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१. निद्राभ्रमण की प्रस्तावना

निद्राभ्रमण या निद्राचार, निद्रा रोग से संबंधित एक अभिक्रिया है । इस रोग से ग्रस्त रोगी निद्रावस्था में ऐसी गतिविधियों को करने लगता है, जैसी सामान्यतया जागृतावस्था में स्वस्थ व्यक्ति करता है । (सन्दर्भ : Wikipedia.org)

निद्राभ्रमण करने वाले अनेकों प्रकार के व्यवहार व कार्य करते दिखाई देते हैं, जैसे – घर की साफ-सफाई करना, विद्युत संच शुरू-बंद करना, घर अथवा बाहर टहलना, वस्तुएं फेंकना, सहयोगियों या सहकारियों पर आघात करना, चीखना-चिल्लाना, ऐसे बोलना जैसे किसी से वार्तालाप कर रहे हों आदि । ऐसे रोगी जो इस रोग की चरम सीमा पर होते हैं, वे अजनबी व्यक्ति के साथ यौन संबंध भी स्थापित कर सकते हैं तथा ऐसी अवस्था में वे किसी की हत्या भी कर सकते हैं । ( सन्दर्भ : newscientist.com)

निद्राभ्रमण करने वालों की आँखों में एक अजीब चमक होती है, और ऐसी मान्यता है कि,

निद्राभ्रमण करते हुए व्यक्ति को कभी जगाना नहीं चाहिए । इस लेख के अगले भाग में हम, ऐसी अवस्था में क्या करना चाहिए, इसका उल्लेख करेंगे ।

निद्राभमण पर किये गये शोध से ज्ञात होता है कि, जनसँख्या के लगभग १८ प्रतिशत लोग निद्राभ्रमण रोग से ग्रस्त हैं. (सन्दर्भ : BBC.co.uk)

२. निद्राभ्रमण के कारण

निद्राभ्रमण के कारणों पर सर्वसम्मति नहीं बन पाई है । आधुनिक विज्ञान की दृष्टि में इस समस्या के मूल में, आतुरता, थकान, तनाव, त्रस्तता एवं निद्रालोप आदि जैसे कुछ कारण हैं । निद्राभ्रमण के निदान एवं चिकित्सा के लिए कोई अनुभूत उपचार नहीं हैं, यद्यपि निद्राभ्रमण की कोई ज्ञात चिकित्सा नहीं है, तदापि मानसोपचारिक औषधियों तथा सम्मोहन की प्रायोगिक पद्धति द्वारा सफलता से, कम समय में इसका उपचार शीघ्र ही किया जा सकता है । (सन्दर्भ : BBC.co.uk)

आध्यात्मिक विज्ञान अनुसंधान संस्थान के तत्त्वाधान में किये गये कार्य से आध्यात्मिक अनुसंधान द्वारा निद्राभ्रमण के अधोलिखित मूल कारणों से संबंधित निष्कर्ष प्राप्त हुए हैं।

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  • उपरोक्त दर्शाये गए चित्र से यह विदित होता है कि, आध्यात्मिक घटक ही निद्राभ्रमण के मूल कारण हैं । आज तक आधुनिक विज्ञान निद्राभ्रमण का उपचार क्यों नहीं कर सका, इसका यही मूल कारण है ।
  • आध्यात्मिक घटक, प्रधानत:, दिवंगत पूर्वजों एवं सामान्य भूतात्माओं द्वारा कृत चालाकी के अर्थात मानव को छोटी छोटी शैतानियां करने के लिए बाध्य करने के कारण होते हैं । संदर्भ : हमारे पूर्वज हमें कष्ट क्यों देना चाहेंगे ?
  • अधिक विस्तृत कृतियां जैसे; निद्राभ्रमण के समय अजनबियों के साथ यौनाचार एवं विभत्स हत्याकांड आदि योजना बद्ध पद्धति से उच्चस्तर के भूतात्माओं जैसे मांत्रिकों द्वारा करवाये जाते हैं । अध्यात्म विज्ञान के अनुसार यद्यपि कोई कृति किसी व्यक्ति के द्वारा उसपर किसी भूतात्मा के प्रभाव के कारण की गई हो, तदापि उसे कर्मफलन्यासानुसार आध्यात्मिक दंड भोगना ही होता है । आध्यात्मिक दंड विधानानुसार संचित प्रारब्ध का फल उस व्यक्ति को इसी जन्म में अथवा अगले जन्म में भोगना होता है। ऐसा होने पर भी, संचित प्रारब्ध उस स्थिति से कम होता है, यदि उस व्यक्ति ने अपनी जागृत अथवा सज्ञान अवस्था में किसी की हत्या की हो । यदि निद्राभ्रमण का कारण मनोवैज्ञानिक न होकर आध्यात्मिक है तो, संचित प्रातब्ध और भी कम होता है । अधोप्रस्तुत चित्र से यह बात और भी स्पष्ट होगी ।

