सच्ची क्षमा क्या है ? – एक गहन दृष्टिकोण

कोई ऐसा व्यक्ति, जिसने आपके साथ बुरा किया हो , उसे क्षमा करना यह आध्यात्मिक कारणों के कारण बहुत कठिन हो सकता है, लेकिन क्षमा करने की क्षमता रखना और आगे बढ जाना आपके कर्मों और आध्यात्मिक प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है ।

एक संक्षिप्त विवरण

जब कोई व्यक्ति हमें गहरी चोट पहुंचाता है , ऐसे व्यक्ति को क्षमा करना सहज नहीं होता । ऐसी स्थिति में हमारे मस्तिष्क का क्रोध और प्रतिशोधी विचारों से भर जाना स्वाभाविक है । यद्यपि, इस प्रकार के विचार हमें ही अधिक क्षति पहुंचाते हैं । क्षमा करने में ऐसे हानिकारक विचारों का त्याग करना होता है । ऐसा कहना सरल है परन्तु करना कठिन, क्योंकि व्यक्ति के स्वभाव और दूसरे व्यक्ति से प्रारब्ध के आधार पर, क्षमा करने की क्षमता ही सीमित हो सकती है । किसी घटना के कर्म से वास्तविक रूप से मुक्ति पाने के लिए, हमें सच्चे स्वरुप में क्षमा करने में सक्षम होना चाहिए, जिसके अंतर्गत उस घटना को ही भूल जाना सम्मिलित होता है । यह तभी संभव हो सकता है जब हम साधना में ठोस प्रयास करे ।

१. क्षमा की प्रस्तावना

किसी पत्रकार ने एक बार दलाई लामा से पूछा, क्या वह तिब्बत पर आधिपत्य स्थापित करने के लिए चीनियों से रुष्ट है । दलाई लामा ने उत्तर दिया,” उन्होंने हमसे सब ले लिया, किन्तु क्या मैं उन्हें अपने मस्तिष्क पर भी आधिपत्य स्थापित करने दूं ?”

क्रोध और प्रतिशोध का त्याग करने से हमारी मानसिक शान्ति और कल्याण में वृद्धि होती है। परन्तु, क्या क्षमा करने की तथा उसे भूल जाने की यह प्राचीन कहावत वास्तव में संभव है ? क्षमा करना तो समझ में आता है, परन्तु भूल जाना, क्या समझदारी है ? इस सन्दर्भ में, हमने यह कहावत तो सुनी होगी, “जो इतिहास से सीख नहीं सकते, वे पुनः वैसी गलती अवश्य करते हैं” इसका अर्थ यह भी है ,”जो अपने अतीत का स्मरण नहीं रखते, वेअपनी वही चूकें पुनः पुनः अवश्य दोहराते हैं” ।

अतः, क्षमा करने का वास्तविक अर्थ क्या है और क्या क्षमा करना समझदारी है ?

२. क्षमा की परिभाषा

क्षमा करने और इससे मनोकायिक स्तर पर होनेवाले लाभ की अत्यधिक विस्तार से चर्चा की गर्इ है, विभिन्न लोगों के लिए इसका अर्थ भी अलग अलग हो सकता है।

यद्यपि सच्ची क्षमा की परिभाषा पर इस बात पर बहुत विवाद रहा है कि क्या इसके लिए अपराधी के प्रति सकारात्मक भावना होना भी आवश्यक है । हालांकि, अधिकांश विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि क्षमा करने में कम से कम गहरी नकारात्मक भावनाओं जैसे रोष, क्रोध, घृणा, प्रतिशोध और द्वेष का त्याग करना आवश्यक है। इसके अंतर्गत यह अपेक्षाएं रहना कि सामनेवाले व्यक्ति को क्षमा मांगनी चाहिए, उन अपेक्षाओं का भी त्याग करना आवश्यक होता है ।

