पाठकों के लिए सूचना : इस लेख को भली भांति समझने हेतु कृपया सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र क्या है ? इससे परिचित हो लें ।
इस लेख में सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र के माध्यम से हम मद्य द्वारा ग्रहण एवं प्रक्षेपित किए जाने वाले सूक्ष्म-स्तरीय स्पंदनों को समझेंगे । ये चित्र दृश्य से सम्बद्ध प्रगत छठवीं इंद्रिय रखने वाली संत पूज्यनीय श्रीमती योया वाले ने बनाया है ।
आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में मद्य के विषय में कुछ प्रमुख सूत्र निम्नानुसार हैं :
- काली शक्ति आकर्षित करने की क्षमता : मद्य रज-तम प्रधान पेय है । इस के परिणामस्वरूप मद्यपान से व्यक्ति की सात्त्विकता घटती है और साथ ही मद्य के कारण सूक्ष्म तमोगुण बढता है ।
उपर्युक्त सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित चित्र में दर्शाए सूत्र क्रमांक ३ के अनुसार, काली शक्ति का प्रवाह आकर्षित करने के साथ ही मद्य काली शक्ति भी आकर्षित करता है । मद्यपान करने वाले व्यक्ति के मन और बुद्धि पर सूक्ष्म काला आवरण निर्माण होता है, जिससे वह अनिष्ट शक्तियों के लिए एक सरल लक्ष्य बन जाता है ।
- आध्यात्मिक असुरक्षितता बढना : मद्यपान करते समय हमारा अपने मन और बुद्धि पर से नियंत्रण छूट जाने की आशंका अधिक होती है । अनिष्ट शक्तियां इस अवसर का लाभ उठाती हैं और हमारी चेतना में घुसपैठ करती हैं । यहां तक कि यदि सामाजिक पेय बीयर के एक घूंट का सेवन भी व्यक्ति की सात्त्विकता घटाने और उस में तमोगुण बढाने के लिए पर्याप्त है, जिससे व्यक्ति का अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों का ग्रास बनने की आशंका बढ जाती है ।
- भूतावेश की आशंका बढना : यदि किसी व्यक्ति की मद्य में रुचि है, तो मद्य-लोभी अनिष्ट शक्ति अथवा मृत पूर्वज उसे आवेशित करने हेतु उस की इस रुचि का ही लाभ उठाते हैं । यदि एक बार कोई अनिष्ट शक्ति किसी व्यक्ति को आवेशित कर ले, उस व्यक्ति की मद्य में रुचि बढती ही जाती है । इससे व्यक्ति पर नियंत्रण बनाए रखने में और उस के माध्यम से अपनी वासना तृप्त करने में अनिष्ट शक्ति की सहायता होती है ।
- मद्यपी का परिवार पर प्रभाव : जब अनिष्ट शक्तियां किसी व्यक्ति को आवेशित करती हैं, तो उस के माध्यम से वे सरलता से अपनी वासना तृप्त कर पाती हैं । पीने के उपरान्त व्यक्ति द्वारा अपने परिजन, मित्र और समाज के लोगों के साथ बहुत भयानक व्यवहार होता है । मद्यपी में (व्यसनी एवं मद्य के प्रभाव में) दिखाई देने वाला हिंसक व्यवहार मुख्यतः आवेशित करने वाली शक्ति के कारण होता है, जो मद्यपी में विद्यमान हिंसा के स्वभावदोष का लाभ उठाकर उसे बढाती है । जब व्यक्ति नियमित रूप से मद्य का सेवन करता है, तो उस के आवेशित होने की आशंका बढ जाती है ।
- वाईन का आध्यात्मिक गुण : आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में, वाईन भी उसी वर्ग में है, जिस में अन्य कोई अल्कोहोलिक पेय; क्योंकि यह मद्य जैसे व्हिस्की अथवा वोदका से केवल कुछ कम तामसिक है ।
- आरंभ में ही समस्या को सुलझाना : यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु मद्य के प्रति अपनी आसक्ति न्यून किए बिना ही हो जाए, तो मृत्योपरान्त भी उसकी लालसा बनी रहती है । अन्तर केवल इतना ही होता है कि अपनी लालसा पूरी करने हेतु उसके पास स्थूल शरीर नहीं रहता । इस कारण मृत्यु के उपरान्त उस का सूक्ष्म-देह किसी और व्यक्ति को आवेशित करने का प्रयास करता है, जिसके माध्यम से वह अपनी लालसा पूरी कर सके और यह दुष्ट चक्र चलता ही रहता है । जीवित रहते ही इस चक्र से निकलना आवश्यक है, जिससे मृत्यु के उपरान्त हम अपने अवचेतन में छिपे वासना-केन्द्र द्वारा संचालित न होते रहें ।
- मद्य के व्यसन से छुटकारा पाने का उपाय : आध्यात्मिक शोध के माध्यम से हमने यह पाया है कि ९६ प्रतिशत व्यसनों का मूल कारण आध्यत्मिक होता है । जिन समस्याओं का मूल कारण आध्यात्मिक आयाम में होता है, उन्हें केवल आध्यात्मिक उपायों द्वारा ही दूर किया जा सकता है । हमारे लेख व्यसनों पर आध्यात्मिक शोध में हमने एक त्रिसूत्रीय आध्यात्मिक कार्यक्रम प्रतिपादित किया है, जिससे व्यक्ति अल्कोहल जैसे व्यसनों से छुटकारा पा सके वह भी न्यूनतम दुष्प्रभावों (साइड-इफेक्ट्स) के साथ ।
एसएसआरएफ ने डीडीएफएओ बायो-फीडबैक मशीन का प्रयोग कर व्यक्ति के कुंडलिनी चक्रों पर मद्य और फलों के रस के प्रभाव का अध्ययन किया । हमने अनिष्ट शक्तियों से पीडित और ऐसी पीडारहित लोगों पर दो प्रकार के पेय अर्थात अल्कोहल (व्हिस्की) और फल का रस (संतरा) के प्रभाव-सम्बन्धी प्रयोग किया । हमने साधना करने वाले और न करने वाले लोगों पर भी यह प्रयोग किया ।
मद्य सम्बन्धी डीडीएफएओ शोध प्रस्तुत करने वाला एएसआरएफ दृश्यपट (वीडियो) नीचे है