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SSRF द्वारा प्रकाशित प्रकरण-अध्ययनों (केस स्टडीस) का मूल उद्देश्य है, उन शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के विषय में पाठकों का दिशादर्शन करना, जिनका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक हो, तो यह ध्यान में आया है कि सामान्यतः आध्यात्मिक उपचारों का समावेश करने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं । SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को जारी रखने का परामर्श देता है । पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचारी पद्धति का पालन करें ।

१. महेश का गायब हो होना

दिनांक १२ अगस्त २०१० को आध्यात्मिक शोध केंद्र में एक अति उन्नत साधिका श्रीमती निर्मला होनप का निधन हुआ । उनके देहत्याग के फलस्करूप चैतन्य में कृद्धि हुई । जिसके प्रभाक से शोध  केंद्र के अनिष्ट शक्तियों से आविष्ट अनेक साधक प्रकट हो गए थे । श्री महेश जो शोध केंद्र में पूर्णकालिक साधक के रूप में दृश्य-श्राव्य (ओडियो- वीडियो) किभाग में कार्यरत थे, वे उस दिन सुबह का अधिकांश समय एकं दोपहर में उस घटना के चित्रीकरण की सेका में व्यस्त रहे । जब उनकी पत्नी श्रीमती प्रीति ने संध्याकाल लगभग ६.३० बजे अध्यात्मिक शोध केंद्र स्थित उनके कक्ष में प्रकेश किया तो पाया कि कहां की स्थिति अत्यंत अस्त-व्यस्त है । परम पूज्य डॉ. आठकलेजी का चित्र उलटा रखा था । कक्ष के ताला-चाबी भूमि पर पडे थे । प्रीति के तकिए की खोली फटी हुई थी । कार की चाबी एकं कार दोनों गायब थे एवं महेश का पूरे शोध केंद्र में कहीं कोई अता-पता न था । भूतकाल में सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक द्वारा आविष्ट होने के कारण महेश ने तीव्र कष्ट सहन किया था । अत: प्रीति चिंताग्रस्त हो गर्इं एकं उन्हें दूरभाष पर संपर्वâ करने का प्रयत्न कर रही थीं, किंतु उनकी ओर से कोई उत्तर नहीं आ रहा था ।

शोध केंद्र के अन्य साधक महेश के संबंध में दोपहर की कुछ थोडी–बहुत जानकारी बता रहे थे ।

  • एक साधक को स्मरण हुआ कि उसने महेश को १२ अगस्त २०१० की दोपहर  चित्रीकरण विभाग से चिडचिडाहट भरी अवस्था में बाहर जाते हुए देखा था ।
  • एक अन्य साधिका ने कहा कि उसने महेश को ४.३० बजे संध्याकाल में कार की चाबी लिए हुए देखा था । वह उस समय पूर्णतः ठीक लग रहा था । उसने महेश से कहा कि यदि वह शहर जा रहा हो तो क्या उसके लिए कुछ वस्तु ला सकता है ? किंतु वह साधिका से बहाना बनाकर निकल गया कि शीघ्र ही वापस आकर उसकी सहायता करेगा किंतु वह वापस ही नहीं आया ।
  • एक तीसरे साधक ने महेश को ४.३० बजे के उपरांत शोध वेंâद्र से कार चलाते हुए बाहर जाते देखा था ।

२. गायब होने के पश्चात महेश की खोज

निकट के नगर एवं विविध स्थानों पर जहां महेश अनेक बार जाता था वहां भी उसकी खोज निरर्थक रही । प्रीति को लगा कुछ अत्यधिक अनुचित हो गया है इसलिए उसने संध्याकाल में लगभग ७.३० बजे आध्यात्मिक शोध वेंâद्र में परम पूज्य डॉ. आठवलेजी को इसकी सूचना दी । उन्होंने सूक्ष्म निरीक्षण (छठवीं सू्क्ष्म इंद्रिय से ) किया एवं बतलाया कि आध्यात्मिक शोध वेंâद्र से महेश का गायब होना पूर्ण रूप से आध्यात्मिक घटना है तथा अनिष्ट शक्ति के आक्रमण के फलस्वरूप हुई है । उन्होंने प्रीति को आश्वस्त किया कि महेश सुरक्षित हैं एवं महेश के संरक्षणार्थ प्रीति को भगवान का नामस्मरण करना चाहिए । ८.३० बजे परम पूज्य डॉ. आठवलेजी ने प्रीति को एक अन्य संदेश भेजा, जिसमें उन्होंने कहा कि वे अपनी सत्सेवा निरंतर करती रहें तथा महेश सुरक्षित हैं । परम पूज्य डॉ. आठवलेजी ने रात्रि ११.३० बजे प्रीति को एक और संदेश भेज कर बताया कि महेश सुरक्षित हैं ।

