साधना के द्वारा निराशा एवं आत्महत्या के विचारों पर विजय प्राप्त करना
अपने बडे होने के वर्षों के दौरान, ऐनी (उसकी गोपनीयता को बचाने हेतु उसका नाम परिवर्तित किया गया है) आत्महत्या के विचार एवं निराशा से ग्रसित थी । उसने अपने आत्महत्या के विचार एवं अवसाद/निराशा के वास्तविक कारणों का कैसे पता लगाया तथा साधना से उन पर विजय प्राप्त करने में सक्षम हुई, इसका वर्णन उसी के शब्दों में आगे प्रस्तुत किया गया है ।
१. प्रस्तावना
अपनी कम आयु में, मुझे ईश्वर के अस्त्तित्त्व पर गहरा और दृढ विश्वास था । मेरे माता पिता विशेष रूप से धार्मिक नहीं थे तथा हमारे समुदाय में सामाजिक कार्य प्रायः स्थानीय देवालयों में होते थे । उसी समय में, कम आयु में मुझे ईश्वर की पूजा करने के विषय में पता चला तथा इसके प्रति चाह निर्माण हुई । घर पर, मैं अपने स्वयं के और साधारण तरीके से ईश्वर से नियमित रूप से प्रार्थना तथा उनकी पूजा करती थी । मैं कभी कभी अपने खाली समय में ईश्वर एवं संतों की कथाएं भी पढा करती थी ।
२. बचपन से बडे होने तथा किशोरावस्था का समय
जब मैं ७ वर्ष की थी, मेरा परिवार कनाडा आकर बस गया । मैंने अचानक स्वयं को मित्रों, संबंधियों अथवा सांस्कृतिक व्यवहारों से रहित देश में पाया । मैंने घुलने-मिलने के सभी संभव प्रयास किए तथा इस प्रक्रिया में अपने जन्म के धर्म को ‘अंधविश्वासी’, ‘अवैज्ञानिक’ और ‘पिछडा’ मानकर उसे नकार दिया ।
अपनी किशोरावस्था में पहुंचने तक भी मेरा जीवन निरंतर सामान्य था । इस समय, मैं अचानक तीव्र निराशा एवं आत्महत्या के विचारों से ग्रसित होने लगी । हर कुछ सप्ताह में स्वयं को मारने की इच्छा तीव्रता से बहुत बढ जाती थी तथा यह लगभग असहनीय होता था । चूंकि मेरा पारिवारिक जीवन अच्छा था और कोई वास्तविक समस्याएं नहीं थी, इसलिए मैं इस बात से अनभिज्ञ थी कि मुझे इस तरह के भयानक विचार बार-बार क्यों आ रहे हैं । मेरा अवसाद एक दीर्घकालीन, भयानक रहस्य बन गया था; क्योंकि मैं जो सह रही थी, उसे अपने मित्र और परिवार को बताने में लज्जित थी ।
३. समस्या आपे से बाहर हो जाना
जब मेरी आयु १६ वर्ष की हो गई, तब तक मैं अपने नकारात्मक विचारों और आत्मघाती प्रवृत्तियों से व्याकुल हो चूकी थी । मैंने निर्णय लिया कि यह जीवन व्यर्थ है तथा सबसे अधिक अच्छा यह होगा कि इसे सदा के लिए ही समाप्त कर दिया जाए । क्योंकि कुछ वर्षों से मैं नास्तिक हो गई थी, मुझे लगा कि आत्महत्या करने से, मैं सहजता से अपना अस्तित्त्व समाप्त कर सकती हूं । इससे मेरी सभी समस्याएं समाप्त हो जाएगी । अतः मैंने बहुत अधिक मात्रा में गोलियां खा लीं तथा अपने जीवन को विदा कर दिया ।
किंतु उस कठिन समय में भी, मुझे अनुभव हुआ कि ईश्वर मेरा ध्यान रख रहे थे ।
