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१. प्रस्तावना

मैं उच्च विद्यालय के अंतिम वर्ष में हूं । मैं यूरोप में रहती हूं और मेरा नाम एना कोलर है । मैं पिछले ४ वर्षों से SSRF की साधिका भी हूं और नियमित रूप से नामजप साधना, सत्संग में सम्मिलित होना, सत्संग लेना तथा अन्य प्रकार की सत्सेवा करती हूं । मैं १८ वर्ष की हूं ।

(संपादकीय टिप्पणी : वर्ष २०१४ के प्रारंभ में, परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी ने एना का आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत घोषित किया । )

मैं जिस विद्यालय में पढती हूं, इस लेख में मैं उसका उदाहरण साझा करुंगी । इस लेख का उद्देश्य हमारे पाठकों को वर्तमान समय के हमारे विद्यालयों पर चिंतन कराना है कि क्या ये विद्यालय नवयुवक-नवयुवतियों की आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहे हैं, जो आगे चलकर हमारे नेता बनेंगे । प्रश्न यह भी उठता है कि क्या हमारी शिक्षण संस्थाएं अपने उद्देश्यों का निर्वाह कर रही हैं । आजकल के विद्यार्थी तथा शिक्षक कैसे हैं ? क्या प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षण संस्थाएं उतनी ही आदरणीय तथा उपस्थित होने योग्य है जैसी वे होनी चाहिए थीं । यह लेख इन पहलुओं पर मेरा दृष्टिकोण है । यदि कोर्इ पाठक अपना दृष्टिकोण अथवा अपने अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो वे हमारे लॉग-इन सुविधा के माध्यम से हमें अपना निरीक्षण अवश्य लिखें ।

२. आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से विद्यालय

२.१ विद्यालय में शिरोवेदना (सिरदर्द)

मेरे ध्यान में आया है कि पिछले चार वर्षों से, विद्यालय में प्रायः मुझे सिर में वेदना होती है । सामान्यतः मुझे कभी भी शिरोवेदना नहीं होती है क्योंकि मैं एक स्वस्थ किशोरी हूं । मुझे ध्यान में आया है कि सिर में वेदना तभी उठती है जब मैं रज-तम प्रधान स्पंदनों (अनिष्ट शक्ति) के वातावरण में होती हूं । जब भी विद्यालय में शिरोवेदना प्रारंभ होती है, यह बहुत चिडचिडानेवाला होता है, इसलिए मैं उससे छुटकारा पाने का विचार करने लगती हूं । शिरोवेदना के आरंभ होते ही मैं कर्इ बार प्रथम संभव अवकाश में त्वरित ही विद्यालय परिसर छोडने का प्रयास करती हूं और वहां से जाते समय नामजप करती हूं । तब इससे मेरी शिरोवेदना बिना औषधि के ठीक हो जाती है । इससे मुझे भान हुआ कि विद्यालय परिसर में रज-तम की अधिकता कितनी है । जैसे ही मैं विद्यालय में वापस आती तत्क्षण ही शिरोवेदना पुनः आरंभ हो जाती । ऐसा मुझे लगभग प्रतिदिन होता ।

२.२ विद्यालय में नामजप करना अत्यंत कठिन होना

आध्यात्मिक प्रदूषण (रज-तम) की अधिकता, शोरगुल तथा कोलाहल के कारण विद्यालय में नामजप करना अत्यंत कठिन है । जब मैं कक्षा में नहीं होती हूं, तब नामजप करने के लिए शांत स्थान की खोज में मैं प्रायः विद्यालय के पुस्तकालय में जाकर अध्ययन करने का दिखावा कर नामजप करने का प्रयास करती हूं । बिना किसी व्यवधान के विद्यालय में नामजप करने का मेरे लिए यही एकमात्र उपाय है तथा इससे मुझे बहुत लाभ होता है ।

जब मैं विद्यालय में होती हूं, तब मैंने क्या किया तथा मैं क्या करनेवाली हूं, इसके संदर्भ में प्रायः मेरी एकाग्रता तथा स्पष्टता नहीं रहती । वहां मैं सरलता से भ्रमित हो जाती हूं, जो कि घर में रहने पर ऐसा नहीं होता । कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मैं अनायास ही किसी शिक्षक अथवा विद्यार्थी पर क्रोधित हो जाती हूं, जबकि विद्यालय के बाहर ऐसा कभी नहीं होता ।

