प्रकट एवं अप्रकट भूतावेश में तुलना

. भूतावेश का प्रकटीकरण प्रस्तावना

कोई व्यक्ति अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच आदि) से पूर्णतः आविष्ट होने पर भी वह व्यक्ति अथवा उसके आसपास के लोग इससे अनभिज्ञ हो सकते हैं । आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति अपने अस्तित्व की पहचान नहीं होने देती, इससे आवेशन को छिपाने का उसका उद्देश्य सफल होता है; क्योंकि आवेशन का पता चलने पर आविष्ट व्यक्ति आवेशित शक्ति से छुटकारा पाने का हर संभव प्रयत्न कर सकता है ।

.१ अप्रकट भूतावेश की परिभाषा

अनिष्ट शक्ति अप्रकट है, ऐसा कहने का अर्थ है कि आविष्ट शक्ति अपने अस्तित्व को प्रकट नहीं होने देती । यहां बाह्यतः व्यक्ति का अस्तित्व दिखाई देता है परंतु अनिष्ट शक्ति अपनी इच्छा से इसे परिवर्तित कर व्यक्ति को नियंत्रित कर सकती है ।

.२ प्रकट भूतावेश की परिभाषा

अनिष्ट शक्ति प्रकट है, ऐसा कहने का अर्थ है कि अनिष्ट शक्ति प्रकट हुई है और उसका अस्तित्व बाह्यतः प्रतीत हो रहा है । यहां व्यक्ति के आचरण में परिवर्तन हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता । इस समय व्यक्ति का अपना अस्तित्व छिप जाता है । क्या हो रहा है, इसका भान व्यक्ति को नहीं रहता अथवा यदि होता भी है, तो उसका अपनी कर्मेंद्रियों पर कोई नियंत्रण नहीं रहता । जिन प्रकरणों में आवेशन व्यक्ति के संपूर्ण जीवनकाल को ही व्याप्त कर लेता है, वहां अनिष्ट शक्ति का व्यक्तित्व व्यक्ति के व्यक्तित्व से इतना घुलमिल जाता है कि शक्ति के पूर्ण प्रकटीकरण के समय भी ऐसा लगता है कि व्यक्ति ही ऐसा आचरण कर रहा है, क्योंकि व्यक्ति के आचरण में कोई अंतर नहीं दिखाई देता ।

टिप्पणी : यहां पर प्रकट एवं अप्रकट शब्दों का प्रयोग व्यक्ति के अनिष्ट शक्ति द्वारा आविष्ट होने के संदर्भ में किया है; तथापि इन शब्दों का प्रयोग अच्छी शक्तियों के संदर्भ में भी किया जा सकता है ।

. भूतावेश प्रकट होने के कारण

.१ अनिष्ट शक्ति का स्वयं ही प्रकट होना

सामान्य नियम यह है कि अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच आदि) कभी भी प्रकट नहीं होना चाहती, जबतक उसकी अपनी इच्छा न हो । वे अपनी इच्छा से तभी प्रकट होती हैं, जब

  • वे रज-तम से भरे सुविधाजनक वातावरण में हों । रज-तमात्मक वातावरण अर्थात, जहां लोग असामाजिक गतिविधियों में लिप्त हों, मद्यपान, मादक पदार्थ, धूम्रपान, वेश्याव्यवसाय, मंद प्रकाश, रज-तमात्मक संगीत इत्यादि । ऐसे वातावरण में लोगों का आचरण सामान्य आचरण से भिन्न रहता है । प्रायः जिसे हम लोगों का अपने बाल खोलना समझते हैं, वह वास्तव में अनिष्ट शक्ति के अस्तित्त्व का आंशिक अथवा पूर्ण प्रकटीकरण होता है । अधिकांश प्रसंगों में आविष्ट व्यक्ति को अनिष्ट शक्ति के प्रकट होने का भान नहीं रहता, क्योंकि वह उसके अस्तित्त्व से एकरूप हो चुका होता है । कभी-कभी जब इस प्रकार के कार्यक्रमों में अनिष्ट शक्ति प्रकट हो जाती है, तब व्यक्ति को समय का भान नहीं रहता अर्थात कितना समय बीत गया, यह याद नहीं रहता, जिसका एक अर्थ है अपना अस्तित्व खो देना अर्थात होनेवाली घटनाओं का भान न रहना । जब वे समय का भान खो देते हैं, तब अनिष्ट शक्ति ही आगे बढकर उनके लिए निर्णय लेती है । ऐसे प्रसंगों में आविष्ट व्यक्ति असुविधाजनक परिस्थितियों में फंस जाता है और वह इस बात से अनभिज्ञ रहता है कि यहां कैसे पहुंचा ।
  • अधिकांश प्रसंगों में अनिष्ट शक्ति भयभीत करने अथवा झगडे उत्पन्न कर पारिवारिक जीवन बिगाडने के लिए प्रकट हो जाती है । उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियां जब आविष्ट व्यक्ति द्वारा कोई भयंकर विध्वंस कराना चाहती हैं, तब भी वे प्रकट होती हैं ।
  • कभी-कभी वे जानबूझकर अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने, भयभीत करने अथवा आविष्ट व्यक्ति अथवा आसपास के साधकों की साधना में बाधा लाने के लिए प्रकट होकर उन्हें साधना से दूर करने का अथवा भयभीत करने का प्रयास करती हैं उदा. सत्संग के समय ।

