सकाम एवं निष्काम प्रार्थना में क्या अंतर है ?

उद्देश्य के आधार पर, प्रार्थना दो प्रकार की होती है ।

१. सांसारिक इच्छा पूर्ति हेतु प्रार्थना

यह प्रार्थना का सर्वाधिक प्रचलित प्रकार है । इस प्रकार की प्रार्थना किसी सांसारिक इच्छा-पूर्ति के उद्देश्य से की जाती है । इसके साथ किसी प्रकार की साधना का होना आवश्यक नहीं है ।

सांसारिक इच्छा पूर्ति हेतु की गई प्रार्थना में निम्नलिखित विषयों के लिए प्रार्थना की जाती है –

  • स्थूल सांसारिक आवश्यकताएं, जैसे नौकरी, जीवनसाथी अथवा संतान आदि ~
  • सूक्ष्म सांसारिक आवश्यकताएं जैसे, व्याधि से मुक्ति, सुख प्राप्ति आदि ।

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सामान्यतः आध्यात्मिक यात्रा (साधना)के प्रारंभिक चरण में ही व्यक्ति सांसारिक लाभ हेतु प्रार्थना करते हैं । वे लोग जिनकी प्रार्थनाएं निरंतर सुनी जाती हैं, वे भी आध्यात्मिक यात्रा की प्रारंभिक अवस्था में ही होते हैं; क्योंकि आध्यात्मिक उन्नति के अगले चरण में व्यक्ति मात्र स्वयं की आध्यात्मिक प्रगति हेतु प्रार्थना करता है, जैसा कि अगले अनुच्छेद में स्पष्ट किया गया है ।

जब हम स्वयं अथवा अन्यों के सांसारिक लाभ हेतु प्रार्थना करते हैं, तो हमारी प्रार्थनाएं स्वीकार तो हो सकती हैं, परंतु इससे साधना द्वारा अर्जित हमारी आध्यात्मिक ऊर्जा का अपव्यय होता है, जो पूर्वजन्म अथवा इस जन्म की हो सकती है ।

कुछ व्यक्ति आजीवन प्रार्थना का उपयोग अपनी साधना के माध्यम से निरंतर ईश्वर की अनुकंपा प्राप्त करने की अपेक्षा मात्र सांसारिक लाभ प्राप्ति के साधन के रूप में करते हैं । ऐसी प्रार्थना से सर्वाधिक हानि यह होती है कि वे सांसारिक कामनाओं  एवं इच्छाओं  के मोहपाश में बंध जाते हैं और ईश्वर की इच्छा के समक्ष समर्पण तथा ईश्वर पर यह श्रद्धा रखना कि हमारी आवश्यकताओं के अनुसार (न कि हमारी इच्छाओं  के अनुसार) वे हमें देने ही वाले हैं, इस चिंतन की ओर नहीं बढ पाते ।

२. सांसारिक अपेक्षा रहित प्रार्थना (आध्यात्मिक प्रगति हेतु)

इस प्रकार की प्रार्थना वे साधक करते हैं, जिनमें अपनी आध्यात्मिक यात्रा (साधना)के प्रति गंभीरता हो । ऐसी प्रार्थना में ईश्वर के प्रति एक निवेदन निहित रहता है;परंतु इसमें भी सांसारिक अपेक्षा होती है । यह अपेक्षा भली प्रकार से साधना कर आध्यात्मिक प्रगति हेतु सामर्थ्य प्राप्ति की होती है । साधक साधना की बाधाओं  के दूर होने एवं अहं निर्मूलन हेतु भी प्रार्थना करते हैं ।

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जो साधक निरपेक्ष अर्थात बिना किसी सांसारिक कामना के प्रार्थना करते हैं, उन्हें दोगुना लाभ होता है । एक तो उनकी आध्यात्मिक उन्नति होती है, दूसरी कि उनकी सांसारिक आवश्यकताओं  की भी पूर्ति होती है । क्योंकि यहां सापेक्ष (अपेक्षा सहित) प्रार्थना करनेवाले की अपेक्षा निरपेक्ष प्रार्थी का समर्पण भाव अधिक होने से उसे ईश्‍वरीय कृपा अपेक्षाकृत अधिक प्राप्त होती है । साथ ही इस समर्पण भाव के कारण उसके मन, बुद्धि एवं अहं के लय होने में भी सहायता होती है । ये दोनों घटक शीघ्र आध्यात्मिक प्रगति में सहायक होते हैं ।

३. दोनों प्रकार की प्रार्थनाओं में तुलना

सकाम प्रार्थना

निष्काम प्रार्थना (आध्यात्मिक प्रगति हेतु)

प्रार्थना स्वीकार हो सकती है, यदि प्रारब्ध प्रतिकूल ना हो । प्रार्थना की गंभीरता एवं व्यक्ति के आध्यात्मिक स्तरानुसार प्रार्थना सदैव स्वीकार होती है ।
आध्यात्मिक ऊर्जा व्यय होती है । आध्यात्मिक ऊर्जा व्यय नहीं होती ।
आध्यात्मिक प्रगति नहीं होती । आध्यात्मिक प्रगति होती है तथा   ईश्वर की इच्छानुसार सांसारिक आवश्यकताओं  की पूर्ति होती है ।

४. साधक की आध्यात्मिक प्रगतिके अनुसार प्रार्थना कैसे परिवर्तित होती है

जीवन का पक्ष

सकाम

निष्काम (आध्यात्मिक प्रगति हेतु)

