रभामंडल से बहुत अधिक है, और यह दर्शाता है कि यह मिट्टी पिछली संध्या में आयोजित यज्ञ से ग्रहण सकारात्मकता को बनाए रखने में सक्षम थी ।
३.३ यज्ञ से मिट्टी एवं जल की तुलना में वायु का अधिक प्रभवित होना
एक अन्य महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह था कि वायु के नमूनों ने मिट्टी और जल के नमूनों की तुलना में यज्ञों से सकारात्मकता ग्रहण करने की अधिक प्रवृत्ति दर्शाई । जैसा कि आप नीचे दिए गए रेखाचित्र से देख सकते हैं कि साधिका के घर की वायु के नमूने में पाया गया सकारात्मक प्रभामंडल ३ यज्ञों के उपरांत ०.५४ मीटर से बढकर १५.०६ (२६८८%) हो गया । इसकी तुलना में, साधिका के घर की मिट्टी के नमूने में व्याप्त सकारात्मकता ३ यज्ञों के उपरांत १.३५ मीटर से बढकर ८.५८ मीट (५३५%) हो गई – नीचे दिया गया रेखाचित्र देखें ।
रेखाचित्र २ : यज्ञों से पूर्व और पश्चात मिट्टी, जल और वायु के नमूनों में सकारात्मकता में हुई वृद्धि के मध्य तुलना
यह भ्रांति है कि यज्ञ का धुआं वातावरण को प्रदूषित करता है । यद्यपि, इसमें वास्तविकता नहीं है । ऐसा इसलिए क्योंकि सर्वप्रथम, यज्ञ की अग्नि द्वारा उत्सर्जित धुएं में आध्यात्मिक उपचार के गुण होते हैं । दूसरा, यज्ञ-कुंड से निकलने वाली आध्यात्मिक शक्ति वातावरण की शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक स्तरों पर शुद्धि करती है । कई वैज्ञानिक अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ है कि किस प्रकार यज्ञ करने के पश्चात वातावरण में हानिकारक बैक्टीरिया और प्रदूषक न्यून हो जाते हैं । सारणी १ में देखें ।
३.४ यज्ञों का लाभ प्राप्त करने वाले स्थानों में दूरी की कोई बाधा न होना
पूर्व के भागों में, हमने अपने यह निष्कर्ष साझा किए थे कि जहां यज्ञ आयोजित किए गए थे, उस स्थान वाला नगर और उसके आसपास के क्षेत्र (अर्थात, १६ किलोमीटर की दूरी तक), किस प्रकार यज्ञ से सकारात्मक रूप से प्रभावित हुए । माप लिए गए मिट्टी, जल और वायु के नमूनों ने उल्लेखनीय रूप से सकारात्मकता में वृद्धि और नकारात्मकता में न्यूनता दर्शाई ।
किन्तु दूसरें नगरों अथवा दूसरें राष्ट्रों के बारे में क्या ? क्या किसी विशेष स्थान पर आयोजित यज्ञ दूसरे नगरों और राष्ट्रों के वातावरण को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है ?
इस तथ्य का अध्ययन करने के लिए, हमने भारत के गोवा स्थित आध्यात्मिक शोध केंद्र और आश्रम में आयोजित यज्ञ का, कई सैकडों एवं सहस्त्रों किलोमीटर दूर स्थित ३ भिन्न भिन्न नगरों के आध्यात्मिक केंद्रों पर हुए प्रभाव का अध्ययन करने हेतु एक और प्रयोग किया । उनमें से एक नगर तो वास्तव में एक भिन्न राष्ट्र ही था, जो कि जर्मनी था ।
हमारा यह अनुभव रहा है कि चित्रों में उस वस्तु (जीवित अथवा निर्जीव) के सूक्ष्म स्पंदन व्याप्त होते हैं । यह इस आध्यात्मिक सिद्धांत पर आधारित है कि:
“शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध तथा इनसे संबंधित शक्ति सहवर्ती (एक साथ) होती हैं ।”
इसका अर्थ यह है कि यदि किसी वस्तु से सम्बंधित आध्यात्मिक स्पंदनों में कोई परिवर्तन होता है, तो छायाचित्रों में भी यह अंतर दिख जाएंगे । ऐसा इसलिए क्योंकि छायाचित्र किसी भी व्यक्ति, स्थान अथवा वस्तु के रूप की एक सटीक प्रतिकृति (उसी समय में लिया गया छायाचित्र) होते हैं । अतः मूलतः, छायाचित्र का यूएएस पाठ्यांक (एक आध्यात्मिक केंद्र के प्रकरण में) लेने से, हम उस छायाचित्र में उस स्थान के प्रभामंडल (उससे संबंधित सूक्ष्म ऊर्जा क्षेत्र) के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं ।
