फलों के रस के सेवन का आध्यात्मिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
हमारे पाठकों के लिए टिप्पणी : इस लेख को उचित ढंग से समझने के लिए, कृपया आप “सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र क्या है?” इस लेख से परिचित हो जाएं ।
कृपया फलों के रस के आध्यात्मिक प्रभाव पर हमारा लघुपट यहां देखें:
इस लेख में हमने सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित एक चित्र के माध्यम से, फलों के रस से आकर्षित और प्रक्षेपित होनेवाले सूक्ष्म-स्पंदनों का वर्णन किया है। यह चित्र उन्नत छठी इन्द्रिय से युक्त साधिका श्रीमती योया वाले ने रेखांकित किया है । इसे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा सत्यापित और प्रमाणित किया गया है । उन्नत छठी इंद्रिय के माध्यम से जांच करने के पश्चात, सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित यह चित्र ८० % सत्य पाया गया ।
हम सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र में विभिन्न तत्वों को दर्शाने के लिए विभिन्न रंगों का उपयोग करते हैं क्योंकि वे आध्यात्मिक स्पंदनों के रंगों के अनुरूप होते हैं । उदाहरण के लिए, उन्नत छठी इंद्रिय के माध्यम से देखने पर चैतन्य के आध्यात्मिक स्पंदन पीले रंग के होते हैं । तदनुसार, हमने चैतन्य से संबंधित बिंदुओं को दर्शाने के लिए पीले रंग का उपयोग किया है ।
- फलों का रस रज-सत्व प्रधान होता है और इसलिए स्वास्थयप्रद है ।
- आध्यात्मिक दृष्टिकोण से फलों के रस की अनुशंसा की जाती है; क्योंकि यह सकारात्मक आध्यात्मिक ऊर्जा (सात्त्विकता) को आकर्षित एवं प्रक्षेपित करता है ।
- यह प्राण-शक्ति प्रदान करता है फलस्वरूप शरीर में बल प्राप्त होता है तथा शारीरिक क्रियाओं को करने हेतु उत्साह संचारित होता है और सुस्ती न्यून होती है ।
- फलों के रस का सेवन करने पर हम पर अनिष्ट शक्ति के आक्रमण होने की संभावना न्यून होती है ।
- यथासंभव फलों का रस ताजा होना चाहिए; क्योंकि इसमें सात्त्विकता का अनुपात अधिक होता है । यद्यपि डिब्बाबंद अथवा बोतलबंद फलों के रस की भी अनुशंसा की जाती है क्योंकि यह रस ताजे निचोडे हुए फलों के रस की तुलना में थोडा ही न्यून सात्त्विक होता है ।