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वर्ष २००८ में, SSRF ने एक लंबी अवधि के सहयोगी आध्यात्मिक शोध परियोजना को प्रारंभ किया | यह परियोजना SSRF द्वारा आयोजित सामान्य पद्धति के आध्यात्मिक शोध से भिन्न है | इस समय, नियंत्रित प्रयोगों के समूह में विभिन्न चरों (variables) को मापने के लिए बायोफीडबैक और अन्य उपकरणों का प्रयोग किया गया | उसके पश्चात, विकसित छठवीं इंद्रिय के माध्यम से प्राप्त स्पष्टीकरणों से इन परिणामों की पुष्टि की गई | विस्तृत प्रयोगों में लगी अवधि तथा उसके उपरांत, विश्लेषण के पश्चात, शोध के निष्कर्ष अब प्रकाशन के लिए तैयार हैं | अध्ययन दल द्वारा आरंभ किए हुए शोध की पृष्ठभूमि को समझने हेतु हमने इस परियोजना की प्रमुख जांचकर्ता, डॉ. नंदिनी सामंत, MBBS, DPM इनसे बात की |

प्रश्न: आध्यात्मिक शोध क्या है ?

डॉ. नंदिनी सामंत: हम ‘आध्यात्मिक आयाम’ शब्द को इसप्रकार परिभाषित करते हैं वे सब जो हमारे पंच ज्ञानेंद्रिय, मन और बुद्धि की समझ से परे हैं | किसी विषय की खोज अथवा तथ्यों, सिद्धांतों, प्रयोग, आदि में संशोधन करने के लिए विस्तारित तथा व्यवस्थित जांच अथवा अन्वेषण को ‘शोध’ कहते हैं |

सरल शब्दों में कहें, तो आध्यात्मिक शोध का अर्थ हैं पंच ज्ञानेंद्रिय, मन और बुद्धि के परे जो आयाम हैं, उसका व्यवस्थित अन्वेषण | यह विकसित छठवीं इंद्रिय की सहायता से किया जाता है | उदा. यदि हमें पहले कभी न देखी हुई एक लेखनी (पेन) दी जाए, तब पंच ज्ञानेंद्रिय, मन और बुद्धि के माध्यम से हम उसका रंग, उत्पादक, सुचारू रूप से लिखने की क्षमता आदि देख सकते हैं | परंतु विकसित छठवीं इंद्रिय द्वारा, हम यह भी देख सकते हैं कि इसकी निर्मिति कब हुर्इ, यह किसका है, भविष्य में यह किसके पास होगा, यह कब नष्ट होगा आदि ।

प्रश्न: इस आध्यात्मिक शोध परियोजना में आधुनिक मापक उपकरण को क्यों सम्मिलित किया गया ?

डॉ. नंदिनी सामंत: अध्यात्म के अनुसार, शास्त्रों और ऋषियों के उद्धरण स्वयं में एक प्रमाण हैं | कारण यह है कि ऋषियों को स्वयं ईश्वर प्राप्ति हुर्इ थी | धर्मग्रंथ इन्हीं ईश्वरीय प्राप्त आत्माओं का परिश्रम है | इसलिए उन्हें अधिक मान्यता की आवश्यकता नहीं है | आज भी, विश्व के लोग अध्यात्मशास्त्र द्वारा निर्धारित सत्य को प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं | दुर्भाग्य से, समाज में अध्यात्म की समझ के साथ-साथ छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार साधना के अभाव के कारण ऐसे लोग अल्प संख्या में हैं | साधना के इस अभाव के कारण विश्व की बहुतांश जनसंख्या की छठवीं इंद्रिय अत्यल्प से विकसित हुई है | इसलिए वे सूक्ष्म आयाम को नहीं समझ सकते | वे केवल पंच ज्ञानेंद्रिय, मन और बुद्धि के कार्य-क्षेत्र में होनेवाले शोध को ही समझ सकते हैं | यही पारंपरिक वैज्ञानिक शोध है जिसे विश्व जानता है |

इसी कारण हमने आधुनिक उपकरणों द्वारा हमारे दैनिक जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे हमारे भोजन तथा पेय, कपडे, जो संगीत हम सुनते हैं, साधना के विविध पहलू जैसे नामजप, प्रार्थना, ध्यान, संत, इत्यादि पर कुछ प्रयोग किए हैं | इसका उद्देश्य आधुनिक मानव को अध्यात्म के सिद्धांतों को समझने और उसका प्रत्यक्ष अनुभव करने में सहायता करना है |

सामान्य मनुष्य को, ज्ञात से अज्ञात की ओर ले जाकर उसके पारंपारिक शोध के ज्ञात विश्व और आध्यात्मिक शोध के अज्ञात विश्व को जोडने की सहायता करने में यह हमारा प्रयास है |

प्रश्न: उपकरण का प्रयोग किए जाने पर भी इसे आध्यात्मिक शोध क्यों कहा जाता है ?

डॉ. नंदिनी सामंत: कारण यह है कि उपकरण की सहायता से प्राप्त शोध के निरिक्षणों को हमने सूक्ष्म-ज्ञान विभाग द्वारा प्राप्त ज्ञान से पूरक बनाया है | उपकरण द्वारा पाठ्यांक लेकर और उसका विश्लेषण करने के उपरांत हमने उन्हें हमारे सूक्ष्म-ज्ञान विभाग के साधकों को दिखाया | हमने उनसे पूछा कि जब यह विशिष्ट पाठ्यांक लिया जा रहा था, उस समय आध्यात्मिक आयाम में क्या हो रहा था, तथा साथ ही साथ उस परीक्षण के पीछे का क्या कारण है | कुछ अध्ययनों में हम यह जानकर चकित हुए कि समान परीक्षण होने पर भी उनके कारण पूर्णतः अलग थे |

उदाहरणार्थ अनिष्ट शक्ति के कष्ट से पीडित तथा अनिष्ट शक्ति के कष्ट से रहित साधकों के शाकाहारी तथा मांसाहारी भोजन करने पर उनके कुंडलिनी चक्रों पर होनेवाले प्रभाव का तुलनात्मक अध्ययन इलेक्ट्रोसोमेटोग्राफिक पद्धति से किए जाने के प्रकरण में हमने पाया कि मांसाहारी भोजन के सेवन के अनिष्ट शक्ति के कष्ट से रहित साधकों में से ८० प्रतिशत साधक और अनिष्ट शक्ति के कष्ट से पीडित १०० प्रतिशत साधकों के चक्रों ने सक्रियता में वृद्धि दर्शायी | तथापि, अनिष्ट शक्ति के कष्ट से रहित और अनिष्ट शक्ति के कष्ट से पीडित साधकों के कुंडलिनी चक्रों की सक्रियता में वृद्धि होने के पीछे का कारण पूर्णत: भिन्न था | इसका विस्तृत विश्लेषण प्रयोग से संबंधित लेख में वर्णित किया है |

प्रश्न: क्या आपने इन शोध अध्ययनों में प्रयोग किए गए उपकरण की सीमाओं का सामना किया ?

डॉ. नंदिनी सामंत: इस आध्यात्मिक शोध के समय यह प्रधानता से स्पष्ट हुआ कि आधुनिक उपकरण और उससे प्राप्त परीक्षण का आधुनिक विज्ञान द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण, शोध की पद्धति को मर्यादित करते हैं | यह आपको अलग-अलग प्रयोगों को पढते समय स्पष्ट होता जाएगा |

कृपया संदर्भ हेतु आधुनिक शोध में प्रयुक्त उपकरणों की मर्यादाओं पर टिप्पणी लेख भी पढें |