(संपादकीय टिप्पणी : रज-तम की अधिकता से व्यक्ति पर काली शक्ति का आवरण आकर उसमें इस प्रकार भ्रम अथवा क्रोध उत्पन्न हो सकता है । यह केवल नामजप एवं आध्यात्मिक उपचारों जैसे नमकमिश्रित-जल के उपचार के द्वारा दूर किया जा सकता है ।)

२.३ विद्यार्थियों का मद्यपान कर मद्यधुंध अवस्था में विद्यालय आना

कभी-कभी विद्यार्थी मद्यपान करके विद्यालय आते हैं अथवा वे किसी कक्षा में सम्मिलित न होकर पास की दुकान से अल्काेहलिक पेय खरीदते हैं । कम आयुवालों को तथा विद्यालय के निकट मद्य विक्रय करना कानून के विरुद्ध है । विद्यालय के अधिकारियों की अनेक शिकायतों के उपरांत भी, यह दुकान विद्यार्थियों को मद्य विक्रय करती ही है । एक बार, एक विद्यार्थी मद्यपान करने के कारण अत्यधिक नशे में विद्यालय की सीढियों से नीचे गिर गया और उसे चाेटें आर्इं । उस समय सभी उसकी सहायता करने के लिए आए; किंतु कोर्इ भी उसे मद्यपान करने से रोक नहीं रहा था और ना ही वैसे मद्यधुंध अवस्था में विद्यालय आने से मना कर रहा था ।

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२.४ विद्यार्थियों की प्रत्येक नर्इ पीढी का पिछली पीढी से और अधिक बुरा होना

हाल ही में मैंने उच्च विद्यालय का तृतीय वर्ष पूर्ण किया । चूंकि विद्यालय पाली (शिफ्ट) में चलता है इसलिए, तृतीय वर्ष के उच्च विद्यालय के छात्र प्रथम वर्ष के छात्रों के साथ होते हैं । मुझे ध्यान में आया कि इस नए विद्यार्थियों का समूह हमारे समय के वर्ग के छात्रसमूह से और अधिक बुरा है । पहले ही दिन से, उनमें से अधिकतर छात्र शिक्षकों से आक्रमक ढंग से उन्हें घर शीघ्र जाने के लिए छोडने की मांग कर रहे थे । साथ ही वे कुछ दिन कक्षा में जाते भी नहीं । अनेक विद्यार्थी बिना किसी विशिष्ट कारण के विद्यालय के भित्तियों (दीवारों) पर मुक्का मारते हैं । वे वर्ग के दरवाजे को पैर से मारते हैं । उनके मुख में एक खालीपन दिखता है । बाहर से, भले ही वे अच्छे कपडे तथा अच्छे मोबार्इल फोन लिए हों, तब भी भीतर से वे बहुत रिक्त प्रतीत होते हैं । वे विद्यालय में शिक्षक तथा अन्य छात्रों को सम्मान देने की आवश्यकता तथा अपनी संस्कृति से अनभिज्ञ हैं, अध्यात्म का ज्ञान तो छोड ही दीजिए । उदाहरण के लिए, मैं कल्पना कर सकती हूं कि मेरी मां जब किशोर होंगी उस समय की विद्यालय जानेवाली उनकी पीढी की तुलना में हमारी पीढी कितनी बुरी है ।

(संपादक की टिप्पणी : समाज के साधना न करने के कारण लोगों के आध्यात्मिक स्तर में कमी होने के कारण ऐसा हो रहा है । वर्तमान समय में अध्यात्म के संदर्भ में मानवता में ‘‘स्वच्छंद-अवनति’’ से यह भावना निर्मित हुर्इ है कि प्रत्येक नर्इ पीढी अपनी पुरानी पीढी की तुलना में नैतिक तथा आध्यात्मिक रूप से दिवालिया होती जा रही है ।)