इसी प्रकार, किसी भी विषय की ठोस और समग्र परिभाषा के लिए, उसे न केवल भौतिक अथवा मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से, अपितु आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी देखना महत्वपूर्ण है । क्योंकि हमारे जीवन में होनेवाली घटनाओं (अच्छी अथवा बुरी) का एक मुख्य अंश उस कर्म अथवा प्रारब्ध द्वारा निर्धारित होता है, जिसे हमें भोगना ही पडता है । प्रतिकूल कर्म अथवा प्रारब्ध एक आध्यात्मिक समस्या है । अतः, इसका अर्थ यह है कि हमारे जीवन में होनेवाली अधिकांश महत्वपूर्ण घटनाएं, जहां हमें लगता है कि हमें दुख हुआ है और हमें आगे बढने के लिए क्षमा करना आवश्यक होता है, वे अधिकतर कर्म से संबंधित होती हैं ।

“सच्ची क्षमा का क्या अर्थ है ?

परात्पर गुरु डॉ जयंत बालाजी आठवलेजी, जो एसएसआरएफ के प्रेरणास्रोत हैं और आध्यात्मिक शोध दल का मार्गदर्शन करते हैं, उन्होंने आध्यात्मिक दृष्टिकोण से सच्ची क्षमा का क्या अर्थ है, इसकी परिभाषा प्रदान की (बताई) है । परात्पर गुरु का अर्थ है उच्चतम स्तर के गुरु, और वह व्यक्ति जिसका आध्यात्मिक स्तर ९० % से ऊपर/अधिक होता है ।

“सच्ची क्षमा का अर्थ केवल क्रोध और बदले की भावना को भूलना ही नहीं है, अपितु उस घटना को भूलना भी है ।”

– परात्पर गुरु डॉक्टर अठावलेजी

हालांकि यह एक औसत व्यक्ति के लिए असंभव प्रतीत हो सकता है, आध्यात्मिक दृष्टिकोण से सभी कर्म बंधनो को त्यागने (से मुक्त होने) और ईश्वर के साथ एकरूप होने के लिए क्षमा के इस स्तर को प्राप्त करना आवश्यक है । इसलिए, क्षमा करना और भूल जाना ईश्वर-प्राप्ति के लिए आध्यात्मिक दृष्टिकोण से आवश्यक है ।

३. क्षमा की अवधारणा में गहरी अंतर्दृष्टि प्राप्त करना

क्षमा की अवधारणा को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समझने के लिए, सबसे पहले हमें कर्म अथवा प्रारब्ध की अवधारणा को समझना होगा । यह ज्ञान का स्रोत विभिन्न पवित्र/धार्मिक ग्रंथों से है और उन्नत छठी इंद्रिय का उपयोग करके आध्यात्मिक शोध के माध्यम से इसका और स्पष्टीकरण प्राप्त किया गया है ।

प्रारब्ध बनाम क्रियमाण कर्म हम सभी का एक निश्चित प्रारब्ध के साथ जन्म हुआ हैं । प्रारब्ध हमारे जीवन का वह भाग है जो हमारे नियंत्रण में नहीं है । पिछले जन्मों से हमारे कर्मों के प्रभाव के आधार पर, हमारा जीवन उन पूर्व निर्धारित घटनाओं से भरा हुआ होता हैं जो हमारे द्वारा भोगे जाने वाले सुख अथवा दुःख की इकाइयों को तय करेंगी । यह पिछले जन्मों से अर्जित गुणों/पुण्यों और अवगुणों/पापों पर आधारित होता है । वर्तमान युग में, हमारे जीवन की लगभग ६५% घटनाएं पूर्व निर्धारित हैं, जबकि ३५% जीवन हमारी स्वतंत्र इच्छा (स्वेच्छा) के अनुसार होगा।

जीवन की सभी प्रमुख घटनाएं जैसे विवाह, अच्छे और बुरे म्बन्ध, दुर्घटनाएं और प्रमुख रोग अधिकांशत हमारे प्रारब्ध के कारण होते हैं । इसलिए, प्रारब्ध के कारण जिन कष्टों और दुःखोंको भोगना है, वे प्रायः ऐसी घटनाओं के माध्यम से सामने आते हैं । जो लोग हमें हमारे जीवन में सबसे अधिक दुःख अथवा खुशी देते हैं, वे भी अधिकांशत यही कर रहे हैं जिससे कि वेपिछले जन्मों के लेन देन के खातें पूर्ण कर सकें ।

