कोई भी कृत्य करते समय निरंतर नामजप करना कैसे संभव है ?

कई बार हमसे  प्रश्न पूछे जाते हैं, ” क्या प्रत्येक क्षण नामजप हो सकता है ? यदि हम किसी से बात कर रहे हैं अथवा बुद्धि के स्तर पर मग्न हैं क्या तब भी   नामजप करना संभव है ?

इसका उतर  है “हां” ।  इस प्रकार  का नामजप साधना के अगले चरण में होता है, जब नामजप का केंद्र अवचेतन मन में स्थापित हो जाता है  ।  आइए समझ लेते हैं कि निरंतर नामजप करना कैसे संभव हो सकता है ।

साधारणतः, हममें  से प्रत्येक व्यक्ति एक समय में आठ विषयों पर एक साथ अपना ध्यान केंद्रित कर सकता है । हम अपनी पंचज्ञानेंद्रियों के माध्यम से आठ विषय एक साथ अनुभव कर सकते हैं ; जैसे कि  १ – कान, २ – त्वचा, ३ – आंखे, ४ – जीभ और ५ – नाक (इन्हें हम बाह्य ज्ञानेंद्रियों के नाम से जानते हैं), ६ – बाह्यमन, ७ – अंतर्मन और ८ – बुद्धि (अंतिम तीन आंतरिक ज्ञानेद्रियां हैं ।) इन्हें एकत्रित रूप से अष्ट अवधान कहते हैं ।

कृपया निम्न लेख देखें :

आइए इसे एक उदाहरण से विस्तारपूवर्क समझ लेते हैं, जिसमें  एक लडकी  यातायात से भरी सडक पार कर रही है । आइए देखते हैं कि किस प्रकार से उस लडकी के अष्ट अवधान अपना-अपना कार्य एक साथ करते हैं । समझने की दृष्टि से आंतरिक ज्ञानेंद्रियों (मन एवं  बुद्धि ) का चित्रांकन लडकी के सर्व ओर एक वलय के रूप में किया गया है । इस बात का ध्यान रखें कि मन और बुद्धि शारीरिक अवयव अर्थात मस्तिष्क जैसे स्थूल नहीं हैं, सूक्ष्म हैं, अर्थात अनाकलनीय और हमारे सर्व और फैले हुए हैं  ।

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जब वह सडक पार करने का निर्णय लेती है तब उसके मस्तिष्क में सहस्रों संवेदनाएं उसकी पंचज्ञानेंद्रियों द्वारा एकसाथ आती-जाती रहती हैं । एक समय में वह अपने आसपास की यातायात को भी देखती है, गाडियों का कोलाहल सुनती है, सडक से आनेवाली गंध सूंघती है, कोई व्यक्ति धक्का देता है तो उसका भान उसे होता है, मुख में कुछ खा रही है तो उसका स्वाद लेती है । यह सभी एक साथ एक समय में होता है ।

यद्यपि उसकी बाह्य पंचज्ञानेंद्रियां अंतर्गत ज्ञानेंद्रियों द्वारा (जिसे उसके सर्व ओर एक श्वेत रंग के आभावलय द्वारा चित्रांकित किया है) कार्य कर रही हैं; वह सडक पार करने का सोचती है, बुद्धि से इसका निर्णय भी लेती है और इसी के साथ उसके महत्त्वपूर्ण काम के विषय में भी सोचती रहती है ।

जीवन की विभिन्न घटनाओं में हम सभी ने बार-बार इसे अनुभव किया है ।

अब उस स्थिति को समझ लेते हैं, जहां वह लडकी कुछ वर्षों से, ईश्वर के नामजप की साधना कर रही है । इस परिस्थिति में उसके अष्ट अवधानों के साथ-साथ उसका मन नामजप कर रहा है, जिसका उसे भान भी नहीं है ।

निम्नांकित अनुछेदों से हमें यह समझ में आएगा क यह कैसे संभव होता है :

  • प्रत्येक व्यक्ति में यह अष्टावधान होता है । शरीर का प्रत्येक अंग अपना कार्य कर सकता है । इसी प्रकार, कोर्इ महत्वपूर्ण दस्तावेज पढते समय, आंखें और बुद्धि अपना कार्य करते हैं और उसका मन नामजप कर सकता है । बोलते समय भी, यदि हमारा मुख और बुद्धि इस कार्य में मग्न है, तब भी मन नामजप करने के लिए मुक्त होता है ।
  • परंतु, यह तभी होता है जब हमारे अंतर्मन में नामजप का संस्कार स्थापित हो जाता है, और तब नामजप अन्य कृत्य होते हुए भी लगातार चलता रहता है । यह तभी संभव होता है जब साधक का अध्यात्मिक स्तर ५० प्रतिशत से अधिक हो जाता है । इस प्रकार का नामजप शाब्दिक नहीं होता । इस प्रकार नामजप करने से और श्वास पर मन केंद्रित करने से हमें आनंद की अनुभूति होती है । इस अवस्था में बाह्यदृष्टि से देखने पर, व्यक्ति का ध्यान और विचार आध्यात्मिक उन्नति की ओर अधिक और माया से संबंधित विचारों की ओर अल्प रहता है । एक बार इस अवस्था तक पहुंच जाने पर हमारा नामजप नींद में भी अपनेआप होता रहता है । अर्थात वह २४ घंटे चलता रहता है । यहां व्यक्ति नामजप के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं करता है, कई बार तो वह इससे अनभिज्ञ होता है कि उसका नामजप भीतर ही भीतर चल रहा है ।

जब तक हम इस अवस्था तक नहीं पहुंचते, हमें नामजप के लिए निरंतर प्रयास करना पडता है । यहां नामजप तभी होता है जब हम प्रत्यक्ष में नामजप के लिए प्रयास करते हैं । इस स्तर पर व्यक्ति जब बौद्धिक स्तर का कोई कृत्य कर रहा होगा, तो उसका नामजप नहीं होता है, क्योंकि उसका अंतर्मन इतना सक्षम नहीं कि बिना प्रयास के वह निरंतर नामजप कर सके ।