चिकित्सालय में एक कठोर समय बिताने के उपरांत मैं आत्महत्या के प्रयास से बच गई । कुछ समय उपरांत, मैं अपनी मां से फिर से मिली । वह एशिया में रिश्तेदारों से मिलने गई हुई थी और उन्हें कनाडा लौटने तक यह पता नहीं लगा था कि मैंने स्वयं को समाप्त करने का प्रयास किया था । मेरी मां ने मुझे बताया कि जिस दिन मैंने आत्महत्या करने का प्रयास किया था, उस दिन वह एक ऐसे स्थानीय व्यक्ति के पास गई थी, जो अपनी अतिजागृत छठवीं इंद्रिय के लिए प्रसिद्ध था । उन्होंने उस व्यक्ति से मेरी शिक्षा के भविष्य के विषय में पूछा । उस व्यक्ति ने उनसे कहा की इसकी चिंता न करें कि उसकी शिक्षा का भविष्य क्या होगा, क्योंकि चिंता के विषय इससे भी बहुत गंभीर हैं । उसने उनसे कहा कि उस दिन मेरी अथवा मेरे नानाजी की मृत्यु हो जाएगी ।
मेरी मां ने उस व्यक्ति की बात को अविश्वसनीय समझकर सिरे से नकार दिया था, क्योंकि मैं पूर्णरूप से स्वस्थ थी । किंतु, कुछ दिन उपरांत, मेरी मां को यह पता चला कि उनके पिताजी का देहांत भी अचानक उसी दिन हुआ, जिस दिन मैंने आत्महत्या करने का प्रयास किया था । किसी व्यक्ति द्वारा मेरे नानाजी की मृत्यु की इस प्रकार सटीक भविष्यवाणी करने के इस अनुभव ने मुझे गहराई से प्रभावित किया तथा बिना किसी संशय के यह विशवास करने हेतु प्रेरित किया कि विश्व में हमारी समझ से परे भी ऐसी शक्तियां होती हैं । उसी क्षण से, मैंने नास्तिकता को नकार दिया और अपनी आध्यात्मिक यात्रा (साधना) आरंभ की ।
४. अध्यात्म में रुचि निर्माण होना
२० वर्ष की आयु में, सांसारिक जीवन यापन करने के साथ-साथ मुझमें आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने की उत्कंठा निर्माण हुई । अपने खाली समय में, मैंने अध्यात्म के विषय पर मुझे मिलनेवाले सभी ग्रंथों को पढना प्रारंभ किया । मैं एक ऐसे संगठन अथवा गुरु की खोज में, एक के उपरांत एक आध्यात्मिक संगठनों से जुडी, जो मुझे सूक्ष्म जगत के विषय में और अधिक समझा सकें ।
वर्ष २००७ में, संयोग से मुझे SSRF के जालस्थल का पता चला । जालस्थल पर जो जानकारी मुझे प्राप्त हुई, विशेष रूप से जीवन का उद्देश्य तथा मृत्यु के उपरांत हम कहां जाते है, उसने मुझे प्रभावित किया । जालस्थल पर ऐसी जानकारी थी, जो मैंने पहले कहीं नहीं पढी थी तथा प्रत्येक विषय को बहुत ही सुस्पष्टता से एवं व्यावहारिक रूप से प्रस्तुत किया गया था । मैंने जालस्थल को उत्सुकता से पढा, अनेक लेखों को पढा और पुनः पुनः पढा । यद्यपि, अगले चरण में जाने तथा इस ज्ञान को अपने व्यवहार में लाने हेतु मुझे कई वर्ष और लग गए ।
५. SSRF के साथ साधना प्रारंभ करना
वर्ष २०१४ तक, मैं अपने करियर में आगे बढने लगी थी । परंतु मेरे व्यक्तिगत जीवन में अभी भी निराशाएं थी । अवसाद मेरी किशोरावस्था से लेकर युवावस्था तक निरंतर ज्यों का त्यों बना हुआ था । मुझे विवाह करने में तीव्र अक्षमता अनुभव होने लगी थी । मैं किसी से मिलती,सब कुछ ठीक चलता, तभी अचानक रिश्ता टूट जाता था । ऐसा तब भी होता था, जब दूसरा व्यक्ति और मैं दोनों ही साथ रहने के इच्छुक होते थे । यह असामान्य घटनाक्रम अपनेआप को बार-बार दोहराता था । मुझे लगने लगा कि ऐसे कुछ अलौकिक कारक थे, जिनके कारण यह समस्याएं उत्पन्न हो रही थी तथा इनका समाधान प्राप्त करने को मैं आतुर थी । मुझे SSRF के जालस्थल का स्मरण हुआ तथा मैंने यह देखने का निर्णय किया कि क्या SSRF के द्वारा बताई गई साधना सहायता कर सकती है ।