२.५ कहे अनुसार न चलना

हमारा विद्यालय भूगर्भशास्त्र, जल-मौसम विज्ञान तथा पर्यावरणीय विज्ञान संबंधी विद्यालय है, जो विद्यार्थियों को इन क्षेत्रों में निपुण प्रविधिज्ञ (तकनीशियन) बनने हेतु तैयार करता है । विद्यालयीन पाठ्यक्रम में पर्यावरणीय (कोलोजी) संबंधी विज्ञान का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है । ऐसा होने पर भी, अनेक विद्यार्थी पर्यावरणीय संबंधी सिद्धांतों के अनुसार वर्तन नहीं करते, जैसा इस प्रकार के विद्यालय के एक छात्र में होना चाहिए । वे कूडा विद्यालय के परिसर, गली इत्यादि में फेंक देते हैं । वास्तव में व इससे भी एक चरण आगे बढकर, जो विद्यार्थी इन नियमों का पालन करते हैं तथा कचरापेटी में कूडा डालते हैं, वे उनका उपहास करते हैं । विद्यालय के परिसर में कूडा फेंकनेवाले को ‘‘अच्छा (कूल)’’ समझा जाता है । सौभाग्य से ऐसे भी छात्र हैं, जो उपहास होने के उपरांत भी योग्य कार्य ही करते हैं । उनके जीवन में विकसित पर्यावरणीय ज्ञान का स्तर उनकी कृति से झलकता है ।

मैंने प्रायः देखा है कि जब शिक्षक विद्यालय के सामने पहुंकर अपनी कार से बाहर निकलते हैं, तब उनके मुख पर तनाव दिखता है तथा वे लंबी सांसे लेते हुए दिखते हैं, जैसे दर्शा रहे हैं कि हम छात्रों को पढाना कितना कठिन कार्य है । यह विद्यार्थियों को शिक्षकों से दूर ले जाता है I यद्यपि कुछ शिक्षक बहुत अच्छे हैं, वे कभी कभी थोडी हंसी-मजाक भी कर देते हैं जिससे हम सरलता से सीख सकें I ऐसा स्वाभाविक रूप से तब होता है जब विद्यार्थी उनसे निकटता अनुभव करते हैं I

अंतराल के समय, कुछ शिक्षक प्रवेश द्वार के पास धूम्रपान करते हैं क्योंकि विद्यालय परिसर में धूम्रपान करना मना है । ऐसा होने पर भी, अनेक विद्यार्थी बिना भय के विद्यालय परिसर में धूम्रपान करते हैं, यद्यपि हमारे विद्यालय परिसर में एक सुरक्षाकर्मी भी है । एक शिक्षक तो विद्यालय परिसर में विद्यार्थियों के साथ धूम्रपान करते हैं ।

. विद्यालय में हिंसा तथा मादक पदार्थों का सेवन

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पहले तो विद्यालय में पुलिस वर्ष में एक अथवा दो बार आती थी । हाल ही के दिनों में, जब से प्रथम वर्ष के नए छात्रों का समूह आया है , तबसे हिंसक घटनाओं के कारण पुलिस प्रायः आने लगी है । एक बार, दो विद्यार्थियों में भयंकर लडाई आरंभ हो गई । उसका कारण था कि एक विद्यार्थी ने दूसरे विद्यार्थी से गांजा लिया था और उसने उसके पैसे नहीं दिए थे । मुझे स्मरण है कि उस दिन मुझे सिर में बहुत वेदना हुई और मैं घर जाते समय बस में खडी भी नहीं रह पा रही थी । कुछ अन्य विद्यार्थियों का भी जी मचला रहा था तथा सिर में वेदना हो रही थी । इसने मुझे भान कराया कि लोभ तथा व्यसन के विचारों और हिंसक व्यवहार का दूसरों पर तथा वातावरण पर कितना प्रभाव पडता है I

(संपादकीय टिप्पणी : जो विद्यार्थी अधिक सात्त्विक हैं वे वातावरण में नकारात्मक शक्ति को अनुभव करने में अधिक संवेदनशील होते हैं )।

२.७ विद्यार्थियों के बोलचाल की पद्धति

पहले विद्यालय में अभद्र भाषा अथवा अपशब्दों का प्रयोग करना मना था । किंतु इन दिनों यह आम बात हो गई है । विद्यार्थी प्रायः शिक्षक के सामने भी गाली देते हैं, किंतु शिक्षक उन्हें अनदेखा कर देते हैं ।

(संपादकीय टिप्पणी: यदि किसी की हत्या करने से १०० प्रतिशत पाप अर्जित होता है तो उसी पैमाने पर अपशब्दों का प्रयोग करने से १ प्रतिशत पाप अर्जित होता है । जो शिक्षक विद्यालय में अभद्र भाषा को बोलने की अनुमति देते हैं, वे भी पाप अर्जित अथवा बुरे कर्म करते हैं ) ।