नौकरी हे ईश्वर, मैंने अभी नौकरी हेतु साक्षात्कार दिया है, कृपया मुझे नौकरी प्रदान करें, मुझे इसकी तीव्र आवश्यकता है | हे ईश्वर, मैंने अभी नौकरीसाक्षात्कार दिया है, परिणाम आपके चरणों में अर्पित है । कृपया मुझे आपकी इच्छानुसार परिणाम को स्वीकार करने की शक्ति दें ।
जीवनसाथी की प्राप्ति हे ईश्वर, मैं इस व्यक्ति को प्रेम करता हूं । कृपया इसे भी मुझे उतना ही प्रेम करने को प्रेरित करें । ईश्वर, यह व्यक्ति मेरे लिए उचित है अथवा नहीं यह मात्र आप ही जानते हैं । मुझे जीवनसाथी मिलेगा अथवा नहीं, यह मेरा प्रारब्ध है । परंतु दोनों परिस्थिति में मेरी साधना का संवर्धन करें ।
रोग हे ईश्वर, मैं इस रोग को सहन नहीं कर सकता, कृपया मुझे रोग मुक्त करें । हे ईश्वर, कृपया मुझे इस व्याधि को सहन करने की शक्ति प्रदान करें जिससे यह मेरी साधना को अवरुद्ध न कर पाए ।
संतान का रोग हे ईश्वर, कृपया मेरे बच्चे को बचा लें, इसके लिए मैं कुछ भी करूंगा । यदि आप उसे बचा लेंगें, तो अगले वेतन का आधा भाग मैं किसी अनाथालय को अर्पण कर दूंगा । हे ईश्वर, मेरी संतान गंभीर रूप से बीमार है, जो हम कर सकते हैं, हमने किया;किंतु मुझे ज्ञात है, मेरी अपेक्षा आप उसे अधिक प्यार करते हैं । मैं उसे आपके चरणों में अर्पित करता हूं ।
जीवन का दुखद भाग हे ईश्वर, यह मेरे जीवन का सबसे दुखद समय है, कृपया इससे मेरी रक्षा करें । हे ईश्वर, मुझे इस दुख को सहन करने की शक्ति दें तथा इससे मुझे आध्यात्मिक स्तर पर जो सीखना है, वह आप ही मुझे सिखाएं । कृपया मेरी अखंड साधना होने दें ।
जीवन का सुखद भाग सामान्यतया अभाव हे ईश्वर, ऐसी कृपा करें कि आपके द्वारा प्रदत्त इस सुख की घडी में मुझे निरंतर आपका स्मरण रहे । दुख में भी आपके लिए मेरी तडप बनी रहे ।
साधना सामान्यतया अभाव हे ईश्वर, साधना हेतु एक और दिन देने के लिए मैं आपके चरणों में कृतज्ञ हूं, कृपया मुझे आपकी इच्छानुसार आपकी सेवा करने दें एवं साधना और अच्छे से कर सकूं, इसके लिए आप ही मेरी क्षमता बढाएं ।

५. सकाम (अपेक्षा सहित) तथा निष्काम (अपेक्षा रहित) प्रार्थना के संदर्भ में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा किया गया मार्गदर्शन

१. सामान्य व्यक्ति : सामान्य व्यक्ति ईश्वर से सांसारिक इच्छा पूर्ति हेतु प्रार्थना करता है । वह यह नहीं जानता कि भक्ति न हो तो वह प्रार्थना भी करे तब भी ईश्वर उसे कुछ भी नहीं देंगे । व्यक्ति द्वारा अनेक बार प्रार्थना किए जाने पर भी जब उसे कुछ प्राप्त नहीं होता तब ईश्वर के प्रति उसकी श्रद्धा घट जाती है ।

२. भक्तियोगानुसार साधना करने वाले साधक : भक्तियोगानुसार साधना करने वाले साधकों को छोड अन्य मार्ग जैसे कर्मयोग , ज्ञानयोग, इत्यादि के माध्यम से साधना करनेवाले साधक प्रायः प्रार्थना नहीं करते ।

अ. वह यह नहीं समझता कि जब तक सच्ची भक्ति तथा भाव के साथ प्रार्थना नहीं होगी तब तक ईश्वर इच्छा पूर्ति नहीं करेंगे ।

आ. वह यह नहीं समझता कि सब कुछ ईश्वर की इच्छा से हो रहा है तथा स्वेच्छा से कुछ भी मांगना निरर्थक है । वास्तव में साधना स्वेच्छा को नष्ट करने हेतु ही की जाती है ।

इ. चूंकि अधिकतर लोग यह नहीं जानते कि क्या मांगना है तथा वे जो मांग रहे हैं यदि वह साधना के अनुरूप नहीं है तो ईश्वर वह प्रदान नहीं करते ।

ई. प्रार्थना का सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि इससे हमारा अहं कम होने में सहायता मिलती है ।

उ. यदि हमें ईश्वर से प्रार्थना करनी है तो आगे बताई गई प्रार्थना योग्य होगी – ‘मेरी साधना होने में सहायता कीजिए।’

ऊ. साधना में प्रगति होने के उपरांत साधक ईश्वर से कुछ भी नहीं मांगता । क्योंकि वह यह जानता है कि जो वस्तु उसके लिए आवश्यक है, उसे योग्य समय आने पर ईश्वर उसे दे देंगे ।’

परात्पर गुरु डॉ. आठवले

६. सारांश

सारांश यह है कि प्रार्थना करते समय एक अनिवार्य नियम की भांति निम्न सूत्रों का ध्यान रखना चाहिए –

  • यदि प्रार्थना, पंच ज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के संवर्धन हेतु की गई है, तो वह प्रार्थना सकाम अर्थात सांसारिक कामनाओं के लिए है ।
  • यदि प्रार्थना आत्मा (अंतर में विद्यमान ईश्वर) को अनुभूत करने के प्रयास हेतु है, तो प्रार्थना निष्काम है ।