हमारे मन को हमारी भावनाओं और मनोभावों के स्थान के रूप में परिभाषित किया गया है । यह चेतन मन और अवचेतन मन से मिलकर बना है । यद्यपि चेतन मन तुलना में छोटा है, यह हमारे मन का वह भाग है जिससे हम अवगत होते हैं । दूसरी ओर अवचेतन मन कुछ ऐसा है जिसके बारे में हमें बहुत कम जागृति और समझ होती है, फिर भी यही वह है जो चेतन मन को बहुत अधिक प्रभावित करता है । इसमें ऐसे लाखों संस्कार होते हैं जो हमारे गुणों और दोषों के साथ-साथ हमारे व्यक्तित्व की विशेषताओं को परिभाषित करते हैं ।

पूर्व निर्धारित घटनाओं के सभी संस्कार भी हमारे अवचेतन मन में एक सूक्ष्म केंद्र के अंतर्गत एकत्रित रहते हैं, जिसे लेन-देन खाता केंद्र के रूप में जाना जाता है । हमारी समझ के होने पर भी लेन-देन खाता केंद्र हमें दो लोगों के बीच कर्म का खाता कैसा है, इसके अनुसार वैसा ही आचरण करवाता है ।

लेन-देन खाता केंद्र हमारे निर्णय लेने को कैसे प्रभावित करता है, इस बारे में अधिक विस्तृत जानकारी के लिए पढें – हमारे कर्मों का कारण और लेन-देन की क्रियाविधि ?

तो, यह सब कुछ आध्यात्मिक दृष्टिकोण से क्षमा के हमारे विषय से किस प्रकार संबंधित है ?

आइए हम २ परिदृश्यों का एक काल्पनिक उदाहरण (सैद्धांतिक उदाहरण) लेते हैं ।

प्रारब्ध एवं लेन देन का सिद्धांत किस प्रकार क्षमा को प्रभावित करते हैं

परिदृश्य १: मान लीजिए कि पिछले जन्म में व्यक्ति ‘अ’ दूसरें व्यक्ति ’आ’ को कष्ट पहुंचाता है और उसे ५ इकाई कष्ट देता है । तब एक कर्म (लेन देन) खाता उत्पन्न/निर्माण होता है जिसमें व्यक्ति ’अ’ को इसे निपटाने (पूर्ण करने) के लिए व्यक्ति आ से ५ इकाई का कष्ट प्राप्त करना होगा । यदि किसी कारणवश उस जीवनकाल में लेन देन खाता पूर्ण नहीं होता है, तो वह अगले जन्म के लिए आगे ले जाया जाता है । तो, आगे के जीवनकाल में व्यक्ति आऔर व्यक्ति अ को एक साथ किसी एक स्थिति में डाल दिया जाएगा । इस स्थिति में, व्यक्ति आ (अपने लेन-देन केंद्र से प्रभावित) व्यक्ति अ को ५ इकाई का कष्ट अथवा दुःख देगा।

परिदृश्य २: मान लीजिए कि व्यक्ति आ वर्तमान जीवनकाल में पहली बार व्यक्ति अ से मिलता है और पिछले जीवनकाल में व्यक्ति ‘अ’ के साथ कोई बातचीत/भेंट नहीं हुई है । अब यदि व्यक्ति आ, व्यक्ति अ को वर्तमान जीवनकाल में ५ इकाई कष्ट पहुंचाता है, तो वह व्यक्ति अ के साथ एक नया कर्म लेन-देन खाता आरम्भ करता है ।

ये दो परिदृश्य व्यक्ति अ की दूसरें व्यक्ति आ को क्षमा करने की क्षमता को कैसे प्रभावित करेंगे ?

परिदृश्य १ में, वर्तमान जीवनकाल में, व्यक्ति आ द्वारा व्यक्ति अ को ५ इकाई कष्ट लौटाने के उपरांत, उसे (व्यक्ति अ के लिए) व्यक्ति आ को क्षमा करना आसान/सहज होगा । ऐसा इसलिए क्योंकि व्यक्ति आ व्यक्ति अ में खाता और लेन देन खाता केंद्र को समाप्त कर रहा है और व्यक्ति अ अवचेतन रूप से मान लेता है कि खाता पूर्ण हो चुका है ।

प्रारब्ध एवं लेन देन का सिद्धांत किस प्रकार क्षमा को प्रभावित करते हैं

परिदृश्य २ में, हालांकि, चूंकि व्यक्ति आ द्वारा एक नया लेन देन खाता निर्माण किया जा रहा है, इसलिए व्यक्ति अ के लिए व्यक्ति आ को क्षमा करना अधिक कठिन होगा ।

प्रारब्ध एवं लेन देन का सिद्धांत किस प्रकार क्षमा को प्रभावित करते हैं

क्षमा और कर्म का नियम तथा लेन-देन का हिसाब

अब, एक अन्य दृष्टिकोण है जिसे हम परिदृश्य १ के साथ जोडेंगे जिसे हमने आध्यात्मिक शोध के माध्यम से सीखा । यदि व्यक्ति आ पिछले जन्म में व्यक्ति अ को क्षमा करने पर काम करता, तो आगेके जीवनकाल में, व्यक्ति अ को जिस प्रतिकूल प्रारब्ध से गुजरना होगा, वह न्यून होता । लेकिन इसके लिए व्यक्ति अ को भी पूरी तरह से पश्चाताप करना आवश्यक है, तभी उसके द्वारा अर्जित किए गए पाप कुछ सीमा तक कम होंगे । इसलिए, यद्यपि नकारात्मक खाता अभी भी रहेगा, किन्तु व्यक्ति अ द्वारा व्यक्ति आ को आघात पहुंचाने के नकारात्मक कर्म के कारण उसे (व्यक्ति अ) जो कष्ट भोगना है उसकी तीव्रता कम हो जाएगी ।

जो लोग वास्तव में क्षमा करने की प्रवृत्ति रखते हैं और जो वास्तव में पश्चाताप करते हैं वे सामान्यतया ऐसे लोग होते हैं जिनमें स्वभावदोषों से अधिक गुण होते हैं और वे उच्च आध्यात्मिक स्तर के होते हैं । ऐसा व्यक्ति आक्रोश और प्रतिशोध की भावनाओं को रखने के विपरीत अधिक उदार और सहानुभूतिपूर्ण होगा।

स्वभावदोष और क्षमा , कर्म का सिद्धांत और लेन-देन के खाते पर उनका प्रभाव

स्वभाव तथा क्षमा करने की क्षमता

यदि किसी व्यक्ति में क्रोध और प्रतिशोधी स्वभाव जैसे अधिक स्वभावदोष हों और अहं जैसे कि अहंकार की भावना भी अधिक हो, तो क्षमा अथवा पश्चाताप करने की क्षमता बहुत कम हो जाएगी । व्यक्ति का ९८ % स्वभाव पूर्व जन्मों के संस्कारों से होता है ।

जब ऐसे लोग एक-दूसरे को कष्ट पहुंचाते हैं, तो वे नकारात्मक लेन-देन के खातों के दुष्चक्र में चले जाते हैं जो कि एक दूसरे को कष्ट पहुंचाने के जीवन भरके पिंग पोंग लड़ाई (टेबल टेनिस के खेल) की तरह हो सकता है । स्वभाव दोष भी खातों को पूर्ण नहीं होने देते हैं और वास्तव में, उन्हें बढा सकते हैं । यह कैसे होता है इसका एक उदाहरण नीचे दिया गया है ।

स्वभावदोषों से नकारात्मक कर्म में वृद्धि होना तथा क्षमा करने की क्षमता न्यून होना

उदाहरण के लिए, आइए हम उपरोक्त वर्णित उदाहरण से परिदृश्य १ को पुनः देखते है जहां व्यक्ति आ द्वारा व्यक्ति अ को ५ इकाई कष्ट पुनः देना है । यदि व्यक्ति आ में कई स्वभावदोष और अधिक अहं है, तो व्यक्ति अ को केवल ५ इकाई कष्ट देने के स्थान पर, वह प्रतिकूल कर्म खाते को अनुपातहीन तरीके / रूपसे पूर्ण करेगा (जैसे मूल ५ इकाई कष्ट के लिए ८ इकाई कष्ट ), इस प्रकार व्यक्ति अ के साथ एक नया प्रतिकूल कर्म खाता निर्माण होगा, जो या तो वर्तमान जीवनकाल में अथवा आगे के जन्मों में पूर्ण होना होगा ।

४. क्षमा पर अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव

अनिष्ट शक्तियां झगडों में वृद्धि कर सकती है तथा व्यक्ति की क्षमा करने की इच्छा/स्वेच्छा को न्यून कर सकती है

कभी कभी जीवन में, लेन-देन अथवा कर्म के खाते में सहभाग लेने वाले केवल दो प्रतिभागी ही नहीं होते, अपितु एक तीसरा तत्व भी विद्यमान हो सकता है, जो कि बुरे उद्देश्यों वाली एक सूक्ष्म शक्ति होती है । ऐसी सूक्ष्म शक्तियों को अनिष्ट शक्तियां कहा जाता है ।

मान लीजिए दो लोगों के बीच विवाद की स्थिति में २०% क्रोध की उत्पत्ति होती है । यदि इनमें से कोई एक व्यक्ति अनिष्ट शक्ति सेआविष्ट है, तो इसका तात्पर्य यह होगा की वह व्यक्ति अनिष्ट शक्ति के नियंत्रण में है। अनिष्ट शक्तियां दोनों व्यक्तियों पर काली शक्ति का आवरण निर्माण कर दोनों के मध्य क्रोध की स्थिति बहुत बढा सकती है, फलस्वरूप इसका प्रतिकूल परिणाम होगा जो समान्यतया अपेक्षित परिणाम से अनुपातहीन रूप से बहुत अधिक होता है । अनिष्ट शक्तियों के ऐसे हस्तक्षेप से विवाद में उलझे लोगों के लिए एक दूसरे को क्षमा करना और भी कठिन हो जाता है ।

ऐसा हम इसलिए सामने ला रहे हैं क्योंकि आज के विश्व में ऐसी घटनाएं एक प्रमुख भूमिका निभाती है । आध्यात्मिक शोध के माध्यम से, हमने पाया है कि विश्व की लगभग ३०% जनसंख्या अनिष्ट शक्तियों से आविष्ट है, जबकि वर्तमान युग में लगभग ५०% इनसे प्रभावित हैं । इसका अर्थ यह हुआ कि विश्व की ८०% जनसंख्या अनिष्ट शक्तियों द्वारा आक्रमण होने की सम्भावना से ग्रस्त है और वे लोगों के बीच कलह को सक्रिय रूप से प्रभावित कर सकती हैं ।

आज विश्वमें प्रचलित/प्रचारित सार्वभौमिक/वैश्विक सिद्धांतों के अनुसार साधना के विषयसे समग्र रूपसे अनभिज्ञ होनेके कारण इस तरह की अनिष्ट शक्तियां लोगोंको आविष्ट करने और प्रभावित करनेमें सक्षम हैं, इस तथ्य के साथ ही अनिष्ट शक्तियां लोगों के क्रोध, लोभ और घृणा जैसे स्वभावदोषोंका उपयोग लोगों और समाज के लिए अधिक समस्याएं निर्माण करने हेतु करती है ।

दो अथवा दो से अधिक लोगों के मध्य कोई भी कलह आगे दिए कारणों से हो सकती है :

  • लेन देनके खातों का निर्माण अथवा समापनकरने में : कई बार, प्रमुख कलह का कारण पिछले जन्म के खातों का निपटारा होता है । ऐसा प्रतीत हो सकता है कि किसी व्यक्ति ने मुझे इस जीवनकाल में हानि पहुंचाई है – परन्तु इस बात की अत्यधिक सम्भावना है कि पिछले जन्म में उस व्यक्ति को मैंने ही पहले हानि पहुंचाकर नकारात्मक कर्म खाता आरम्भ किया था । सामान्यतया, हमारे जीवनसाथी और सगे परिवार के सदस्यों के साथ हमारे लेन देन की अधिकतम मात्रा होती है – यही कारण है कि वे सामान्यतया हमें अपने जीवन में अधिकतम मात्रा में सुख अथवा दुःख देते हैं ।
  • अनिष्ट शक्तियां : ये सूक्ष्म शक्तियां जो लोगों को आविष्ट करती हैं, वें आमतौर पर लोगों के मध्य कलह और शत्रुता को और अधिक उकसाने हेतु इस प्रकारके संघर्षों अथवा प्रतिकूल परिस्थितियों का लाभ उठाती हैं ।

५. साधना क्षमा करने में कैसे सहायता करती है ?

प्रारंभ में, केवल उन सूक्ष्म/आध्यात्मिक कारकों को समग्र रूप से समझना, जो कि किसी भी झगडे (शारीरिक/मनोवैज्ञानिक कारकों के साथ) में भूमिका निभा सकते हैं, यह लोगों को उनके क्रोध और आक्रोश पर विजय प्राप्त करने और आगे बढने में सहायता करने के लिए एक दार्शनिक दृष्टिकोण प्रदान करता है | साथ ही यह इससे सम्बंधित अंतर्दृष्टि भी प्रदान करता है कि क्यों कुछ लोगों के लिए दूसरों की तुलना में क्षमा करना आसान होता है ।

क्षमा की अवधारणा स्वाभाविक रूप से एक आध्यात्मिक विषय है और यह लेन-देन के खाते और प्रारब्ध से प्रभावित होती है, ठीक उसी प्रकार जैसे कि परिदृश्य १ में व्यक्ति अ और व्यक्ति आ के बीच होता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक है, तो ऐसी समस्या को सुलझाने अथवा दूर करने का सबसे अच्छा तरीका आध्यात्मिक समाधान हैं ।

प्रतिकूल प्रारब्ध पर विजय प्राप्त करनेका सर्वोत्तम आध्यात्मिक समाधान है वैश्विक/सार्वभौमिक सिद्धांतों के अनुसार साधना करना । साधना से प्रतिकूल प्रारब्ध का नाश होता है । लेकिन यह कैसे होता है ? आइए परिदृश्य १ में दिए गए उदाहरण को पुनः देखते है ।

पूर्वजन्म में, यदि व्यक्ति अ भी साधना कर रहा हो, तो उसकी साधना से उत्पन्न आध्यात्मिक शक्ति उसके प्रतिकूल प्रारब्ध को कम करने की दिशा में निर्देशित होगी जिसमें व्यक्ति आ के साथ उसका प्रतिकूल प्रारब्ध सम्मिलित हो सकता है । इस प्रकरण में, व्यक्ति अ की साधना से उत्पन्न होने वाली आध्यात्मिक शक्ति सूक्ष्म स्तर पर व्यक्ति अ के लिए व्यक्ति आ के लेन-देन खाता केंद्र में व्याप्त नकारात्मक संस्कारो को निष्प्रभ करने के लिए निर्देशित होगी । फलस्वरूप व्यक्ति आ को व्यक्ति अ की साधना से उत्पन्न सत्व गुण प्राप्त होगा । इस प्रकार, व्यक्ति आ अवचेतन स्तर पर व्यक्ति अ के साथ उसके नकारात्मक खाते के बारे में भूल जाएगा ।

अन्य व्यक्ति को क्षमा करने पर अथवा उसके लिए प्रयास करने से , क्षमा करने वाले की आध्यात्मिक उन्नति में सहायता मिलती है और व्यक्ति आध्यात्मिक रूपसे शीघ्र प्रगति करता है । ऐसा इसलिए है क्योंकि क्षमा करने का प्रयास करने से,व्यक्ति द्वारा उस व्यक्ति के साथ अधिक कर्मों के खाते निर्माण होने की संभावना घट हो जाती हैं, जो उसे कष्ट पहुंचाता हैं | इसके साथ ही, साधना करने से दूसरे व्यक्ति के प्रति मन में नकारात्मक संस्कार न्यून होते हैं । अंतत:, जैसे-जैसे व्यक्ति ७०-८०% आध्यात्मिक स्तरों से आगे बढता है, व्यक्ति को जीवन की परिस्थितियों के प्रति साक्षीभाव अनुभव होने लगता है । इस स्तर पर, व्यक्ति अनुभव करता है कि उसके चारों ओर का संसार माया है और एकमात्र वास्तविकता उसके भीतर विध्यमान आत्मा तत्त्व (ईश्वरीय तत्त्व) है । जैसे जैसे वह अपनी पंच इंद्रियों ,मन और बुद्धि से स्वयं को कम और कम पहचानता है, और केवल भीतर विद्यमान आत्मा से ही स्वयं को पहचानता हैं , तब वह सभी घटनाओं को माया के रूप में अनदेखा करने में सक्षम हो जाता है और इसलिए स्थिर रहता है । इसके कारण, वह न केवल क्षमा करने में सक्षम होता है अपितु उस घटना के बारे में भी भूल जाने में भी सक्षम होता हैं, जहां उसे कष्ट प्राप्त हुआ था ।