एक बार जब मैं धर्म विषय पर हमारी कक्षा में बैठी थी तब मैंने दो विद्यार्थियों को बातें करते हुए तथा अभद्र भाषा का अत्यधिक प्रयोग करते हुए सुना । मैंने सूक्ष्म स्तर पर अनुभव किया कि उनके द्वारा बोला गया प्रत्येक अपशब्द एक तेज चाकू समान था तथा मुझे नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा था । मुझे उन शब्दों से सूक्ष्म आक्रमण अनुभव हुआ । जो शिक्षक (जो पादरी हैं) धर्म के विषय में पढा रहे थे, वे उन विद्यार्थियों की बातों को पूर्णरूप से अनदेखा कर रहे थे । जब मैं पांचवीं कक्षा में थी तब मैंने तीसरी कक्षा के विद्यार्थियों को गाली बोलते हुए सुना । पहले लडकियों द्वारा गाली दिया जाना शर्मनाक होता था । किंतु अब चाहे लडका हो अथवा लडकी सभी गाली देते हैं । यहां तक कि जो विद्यार्थी पहले गाली नहीं देते थे वे भी धीरे धीरे गाली देने लग गए ।

(संपादकीय टिप्पणी : सत के संग में रहने को सत्संग कहते हैं I बुरी संगति को संस्कृत में कुसंग कहते हैं । जिस प्रकार व्यक्ति पर सत्संग का प्रभाव सकारात्मक रूप से पडता है, उसी प्रकार व्यक्ति पर कुसंग का दुष्प्रभाव पडता है ।)

अनुचित वार्तालाप का एक उदाहरण यह भी है कि विद्यार्थी एक दूसरे को कुछ अत्यधिक अपमानजनक उपनामों से पुकारते हैं तथा उनको लगता है कि यह “अच्छा (कूल)” है । मुझे लगता है कि इस प्रकार के प्रत्येक उपनाम नकारात्मक शक्ति प्रसारित करते हैं तथा गाली बोलने वाले को और उनके आस पास के अन्य लोगों को भी प्रभावित करते हैं । विद्यार्थी गंदे शब्दों का भी अत्यधिक प्रयोग करते हैं । एक बार मैंने भी इस प्रकार बातचीत करने का प्रयास किया क्योंकि मुझे लगा कि इस प्रकार मैं सहपाठियों के साथ अधिक आसानी से घुलमिल सकूंगी । किंतु जैसे ही मैंने प्रयास किया, मुझे लगा मैं ढोंग कर रही हूं तथा अनिष्ट शक्ति से प्रभावित होने का भी अनुभव हुआ । उस अनुभव के उपरांत मैंने इस प्रकार बातचीत करना बंद कर दिया ।

(संपादकीय टिप्पणी : किसी भी शब्द का विरूपण, जो किसी देश की मूल भाषा के अनुसार नहीं है तथा उसका प्रयोग यदि सही व्याकरण के साथ नहीं किया जाता तो इससे अनिष्ट शक्ति प्रसारित होती है ।)

२.८ विद्यालय में विद्यार्थियों तथा शिक्षकों की वेशभूषा

हमारे विद्यालय में घुटने से ऊपर के पैन्ट्स, अन्य वस्त्र अथवा स्कर्ट्स एवं अंगप्रदर्शक शर्ट्स अथवा कुरते तथा पट्टीदार टॉप पहनना मना है । ऐसा होने पर भी अनेक विद्यार्थी तथा शिक्षक इसी प्रकार के वस्त्र ही पहनते हैं । विद्यार्थी काले वस्त्र भी अत्यधिक पहनते हैं । उनके टी शर्ट पर प्रायः बहुत भद्दे तामसिक वाक्य तथा साथ ही विभिन्न वस्त्रों पर खोपडी की आकृति के तामसिक चित्र भी बने होते हैं । फटी जींस तथा टी शर्ट पहनना फैशन माना जाता है । कुछ महिला शिक्षक पारदर्शी अंगप्रदर्शक वस्त्र, तंग (टाइट) स्कर्ट्स तथा चौडे गलेवाले वस्त्र पहनती हैं ।

(संपादकीय टिप्पणी : इस प्रकार के वस्त्र अत्यधिक मात्रा में रज-तम (नकारात्मक) स्पंदनों को प्रक्षेपित करते हैं तथा पहनने वाले को और उसके आस पास के वातावरण को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं ।)