इस सिद्धांत के अनुरूप, हमने स्थानीय लोगों से यज्ञ से पूर्व और पश्चात में मुंबई (भारत), वाराणसी (भारत) और जर्मनी में स्थित आध्यात्मिक केंद्रों के छायाचित्र लेने के लिए कहा । छायाचित्रों को जिस स्थानीय समय पर लिया गया था, वह समय भारतीय मानक समय के अनुसार यज्ञ के आयोजन का समय था । यूएएस का उपयोग करते हुए हम यह देखना चाहते थे कि इन छायाचित्रों से सम्बंधित सूक्ष्म स्पंदनों में क्या कोई परिवर्तन हुआ है ।
नीचे दिए गए रेखाचित्र में, हमने एक उदाहरण में यह दर्शाया है कि राजमातंगी यज्ञ के आयोजन के समय, इन आध्यात्मिक केंद्रों के छायाचित्र किस प्रकार प्रभावित हुए । यह प्रथम आयोजित यज्ञ था ।
सारणी/तालिका ६ : अध्यात्म केंद्रों के छायाचित्रों के यूएएस पाठ्यांक लेने के माध्यम से यज्ञ स्थल से दूर स्थानों पर यज्ञों के सूक्ष्म प्रभाव का अध्ययन
जैसा कि आप उपरोक्त सारणी ६ से देख सकते हैं कि राजमातंगी यज्ञ से पूर्व और पश्चात में आध्यात्मिक केंद्रों से लिए गए छायाचित्रों के आध्यात्मिक स्पंदनों में अत्यधिक अंतर है । यज्ञ संपन्न होने के मूल स्थान से इन आध्यात्मिक केंद्रों की दूरी स्तम्भ २ में प्रदान की गई है । सारणी से यह पता चलता है कि आध्यात्मिक केंद्रों के सभी छायाचित्रों में सकारात्मकता में वृद्धि हुई और नकारात्मकता न्यून हुई । प्रत्येक यज्ञ के साथ, यह प्रवृत्ति देखी गई कि छायाचित्रों के सकारात्मक प्रभामंडल में निरंतर वृद्धि होती गई, जबकि प्रत्येक यज्ञ के संपन्न होने के पश्चात नकारात्मक प्रभामंडल न्यून होता गया ।
सकारात्मकता में वृद्धि की यह प्रवृत्ति मिट्टी, जल और वायु के नमूनों में भी देखी गई । नीचे दी गई सारणी में, हमने गरुड यज्ञ से पूर्व और पश्चात में लिए गए वायु के नमूनों के यूएएस पाठ्यांकों का एक ऐसा ही उदाहरण प्रस्तुत किया है । जनवरी २०२२ में आध्यात्मिक शोध केंद्र में आयोजित यह छठा और अंतिम यज्ञ था ।
सरणी ७ : गरुड यज्ञ के पश्चात वायु के नमूनों की सकारात्मकता में वृद्धि और नकारात्मकता में अवनति
जैसा कि आप उपरोक्त सारणी से देख सकते हैं कि वायु के सभी नमूनों के प्रभामंडल में नकारात्मकता समाप्त हो गई । वायु के सभी नमूनों में सकारात्मकता में वृद्धि हुई । सबसे दूर स्थित आध्यात्मिक केंद्र (जर्मनी) के वायु के नमूने ने सकारात्मकता में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की, जो कि १३३०% है । इससे ज्ञात होता है कि बढी हुई दूरी के साथ आध्यात्मिक शक्ति घटती नहीं है । यज्ञ से सम्बंधित संकल्प शक्ति यज्ञ स्थल की दूरी से प्रभावित नहीं होती है । इससे यह भी पता चलता है कि यज्ञ से उत्पन्न आध्यात्मिक शक्ति एक ऐसा शक्तिशाली उपकरण है जिससे विश्व की आध्यात्मिक सकारात्मकता में वृद्धि हो सकती है ।
३.५ सूक्ष्म अनिष्ट शक्ति के आक्रमणों के विरुद्ध संरक्षण
यज्ञ ऐसे शक्तिशाली आध्यात्मिक उपकरण हैं जिनका समाज और वातावरण, जिसमें वनस्पति और जीव सम्मिलित हैं, पर अत्यधिक सकारात्मक प्रभाव पडता है । उनकी शक्ति कई कारकों पर निर्भर करती है, जिनमें से एक है पीठासीन संत, जिनका संकल्प यज्ञ का आधार होता है । चूंकि यज्ञ आध्यात्मिक रूप से वातावरण की शुद्धि करते हैं और अनिष्ट शक्तियों से युद्ध करते हैं, इसलिए बहुत बार हमने देखा है कि अनिष्ट शक्तियां इसके उत्तर में पुनः युद्ध करने का प्रयास करती हैं । एक उदाहरण के रूप में, नीचे दी गई सारणी/तालिका यज्ञों के आयोजन से पूर्व और पश्चात में भारत के गोवा स्थित आध्यात्मिक शोध केंद्र और आश्रम में एकत्र किए गए वायु के नमूनों पर यज्ञों के प्रभाव को दर्शाती है ।