जिस समय वे अपनी इच्छानुसार प्रकट होती हैं,उस समय जबतक वे न चाहे यह प्रकटीकरण किसी के ध्यान में नहीं आता ।

२.२ बलपूर्वक निकाले जाने पर अनिष्ट शक्ति का प्रकट हो जाना

कभी-कभी व्यक्ति को आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति को प्रकट होकर अपना अस्तित्व सामने लाने के लिए विवश किया जाता है । इस प्रकार के प्रकटीकरण के निम्नलिखित कारण हैं :

  • अनिष्ट व्यक्ति पर अतिरिक्त सात्त्विकता का प्रभाव डाला जाता है -उदा. आध्यात्मिक उपचारों का सत्र
  • अनिष्ट शक्ति का आध्यात्मिक बल घट जाना ।
  • अनिष्ट शक्ति और आविष्ट व्यक्ति में लेन-देन समाप्त होने के कारण अनिष्ट शक्ति का व्यक्ति को छोडने का समय आ जाना ।
  • अनिष्ट शक्ति के नष्ट होने का समय आना ।

.२.१ किसी उच्च स्तर की सात्त्विकता के संपर्क में आने पर आविष्ट व्यक्ति प्रकट क्यों होता है ?

आविष्ट व्यक्ति में विद्यमान अनिष्ट शक्ति जब किसी सात्विक वस्तु अथवा व्यक्ति के ( उदा. आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत व्यक्ति (संत), पवित्र समाधि/ तीर्थस्थल अथवा पवित्र जल के सान्निध्य में आती है, उसे असुविधाजनक और कष्टप्रद लगने लगता है; क्योंकि सात्त्विकता का प्रभाव उसके रज-तम स्वभाव से विरूद्ध होता है । उसकी शक्ति खिंच जाती है । यह बर्फ पर अग्नि के प्रभाव के समान है । यदि सात्त्विक प्रभाव का आध्यात्मिक सामर्थ्य अनिष्ट शक्ति के सामर्थ्य से अधिक हो, तो अनिष्ट शक्ति प्रकट होने को विवश होती है, अन्यथा वह प्रकट हुए बिना इसे सह पाती है ।

सत्त्व, रज और तम – तीन सूक्ष्म मूलभूत घटक, इस लेख का संदर्भ लें ।

अतः अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच आदि) सात्त्विक स्थान तथा व्यक्तियों से निम्नलिखित प्रकारों से दूर रहनेका प्रयत्न करती है :

  • आविष्ट व्यक्ति के मन में किसी भी सात्त्विक स्थान से उदा. सत्संग से दूर रहने के विचार डालना
  • जब व्यक्ति किसी सात्त्विक वातावरण में हो, तब उसकी देह और उस स्थान से चले जाना अथवा
  • सात्विकता से दूर रहने के लिए व्यक्ति के स्थूलदेह, मनोदेह अथवा कारणदेह के सर्व ओर काली शक्ति का मोटा आवरण बनाकर उसमें छिप जाना । यहां अनिष्ट शक्ति ध्यानावस्था में जाकर अतिरिक्त आध्यात्मिक शक्ति अर्जित करती है ।

