HIN_Stumbling-blocks-to-self-awareness

किसी से कुछ सीखने के मार्ग में आनेवाली कुछ सामान्य रुकावटें निम्नानुसार हैं ।

१. स्वयं में सुधार करने की इच्छा न होना : कुछ व्यक्तियों में स्वयं को सुधारने की मूलभूत इच्छा का ही अभाव होता है । यह घमंड अथवा आलस्य जैसे स्वभाव दोषों के कारण हो सकता है ।

२. सीखने की वृत्ति का अभाव : ऐसे व्यक्ति में अपनी चूकों से सीखने तथा उनमें सुधार कैसे लाया जाए, यह सीखने की जिज्ञासा का अभाव होता है ।

३. बहिर्मुखता : यहां बहिर्मुखता का तात्पर्य जीवन की परिस्थितियों में अंतर्मुखता से विचार न कर पाने की क्षमता से है । चलिए पिछले अध्याय से तीन उदाहरण लेते हैं तथा देखते है कि बहिर्मुख वृत्ति की तुलना में अंतर्मुख वृत्ति क्या होगी ।

उदाहरण बहिर्मुखता अंतर्मुखता अथवा आत्मविश्लेषण
एनेट मेरा अधिकारी मेरी प्रशंसा क्यों नहीं करता ? मैं भी तो इतनी मेहनत करता हूं । मेरे सहकर्मी के कौनसे गुण हैं जो मैं उससे सीख सकता हूं ?
राउल इस घर में मुझे तनिक भी स्वतंत्रता नहीं है । मुझे घर छोडकर चले जाना चहिए । पिताजी का दिन बहुत लंबा रहा । मैं उन्हें कैसे और आराम दे सकता हूं ? उन्हें एक ही बात बार-बार मुझे बताने की आवश्यकता क्यों होती है – मुझमें कहां अभाव है ?
मार्क रूथ मेरी पत्नी जैसी ही है । सभी पत्नियां एक जैसी होती हैं । जेरेमी और मुझे मद्यपान के लिए बाहर जाना चाहिए । यदि मैं स्वयं को जेरेमी के स्थान पर देखूं, तब तो मैं बिलकुल आलसी हूं और मुझे इसमें सुधार करना चाहिए ।

ऊपर दिए उदाहरणों को देखकर, हम समझ सकते हैं कि ‘‘ऐसा क्यों कहा जाता है कि जो अपना समय अन्यों की त्रुटियों को देखने में व्यतीत करते हैं, वे प्रायः अपने दोषों में सुधार लाने हेतु कोई भी प्रयास नहीं करते ।’’

१. तीव्र अहं : जिनमें तीव्र अहं होता है वे प्रायः अपनी चूकों को नहीं स्वीकारते और उनमें सुधार लाने की बात तो छोड ही दीजिए ।

२. आध्यात्मिक कारक : हमारे जीवन की समस्याओं के आध्यात्मिक मूल कारण अनेक प्रकार के हैं । प्रायः लोगों को उनके प्रारब्ध कर्म, अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव, मृत पूर्वजों द्वारा उत्पन्न कष्ट, प्राणशक्ति में अवरोध होना इत्यादि के कारण कष्ट झेलने होते हैं । कभी-कभी मध्यम से तीव्र प्रारब्ध के कारण व्यक्ति स्पष्टता से विचार नहीं कर सकता और यही उसके आत्मजागरूकता के मार्ग में अवरोध बन जाता है । साथ ही आध्यात्मिक आयाम की अनिष्ट शक्तियां भी मनुष्य के विचारों को धुंधला कर सकती हैं तथा उनके स्वभाव दोष बढा सकती हैं । दूसरी ओर, इस प्रकार की समस्याएं होती हैं और हमें कष्ट दे सकती हैं, यह समझ भी हमें जीवन के प्रति अधिक दार्शनिक भूमिका अपनाने में सहायता करती है । वास्तव में, जीवन की बडी सभी अच्छी-बुरी घटनाएं मुख्य रूप से प्रारब्ध के कारण ही होती हैं ।

एक साधक के साथ कार दुर्घटना हो गई, जिसमें उसकी कोई भी गलती नहीं थी । सहज प्रेरणा से उसे भान हुआ कि इससे उसके प्रारब्ध का कुछ भाग पूर्ण हो रहा है । उसे लगा कि पिछले जन्म में अवश्य ही उसने उस व्यक्ति के साथ गलत किया होगा, इसलिए इस जन्म में उस व्यक्ति ने उसके साथ गलत किया । इस विचार के साथ वह स्थिर रहने में सक्षम हुआ और शांति से अपने दैनिक जीवन को जीने लगा ।

सारांश

  • हमें वैसी बाधाओं के प्रति सतर्क रहना चाहिए जो हमें हमारे स्वभाव दोषों के भान होने की क्षमता में अवरोध उत्पन्न करती हैं ।
  • यहां तक कि यदि किसी चूक का एक छोटासा संकेत भी अन्य किसी के द्वारा बताया जाए, तो हमें उसके प्रति गंभीर होना चाहिए क्योंकि इससे हम हमारे स्वभाव के गंभीर दोषों से अवगत हो सकते हैं ।
  • अन्यों द्वारा हमारे बारे में दिए गए अभिप्राय पर प्रतिक्रिया देना हमारे तीव्र अहं का सूचक है ।