HIN_Sleepwalking-and-murderहमें ऐसे अपराध अथवा अयोग्य कृति के लिए क्यों दंडित होना पडता है, जिसे भूतात्मा ने हमें माध्यम बनाकर किया हो ? इसका कारण है; भूतात्मा हमारी अतिसंवेदनशीलता के कारण, हमारे अंतर में प्रवेश कर हमारा आधिपत्य प्राप्त कर लेता है । ये छेद्यता, पूर्व के जन्मों में संचित अतिउच्च प्रारब्ध, अयोग्य कर्म, व्यक्तिस्त्व दोष जैसे डर एवं क्रोध जिससे चिंता और तनाव, आध्यात्मिक साधना में व्यवधान आदि उत्पन्न होते हैं ।

३. निद्राभ्रमण का उपचार

निद्राभ्रमण का मूल कारण चूंकि आध्यात्मिक है, इसलिए उसका निराकरण केवल आध्यात्मिक उपायों या आध्यात्मिक साधना से ही हो सकता है.

  • नियमित आध्यात्मिक साधना, जिसकी संस्तुति अपनी आध्यात्मिक यात्रा का प्रारंभ करें उपविभाग में की गई है, उससे संवृति से छुटकारा प्राप्त हो सकता है । यदि कोई ईश्वर का नामस्मरण करना चाहता है, तो उसे इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए प्रतिदिन ५ घंटे नामस्मरण करना पडेगा । जिस व्यक्ति को इस समस्या ने ग्रसा हुआ है उसे सलाह दी जाती है कि, वह आरोग्य प्राप्त करने हेत श्री गुरुदेव दत्त का नामस्मरण, करे जिससे उसके पूर्वजों द्वारा जनित कष्ट से मुक्त हो सकते हैं ।

  • हमें सूक्ष्म अनिष्टकारी शक्तियों से स्वयं की रक्षा हेतु, साधना प्रतिदिन एवं आजन्म करना अनिवार्य है, इससे निरंतर हमारी आध्यात्मिक उन्नति भी होती जाती है ।

  • यह संसूचित किया जाता है कि, जोडीदार तथा परिवार के अन्य सदस्यों को नियमित साधना करनी चाहिए जिससे किसी भी विपदा से तथा निद्राभ्रमण करने वाले ऐसे लोगों से जो सूक्ष्म शरीरधारी पूर्वजों एवं भूतात्माओं द्वारा ग्रसित होते हैं, उनसे उनका संरक्षण हो सके ।

  • निद्राभ्रमण करने वाले को नहीं जगाना चाहिये, ऐसी मान्यता है; परंतु चाहे कारण मनोवैज्ञानिक हो या आध्यात्मिक हो उन्हें जागृत करना अनिवार्य है । वह इसलिए कि यदि निद्राभ्रमण किसी भूतात्मा द्वारा ग्रसित तथा प्रकटीकरण होनेके कारण है, तब जागृत करने से उसका प्रकटीकरण समाप्त होने में सहायता होगी । तथापि यदि मूलकारण मनोवैज्ञानिक भी हो, तब भी उन्हें जागृत करना आवश्यक है, जिससे वे स्वयं की अथवा किसी अन्य की कोई क्षति न कर सकें ।

  • अन्य आध्यात्मिक उपाय जैसे, नमक-जल उपाय भी करना चाहिए । एस.एस.आर.एफ. द्वारा निर्मित अगरबत्ती उनके बिस्तर के समीप लगाने से, भूतों द्वारा अन्य लोगों को कष्ट देने की सम्भावना कम होगी तथा बाधित को शांति मिलेगी ।