३. विद्यार्थियों का व्यवहार

विद्यार्थियों में अनेक वर्त्तन संबंधी समस्याएं दिखती हैं । विद्यालय के अंतराल के समय विद्यार्थी शौचालय में जाते हैं तथा वहां धूम्रपान करते हैं । यदि पिछले दिन किसी का जन्मदिन रहा होता है तो विद्यार्थी इस बात पर अपनी डींगें हांकते हैं कि किस प्रकार पार्टी में उन्होंने मद्यपान किया तथा वमन किया तथा उस समय तक भी अच्छा अनुभव नहीं कर रहे हैं ।

शिक्षक के प्रति कोई सम्मान नहीं दर्शाया जाता । कक्षा के समय विद्यार्थी संगीत सुनते हैं, एक दूसरे से बातचीत करते हैं अथवा शिक्षक अथवा किसी विद्यार्थी के बारे में गप्पें लगाते हैं ।

कुछ विद्यार्थी कक्षाओं में जाना टालते हैं । वे झूठा चिकित्सक प्रमाणपत्र दिखाकर शिक्षकों तथा यहां तक कि अपने अभिभावकों को झूठ बोलते हैं । कभी-कभी कक्षा के सभी विद्यार्थी कक्षा में न जाने का निर्णय लेते हैं क्योंकि उन्होंने उस दिन होने वाली परीक्षा के लिए पढाई नहीं की होती हैं । कुल मिलकर अधिकतर विद्यार्थी बहुत आलसी हैं । बुद्धिमान होने पर भी उनके अंक कम आते हैं । यह विद्यार्थी के वास्तविक कर्तव्य से विरुद्ध है । ईश्वर ने हमें बुद्धि प्रदान की है, हम मानसिक रूप से विकलांग नहीं हैं तथा हम अच्छे से पढाई कर सकते हैं । तब भी, हम इसका प्रयोग नहीं करते तथा यह ईश्वर के सामने एक पाप करने समान है । जो लोग सोचते हैं कि वे बुद्धिमान हैं, उन्हें इसका बहुत अहं है । हम विद्यार्थी यह नहीं समझते कि ईश्वर ने हमे जीवन, बुद्धि, विद्यालय तथा शिक्षक यह सब कुछ दिया हैं । तब भी बिना किसी सम्मान और कृतज्ञता भाव के इसे व्यर्थ गवां रहे हैं । इससे जीवन में कभी प्रसन्नता अथवा सफलता नहीं मिलेगी ।

३.१ विद्यार्थियों के वर्त्तन संबंधी विवाद

  • रुचि न दिखाना : जब कुछ विद्यार्थी अपनी पढाई में सुधार करना चाहते हैं तथा शिक्षक के प्रश्न पूछने पर कक्षा में बोलना चाहते हैं तब दूसरे विद्यार्थी बातें करते रहते हैं तथा उस पर कोई ध्यान नहीं देता । यह विद्यार्थी एवं शिक्षक के प्रति निरादर को दर्शाता है तथा यह भी दर्शाता है कि उनमें सीखने की तनिक भी इच्छा नहीं हैं ।
  • नकल करना : परीक्षा के समय दूसरे विद्यार्थी की पुस्तिका में ताक-झांककर तथा वह जो लिख रहा है अथवा लिख रही है उसकी नकल करके लिखना आम बात हो गई है । कुछ विद्यार्थी विभिन्न परीक्षाओं में प्रश्नों के महत्वपूर्ण उत्तर लिखे छोटे कागज के पर्चे छुपा कर रखते हैं, आपस में उत्तर बताते हैं, इत्यादि ।
  • डराना-धमकाना : यहां डराने धमकाने की समस्याएं भी हैं तथा प्रत्येक कक्षा में एक अथवा दो विद्यार्थी ऐसे होते ही हैं जिन्हें दूसरों द्वारा मौखिक रूप से वर्ष भर डराया जाता है ।
  • आज्ञा का उल्लंघन करना : कुछ विद्यार्थी कक्षा में गाना गाने लगते हैं । जब उन्हें चुप रहने के लिए कहा जाता है तो वे कुछ देर चुप
  • होकर पुनः गाने लगते हैं । शिक्षकों द्वारा जो बातें बताई जाती हैं उनका पालन करना बहुत कम रह गया है ।
  • व्यसन करना : मैंने कुछ विद्यार्थियों को इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट पीते देखा है । जब हमारे खेलकूद की कक्षा होती है तो कुछ विद्यार्थी उपस्थित नहीं होते तथा वे प्रसाधन कक्ष (ड्रेसिंग रूम) में धूम्रपान करते हैं । जब कोई शिक्षक आ रहा होता है तो वे एक दूसरे को सचेत कर देते हैं ।
  • मादक पदार्थों का सेवन करना : कभी-कभी विद्यालय में मादक पदार्थों का सेवन करने वाले भी उपस्थित रहते हैं ।

