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१. प्रस्तावना (विषयप्रवेश)

स्वास्थ्य एवं स्वच्छता के लिए नियमित स्नान करना आवश्यक है । इसके लिए पूरे विश्व में विविध पद्धतियों का अवलंब किया जाता है । आधुनिक युग की भाग-दौड भरी जीवनशैली में अधिकतर लोगों को पानी के फुहारे के नीचे नहाना समय बचाने वाला और सुविधाजनक विकल्प लगता है । हममें से कुछ लोग स्नानगृह का द्वार बंद कर शांति से नहाते हैं, तो कुछ काम के लिए सिद्ध होने के लिए झट से भीतर जाकर फटफट नहाकर बाहर आते हैं । पानी के फुहारे के नीचे स्नान करने से शरीर और मन शांत होने से उसे एक उपचार के रूप में मान्यता प्राप्त हुई है ।

पानी के फुहारे के नीचे नहाने के आध्यात्मिक स्तर पर होनेवाले प्रभावों संबंधी हमने आध्यात्मिक शोध द्वारा अध्ययन किया ।

२. पृष्ठभूमि

इस लेख को अच्छे से समझने के लिए कृपया निम्न लेख पढें :

धूल रज-तम प्रधान होती है । इसलिए आध्यात्मिक दृष्टि से वह अशुद्ध स्पंदनों को आकर्षित करती है । शरीर पर धूल जमा होने से इन स्पंदनों  का हमारे सर्व ओर आवरण निर्मित होता है । दैनिक जीवन में जिन्हें टालना संभव नहीं होता, ऐसे नकारात्मक विचारों पर भी यही सिद्धांत लागू होता है । परिणामस्वरूप दैनिक जीवन की गतिविधियों द्वारा हममें से अधिकतर लोग ऐसे अनिष्ट स्पंदन अपने चारों ओर इकट्ठा कर लेते हैं ।

सात्त्विक जीवनशैली से हमें यह काली शक्ति का आवरण न्यून करने में बहुत सहायता मिलती है । सात्त्विक जीवनशैली से संबंधित हमारी इस लेखमाला में हमने नींद कैसे लें, क्या पीएं, शुभकामनाएं कैसे दें जैसे दैनिक जीवन के कुछ अंगों पर विवेचन किया है । अच्छी शक्ति प्राप्त करना संभव हो, इस हेतु ये कृत्य कैसे करें, इसका विस्तृत विवरण हमने दिया है ।

इस लेखमाला में हम हमारे आध्यात्मिक शोध द्वारा स्नान करने की पद्धतिसबंधी प्राप्त निरीक्षण प्रस्तुत कर रहे हैं ।

अन्य एक लेख में बाथटब में नहाने के आध्यात्मिक परिणाम पर हमने विस्तृत विवेचन किया है ।

३. पानी के फुहारे के नीचे खडे होकर नहाना – आध्यात्मिक दृष्टिकोण

हममें से कई लोगों को पानी के फुहारे के नीचे नहाना, एक समय बचानेवाली, प्रभावकारी तथा सुखदायी पद्धति लगती है; परंतु आध्यात्मिक शोध करने पर ज्ञात हुआ कि आध्यात्मिक स्तर पर इसके अच्छे तथा अनिष्ट दोनों परिणाम होते हैं ।

पानी के फुहारे के नीचे नहाने के आध्यात्मिक स्तर पर होनेवाले परिणामों को समझने के लिए हमने SSRF की छठी ज्ञानेंद्रिय की प्रगत क्षमता से युक्त साधिका पूज्य श्रीमती योया वाले की सहायता ली । उन्होंने खडे रहकर पानी के फुहारे के नीचे नहाने के कृत्य का अध्ययन किया और सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित निम्न चित्रांकन द्वारा अपने निरीक्षण प्रस्तुत किए ।

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अतिजाग्रत छठवीं ज्ञानेंद्रिय द्वारा प्राप्त फुहारे के नीचे स्नान करने संबंधी प्रमुख निरीक्षण इस प्रकार हैं ।

  • ईश्वरीय शक्ति कार्यरत होकर फुहारे के नीचे स्नान करनेवाले व्यक्ति की ओर प्रक्षेपित होती है । ईश्वरीय शक्ति का कवच व्यक्ति के सर्व ओर निर्मित होता है ।