वर्ष २०१४ से २०१५ तक, मैंने SSRF के मार्गदर्शन में साधना करने के कुछ प्रयास प्रारंभ किए । मैंने SSRF के ऑनलाइन सत्संगों में भाग लिया, समय-समय पर ईश्वर का नामजप किया तथा आध्यात्मिक उपचार किए । यद्यपि मेरे प्रयास नियमित नहीं थे, फिर भी मुझे अपने जीवन में कुछ सुधार अनुभव हुआ । मुझे एक न, रिश्ते की आशा दिखने लगी थी । मुझे लगा कि सबकुछ अंततः ठीक हो गया है और मैंने सांसारिक जीवन पर ध्यान केंद्रित करने हेतु साधना छोड दी ।
६. समस्या का दूसरी बार आपे से बाहर होना
वर्ष २०१५ में, जब मुझे लगने लगा कि अब मेरा जीवन ठीक हो गया है, तभी मेरे मंगेतर ने विवाह के दो सप्ताह पूर्व ही हमारे विवाह को रद्द कर दिया । मेरे जीवन में इस प्रकार की यह घटना अब चौथी बार हुई थी । मैं पूर्ण रूप से टूट गई थी और गहरी निराशा में डूब गई ।
वर्ष २०१८ तक, जीवन के प्रति मेरी निराशा और नकारात्मकता अत्यधिक बढ गई थी । मुझे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं तथा कार्यालय में भी समस्याएं अनुभव होने लगीं । इनका सामना करने में मैं भावनात्मक रूप से स्वयं को असमर्थ पा रही थी । मैं बार-बार उत्पन्न हुए अत्यधिक आक्रमणों से प्रभावित होने लगी और मुझे बिस्तर से उठने में भी संघर्ष करना पडता था । मुझमें निर्बलता आ गई तथा मैं पूर्ण रूप से टूट गई । ऐसा लगने लगा कि कदाचित निराशा और आत्महत्या के विचारों की जीत हो रही है । मैंने हार मान ली तथा मनोचिकित्सक की सहायता ली । किंतु, अंततः, मैं आतुरता से सहायता के लिए रोने लगी, एक रात मैंने ईश्वर से अपनी सहायता हेतु प्रार्थना की तथा ढाई वर्षों में पहली बार नामजप किया ।
उस रात, मानो मेरी प्रार्थनाओं के उत्तर में, ईश्वर ने मुझे SSRF के जालस्थल को पढने तथा पुनः साधना के प्रयास करने का विचार दिया – किंतु इस बार प्रयास गंभीरतापूर्वक करने थे ।
७. SSRF के मार्गदर्शन में साधना में लौटना
नवंबर २०१८ में, मैं SSRF में अपने पूर्व के मार्गदर्शक साधक के पास गई तथा उनसे पूछा कि क्या मैं पुनः साधना में लौट सकती हूं । उन्होंने बहुत प्रसन्नता से मेरा स्वागत किया और उसी दिन से, मैंने अपनी समस्याओं के विरुद्ध अंतिम उपाय के रूप में साधना में अपना सब कुछ झोंक देने का दृढ संकल्प लिया ।
ईश्वर की कृपा से, मात्र एक सप्ताह ईश्वर का नामजप करने के उपरांत ही, मुझे कार्यालय जाते समय अत्यधिक प्रसन्नता एवं शांति अनुभव हुई । मुझे एहसास हुआ कि यह पहली बार था, जब मैंने कई वर्षों में प्रसन्नता अनुभव की थी । इस अनुभूति ने मुझे गहराई से छू लिया और अपने प्रयास निरंतर रखने की प्रेरणा दी ।