जिस अनिष्ट शक्ति की आध्यात्मिक क्षमता अधिक होती है, वह शायद ही कभी प्रकट होती है । जब तक इससे उसका उद्देश्य साध्य नहीं होता अथवा यह ध्येय साध्य करने हेतु अनिवार्य नहीं हो जाता, वह सामने आए बिना सात्त्विक वातावरण अथवा उद्दीपकों (stimulator) का सामना कर पाती है ।

.३ भूतावेश के भयप्रद प्रकटीकरण के संदर्भ में टिप्पणी

अनिष्ट शक्ति के अस्तित्व का पूर्णरूप से प्रकट होना, अर्थात संपूर्ण प्रकटीकरण । आविष्ट व्यक्ति के आचरण में आमूलाग्र परिर्वतन होने से (नीचे चित्र देखें) दर्शक के लिए यह अत्यंत भयप्रद हो सकता है । कभी-कभी व्यक्ति अति-मानवीय क्षमता (शक्ति) दिखाता है । ऐसा पाया गया है कि किसी दुर्बल स्त्री के प्रकट हो जाने पर उसे संभालने के लिए छः लोगोंतक की आवश्यकता पडती है । परंतु यह पूर्ण प्रकटीकरण अस्थायी होता है ।

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पूर्ण प्रकटीकरण भूतावेश के स्तर को नहीं दर्शाता; इसका अर्थ केवल यह है कि उपर्युक्त विभिन्न कारणों से अनिष्ट शक्ति का अस्तित्व प्रकट हो रहा है । अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) अधिकतर अपने अस्तित्व को प्रकट करना नहीं चाहती । इसका कारण यह है कि प्रकटीकरण से उनकी अधिकांश आध्यात्मिक शक्ति व्यय होती है और आसपास के लोगों को उसके द्वारा किए आवेशन का पता चल जाता है । परिणामस्वरूप आविष्ट व्यक्ति को आध्यात्मिक उपायों के लिए अथवा ओझा के पास लाया जाता है । इस परिप्रेक्ष्य से अनिष्ट शक्ति का प्रकट होना हमारे लिए लाभकारी है ।

टिप्पणी : उपर्युक्त चित्र के चारों ओर सुरक्षा रेखा क्यों है ? इस लेख का भी संदर्भ लें ।

.४ भूतावेश का सर्वाधिक भयंकर पहलू

किसी को भी ऐसा लग सकता है कि किसी आविष्ट व्यक्ति को उपर्युक्त चित्रानुसार पूर्ण प्रकटीकरण के समय देखना ही सर्वाधिक भयंकर बात है । ‘The Exorcism of Emily Rose’ जैसा चलचित्र देखते समय भय के कारण हम कुरसी के किनारे में आ बैठते हैं; परंतु सत्य तो यह है कि आध्यात्मिक उपायों के समय जब पूर्ण प्रकटीकरण होता है, तब अनिष्ट शक्ति वास्तव में अत्यंत दुर्बल हो चुकी होती है ।

वास्तव में भय तब होता है, जब अनिष्ट शक्ति व्यक्ति को चुपके से अपने नियंत्रण में करती है और व्यक्ति इससे पूर्णतः अनभिज्ञ रहता है । वह उस व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार आचरण करने पर विवश करती है । व्यक्ति के आविष्ट हो जाने पर भी, सामान्यतः उसके आचरण में कोई नाटकीय अथवा विभाजक परिवर्तन दिखाई नहीं देता ।

व्यसनाधीनता, इसी प्रकार के कपटपूर्ण आवेशन का एक उदाहरण है । धूम्रपान अथवा मद्यपान को समाज एक मानसिक समस्या मानता है, जबकि प्रत्यक्ष में वह आवेशन होता है । कभी-कभी नियंत्रित करनेवाली अनिष्ट शक्ति के कारण व्यक्ति के आचरण में गंभीर परिवर्तन दिखाई देते हैं । वे व्यक्ति के व्यक्तित्व से पूर्णतः विरूद्ध आचरण उससे करवा लेती हैं, उदा.स्वभाव से सज्जन स्त्री विचित्र आचरण करने लगती है ।

. प्रकटीकरण के प्रकार

प्रकटीकरण विभिन्न प्रकार से हो सकता है, उदा.