सारणी ८ : यज्ञ से किस प्रकार सूक्ष्म अनिष्ट शक्ति के आक्रमण के विरुद्ध रक्षा होना
पादटीका:
१. जैसा कि आप देखेंगे, प्रथम तीन यज्ञों के लिए, प्रत्येक यज्ञ से पूर्व अथवा पश्चात में किसी भी वायु नमूने में कोई नकारात्मक प्रभामंडल नहीं पाया गया ।
२. इसके साथ ही, प्रथम तीन यज्ञों में, वायु के नमूनों के सकारात्मक प्रभामंडल में ९५% से १४७% से २०८% तक वृद्धि होती रही ।
३. उपरांत चौथे, पांचवें और छठे यज्ञों से पूर्व, गोवा स्थित आध्यात्मिक शोध केंद्र और आश्रम में वायु के नमूनों में नकारात्मक प्रभामंडल होने का पता चला था । अध्यात्म शोध केंद्र के भीतर नकारात्मकता में यह अकस्मात वृद्धि असामान्य है ।
४. नकारात्मक प्रभामंडल के साथ-साथ, चौथे, पांचवें और छठे यज्ञों से पूर्व नमूनों में पाए गए सकारात्मक प्रभामंडल (पिछले दिन की तुलना में) में संख्या १ से ३ तक के यज्ञों की तुलना में अधिक न्यूनता थी । उदाहरण के लिए, प्रथम यज्ञ में सकारात्मक प्रभामंडल में ७.२४ मीटर से १४.१० मीटर तक वृद्धि हो गई । दूसरे दिन, सकारात्मक प्रभामंडल १०.६५ मीटर तक पुनः न्यून हो गया । पांचवें यज्ञ की तुलना में सकारात्मक प्रभामंडल में ११.६२ मीटर से ३७.५ मीटर तक वृद्धि हुई । यद्यपि दूसरे दिन यह बहुत न्यून होकर मात्र ५.९३ मीटर रह गया ।
५. छठी इंद्रिय द्वारा हमने पाया कि ऐसा अनिष्ट शक्ति के आक्रमण के कारण हुआ था । अनिष्ट शक्तियां प्रत्येक यज्ञ के आसपास के क्षेत्र में काली शक्ति में वृद्धि कर यज्ञों की प्रभावशीलता को न्यून करने का प्रयास कर रही थीं । यह भी देखा गया कि चौथे, पांचवें और छठे दिन प्रत्येक यज्ञ के साथ, आक्रमण प्रबल हो गए, और यह इन यज्ञों से पूर्व मिट्टी, जल और वायु के नमूनों में उत्तरोत्तर बढती हुई नकारात्मकता में परिलक्षित हुआ । ऐसा होते हुए भी, चौथे, पांचवें और छठे यज्ञों के पश्चात, नमूनों का नकारात्मक प्रभामंडल समाप्त हो गया । यह अनिष्ट शक्तियों के प्रभाव को समाप्त करने में एक यज्ञ की आध्यात्मिक शक्ति को दर्शाता है ।
६. यद्यपि, यह भी देखा गया कि प्रत्येक यज्ञ के साथ, प्रत्येक नमूने के सकारात्मक प्रभामंडल में वृद्धि का प्रतिशत बढता रहा ।
४. यज्ञ के सकारात्मक सूक्ष्म प्रभाव
आध्यात्मिक शोध केंद्र और आश्रम (गोवा, भारत) में अति जागृत छठी इंद्रीय की सहायता से आध्यात्मिक आयाम में व्यापक शोध किया जाता है । आध्यात्मिक शोध दल में साधकों द्वारा प्राप्त सूक्ष्म ज्ञान की जांच और उसे अंतिम रूप देना, यह उच्चतम कोटि के संतों द्वारा किया जाता है । ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त करने का एक माध्यम दृश्य स्वरूप में है । इस प्रकार से ज्ञान प्राप्त करने वाले साधक सूक्ष्म-चित्रकार कहलाते हैं और वे किसी प्रयोग अथवा स्थिति के समय सूक्ष्म प्रक्रिया को दृश्य रूप में अनुभव कर सकते हैं और जो देखते और अनुभव करते हैं उसे चित्रित कर सकते हैं । ये चित्र आध्यात्मिक एक्स-रे के समान हैं और औसत व्यक्ति को आध्यात्मिक आयाम की एक अद्वितीय झलक प्रदान करते हैं । नीचे दर्शाया गया चित्र यज्ञ के सकारात्मक सूक्ष्म प्रभाव को दर्शाता है जैसा कि सूक्ष्म चित्रकार पू (श्रीमती) योया वालेजी (जो SSRF की एक संत हैं) द्वारा देखा गया है ।
