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१. वैश्विक शक्तियां तथा अध्यात्म विषयक ग्रंथ

अध्यात्मसंबंधी ग्रंथ लिखने हेतु तीन प्रकार की वैश्विक शक्तियों से ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है । प्राप्त होनेवाली शक्ति के आधार पर भिन्न-भिन्न आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि तथा चैतन्य के विविध स्तर विद्यमान होते हैं ।

१.१ इच्छा शक्ति

इच्छा शक्ति के स्तर पर अध्यात्मसंबंधी ज्ञान प्राप्त करते समय, आध्यात्मिक आयाम के संदर्भ में व्यक्ति इसके रूप तथा रंग की विशेषताओं को आत्मसात कर ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम होता है ।

इसे समझने के लिए एक स्त्री का उदाहरण लेते हैं, जो मृत पूर्वज के आक्रमण के आध्यात्मिक कारण से गर्भधारण नहीं कर सकती । कभी-कभी चिकित्सकीय विज्ञान इसके प्रत्यक्ष कारण को नहीं खोज सकता I ऐसे प्रकरण में कर्इ बार एक आध्यात्मिक कारण एक शारीरिक कारण के रूप में प्रकट हो सकता है जैसे फेलोपियन नली में अवरोध उत्पन्न होना अथवा गर्भाशय (यूट्रस) में गांठ (फायब्रॉयड) होना । प्रायः इस प्रकार के प्रकरणों में दिखनेवाले कारणों के सफल उपचार करने के पश्चात भी समस्या का (अर्थात गर्भधारण करने की अक्षमता) समाधान नहीं होता ।

चिकित्सा विज्ञान आध्यात्मिक स्तर पर समस्या के कारण की कोर्इ भी विशेषता बता पाने में सक्षम नहीं होगा । चलिए मान लें कि एक विकसित छठवीं इंद्रियवाला व्यक्ति जो इच्छाशक्ति का उपयोग करने में सक्षम है, उस स्त्री के प्रकरण की जांच-पडताल कर रहा है । वह कष्टदायक शक्ति के काले बादल के रूप में किए गए आक्रमण को समझ सकेगा, जिसने उस महिला के गर्भाशय (यूट्रस) को घेर लिया है । इस पद्धति से वास्तविक मूल कारण संबंधी जानकारी मिल सकती है । इस कारण को खोज पाने के ज्ञान का विस्तार जितना अधिक गहन होगा, उसके समाधान की संभावना उतनी अधिक होगी ।

१.२ क्रिया-शक्ति

क्रिया-शक्ति के स्तर पर अध्यात्मसंबंधी लेख लिखते समय, व्यक्ति घटना के कारण तथा प्रभाव को समझ पाने में सक्षम होता है ।

ऊपर लिए गए समान उदाहरण में ही विकसित छठवीं इंद्रियवाला व्यक्ति यदि क्रिया-शक्ति को ग्रहण करने में सक्षम है, तब वह यह समझ पाएगा कि कष्टदायक शक्ति के काले बादल एक मृत पूर्वज के कारण है ।

१.३ ज्ञान-शक्ति

जब आध्यात्मिक ज्ञान ज्ञान-शक्ति के स्तर पर आत्मसात किया जाता है, तब व्यक्ति घटना के कारण तथा प्रभाव का अध्यात्मशास्त्रीय आधार समझ सकता है ।

यहां भी ऊपर दिया गया उदाहरण लेते हैं । विकसित छठवीं इंद्रियवाला व्यक्ति यदि ज्ञान-शक्ति को ग्रहण करने में सक्षम है, तब वह मृत पूर्वज ने महिला पर आक्रमण क्यों किया इसका कारण दे सकता है । उदाहरण के लिए, आक्रमण का कारण उनके मध्य लेन-देन हो सकता है । वह उस कार्मिक लेन-देन का वास्तविक विवरण भी दे सकता है, जैसे यह कब आरंभ हुआ, किस जन्म में आरंभ हुआ, इसका समाधान कैसे किया जा सकता है इत्यादि ।

२. अध्यात्मविषयक ग्रंथ लिखने के लिए कौन इन वैश्विक शक्तियों को ग्रहण कर सकता है ?

