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. आध्यात्मिक दृष्टि से स्नान की उचित पद्धति

स्नान करते समय हमारा पूरा ध्यान शारीरिक स्वच्छता की आेर ही रहता है । आध्यत्मिक स्तर पर शुद्धि करने तथा वह कैसे करें इस हेतु सर्वोत्तम पद्धति कौन सी है, इसके विचार हमारे मन में नहीं आते । बहुत से देशों में बाथ टब अथवा फुहारे से स्नान करना आम बात है । अपने शोध के माध्यम से SSRF ने पाया कि भारत की सर्वसामान्य पद्धति से स्नान करने पर सबसे अधिक आध्यात्मिक लाभ होता है ।

SSRF द्वारा किए आध्यात्मिक शोध के अनुसार, बाथ टब और फुहारे से स्नान करने से शारीरिक शुद्धि तो होती है पर आध्यात्मिक स्तर पर उससे हानि होती है । इस लेख में पालथी मारकर स्नान करने के आध्यात्मिक लाभ इस विषय पर SSRF द्वारा किए आध्यात्मिक शोध को आपके समक्ष रख रहे हैं ।

इस लेख को अच्छे से समझने के लिए हम चाहेंगे कि आप निम्नलिखित लेख भी पढें :

. बैठकर पालथी मारकर स्नान करना

. पालथी मारकर स्नान करने के सुझाए गए तरीके

पालथी मारकर स्नान करते समय हम अधिक से अधिक आध्यात्मिक लाभ ले सकें, इसके लिए हमें निम्नलिखित उपाय करने चाहिए ।

काली शक्ति : अनिष्ट शक्तियों द्वारा मुख्य रूप से प्रयोग किया जाने वाला प्रमुख शस्त्र है काली शक्ति जो एक आध्यात्मिक शक्ति है और भूलोक की किसी भी क्रिया में हेरफेर करने में सक्षम है । इस हेरफेर की मात्रा आक्रमण करनेवाली अनिष्ट शक्ति के बल पर निर्भर करती है ।

प्रार्थना : स्नान के पूर्व हमें आपतत्त्व से प्रार्थना और कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए । हमारे देह का रजतम नष्ट करने हेतु तथा शारीरिक स्वच्छता के साथ-साथ, अपने अंतर्मन की शुद्धि के लिए भी प्रार्थना करनी चाहिए ।

सात्त्विक वस्तुओं का प्रयोग करना सात्त्विक आध्यात्मिक उपचार की वस्तुएं जैसे विभूति, गोमूत्र, खडा नमक अपने स्नान करने के जल में मिलाना चाहिए । ये तीव्र गति से व्यक्ति की देह से काली शक्ति नष्ट करने में सहायता करते हैं ।

बैठने की मुद्रा : स्नान करने की इस पद्धति में मनुष्य लकडी के पीढे पर पालथी मारकर बैठता है । भूमि पर बैठकर स्नान नहीं करना चाहिए, इससे अनिष्ट शक्तियों (भूत, राक्षस, मांत्रिक इत्यादि) से कष्ट हो सकता है । भूमि पर बैठकर स्नान करने से पाताल लोक से आने वाले कष्टदायक स्पंदनों से आध्यात्मिक हानि हो सकती है । निचले चक्र (आध्यात्मिक शक्ति के केंद्र (कुंडलिनी शक्ति) और पेट का निचला भाग ऐसे सूक्ष्म आक्रमणों के प्रति अधिक संवेदनशील होता है । अत: यह महत्त्वपूर्ण है की हम पीढे पर बैठकर स्नान करें । लकडी सकारात्मक स्पंदन ग्रहण और प्रक्षेपित करती है अत: लकडी के पीढे पर बैठकर स्नान करना अधिक श्रेयस्कर है ।

स्नान की वस्तुएं : स्नान की बाल्टी से हम जल अपने पर डालते हैं । देह की पूरी स्वच्छता करने के लिए हम पैर खोल सकते हैं । स्नान करते समय सात्त्विक शैंपू तथा साबुन का उपयोग करें । महंगे साबुन का अर्थ यह नहीं है कि वह आध्यात्मिक दृष्टि से भी अच्छा होगा ।

देवता का नामजप करना : स्नान करते समय लगातार देवता का नामजप करें । इससे जल में चैतन्य कार्यरत रहता है ।

प्रार्थना : स्नान के पश्चात अपनी शुद्धि होने के लिए कृतज्ञता व्यक्त करते हुए प्रार्थना करें ।

२.२     पालथी मारकर स्नान करने का सूक्ष्म परीक्षण

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SSRF की साधिका कु. प्रियांका लोटलीकर ने जिनकी छठवीं इंद्रिय जागृत है, पालथी मारकर स्नान करने के सूक्ष्म प्रभाव का अध्ययन किया । उन्होंने सूक्ष्म ज्ञान के आधार पर इस स्नान करने की पद्धति से उन्हे जो विभिन्न आध्यात्मिक शक्तियां दिखाई दी उनकी आकृति बनाई ।

सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित इन आकृतियों से हमें ज्ञान मिलता है कि पालथी मारकर स्नान करने से आध्यात्मिक लाभ क्या होते हैं ।

 

 

 

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भाव : जब कोई भावावस्था में होता है तब उस समय के लिए उसका मन ईश्वर से एकरूप हो जाता है । मन और बुद्धि से अलग व्यक्ति ईश्वर के साथ महान संवाद की अनुभूति लेता है । अतः इस स्तर पर व्यक्ति के मन में किसी प्रकार के विचार अथवा ईश्वर के प्रति किसी प्रकार का संशय नहीं रहता ।
  •  सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित इस आकृति में देखेंगे कि पहले सूत्र में भाव जागृत हुआ है । क्योंकि इस मुद्रा में भाव अनुभव करने की संभावना अधिक रहती है तथा व्यक्ति अंतर्मुख होता है और ईश्वर में उसका ध्यान रहता है । स्नान से पूर्व प्रार्थना करने से भाव जागृत होने में सहायता होती है । जब हम निरंतर साधना करते हैं तब भाव जागृति होने की संभावना अधिक रहती है ।
  • स्नान करते हुए व्यक्ति में जागृत हुआ भाव, जल में चैतन्य कार्यरत करता है । इससे व्यक्ति के चारों ओर चैतन्य का वलय निर्माण होता है । जब हम पालथी मारकर बैठते हैं तब देह का आकार त्रिकोण हो जाता है तथा स्नान के समय सुरक्षा कवच निर्माण होना सुलभ हो जाता है ।
  • आध्यात्मिक सकारात्मकता बढने के कारण, वातावरण से शक्ति आकर्षित होती है । वह जल द्वारा प्रवाहित होती है तथा पैर मुडे होने के कारण, संचारित होती रहती है और देह में कार्यरत रहती है । परंतु जब हम खडे होकर स्नान करते हैं तब इसके विपरीत ही होता है, जहां शक्ति हमारे पैरों से बाहर प्रवाहित होती है, और हम जल के चैतन्य से होनेवाले लाभ से वंचित रह जाते हैं ।
  • पालथी मारकर बैठने से, कुंडलिनी चक्र की (मध्य नाडी) सुष्मना नाडी कार्यरत रहती है जो हमें जल के चैतन्य को ग्रहण करने में सहयोग करती है ।
  • कुछ लोगों के लिए, आयु अधिक होने कारण, चोट लगने अथवा अन्य किसी कारण से लकडी के पीढे पर बैठकर स्नान करना संभव नहीं होता । ऐसी स्थिति में उन्हें क्या करना चाहिए ? ऐसे में प्रार्थना करना सबसे सुलभ साधन है । आर्तता से की गई निम्नलिखित प्रार्थना से व्यक्ति को पालथी मारकर किए गए स्नान से होने वाले लाभ प्राप्त होता है, फिर वह शारीरिक स्तर पर ऐसा करने में सक्षम न हो ।
‘‘हे ईश्वर, मैं पालथी मारकर स्नान करने में असमर्थ हूं । कृपया मुझे उससे होने वाले आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होने दें ।’’
  • अपने दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलाप करते समय व्यक्ति की देह के आसपास जो सूक्ष्म काली शक्ति का आवरण निर्माण होता है, वह भी दूर होता है । इसके विपरीत, फुहारे से तथा बाथ टब में स्नान करने से काला आवरण और बढ जाता है ।

. सारांश में

व्यक्तिगत स्वच्छता के लिए हमारे पास अनेक विकल्प उपलब्ध हैं, व्यापक स्तर पर प्रत्येक के आध्यात्मिक लाभ अथवा बुरे प्रभाव रहते हैं । हम जो कुछ भी करें, किसी भी तरह की जीवन पद्धति का हमें तभी लाभ होता है जब वह केवल सात्त्विक ही न हो अपितु उसको साधना की जोड दी जाए । जैसा कि कहा गया है, ‘‘अध्यात्मशास्त्र कृति का शास्त्र है ।’’ भावपूर्ण रूप से की गई प्रार्थना हमें जल और वातावरण से सात्त्विकता ग्रहण करने में सहयोग करती है साथ ही अनिष्ट शक्तियों से हमारी रक्षा होती है ।

देह और अंतर्मन दोनों के मलरूपी विकारों को स्वच्छ करना ही खरा स्नान है । संक्षेप में निरंतर साधना करना ही खरा स्नान है ।

– एक ज्ञानी

‘‘आध्यात्मिक स्वच्छता ही खरी स्वच्छता है । हमारा मन ही शुद्ध नहीं हुआ तो साबुन का क्या उपयोग ? ’’ – संत तुकाराम