ईंधन के रूप में प्रयुक्त किये जानेवाले तेल तथा मोम पर आध्यात्मिक दृष्टिकोण

१. तेल का दीपक अथवा मोमबत्ती – कौन सा श्रेष्ठतर है ?

ज्योति से वातावरण में उत्सर्जित स्पंदनों की भिन्नता एवं वातावरण की आध्यात्मिक शुद्धता पर इसका प्रभाव, ज्योति को प्रकाशित करने के लिए प्रयुक्त ईंधन पर निर्भर है । ज्योति से उत्सर्जित स्पंदनों का, लौ को बनाए रखने के लिए प्रयुक्त ईंधन के आध्यात्मिक सूक्ष्म मूलभूत घटकों से निकट संबंध होता है । कृपया संदर्भ हेतु ब्रह्मांड के तीन सूक्ष्म घटकों – सत्त्व, रज एवं तम से सम्बंधित लेख पढें ।

नीचे दी गई सारणी में, हमने घर और हमारे परिवेश में प्रकाश हेतु प्रयोग किये जानेवाले तेल और मोम के कुछ प्रचलित प्रकारों को दर्शाया है ।

र्इंधन वातावरण में उत्सर्जित प्रमुख सूक्ष्म स्पंदन
घी (केवल भारतीय गाय के दूध से निर्मित) सत्त्व
तिल का तेल सत्त्व-रज
नारियल का तेल रज- सत्त्व
सूर्यमुखी का तेल रज-सत्त्व
मूंगफली का तेल रज-तम
अलसी का तेल रज-तम
जैतून का तेल रज-तम
सरसों का तेल तम-रज
मधुमोम तम
पेराफीन मोमबत्ती तम
मिट्टी का तेल (केरोसीन) तम

ध्यान दें हमने तेल के विविध प्रकारों को रज-तम अथवा सत्त्व-रज में वर्गीकृत किया है और उनमें से प्रत्येक में सत्त्व, रज तथा तम की मात्रा भिन्न है । प्रयुक्त र्इंधन के आधार पर ज्योति से प्रक्षेपित होनेवाले आध्यात्मिक स्पंदनों को समझने के लिए उपरोक्त सारणी मात्र एक सामान्य दिशानिर्देश है ।

२. मधुमक्खी की मोम को तामसिक माना गया है और मधु (शहद) को सात्त्विक जबकि दोनों मधुमक्खी से ही प्राप्त होते हैं ?

मधुमक्खियां तमप्रधान होती हैं । मधु-मोम कार्यकर्ता मक्खियों द्वारा बनाया जाता है जो उनके उदर में स्थित ग्रंथियों से स्रावित होता है । चूंकि मोम मधुमक्खियों से आता है, तदनुसार यह भी तामसिक है ।

दूसरी ओर, मधु के लिए आवश्यक आधार-सामग्री को फूलों के रस से प्राप्त किया जाता है जो सात्विक है । मधुमक्खियां अपने लंबे, नली जैसी स्ट्रॉ समान जीभ का प्रयोग कर फूलों से रस चूसती हैं और उसे अपने ‘‘मधु उदर’’ में संग्रहित करती हैं । मधुमक्खियों के वास्तव में दो उदर होते हैं, एक मधु उदर जिसका उपयोग वे फूलों के रस की थैली के रूप में करती हैं और दूसरा उनका सामान्य उदर । जब मधुमक्खी अपने छत्ते में लौटती है, वह फूलों के रस को थैली से पुनः मुंह में लाकर दूसरी मधुमक्खी के मुंह में डालती है । रस उगलने और निगलने की यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि आंशिक रूप से पचा हुआ रस अंततोगत्वा अंतिम मधु-उत्पाद (शहद) बनने हेतु आगे के वाष्पीकरण (गाढा होने की प्रक्रिया) के लिए छत्ते में एकत्रित नहीं हो जाता ।

इससे हम समझ सकते हैं कि भारतीय गाय के सात्त्विक होने के कारण, भारतीय गाय के दूध से बना घी भी सात्त्विक होता है । इसके विपरीत मोम तामसिक होता है क्योंकि मोम को बनानेवाला मूल पदार्थ एक तमप्रधान कीट से प्राप्त होता है ।