निम्नलिखित कुछ सूक्ष्म प्रक्रियाएं हैं, जिन्हें सूक्ष्म चित्रकार द्वारा अनुभव किया गया ।
१. जहां से यज्ञ आयोजित किया जा रहा था, सूक्ष्म चित्रकार ने वहां विभिन्न प्रकार की सकारात्मक शक्तियों जैसे शक्ति, चैतन्य, और देवता के तत्त्व के वलयों की निर्मिती को देखा।
२. कण स्वरुप में शक्ति का प्रवाह ईश्वर की ओर जा रहा था । यह देवता के तत्त्व की शक्ति का आवाहन करने हेतु था ।
३. परिणामस्वरूप, ईश्वरीय शक्ति सक्रिय हुई थी ।
४. पश्चात ईश्वर की शक्ति को विभिन्न स्थानों पर निर्देशित किया गया । यह शक्ति बीज रूप में वहीं रहेगी और आने वाले आपातकाल (तृतीय विश्वयुद्ध और जलवायु परिवर्तन) में उन स्थानों पर रहने वाले साधकों की रक्षा के लिए सक्रिय हो जाएगी ।
५. वातावरण में शक्ति के कणों का उत्सर्जन यज्ञ के स्थान से देखा गया । इसके साथ ही, वहां चैतन्य का प्रवाह था । ये दोनों सकारात्मक सूक्ष्म शक्तियां भारत और विश्वभर के वातावरण में प्रसारित हो गईं ।
५. निष्कर्ष
फरवरी २०२२ में, विश्वभर में CO2 का स्तर ४१८ पीपीएम (पार्ट्स प्रति मिलियन) मापा गया है । जलवायु विज्ञानियों ने सचेत किया है कि CO2 का ये असामान्य, उच्च स्तर, केवल जलवायु परिवर्तन के पैमाने और तीव्रता में वृद्धि ही करेंगे ।
यद्यपि, अधिकांश के लिए अज्ञात, एक और ऐसा घातक और कुटील प्रदूषण मापदण्ड है जो वर्तमान समय में असाधारण स्तर तक पहुंच गया है । इस मापदण्ड को विश्व में ‘आध्यात्मिक प्रदूषण’ के रूप में जाना जाता है । इसे विश्व में रज और तम सूक्ष्म घटकों के अनुपात में वृद्धि होने के रूप में मापा जाता है । हमने जलवायु परिवर्तन के मूल कारण और यह विश्वको कैसे प्रभावित कर रहा है, पर आधारित अपने लेख में इसे विस्तार से समझाया है । इस प्रकार के उच्च स्तर के आध्यात्मिक प्रदूषण का वैश्विक स्तर पर प्रभाव पडता है, जिससे नागरिक अशांति, युद्ध, प्रतिकूल मौसम की घटनाएं और जलवायु परिवर्तन की संभावना में वृद्धि हो जाती है । शक्तिशाली अनिष्ट शक्तियां आध्यात्मिक प्रदूषण में वृद्धि का लाभ उठाती हैं और दैवी शक्तियों के विरुद्ध सूक्ष्म युद्ध करती हैं । इस प्रकार के सूक्ष्म युद्ध भी उन प्रमुख उत्प्रेरकों में से एक हैं, जो विश्व में कलह में वृद्धि कर रहे हैं, जिसके कारण अंततः राष्ट्रों के मध्य युद्ध छिडेगा ।
इस प्रयोग से यह ज्ञात होता है कि यज्ञ एक ऐसा अद्वितीय आध्यात्मिक साधन है जिसका उपयोग मानवता आध्यात्मिक प्रदूषण के स्तर को न्यून करने के लिए कर सकती है ।यद्यपि, यज्ञ से सकारात्मकता को ग्रहण करने और उसे बनाए रखने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि समाज सात्विक जीवन यापन करें और सार्वभौमिक सिद्धांतों के अनुसार साधना करे । बढते हुए आध्यात्मिक प्रदूषण की प्रवृत्ति को घटाने के लिए किए गए प्रयास, उन समस्याओं को न्यून कर देंगे जिनका सामना विश्व कर रहा है और जिनका सामना इसे शीघ्र ही करना होगा ।
सूक्ष्म स्तर पर युद्ध जीतने के लिए यज्ञ करना आवश्यक है । सूक्ष्म युद्धों में, सामूहिक विनाश के भौतिक अस्त्र-शस्त्र जैसे परमाणु बम आदि किसी काम के नहीं होते । इसीलिए प्राचीन काल में ऋषि यज्ञ करते थे, जिससे युद्ध जैसे अन्य संकटों को रोका जा सकता था ।
– परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी