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१. दक्षिण दिशा में पैर कर सोना – प्रस्तावना

अच्छी नींद कैसे लें, इस विषय के विविध अंगों से संबंधित सात्विक जीवनशैली पर आधारित इस लेख में, अच्छी नींद लेने संबंधी विविध सूत्रों की जानकारी हम ले रहे हैं । इस लेख में दक्षिण दिशा में पैर कर सोने से होनेवाले प्रभावों का हम अध्ययन करेंगे । अच्छी नींद से संबंधित इस लेख में हम पूर्णतः आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से अध्ययन करेंगे । इस लेख से दक्षिण दिशा में पैर कर सोने के विषय में हमें अभ्यासपूर्ण निर्णय लेने के लिए जानकारी मिलेगी ।

१.१  अच्छी नींद कैसे लें, इससे संबंधित आध्यात्मिक शोध – दक्षिण दिशा में पैर कर सोने से होनेवाले प्रभाव

अच्छी नींद मिले इस हेतु दक्षिण दिशा में पैर कर सोने से होनेवाले प्रभावों के विषय में SSRF  के साधकों ने आध्यात्मिक स्तर पर अतिजाग्रत छठवीं ज्ञानेंद्रिय (अतिंद्रिय संवेदनक्षमता) के माध्यम से शोध किया ।

२. दक्षिण दिशा में पैर कर सोने से होनेवाले आध्यात्मिक प्रभाव

२.१ अधोगामी और तिर्यक तरंगों की कार्यरतता में वृद्धि

वायुमंडल में विविध प्रकार की तरंगें मूलतः ही विद्यमान होती हैं । किसी विशिष्ट दिशा में इनका अस्तित्व तथा प्रवाह अधिक होता है । हमारी देह जब इनके प्रवाह की दिशा से समांतर होती है, तब हम उनके क्षत्र में प्रवेश करते हैं । इससे हम पर इनका अधिक प्रभाव पडता है । इन तरंगों में दो तरंगें कष्टप्रद अथवा नकारात्मक (अनिष्ट) प्रकार की होती हैं । इसमें नीचे की दिशा में प्रवाहित होनेवाली एवं पाताल की ओर जानेवाली कुछ तरंगें होती हैं और दूसरी तरंगें तिर्यक तरंगों होती हैं । तिर्यक का शब्दार्थ है, तिरछी । तिरछी होने के कारण, वे कष्टप्रद होती हैं । ये दोनों तरंगें दक्षिण दिशा में प्रवाहित होती हैं । इसलिए दक्षिण दिशा इन नकारात्मक (अनिष्ट) तरंगों से आवेशित रहती है ।

जब हम दक्षिण दिशा में पैर करके सोते हैं, तब हमारी देह इन अधोगामी और तिर्यक तरंगों के कार्यक्षेत्र में आती है । इससे देहांतर्गत तथा देह के बाहर के सूक्ष्म रज-तम कणों की कार्यरतता में वृद्धि होती है । सूक्ष्म रज-तम कणों की यह वृद्धिंगत कार्यरतता अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच आदि.) की कार्यरतता के लिए सहायक होती है । परिणामस्वरूप अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) से प्रभावित होने की आशंका बढती है ।

२.२ पाताल तथा यमलोक से आनेवाले स्ंपदनों में वृद्धि

दक्षिण दिशा यमलोक और सूक्ष्म रज-तम के स्पंदनों से भी संबंधित होती है । यह कष्टप्रद भी होती है । जब हम दक्षिण दिशा में पैर कर सोते हैं, तब पाताल और यमलोक के स्पंदन एकत्रित हो जाते हैं ।

इससे हम मूल सूक्ष्म रज-तम तरंगों और अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) को आकर्षित करते हैं । जब हम दक्षिण दिशा में पैर कर सोते हैं, तब उपर्युक्त सभी घटकों के संयुक्त प्रभावों के परिणामस्वरूप हमें विविध प्रकार के कष्ट हो सकते हैं उदा. – नींद न आना, स्वप्न आना, नींद में भय लगना अथवा भय के कारण नींद से जग जाना इ. ।

३. सारांश

अच्छी नींद लेने की दृष्टि से घर बनाते समय हमारे पलंग की दिशा संबंधी विचार करना महत्वपूर्ण है । घर के बाहर किसी अन्य स्थान में अथवा होटल में अथवा किसी दूसरे के घर में यह सावधानी बरतनी चाहिए कि हम दक्षिण दिशा में पैर कर न सोएं ।

अच्छी नींद कैसे लें, इस संबंधी आनेवाले लेखों में हम अन्य दिशा में पैर कर सोने से होनेवाले प्रभावों पर विचार करेंगे ।