मैं अपनी साधना के प्रति अब बहुत गंभीर हो गई । मैंने बिना चूके साप्ताहिक आध्यात्मिक सत्संग सुने तथा जो भी मार्गदर्शक साधक ने बताया, उसे किया, यद्यपि प्रारंभ में मुझे संदेह रहता कि क्या वह उपयोगी अथवा सार्थक है । इस प्रकार मैंने प्रतिदिन कई घंटे ईश्वर का नामजप करना तथा इसके साथ स्वभावदोष निर्मूलन के प्रयास और सत्सेवा करना प्रारंभ किया ।
मैंने देखा कि नियमित साधना से, मेरी निराशा न्यून हो रही थी । पहले माह के उपरांत, मेरी निराशा अत्यधिक न्यून हो गई तथा मुझमें अब आत्मह्त्या के विचार नहीं रहे । यह अद्भुत था कि जो वेदनाएं मेरा पूरा जीवन नष्ट कर रही थे, वे साधना से दूर हो रही थीं । इससे मुझे प्रेरणा मिली कि चाहे कोई भी बाधा आ जाए, अब निरंतर आगे बढते रहना है ।
८. आध्यात्मिक शोध केंद्र एवं आश्रम में आना
वर्ष २०१९ के प्रारंभ में, मुझे भारत के गोवा स्थित अध्यात्म शोधकेंद्र एवं आश्रम में आयोजित आध्यात्मिक उन्नति के लिए पांच दिवसीय कार्यशाला में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ । वह कार्यशाला मेरे लिए जीवन को बदलने वाला अनुभव था । मुझे न केवल मेरी साधना को और अच्छी करने हेतु बहुमूल्य मार्गदर्शन अथवा साधन प्राप्त हुए; अपितु मुझे आश्रम में रहनेवाले कई संतों और उन्नत साधकों का सत्संग भी प्राप्त हुआ । आश्रम में ही मुझे सुख तथा दुःख से परे की अवस्था जिसे आनंद कहते हैं, उसकी पहली बार अनुभूति हुई । आनंद की अनुभूति शब्दों से परे थी तथा उसने सही मायने में जीवन के प्रति मेरे दृष्टिकोण को पूर्ण रूप से परिवर्तित कर दिया ।
अपने प्रवास के दौरान, मुझे यह बताया गया कि मैं अनिष्ट शक्तियों से गंभीर प्रभावित थी तथा इन अनिष्ट शक्तियों के कष्ट के कारण ही मेरे जीवन में अनेक समस्याएं निर्माण हो रही थीं । जीवन में पहली बार मुझे वास्तव में समझ आया कि क्यों मैं इतने वर्षों से बिना किसी ठोस कारण के कष्ट भोग रही थी । मैं शब्दों में नहीं बता सकती कि साधना के विषय में अपने मार्गदर्शन से मेरे प्राण बचाने के लिए, मैं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति कितनी कृतज्ञ हूं ।
९. वर्तमान स्थिति
जब से मैंने साधना में गंभीर प्रयास करना प्रारंभ किए, तब से मेरा जीवन पूर्ण रूप से परिवर्तित हो गया । ईश्वर की कृपा से, अब मैं अवसाद से ग्रसित नहीं हूं तथा प्रायः शांत और प्रसन्नता अनुभव करती हूं । SSRF के शोध ने पता लगाया है कि जीवन की ८० प्रतिशत समस्याओं का मूल कारण आध्यात्मिक आयाम में है । यह निश्चित रूप से मेरे प्रकरण में भी था तथा मैं इस बात का जीता जागता प्रमाण हूं कि ईश्वर एवं साधना में विश्वास रखने से इन समस्याओं पर बहुत शीघ्रता से विजय प्राप्त की जा सकती है ।
मैं निष्ठापूर्वक प्रार्थना करती हूं कि SSRF के पाठक भी अपनी आध्यात्मिक यात्रा (साधना) प्रारंभ करें, आनंद की अनुभूति लें तथा मानव के अस्तित्त्व के सर्वोच्च उद्देश्य को मूलभूत रूप से प्राप्त कर पाएं ।