स्वरविज्ञान एवं भाषा की लिपि का संबंध

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१. परीक्षण की पृष्ठभूमि तथा उद्देश्य

भाषांतरित रचना के परीक्षण के उपरांत यह विचार आया कि क्या भाषा की लिपि का भी कोर्इ प्रभाव हो सकता है । स्वरविज्ञान, भाषा-विज्ञान की एक शाखा है जिसमें विभिन्न भाषाऒं के मानवीय उच्चारों का अध्ययन किया जाता है । क्या उच्चार और उसकी लिपि अथवा अक्षर अथवा आकार जो उस उच्चार का प्रतिनिधित्व करता है, का कोर्इ प्रभाव है ?

उदाहरण के लिए; अंग्रेजी के अक्षर ’A’ का उच्चारण ‘ey’ होता है एवं देवनागरी लिपि में (जिसका उपयोग संस्कृत लिखने में होता है) यह उच्चारण ‘‘ अक्षर द्वारा दर्शाया जाता है ।

हमने एक सामान्य से प्रयोग के द्वारा यह समझने का प्रयत्न किया कि क्या विभिन्न भाषाऒं में एक विशेष उच्चारवाले किसी अक्षर के आकार से कोर्इ अंतर पडता है ।

२. प्रयोग की संरचना

भाषांतरित पदों के मध्य सूक्ष्म स्पंदनों में अंतर का अध्ययन करना, इस प्रयोग में जैसी संरचना की गर्इ थी, वैसी ही यहां भी की गर्इ । यहां भी हमने पिप तकनीक का उपयोग विभिन्न वर्णों से निकलनेवाले भिन्न स्पंदनों का अध्ययन करने के लिए किया ।

३. परीक्षण से प्राप्त अवलोकन

हमने ‘A’ एवं ‘‘ वर्णों का अध्ययन करने के लिए पिप तकनीक का उपयोग किया ।

अ) मूलभूत पाठ्यांक

पिछले परीक्षण की कार्यप्रणाली का उपयोग करते हुए हमने एक खाली सफेद कागज को एक सफेद मेज पर रखकर मूलभूत पाठ्यांक प्राप्त किए । नीचे दिए चित्र में कागज के चारों ओर फैले स्पंदन दर्शाए गए है । पिप चित्र में विभिन्न रंगों का अर्थ दिया गया है ।

आ) अंग्रेजी अक्षर ‘A’ द्वारा प्रक्षेपित कंपन

हमने खाली कागज के स्थान पर अंग्रेजी अक्षर ‘A’ से निकलनेवाले कंपनों की गणना की । हमने तुरन्त देखा कि रेतीले भूरे रंग (वातावरण की नकारात्मकता का सूचक) में वृद्धि हो गई।

कृपया ध्यान दें : प्रत्येक नए पाठ्यांक के मध्य तथा माप के लिए नई वस्तु को रखने से पहले हमने कक्ष में स्पंदनों को उनकी वास्तविक मूल अवस्था (जैसी पिप में देखी गई) में पुनः आने देने हेतु कुछ समय प्रतीक्षा करते हैं ।

इ) संस्कृत के  अक्षर ‘ए’ द्वारा प्रक्षेपित स्पंदन

अंग्रेजी अक्षर ‘A’ के स्पन्दनों का निरीक्षण करने के उपरांत, हमने देवनागरी वर्णमाला के ‘ey‘ स्वर उत्पन्न करनेवाले अक्षर, जो देवनागरी में ’’ कहलाता है उसके स्पन्दनों को मापना प्रारंभ किया । शीघ्र ही हमने देखा कि स्पंदनों में परिवर्तन होना आरंभ हो गया । हमने देखा कि चमकीले तथा पीले सकारात्मक रंगों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई तथा रेतीले भूरे तथा मटमैले नारंगी जैसे नकारात्मक रंगों की मात्रा घट गई ।