  • हिंसक प्रकटीकरण : ऐसे प्रकटीकरणों में अनिष्ट शक्ति का अस्तित्व प्रकट होकर वह व्यक्ति के व्यक्तित्व अथवा परिस्थिति के विरूद्ध हिंसक आचारण करने लगती है । कभी-कभी व्यक्ति में अतिमानवीय (super human) सामर्थ्य के भी दर्शन होते हैं । कुछ प्रसंगों में हमने देखा है कि जो लोग अत्यंत दुर्बल हैं, उन्हें संभालने के लिए अनेक लोगों की आवश्यकता पडती है ।

देखें, लघुपट – भूतावेश का हिंसक प्रकटीकरण

  • अस्वाभाविक आचरण : कभी-कभी आविष्ट व्यक्ति का आचरण प्रकटीकरण के उपरांत देखने में तो सामान्य लगता है, परंतु वह उस व्यक्ति अथवा प्रसंग के लिए अस्वाभाविक होता है । ऐसे प्रकटीकरण का एक उदाहरण इस प्रकार है, जब कुछ आविष्ट साधकों पर SSRF के मुख्य आश्रम में आध्यात्मिक उपाय किए गए, तब लोकप्रिय धुन सुनकर वे डिस्कोथेक में होने की भांति नृत्य करने लगते हैं । अब आश्रम में ज्येष्ठ साधकों के समक्ष इस प्रकार नृत्य करना उनके लिए अत्यंत अस्वाभाविक है ।
  • विचित्र भाषा में अथवा निरर्थक बडबडाना : कुछ आविष्ट व्यक्ति प्रत्येक बार प्रकट होने पर सदैव किसी विशिष्ट भाषा में बात करते हैं, यह भाषा उनके लिए नई होती है अथवा वे विशिष्ट प्रकार की निरर्थक बडबड करते हैं, जिससे वे स्वयं अनभिज्ञ रहते हैं ।

देखें, लघुपट – भूतावेश के कारण विचित्र भाषा में बातें करना

  • शांत प्रकटीकरण : आवेशन के अधिकांश प्रसंगों में अनिष्ट शक्ति के प्रकट होने का पता ही नहीं चलता है । शांत प्रकटीकरण चुपके से होता है, क्योंकि आपके पास में बैठा व्यक्ति पूर्णतया प्रकट हो, तब भी आपको इसका अंशमात्र भी पता नहीं चलता; क्योंकि इसके लिए प्रगत छठवी इंद्रिय और ऐसी घटना के होने की संभावना का ज्ञान होना चाहिए ।

देखें, लघुपट – भूतावेश का शांत प्रकटीकरण

  • असामान्य कौशल दिखाना : अनिष्ट शक्ति प्रकट होकर विविध प्रकार के कौशल दिखाती है,  उदा. संगीत, नृत्य, विचित्र भाषा में बातें करना इत्यादि । जिसे करने में आवेशित व्यक्ति सक्षम नहीं होता । वास्तव में कुछ विख्यात कलाकार भी ऐसे आवेशन के उदाहरण हैं । इन कलाकारों के माध्यम से आविष्ट शक्तियां प्रसिद्धि प्राप्त करने की अपनी इच्छा पूर्ण करना चाहती हैं । आविष्ट कलाकारों में विद्यमान कौशल को बढाकर ये अपना उद्देश्य साध्य करती हैं । आविष्ट अनिष्ट शक्ति कालाकार के व्यक्तित्व से अत्यंत एकरूप हो जाती है और अपनी प्रसिद्धि प्राप्त करने की इच्छा पूर्ण करती है ।
  • अतींद्रिय शक्तियां : अनिष्ट शक्तियां अतींद्रियदर्शी को अनभिज्ञ रख उसके माध्यम से भी प्रकट हो सकती हैं और लोगों को भविष्य के बारे में मार्गदर्शन कर सकती हैं । यहां ऐसा प्रतीत होता है कि अतींद्रियदर्शी की क्षमता बढ गई है, परंतु वास्तव में यह उच्च स्तर की अनिष्ट शक्ति के कारण होता है । मार्गदर्शन के लिए आनेवाले व्यक्ति को इस बात का भान नहीं होता कि प्रत्यक्ष में वह अनिष्ट शक्ति से बात कर रहा है । सामान्यतया अनिष्ट शक्ति द्वारा बताया भविष्य उचित निकलता है । आरंभ में लोगों को अतींद्रियदर्शी की ओर आकृष्ट करने के लिए अनिष्ट शक्तियां ऐसा करती हैं; परंतु आगे उसका उपयोग कर उसके माध्यम से लोगों को भटकाती हैं ।
  • अन्य : कुछ आविष्ट व्यक्ति, प्रकट होने पर अत्यधिक यातना एवं वेदना में होने समान चित्र-विचित्र हावभाव करते हैं, जबकि कुछ सांप जैसी गतिविधियां करती हैं ।

