प्रकरण अध्ययन – फूलों की कलाकृतिवाली सूती कुरती पर विचित्र चीरें एवं फटने का विवरण

टिप्पणी : इस प्रकरण अध्ययन की पृष्ठभूमि समझने के लिए और ऐसी घटनाएं विशेष रूप से SSRF के संबंध में क्यों हो रही हैं, जानने के लिए कृपया पढें – भयभीत करनेवाली असाधारण घटनाओं का परिचय 

१. परिचय

01-HIN-Shwetaयह प्रकरण अध्ययन गोवा, भारत की कुमारी श्वेता चौबे का है । वर्ष १९९८ से श्वेता SSRF के मार्गदर्शन में साधना कर रही हैं । पिछले दो वर्षों से उन्होंने स्वयं को पूर्णतया अध्यात्मप्रसार में तथा अन्यों को साधना करने का महत्त्व समझने में सहायता करने के लिए समर्पित किया है ।

SSRF जनवरी २०१० से, भयभीत करनेवाली असाधारण घटनाओं के खंड में, निर्जीव वस्तुओं पर अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों के संदर्भ में लेख प्रस्तुत करता आ रहा है । ये आक्रमण खरोचें, चीरें, छिद्र, रक्त के धब्बे इत्यादि जैसे विविध माध्यमों द्वारा हुए हैं । श्वेता SSRF के संग्रह से ढूंढकर तथा अनिष्ट शक्ति के आक्रमणों के संदर्भ में प्रारंभिक तथ्य जैसे प्रभावित वस्तुओं के छायाचित्र, आक्रमणों के विषय में र्इश्वरीय ज्ञान, साधकों की अनुभूतियां, सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र, इत्यादि एकत्रित करने की सत्सेवा करती हैं `।I ये सामग्री वे उन साधकों को उपलब्ध करवाकर देती हैं जो इन विषयों को हमारे जालस्थल पर प्रस्तुत करते हैं I

श्वेता का अनुभव उनके ही शब्दों में आगे दिया गया है ।

२. घटना से पहले के अनुभव

‘‘मार्च २०१० में, हम अनिष्ट शक्तियों द्वारा चीरों के माध्यम से किए गए आक्रमण संबंधी लेखों का खंड तैयार कर रहे थे । मैं अनिष्ट शक्तियों द्वारा आक्रमण हुई साधकों की वस्तुओं के विविध प्रकरण अध्ययनों को पढती । मैं साधकों से साक्षात्कार करती तथा घटना के विषय में विस्तृत जानकारी लेती ।

इस सत्सेवा को करते समय, मुझे कभी-कभी कष्ट अनुभव होते जैसे पैरों में वेदना होना, जब मैं रात में सोने जाती तो थकान से भरी तथा उत्साहहीन अनुभव करती । प्रायः मेरा मन नकारात्मक विचारों से भरा रहता ।

आध्यात्मिक शोध दल की टिप्पणी :

प्रायः साधक अनिष्ट शक्तियों द्वारा किए जानेवाले सूक्ष्म-आक्रमण से पूर्व अथवा पश्चात कष्ट अनुभव करते हैं I

  • शारीरिक स्तर पर, असामान्य थकान, शरीर में वेदना होना, ऊर्जा के स्तर में गिरावट इत्यादि अनुभव हो  सकता है ।
  • मानसिक स्तर पर, अकारण ही चिडचिडाहट में वृद्धि हो जाना, विचारों की स्पष्टता में कमी होना, नकारात्मक विचार, निराशा इत्यादि अनुभव हो सकते हैं ।

ऐसे समय, मैं विविध आध्यात्मिक उपचारक उपायों जैसे नामजप, प्रार्थना, संतों द्वारा प्रयोग किए गए कक्ष में बैठकर नामजप करना इत्यादि करती ।

आध्यात्मिक शोध दल की टिप्पणी :

संतों में विद्यमान चैतन्य के कारण, जिस स्थान पर वे रहते हैं वह स्थान भी चैतन्य प्रक्षेपित करता है  । वह स्थान संतों की शारीरिक अनुपस्थिति में भी प्रयोग करने से कष्ट को न्यून करने के शक्तिशाली आध्यात्मिक उपचार के रूप में कार्य करता है ।

३. वास्तविक आक्रमण

मेरे पास एक फूलों की कलाकृतिवाली (प्रिंट) एक गुलाबी मुलायम सूती कुरती है । वह बहुत आरामदायक तथा मेरे पसंदीदा वस्त्रों में से एक थी । चूंकि गर्मी आ गई थी, मैं प्रायः इसे पहनती । १५ मार्च २०१० को, मेरे मन में यह विचार आया कि मुझे इसे अधिक नहीं पहनना चाहिए अन्यथा इसका रंग फीका पड जाएगा । इसी के उपरांत अगला विचार आया कि यह कुरती मुझे बहुत प्रिय है इसलिए इसे क्षति पहुंच सकती है । मैंने इस विचार को अपने विचित्र विचारों में से एक समझकर अनदेखा कर दिया । कुछ ही समय उपरांत मुझे लगा कि यह उस घटना के संदर्भ में एक चेतावनी थी जो घटित होनेवाली थी ।