जैसा कि हमने पहले कहा था कि प्रतिकूल प्रारब्ध और अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित होना , दोनों ही आध्यात्मिक समस्याएं हैं और इनका समाधान आध्यात्मिक उपायों से ही करना होगा । साधना करने से आध्यात्मिक शक्ति और सकारात्मकता प्राप्त होती है जो कि जाने देने (क्षमा करने) और आगे बढने में सहायता करती है।

क्षमाशीलता में वृद्धि करने का सर्वश्रेष्ठ दीर्घकालिक आध्यात्मिक उपाय है वैश्विक सिद्धांतों के अनुसार साधना करना । हम भगवान का नामजप करने की सलाह देते हैं । यह प्रयास अवचेतन मन में स्थित नकारात्मक संस्कारों को शुद्ध करने में सहायता करता है । हम स्वभावदोषों को न्यून करने तथा गुणों को बढाने हेतु स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया का अभ्यास करने की सलाह भी देते हैं । यह दूसरों को क्षमा करने और एक अच्छा इंसान बनने में सक्षम बनाती है ।

५.१ क्षमाके विषयपर अन्य प्रश्न

१. क्या ऐसा कोई पाप है जो क्षमा योग्य नहीं है और जिससे स्वयं को मुक्त करवाना असंभव है?

उत्तर: नहीं, वे सभी कृत्य जिनसे अन्यों को कष्ट पहुंचता हैं, सांचित प्रारब्ध अथवा सांचित कर्म की ओर जाते हैं । व्यक्ति को वह कष्ट भोगना ही पडता है जो कि किसी जीवनकाल में उसके प्रारब्ध के रूप में उसके कर्मों के साथ अनुरूप होता है ।

२. भगवान के विरुद्ध पाप क्या है?

उत्तर: ये ऐसे कृत्य हैं जो आध्यात्मिकता के प्रसार (अध्यात्मप्रसार) को हानि पहुंचाते हैं जैसेकि अध्यात्म के विषय में समाज को भ्रमित करना अथवा उन संत को कष्ट पहुंचाना जिनका आध्यात्मिक स्तर ८०% के ऊपर है।

३. मैं भगवान से क्षमा कैसे प्राप्त कर सकता हूं?

उत्तर: वह साधना करके जो कि अध्यात्म के ६ मूलभूत सिद्धांतों के अनुरूप हो ।

४. परिदृश्य १ का ही उदाहरण (ऊपर खंड ३ में दिया गया है) देखते है, कि व्यक्ति अ के खाते का क्या होता हैं, यदि व्यक्ति आ साधना करता है और मोक्ष प्राप्त कर लेता है ?

उत्तर: ऐसे प्रकरण में व्यक्ति अ को व्यक्ति आ के माध्यम से कष्ट का अनुभव नहीं होगा किन्तु अपने प्रारब्ध के कारण कष्टों का अनुभव न्यून भी नहीं होगा जो भगवान द्वारा आयोजित किया जाएगा ।

६. निष्कर्ष

क्षमा दूसरों को मुक्त करती है, लेकिन सर्वाधिक, यह हमें मुक्त करती है । जब कोई साधना करता है, तो क्षमा करना आसान हो जाता है और ये दोनों पहलू शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति करने में सहायता करते हैं । नकारात्मक विचारों और प्रतिशोध की अवधि और तीव्रता बहुत न्यून हो जाती है, और व्यक्ति एक खुशहाल जीवन व्यतीत करता है ।