HIN-sleeping-during-day

१. प्रस्तावना

हम सभी जानना चाहते हैं कि सुखदायक निद्रा कैसे प्राप्त करें ताकि जागने पर हमारा शरीर पूर्णतः ऊर्जावान अनुभव करे । अच्छी नींद कैसे आए – इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं में से एक है – हमारे सोने के जाने का समय । बहुत लोगों को सांझ में कार्यालय से अपने घर आते ही एक झपकी लेने की आदत होती है । प्रस्तुत लेख में हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि जब हम सांझ में सोते हैं तब वास्तव में सूक्ष्म स्तर पर क्या घटित होता है ताकि हम एक उचित निर्णय ले सकें कि अच्छी तरह कैसे सोएं और कब सोएं जिससे सुखदायक नींद आए ।

आरंभ में हमें यह समझना होगा :

  • आध्यात्मिक दृष्टिकोण से,  नींद  मूलतः तमोगुण से संबंधित अवस्था होती है । इसका अर्थ यह है कि सोते समय  हमारे शरीर का तमोगुण बढ जाता है ।
  • इतना ही नहीं, चूंकि हमारी साधना निद्रा अवस्था में सबसे अल्प होती है, इसलिए अध्यात्मिक स्तर पर हम नींद में अत्यधिक निर्बल  होते हैं । परिणामस्वरूप, निद्रा की अवस्था में हम मूल रज-तम गुणों के आध्यात्मिक प्रदूषण एवं अनिष्ट शक्तियों (प्रेत, पिशाच, काली शक्तियां इत्यादि ) के  आक्रमणों के प्रति अति संवेदनशील  हो जाते हैं ।

२. क्या होता है जब हम सोते हैं ?

जब हम सोते हैं :

  • हम चेतन अवस्था से सुप्त अवस्था में चले जाते हैं ।
  • इस कारण, हमारे शरीर के आंतरिक स्थान अर्थात शरीर के भीतर के दो अंगों के मध्य के स्थान की एवं शरीर की संचार प्रणाली की तथा कोशिकाओं की क्षमता अत्यंत घट जाती है ।
  • निद्रा की अवस्था में हमारे शरीर के भीतर उपप्राण प्रवाहित होता है जिसके कारण आंतरिक मलोत्सर्गिक वायु (गैस) सक्रिय हो जाती हैं और नीचे की दिशा में बढना आरंभ कर देती हैं ।
  • नीचे की दिशा में हो रहे इस प्रवाह के प्रभाव से, पाताल से प्रक्षेपित होने वाले कष्टदायक स्पंदन सो रहे व्यक्ति की ओर आकर्षित होते हैं  ।

सांझ में वातावरण में व्याप्त रज एवं तम कणों का संवेग (momentum) दिन के अन्य पहर की तुलना में कहीं अधिक होता है । पाताल की अनिष्ट शक्तियां इन रज एवं तम कणों की गति का उपयोग कर बडी सहजता से हमारे वातावरण में प्रवेश कर जाती हैं । आध्यात्मिक दृष्टि से इस प्रदूषित वातावरण के प्रभाव से, राजसिक एवं तामसिक तरंगे व्यक्ति के स्थूल देह से उसके प्राणदेह में बहुत ही अल्प समय में स्थानांतरित हो जाती  हैं ।

इसके फलस्वरूप, व्यक्ति निम्नलिखित कष्टों से पीडित हो सकता है ।

  • दुःस्वप्न
  • चौंक कर जाग जाना
  • शरीर का कंपन
  • विद्युत के झटके के समान संवेदन
  • अनिष्ट शक्तियों द्वारा वश में किया जाना

इस प्रकार, संध्या की एक झपकी से शारीरिक स्तर पर भले ही हमारे शरीर को विश्राम मिलता हो, परंतु गहन आध्यात्मिक स्तर पर हमें अत्याधिक हानि होती है । इस शास्त्र से हम अनभिज्ञ होते हैं, इसलिए हम यह अनुभव नहीं कर पाते कि हम इससे प्रभावित हो चुके हैं और न ही हम ऊपर उल्लेखित  कष्टों के कारण समझ पाते हैं ।

३. सारांश में

अतः आध्यात्मिक  परिप्रेक्ष्य से,  संध्या काल में  रज एवं तम तत्वों की मात्रा बहुत अधिक होती है, इसलिए हमें निद्रा जैसी किसी भी तामसिक  गतिविधि में  लिप्त  नहीं  होना  चाहिए ।