२० मार्च २०१० को, मैंने वह गुलाबी कुरती पहनी । उस समय उस पर कोई छिद्र नहीं था । उस दिन बहुत अधिक गर्मी थी तथा मैं असहज अनुभव कर रही थी । मैं अपने कक्ष में जल पीने गई । जब मैं पंखे के नीचे खडी होकर जल पी रही थी, तब मैंने देखा कि मेरे बांह के नीचे मेरी कुरती पर बडे चीरे थे । मैं पूर्णतया आश्चर्यचकित थी क्योंकि कुरती पर इस प्रकार चीरा होने का कोई कारण नहीं था । जब मैंने उसे सुबह पहना था तब उस पर कोई चीरे नहीं थे अथवा वह कहीं से फटा हुआ नहीं था I दिन भर के कार्य में मैं किसी भी धारदार वस्तु के अथवा किसी खुरदरी सतह के संपर्क में नहीं आई जिससे चीरे आ जाए I साथ ही कुरती इतनी पुरानी भी नहीं थी कि वह घिस जाए अथवा उस पर चीरे आ जाए I

चीरों को देखते समय मुझे अनुभव हुआ कि किसी ने जानबूझकर कुरती को फाडा है तथा उसे उस कार्य में बहुत आनंद मिला है । उस समय मुझे मेरे पैरों में पीडा हो रही थी । मेरे मन में प्रश्न आया कि क्या कुरती पर अनिष्ट शक्तियों द्वारा चीरों के माध्यम से आक्रमण होने के कारण हुआ था । मैंने त्वरित वस्त्र बदले ।

नीचे फटी हुई गुलाबी कुरती के चित्र दिए गए हैं ।

सूक्ष्म अंतर्दृष्टि विभाग SSRF का एक विभाग है जिसमें ऐसे साधक हैं जो सूक्ष्म आयाम में देख सकते हैं, सूक्ष्म जगत के चित्र बना सकते है (सूक्ष्म चित्र) तथा आधात्मिक उपचार कर सकते हैं । इस विभाग के कुछ साधकों को दिव्य ज्ञान प्राप्त हो रहा हैं तथा कुछ ईश्वरीय कला प्राप्त कर रहे हैं । SSRF का शोध कार्य मुख्यतः इसी विभाग द्वारा किया जाता है ।

४. सूक्ष्म विश्लेषण

मैंने फटी हुई कुरती जाग्रत छठवीं इंद्रियवाले सूक्ष्म-विभाग के साधक पूजनीय मुकुल गाडगीळजी को दिखाया । उन्होंने बताया कि यह अनिष्ट शक्तियों द्वारा किया गया आक्रमण था । उसके उपरांत मैंने श्रीमती श्रद्धा पवार, जो सूक्ष्म-विभाग की ही साधिका हैं, को इस घटना के विषय में बताया । उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या वह कुरती मुझे अत्यधिक पसंद थी अथवा क्या वह मेरे पसंदीदा वस्त्रों में से एक थी । मैंने “हां” कहा । मुझे यह सुनकर आश्चर्य हुआ कि वे यह कैसे जानती थी कि मुझे वह कुरती बहुत पसंद थी । उन्होंने कहा कि ईश्वर ने उन्हें यह विचार दिया ।

आध्यात्मिक शोध दल की टिप्पणी :

भाव तथा अल्प अहं होने के कारण, SSRF के कुछ साधक वैश्विक मन तथा बुद्धि से विचारों को ग्रहण कर सकते हैं । वैश्विक मन तथा बुद्धि ईश्वरीय मन तथा बुद्धि के समानार्थ हैं जो कि सर्वज्ञ हैं । अतः किसी विशिष्ट विषय के संदर्भ में कुछ ज्ञात न होने पर भी, साधक उसके संदर्भ में सही विचार प्राप्त कर सकता है ।

५. आक्रमण का सूक्ष्म-विज्ञान

02-HIN-Anjaleeउसके उपरांत मैं जागृत छठवीं इंद्रियवाली संत पूजनीया श्रीमती अंजली गाडगीळजी से मिली । उन्होंने भी मुझसे वही प्रश्न किया कि क्या वह कुरती मेरे पसंदीदा वस्त्रों में से एक थी । मैंने उन्हें बताया कि श्रीमती श्रद्धा ने भी यही प्रश्न किया था ।

तब उन्होंने इसका शास्त्र बताया जो निम्नलिखित है ।

‘‘जब हम किसी विशेष वस्त्र को पसंद करते हैं, तो हमारे शरीर के स्पंदन उसी अनुपात में उस वस्त्र के साथ जुड जाते हैं । चूंकि हम उस वस्त्र को पसंद करते हैं, हम उसे अधिक पहनते हैं, इसलिए हमारे शरीर के स्पंदन उस वस्त्र में अधिकतम अनुपात में विद्यमान होते हैं । यदि हम उस वस्त्र को न भी पहनते हो, किंतु हमें वह पसंद होने के कारण, उसके प्रति हमारे विचारों के कारण, हमारे शरीर के स्पंदन वस्त्रों में ही रहते हैं । परिणामस्वरूप, अनिष्ट शक्तियों द्वारा हम पर आक्रमण करना बहुत सहज हो जाता हैं । वास्तव में, वे जानबूझकर ऐसे वस्त्रों का चयन करती है जिससे वे व्यक्ति पर अधिकाधिक आक्रमण कर सके ।’’

यही सिद्धांत मेरे प्रकरण में लागू हुआ था । उसके उपरांत मैं कुछ समय के लिए सो गई । जब मैं संध्याकाल में उठी, मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मुझे बलपूर्वक मारा हो तथा मेरे पूरे शरीर में वेदना होने लगी । साथ ही यह अनुभव लिखते समय तथा इसे प्रकाशित होने के लिए भेजते समय, मेरा सिर भारी लगने लगा, श्वास लेना कठिन हो रहा था तथा मेरा मुंह सूख रहा था ।