१.२ जीवन की वास्तविकता
आध्यात्मिक शोध द्वारा यह पता चला है कि विश्व भर में औसतन ३०% समय ही मनुष्य खुश रहता है तथा ४०% समय वह दुखी ही रहता है । शेष ३०% समय मनुष्य उदासीन रहता है । इस दशा में उसे सुख-दुख का अनुभव नहीं होता । उदा. जब कोई व्यक्ति रास्ते पर चल रहा होता है अथवा कोई व्यावहारिक कार्य कर रहा होता है तब उसके मन में सुखदायक अथवा दुखदायक विचार नहीं होते, वह केवल कार्य करता है ।
हमारे जीवन में दुख का भाग अधिक है । इस दुःस्थिति का एक कारण है हमारी शिक्षा प्रणाली । शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थियों को अनेक प्रकार के विषय सिखाए जाते हैं; परंतु जीवन में आनंद कैसे पाएं, यह विषय पाठ्यक्रम में नहीं लिया जाता । हमें औपचारिक रूप से यह नहीं सिखाया जाता कि जीवन में चाहे जो भी प्रसंग आएं, हम उन सभी प्रसंगों में प्रसन्न कैसे रहें ।
आप किसी संभ्रांत सज्जन का उदाहरण ले सकते हैं जिनका एक बहुत बडा व्यवसाय है; परंतु जो व्यापार में आर्थिक हानि की आशंका से निराश हो जाता है और आत्महत्या का विचार करता है । आप किसी महिला का उदाहरण ले सकते हैं जो अपने कार्यालय के विकास में उल्लेखनीय योगदान के कारण प्रशंसा की पात्र बनती हैं; परंतु घर पर उनका पति उनकी भावनात्मक असुरक्षितता का लाभ उठाकर उसे नीचा दिखाता है तथा उसे यातनाएं देता है ।
अपने जीवन की यात्रा को एक दृढ नींव पर आरंभ करने के लिए व्यक्ति मन लगाकर पढाई करता है, अनेक परीक्षाआें का सामना करता है जिससे उसे उत्तम नौकरी मिले और उसका जीवन सुविधापूर्ण और सुखदायी हो ।
परंतु क्या हम उचित दिशा में सोच रहे हैं ? क्या नौकरी हमें सुखी रहने की निश्चिति दे सकती है ? क्या घर-गृहस्थी से सुख का आश्वासन मिल सकता है ? सभी सुखी रहना चाहते हैं; परंतु यही देखने का मिलता है कि अशिक्षित और उच्च शिक्षित, दोनों प्रकार के लोग दुख से एक समान त्रस्त हैं ।
तो अब हमें ऐसे मार्गों की खोज करनी होगी जो हमें किसी भी सांसारिक स्थिति में निरंतर सुख देते रहें ।
अब आपमें से कुछ लोग सोच रहे होंगे कि “मुझे नहीं लगता कि मेरे लिए कोई ऐसा मार्ग आवश्यक है क्योंकि वैसे भी मैं सुखी हूं ।”
ऐसे व्यक्ति से हम कहना चाहेंगे कि नीचे दिए गए तीन कारणों से यह लेख आपके लिए उपयुक्त है :
- जीवन सदैव परिर्वतनशील है । इस बातका कोई आश्वासन नहीं कि आपके जीवन में प्रत्येक स्थिति स्थायी और अपरिवर्तित रहेगी – जैसे कि आपकी नौकरी, आर्थिक स्थिति, परिवार इत्यादि ।
- आपको ऐसी युक्ति करनी होगी जिससे आप में बुरे समय को झेलने के लिए आंतरिक शक्ति संग्रहित हो सके, क्योंकि हम नहीं जानते जीवन कब क्या मोड ले ले और हमें दुखद स्थिति का सामना करना पडे ।
- एक कहावत है “जब प्यास लगे तब कुआं खोदने में बुद्धिमानी नहीं है । पहले ही कुआं खोदना चाहिए जिससे प्यास लगने पर पानी मिल सके ।”