देखें, लघुपट –भूतावेश के कारण विचित्र हावभाव

. मानसिक स्वास्थ्य संबंधी व्यावसायियों के लिए टिप्पणी

ऐसे प्रकटीकरणों के मूल में आध्यात्मिक कारण होने से, आध्यात्मिक स्तर पर उपचार करने की आवश्यकता होती है । वैज्ञानिक दृष्टि से प्रमाणित, प्रगत और प्रस्थापित आध्यात्मिक निदान करने की और उपचार करने की सुविधा न होने से ऐसे प्रकटीकरण के रूग्ण मनोवैज्ञानिक व्यावसायियों के पास चले जाते हैं । अनिष्ट शक्तियों के प्रकटीकरण के इन लक्षणों की ओर मनोवैज्ञानिक व्यवसायी परंपरागत मनावैज्ञानिक दृष्टि से ही देखते हैं । वे इसे हिस्टेरिया अथवा मनोविच्छेद अथवा अन्य मनोवैज्ञानिक रोग समझकर देखते हैं । यह इसलिए होता है कि ऐसी घटनाओं के मूल कारणों को समझने तथा उन पर उपचार करते समय वे आध्यात्मिक आयाम की उपेक्षा करते हैं । हमारे मनोविशेषज्ञ इस प्रकार की सहस्त्रों घटनाओं का पिछले ७ वर्षों से अध्ययन कर रहे हैं । उनके अनुसार ये कोई मनावैज्ञानिक घटनाएं नहीं हैं क्योंकि :

  • ऐसे प्रकटीकरणों में तनाव उत्पन्न करनेवाला कोई विशिष्ट कारण नहीं पाया जाता
  • ऐसे प्रकटीकरण आध्यात्मिक उपचारों द्वारा ठीक हो जाते हैं

तथापि आध्यात्मिक उपचारों के प्रकार तथा आविष्ट अनिष्ट शक्ति की क्षमता पर इन लक्षणों को ठीक होने में कितना समय लगेगा, यह निर्भर करता है । आविष्ट हुए व्यक्ति द्वारा की गई साधना भी इन आध्यात्मिक उपचारों में समाहित है । ऐसे प्रकरणों में प्रकट व्यक्ति यदि हिंसक हो रहा हो अथवा उसका आचरण स्वयं उसे अथवा दूसरों के लिए हानिप्रद हो, तो उसे तत्काल चिकित्सकीय उपचारों की आवश्यकता पड सकती है । अपनेआप को अथवा दूसरों को हानि न पहुंचे, इसलिए उसे शारीरिक स्तर पर प्रतिबंधित करना पडता है ।

अब, कोई ऐसा विचार कर सकता है कि अनिष्ट शक्ति का कथित प्रकटीकरण औषधियों से कैसे ठीक होगा ?

प्रकटीकरण से यह स्पष्ट होता है कि आध्यात्मिक समस्या के कारण व्यक्ति शारीरिक अथवा मानसिक स्तर पर प्रभावित है । इसलिए इन स्तरों पर उपचार करना भी आवश्यक है । परंतु उपचार को केवल शारीरिक और मानसिक आयामों तक ही सीमित रखने से मूल कारण की अनदेखी होती है । ऐसा करने से लक्षण केवल कुछ समय के लिए दब जाते हैं । मनोरोगियों के स्वस्थ होने की अल्प दर को देखते हुए यह अधिक स्पष्ट है ।

अभी तथाकथित मनोरोगों के विषय में कोई भी निष्कर्ष निकालना शेष है । मनोविज्ञान अभी विकासशील अवस्था में है और इसलिए व्यापक दृष्टि से विचार करना ही श्रेष्ठ होगा ।