जब व्यक्ति छठवीं इंद्रिय से संपन्न हो, तब वह वैश्विक शक्तियों को ग्रहण कर सकता है । यह छठवीं इंद्रिय इस जन्म में अथवा पिछले जन्म में साधना करने के कारण विकसित होती है ।

वैश्विक शक्तियां आगे के आध्यात्मिक स्तरों में सर्वाधिक प्रभावी रूप से ग्रहण की जाती हैं ।

वैश्विक शक्ति आध्यात्मिक स्तर
इच्छा-शक्ति ७०-८० प्रतिशत
क्रिया-शक्ति ८०-९० प्रतिशत
ज्ञान-शक्ति ९०-९५ प्रतिशत

टिप्पणी :

  • जब व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर लगभग ५० प्रतिशत हो तब इच्छा-शक्ति ग्रहण करना आरंभ हो जाता है ।
  • उच्चतर वैश्विक शक्तियों को ग्रहण करनेवाला निम्नस्तरीय शक्तियों को भी ग्रहण कर सकता है । उदाहरण के लिए कोर्इ व्यक्ति क्रिया-शक्ति को ग्रहण कर रहा है, तो वह इच्छा-शक्ति को भी ग्रहण कर सकता है ।

३. वैश्विक शक्तियों को ग्रहण करने के आधार पर अध्यात्मविषयक ग्रंथ में विद्यमान चैतन्य का स्तर

अध्यात्मविषयक ग्रंथ लिखने में वैश्विक शक्तियों को ग्रहण करने की क्षमता का महत्त्व अत्यधिक है । क्योंकि जो उच्चतर वैश्विक शक्तियों को ग्रहण करने में सक्षम है वह चैतन्य की उच्चतर मात्रा को भी ग्रहण करने में सक्षम है । ग्रंथ में चैतन्य जितना अधिक होगा वह उतना ही शब्दों के स्तर से परे संवाद करने में सक्षम होगा और इसप्रकार पाठक लिखे सार से कहीं अधिक (परे) प्रभावित तथा लाभान्वित होंगे । साधारण पुस्तकें केवल शब्दों के माध्यम से संवाद करती हैं । जब वैश्विक शक्तियों को ग्रहण कर ग्रंथ लिखष जाते हैं , तब वे पाठकों को अनुभूति देने में सक्षम होते हैं । ये अनुभूतियां आध्यात्मिक स्तर की होती हैं, जैसे भाव, आनंद इत्यादि । ये अनुभूतियां पाठकों के विश्वास को बढाती हैं तथा उनकी आध्यात्मिक यात्रा को गति प्रदान करती हैं । आगे दी गर्इ सारणी में विविध वैश्विक शक्तियों को ग्रहण कर ग्रंथ लिखने से संबंधित चैतन्य की मात्रा बतार्इ गर्इ है । इसमें ग्रंथ किस स्तर पर पाठक से अध्यात्मसंबंधी संवाद करने में सक्षम है, यह भी दर्शाया गया है ।

वैश्विक शक्ति चैतन्य की प्रतिशत मात्रा संवाद/कार्य करने का स्तर
इच्छा-शक्ति ५ प्रतिशत प्रायः शब्द
क्रिया-शक्ति ३० प्रतिशत शब्द तथा चैतन्य
ज्ञान-शक्ति १०० प्रतिशत मुख्यतः चैतन्य

आध्यात्मिक ग्रंथ के लेखकों के लिए परामर्श के दो शब्द : यदि कोर्इ आध्यात्मिक आयाम के ज्ञान को आत्मसात करने में सक्षम हो, तब भी हमारा सुझाव है कि ग्रंथ केवल प्रगत आध्यात्मिक मार्गदर्शक अथवा संत के मार्गदर्शन में ही लिखें । ऐसा इसलिए क्योंकि अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) ज्ञान को नकारात्मक रूप से दुष्प्रभावित कर सकती हैं और इसप्रकार ग्रंथ के आध्यात्मिक प्रभाव को घटा सकती है । वे ऐसा प्रायः प्राप्त हुए ज्ञान के शब्दों में कष्टदायक शक्ति प्रसारित कर करती हैं, जिससे पाठकों को कष्ट हो सकता है अथवा उन्हें आंशिक अथवा पूर्णतः अनुचित जानकारी मिलने की संभावना हो सकती है ।