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४. शिक्षक

अब शिक्षकों के संदर्भ में कुछ अवलोकन हैं, जहां मुझे लगता है वे इनमें सुधार कर सकते हैं ।

  • विद्यार्थियों का अनादर करना : कुछ शिक्षक विद्यार्थियों को सीखने में उनकी सहायता करने के उद्देश्य से कक्षा में पढाते हैं । इसके विपरीत कुछ ऐसे शिक्षक भी हैं जो अपने ज्ञान का दिखावा करने के लिए पढाते हैं । जब हम कुछ प्रश्न पूछते हैं तो वे हम पर हंसते हैं, इसलिए जो परीक्षा में आ सकता है, उसके बारे में अस्पष्ट होने पर भी विद्यार्थी अब प्रश्न पूछना टालते हैं ।
  • शिक्षकों की स्वयं की तैयारी न होना : कुछ शिक्षक ठीक से नहीं पढाते । वे कुछ बिंदुओं को समझाना भूल जाते हैं अथवा वे उसे गलत ढंग से बताते हैं, अतः कभी कभी विद्यार्थी उसे सही करते हैं । ऐसा लगता है कि वे यह भूल गए है कि विद्यार्थियों के बिना वे शिक्षक नहीं बन सकते, इसीलिए वे अनदेखा तथा स्वयं काे श्रेष्ठ दिखाने समान व्यवहार करते हैं ।
  • ध्यान न देना : एक बार धर्म विषयक कक्षा में मैंने देखा कि किस प्रकार कुछ विद्यार्थियों का समूह लगभग बीस मिनट तक एक छात्रा का उपहास कर रहा था ) । इस पूरे समय में, शिक्षक ने एक बार भी ध्यान नहीं दिया क्योंकि वे अपने लैपटॉप में कुछ पढने में व्यस्त थे । उन्होंने बीस मिनट के पश्चात उसे रोकने हेतु कहा ।
  • अपने शब्दों से पीछे हटना : शिक्षक झूठे वचन देते हैं तथा अपने विद्यार्थियों को नीचा दिखाते हैं । एक बार एक छात्रा गणित में सबसे अधिक अंक लाना चाहती थी । उसने शिक्षिका से पूछा कि उसे यह प्राप्त करने के लिए क्या करना होगा । शिक्षिका ने कहा कि यदि वह परीक्षा में सर्वाधिक अंक लाने में सफल हो जाती है तब सत्र के अंत में उसे उच्चतम अंक मिलेंगे । जब छात्रा परीक्षा में सबसे अधिक अंक लार्इ  तो शिक्षिका  ने कह दिया कि उसे सत्र के अंत में सर्वाधिक अंक नहीं मिलेंगे तथा शिक्षिका द्वारा मौखिक रूप से  उसे जांचा जाएगा । पूरा वर्ग शिक्षिका को यह स्मरण करवा रहा था जो उन्होंने कहा था; किंतु उन्होंने कह दिया कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा था तथा इसके लिए यदि छात्रा प्रधानाध्यापक के पास जाना चाहती है तो वह जा सकती है ।
  • ढोंग करना : एक बार रसायनशास्त्र की शिक्षिका हमें कक्षा में लंबे समय से बता रही थी कि कोला पेय स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं । जब कक्षा समाप्त हुई, उन्होंने एक विद्यार्थी को उनके लिए कोला पेय की एक बोतल लाने भेजा ।
  • पसंद के अनुसार अंक देना : कभी – कभी शिक्षक बाह्य रूप से यह दर्शाते हैं कि कैसे वे कुछ विधार्थियों को पसंद करते हैं तथा दूसरों को नहीं । कुछ छात्राओं को अधिक पसंद करते हैं तो कुछ छात्रों को तथा उनकी पसंद के आधार पर ऐसे विद्यार्थी अच्छे अंक प्राप्त करते हैं ।
  • गप्पें लगाना : उपर्युक्त उल्लेखित शिक्षक के पक्षपातपूर्ण व्यवहार के कारण, वे विद्यार्थियों के विषय में तथा विद्यार्थी शिक्षकों के विषय में गप्पें मारते हैं । अपनी साधना से मैंने सीखा कि गप्पें मारना अच्छा नहीं है क्योंकि इससे दोनों पक्षों में नकारात्मक शक्ति प्रसारित होती है । गप्पें मारते हुए हम दूसरों के मत को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं तथा इससे झूठ भी फैल सकता है ।

५. सारांश

विद्यालय इसलिए होते हैं जिससे हम कुछ सीख सकें । ईश्वर ने ब्रह्मांड की उत्त्पत्ति की तथा मानव को विभिन्न विषयों जैसे भूगोल, इतिहास, रसायनशास्त्र, भौतिकशास्त्र को समझने के लिए सक्षम बनाया । ये विज्ञान हमारे यह समझने के लिए है कि ईश्वर की सृष्टि कितनी उत्तम है तथा ईश्वर ने सृष्टि की रचना कैसे की ।

उदाहरण के लिए, हम इतिहास में यह पढ सकते हैं कि कुछ राज्यों का नाश क्यों हो गया, राष्ट्र कैसे विकसित हुए, पूर्वकाल में लोग कैसे रहते थे इत्यादि । इन सबसे हमे अपनी गलतियों से सीखना होगा तथा उन्हें पुनः नहीं दोहराना होगा जिससे हम भी अपने राष्ट्र को सर्वनाश की ओर न ले जाएं । हमे हमारे जीवन को और भी सुखद बनाने के लिए ईश्वर के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए तथा यह भी समझना चाहिए कि कंप्यूटर एवं आधुनिक तकनीकों के बिना भी जीवन संभव है । इतिहास से हमें यह भी समझना चाहिए कि व्यक्ति का भीतर से आध्यत्मिक होना महत्वपूर्ण है न कि केवल बाहर से ।

भूगोल से हम, विभिन्न राष्ट्रों की क्या विशेषताएं हैं, यह समझने के लिए तथा अपने राष्ट्र के विकास हेतु उन्हें ग्रहण करने का प्रयास करने के लिए यह अध्ययन कर सकते हैं कि विश्व भर में लोग कैसे रहते हैं तथा कैसे अपने दैनिक जीवन का प्रबंधन करते हैं । उनके जलवायु के अनुसार जीने के लिए उनमें क्या गुण होते हैं । हम यह भी सीख सकते हैं कि क्यों कुछ राष्ट्रों में मद्यपान नहीं किया जाता अथवा क्यों गाय को एक पवित्र प्राणी के रूप में पूजनीय माना जाता है । यदि हम इन गुणों को ग्रहण कर लेंगे तो हम सभी के राष्ट्र बेहतर राष्ट्र के रूप में परिवर्तित हो जाएंगे ।

जबसे मैंने विद्यालय संस्था के महत्त्व पर गहन विचार करना आरंभ किया है तब से मुझे समझ आने लगा कि यह कितना महत्वपूर्ण है । दुर्भाग्यवश हमें यह कोई नहीं सिखाता । इस कारण से अनेक विद्यार्थी बहुत बुद्धिमान होने पर भी विद्यालय जाना पसंद नहीं करते और कम अंकों से उत्तीर्ण होते हैं तथा विद्यालय को गंभीरता से नहीं लेते । मैं पूरी आशा से ईश्वर से यह प्रार्थना करती हूं कि इस लेख को अधिक से अधिक विद्यार्थी पढें तथा विद्यालय के महत्त्व को समझकर कृतज्ञता से भर जाए जिससे अपने दैनिक जीवन में वे विद्यालय का आदर करें और हर्ष के साथ पढाई करें ।

मैं यह भी प्रार्थना करती हूं कि जो लोग विद्यालय का पाठ्यक्रम तैयार करते हैं वे उसमें अध्यात्म को भी सम्मिलित करें जिससे लोगों को इसका महत्त्व समझ में आए।

– कुमारी एना कोलर, यूरोप (SSRF की इस विद्यार्थी साधिका की गोपनीयता को बनाए रखने हेतु काल्पनिक नाम)