र्इ) संस्कृत अक्षर ´अ’ से प्रक्षेपित स्पंदन

हमने ‘uh‘ के रूप में उच्चारण होनेवाले ‘A‘ की तुलना देवनागरी लिपि में वैसा ही उच्चार रखनेवाले अक्षर ‘‘ से की । उसके साथ भी मूलभूत पाठ्यांकों की तुलना की गर्इ । देवनागरी में लिखे ‘‘ ने अंग्रेजी में लिखे अपने समान उच्चार के अक्षर ‘A‘ की तुलना में अधिक सकारात्मक स्पंदन दर्शाए । सकारात्मक स्पंदनों का अनुपात ‘A‘ के पिप चित्र में दिखनेवाले स्पंदनों की तुलना में कहीं अधिक था ।

उ) सारांश

विभिन्न अवलोकनों के उपरांत, हमने मूल पाठ्यांक से प्रत्येक अक्षर में होनेवाले परिवर्तन के साथ सकारात्मक तथा नकारात्मक रंगों को एकत्रित करके एक चार्ट बनाया है । नीचे दिए गए चार्ट में, हमने सकारात्मक स्पंदन को पीले में तथा नकारात्मक स्पंदनों को गहरे धूसर (ग्रे) रंग में दर्शाया है । पिप चित्र में दिखनेवाले कुल स्पंदनों को प्रतिशत के रूप में दोनों रंगों में दर्शाया है ।

मूल पाठ्यांक तथा लैटिन लिपि के अक्षरों की तुलना में देवनागरी लिपि के अक्षरों में अधिक उच्च मात्रा में सकारात्मक स्पंदन थे ।

प्रत्येक अक्षर के साथ पिप चित्र में प्रत्येक रंग का अनुपात किस प्रकार परिवर्तित होता है इसकी विस्तृत जानकारी हमने नीचे की सारणी में दी हैं । कृपया ध्यान दें कि विश्लेषण किए जाने वाले पिप चित्र में रंगों के प्रतिशत क्षेत्र की गणना में हमने मेज तथा वस्तु को सम्मिलित नहीं किया ।

छठी ज्ञानेंद्रीय के निरीक्षण के आधार पर बनाए सूक्ष्म ज्ञान संबंधी चित्र

यूरोपी मूल की पू. श्रीमती योया वाले एक संत हैं एवं महर्षि ध्याम विश्वविद्यालय के आध्यात्मिक शोध दल की सदस्य हैं । वे आंशिक रूप से मूक-बधिर  हैं । तब भी वे छठी ज्ञानेंद्रीय से देख सकतीं हैं एवं आध्यात्मिक स्पंदन अनुभव कर सकतीं हैं , जो एक सामान्य मानव के लिए संभव नहीं । उन्होंने ‘A’ एवं ‘’ के चारों ऒर प्रसारित होनेवाले स्पंदनों को अपनी विशिष्ट योग्यता के आधार पर चित्रित किया है । ये चित्र हमने नीचे दिए हैं । इन चित्रों से यह स्पष्ट होता है कि ´’ का आकार ‘A’ की तुलना में आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक सकारात्मक है । उनका निरीक्षण अक्षरों के पिप चित्र के अनुरूप था ।

४. विश्लेषण एवं निष्कर्ष

  • देवनागरी तथा लैटिन लिपि के अन्य अक्षरों पर भी यह प्रयोग करने पर समान परिणाम प्राप्त हुए ।
  • इन प्रयोगों से हमें यह विदित हुआ कि किसी भाषा के वर्णों एवं उनके स्वर में निश्चित संबंध होता है । किसी भाषा में जिस प्रकार से स्वरों का उच्चार होता है उससे निश्चित ही उनसे प्रक्षेपित सकारात्मकता प्रभावित होती है ।
    नियम: एक विशेष उच्चारण दर्शानेवाले अक्षर का आकार अथवा रूप उस अक्षर से प्रक्षेपित होनेवाली सकारात्मकता अथवा नकारात्मकता का निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण है ।
  • इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि किसी वर्णमाला के किसी अक्षर का वातावरण पर सकारात्मक अथवा नकारात्मक प्रभाव पडता है तो संभवत: उसका वैसा ही प्रभाव लेखक अथवा पाठक पर भी पडेगा । हमारे शिक्षातंत्र एवं लैखिक संचार पर इस सिद्धांत का बहुत गहरा प्रभाव पडेगा ।