  • इसी समय, कष्टप्रद शक्ति की तरंगें, वायुमंडल से फुहारे के मुख में आकर्षित होकर, व्यक्ति में संक्रमित होती हैं । तदुपरांत व्यक्ति द्वारा कष्टप्रद शक्ति के कण अवशोषित किए जाते हैं ।

  • अनाहतचक्र और आज्ञाचक्र के सर्व ओर काली शक्ति का वलय निर्मित होता है । आज्ञाचक्र के सर्व ओर मायावी शक्ति भी निर्मित और प्रक्षेपित होती है । फुहारे के नीचे स्नान करते समय निर्माण होने वाली सुखप्रद संवेदनाओं से संबंधित विचारों के कारण ऐसा होता है ।

फुहारे के नीचे खडे रहकर स्नान करने संबंधी अध्यात्म दृष्टिसे कुछ अतिरिक्त निरीक्षण इस प्रकार हैं ।

  • खडे रहने पर निर्मित शक्ति का स्वरूप अधिक सक्रिय अथवा राजसिक होता है । देह का भान भी अधिक होता है और सुख की संवेदनाएं भी अधिक सक्रिय रहती हैं । व्यक्ति के आत्मा के सान्निध्य में रहने में ये बाधाएं निर्माण कर सकती हैं ।

  • फुहारे के नीचे खडे रहकर स्नान करने से, सांसारिक जीवन, दैनिक कर्म, आप्तजन, बच्चों का विद्यालय में समय पर जाना इत्यादि से संबंधित विचारों का प्रवाह निर्मित होता है । ये विचार रज-तमात्मक स्वरूप के होते हैं । इसलिए ये मन को अस्थिर कर व्यक्ति की सात्त्विकता न्यून करते हैं ।

  • फुहारे के नीचे खडे रहकर स्नान करने से स्नान करते समय अवशोषित हुए सभी अच्छे स्पंदन पैरों द्वारा निकल जाते हैं ।

४. फुहारे के स्नान से निर्मित दुष्प्रभावों से कैसे बचें

फुहारे के स्नान से लाभ हो, इसके लिए एक मार्ग है – स्नान से पहले प्रार्थना करना । स्नान से पहले प्रार्थना करने से हमारी क्रियाशील शक्ति न्यून होने के कारण विचार भी न्यून होकर शांति अनुभव होती है । स्नान से पहले की जाने वाली प्रार्थना इस प्रकार हो सकती है : “हे ईश्वर, मेरे शरीर, मन और बुद्धि में स्थित काली शक्ति फुहारे के जल में घुल जाने दीजिए । शुद्ध आपतत्त्व के माध्यम से मेरी भी संपूर्ण शुद्धि होने दीजिए और मुझमें पूरे दिन के लिए सात्त्विकता भर दीजिए ।“

स्नान करते समय हम प्रयत्नपूर्वक भगवान का नामजप कर सकते हैं ।

५. निष्कर्ष

बाथटब की तुलना में फुहारे के नीचे स्नान करना अधिक योग्य होते हुए भी आध्यात्मिक स्तर पर पालथी मारकर स्नान करना सर्वोत्तम पद्धति है । पालथी मारकर स्नान करने के आध्यात्मिक परिणाम संबंधी विस्तृत चर्चा हम इस शृंखला के अन्य लेख में करेंगे ।

यद्यपि स्नान करने का उद्देश्य शरीर की शुद्धि एवं स्वच्छता करना है, तथापि यह कृत्य हमारे द्वारा अंतर्शुद्धि में वृद्धि करने के लिए किए जाने वाले किसी भी प्रकार के प्रयत्नों पर पानी फेर सकता है । स्नान करने की पद्धति में परिवर्तन करने से वायुमंडल की अच्छी शक्ति ग्रहण करने में सहायता होगी, जिससे हमें दिनभर हमारा आध्यात्मिक उत्साह बनाए रखने में सहायता मिलेगी । अच्छी शक्ति ग्रहण करने और दिनभर उत्साह प्रतीत होने के लिए नियमित आध्यात्मिक साधना करना ही एकमात्र उपाय है ।