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१. प्रास्ताविक

कुछ देश एवं संस्कृति में, उदाहरणार्थ जापान में झुककर एक-दूसरे का अभिवादन किया जाता है । अभिवादन करने की इस लेखमाला में हम आध्यात्मिक शोध पर आधारित झुककर अभिवादन करने की पद्धति के विषय में देखेंगे ।

२. झुककर अभिवादन करने की पद्धति का विवरण

जब दो व्यक्ति एक-दूसरे के सामने खडे हों, तो वे अपने शरीर को दूसरे की ओर विशिष्ट कोण में एक साथ झुकाकर अभिवादन करते हैं।

अधिकतर जापान, कोरिया, ताइवान तथा वियतनाम में, पीठ को सीधे रख, हाथों को बगल में सीधे रख (पुरुषों के लिए)अथवा दोनों हाथों को आगे की ओर मिलाकर (महिलाओं के लिए), दृष्टि झुकाकर, कमर से झुककर अभिवादन किया जाता है । झुककर किए जानेवाले अभिवादन साधारणत: तीन प्रकार के होते हैं : अनौपचारिक, औपचारिक अथवा अधिक औपचारिक । अनौपचारिक अभिवादन में झुकाव १५ डिग्री कोण, औपचारिक अभिवादन ३० डिग्री कोण में होता है तथा अधिक औपचारिक अभिवादन में झुकाव इससे अधिक होता है । (संदर्भ : Wikipedia)

सूक्ष्मज्ञान पर आधारित इस चित्र की सत्यता प्रतिशत की मात्रा में दी है, जो कि प.पू.डॉ.आठवलेजी की प्रगत छठवीं ज्ञानेंद्रिय द्वारा निश्चित की जाती है और विज्ञान के आधार पर इसमें जो अशुद्धियां हैं, वे उसे ठीक करते हैं । सूक्ष्म-ज्ञान पंचज्ञानेंद्रिय, मन और बुद्धि के परे होता है । इसलिए उदा.सामान्य व्यक्ति की छठवीं ज्ञानेंद्रिय की ग्रहण क्षमता, जो नगण्य होती है; उसकी तुलना में ८० प्रतिशत सत्यता का अर्थ है, सर्वाधिक सत्यता ।

३. झुककर अभिवादन करना -एक आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य

हमारी एक साधिका, (पू.) श्रीमती योया वाले जिनकी छठवीं ज्ञानेंद्रिय जागृत है, उन्होंने दैवी ज्ञान के आधार पर, दो व्यक्तियों के इस प्रकार से मिलने पर क्या परिणाम होता है, इस विषय में यह सूक्ष्म चित्र बनाया है । प.पू. डॉ. आठवलेजी ने चित्र की विश्‍वसनीयता परखकर उसे प्रमाणित किया है । प्रगत छठवीं ज्ञानेंद्रिय द्वारा परखने पर यह चित्र ८० प्रतिशत सही पाया गया ।

झुककर अभिवादन करने के सूक्ष्म पहलू के विषय में निम्नलिखित चित्र में विस्तृत विवरण दिया है । चित्र को भली भांति समझने हेतु चक्र इस लेख का संदर्भ लें ।

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जब दो व्यक्ति झुककर एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं, तो दोनों के सर्व ओर एक दैवी शक्ति का सुरक्षा-कवच निर्माण होता है । दोनों व्यक्तियों से दैवी शक्ति के कणों का प्रक्षेपण होकर वे उन दोनों के मध्य के अंतर की पूर्ति करते हैं । उनकी देह के सर्व ओर अध्यात्मप्रसार के लक्ष्य के लिए सहायक सृजनशक्ति का कवच निर्माण होता है और उससे उन दोनों के मध्य शक्ति के कणों का प्रक्षेपण होता है ।

आजकल अधिकतर लोग साधना नहीं करते, जिससे उनकी देह के सर्व ओर सदैव कुछ मात्रा में काली शक्ति का सूक्ष्म आवरण रहता है । झुककर अभिवादन करने से चूंकि दोनों की देह का एक-दूसरे से स्पर्श नहीं होता, अत: एक-दूसरे की ओर इस काली शक्ति का प्रक्षेपण भी नहीं होता । यद्यपि दोनों के शरीर का एक-दूसरे से स्पर्श नहीं होता; परंतु मन, बुद्धि एवं अहं में अनेक विचार, स्वभावदोष एवं भावनाएं होती हैं । इसके कारण आज्ञाचक्र एवं सहस्रार चक्र के स्तर की काली शक्ति के आध्यात्मिक वलय, विचारों के रूप में धुंधली काली शक्ति की तरंगें, काली शक्ति के कणों के साथ प्रक्षेपित होती हैं । ईश्‍वर के आंतरिक सान्निध्य में नहीं, अपितु एक-दूसरे से वैचारिक एवं भावनिक स्तर पर संपर्क में होने से ऐसा होता है ।

ईश्‍वर के साथ आंतरिक सान्निध्य न होने से इस प्रकार के अभिवादन में चैतन्य नहीं रहता; किंतु दोनों से दैवी कणों का प्रक्षेपण होता है ।

३.१  झुककर अभिवादन करने के आध्यात्मिक लाभ

  • अभिवादन में सहभागी लोगों के बीच काली शक्ति का प्रक्षेपण नहीं होता ।
  • कुछ काल के लिए अभिवादन करनेवालों को दैवी शक्ति आच्छादित करती है ।
  • कार्यशक्ति की गतिशीलता बढानेवाली ऊर्जा बढती है जिससे अभिवादन करनेवालों को लाभ होता है ।
  • अभिवादन की यह पद्धति आदरयुक्त एवं अहं को न्यून (कम) करनेवाली है । अहं न्यून होना इस पर निर्भर है कि अभिवादन करनेवाले व्यक्ति में ईश्‍वर के प्रति कितना भाव है ।

३.२ अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से झुककर अभिवादन करने में त्रुटियां

  • ईश्‍वर के विचार अथवा ईश्‍वर से आंतरिक सान्निध्य नहीं रहता ।
  • औपचारिकता के कारण एक-दूसरे के प्रति अपनापन अल्प लगता है ।
  • अभिवादन करनेवालों के मध्य विचार एवं भावनाओं के रूप में काली शक्ति का आदान-प्रदान होता है ।

४. सारांश

आलिंगन, चुंबन अथवा हस्तांदोलन कर अभिवादन करने की तुलना में झुककर अभिवादन करना, आध्यात्मिक स्तर पर अधिक लाभदायी है । नमस्कार के कृत्य से सत्वगुण में वृद्धि होती है, जो झुककर अभिवादन करने से नहीं होती ।