३. महेश मिले किंतु विस्मरण से ग्रसित अवस्था में

मध्यरात्रि के कुछ समय उपरांत प्रीति के दूरभाष की घंटी बजी दूसरे छोर पर महेश थे । ऐसा लग रहा था वह सामान्य हैं किंतु उन्हें समझ नहीं आ रहा था वे कहां हैं एवं वहां कब और कैसे पहुंचे । प्रीति उन्हें सुनकर दबाव मुक्त हुई । उसने महेश से आस-पास देखने को कहा जिससे यह समझ में आ सके कि वह कहां है । उसने कहा उसे पुणे रेलवे स्टेशन का नामपटल दिख रहा है । प्रीति एवं सहसाधकों को यह सुनकर विश्वास ही नहीं हुआ, क्योंकि पुणे से  आध्यात्मिक शोध  केंद्र की दूरी न्यूनतम ५०० किलोमीटर है एवं औसतन कार से वहां पहुंचने के लिए १० से १२ घंटे का समय लगता है । प्रीति ने महेश से कहा कि वह जहां है वहीं रुके उसे कोई लेने के लिए आयेगा । महेश ने कहा वैसे भी उसे ऐसा लग रहा है कि परम पूज्य डॉ.आठवलेजी ने सूक्ष्म रूप से उसका हाथ पकड रखा है तथा वह कहीं भी नहीं जा सकता ।

महेश में लोप अवस्था (फ्यूग स्टेट) के साथ अस्थायी व्यापक स्मृतिह्रास (ट्रांसिएंट ग्लोबल एम्नेसिया) के लक्षण दिखाई दे रहे थे । लोप अवस्था (फ्यूग स्टेट) को पहले डिसोसिएटिव फ्यूग (साइकोजेनिक फ्यूग) (डीएसएम-४ डिसोसिएटिव डिसॉर्डर ३००.१३) के नाम से जाना जाता था । यह एक दुर्लभ मानसिक विकार है । डीएसएम-४ में इसे निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है :

  • अकस्मात,अनपेक्षित रूप से अपने घर अथवा कार्यालय से यात्रा पर निकल जाना तथा अपने अतीत का स्मरण खो देना ।
  • अपनी व्यक्तिगत पहचान के विषय में संभ्रम होना अथवा एक नई पहचान अपना लेना ।
  • अधिक मात्रा में पीडा अथवा क्षीणता (संदर्भ : wikipedia.org, नवंबर २०१० )

मेयो क्लिनिक डॉट कॉम (Mayoclinic.com) (नवंबर २०१०) द्वारा प्रस्तुत अस्थायी व्यापक स्मृतिह्रास (ट्रांसिएंट ग्लोबल एम्नेसिया) की सामान्य व्याख्या  अन्य प्रतिष्ठित मनोवैज्ञानिक स्रोतों के साथ साम्य रखती है ।‘यह  अकस्मात होनेवाले स्मृतिलोप की एक अवस्था है, जो मिर्गी अथवा स्ट्रोक जैसे तंत्रिकातंत्र के विकारों के (न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर्स के) कारण उत्पन्न नहीं होती. अस्थायी व्यापक स्मृतिह्रास (ट्रांसिएंट ग्लोबल एम्नेसिया) की स्थिति में हाल ही में हुई घटनाओं की स्मरण-क्षमता का पूर्ण ह्रास हो जाता है । अत: आपको यह स्मरण नहीं होता कि आप कहां हैं तथा वहां आप वैâसे पहुंचे । यदि आपसे यह पूछा जाए कि एक दिन, एक माह अथवा एक वर्ष पहले क्या हुआ, तो आप उससे पूर्णत: अनभिज्ञ होते हैं । यद्यपि अस्थायी व्यापक स्मृतिह्रास (ट्रांसिएंट ग्लोबल एम्नेसिया) में अपने आपको या अपने घनिष्टों को पहचान सकते हैं किंतु इससे आपके लिए स्मृति ह्रास की पीडा अल्प नहीं होती । सौभाग्य से अस्थायी विस्मरणावस्था दुर्लभ तथा प्रत्यक्षत: हानि एवं पुनरावृत्ति रहित होती है । इसके दौरे (एपिसोड) सामान्यतः अल्पकालिक होते हैं एवं बाद में स्मृति अच्छी भली रहती है ।’

परम पूज्य डॉ.आठवलेजी के मार्गदर्शन में साधना करनेवाले पुणे के साधकों से महेश को लाने के लिए संपर्वâ किया गया । जब वे वहां पहुुंचे तो उन्होंने पाया कि महेश अब भी वहीं पर खडा था जहां से उसने दूरभाष पर संभाषण किया था किंतु वह पुन: अस्थायी विस्मरणावस्था में चला गया था । उसे यदि किसी का स्मरण था तो, परम पूज्य डॉ.आठवलेजी का । उसे स्वयं के नाम का भी स्मरण नहीं था और तो और उसे इसका भी स्मरण नहीं था कि उसकी एक पत्नी है जिससे कुछ समय पूर्व उसने बात की है । तथापि उसकी कार्यकारिणी स्मृति ठीक थी यह इस तथ्य से मालूम होता है कि वह मध्याह्न में कार चलाकर पुणे आ पहुंचा था एवं उसे कार चलाने की कला पूर्णरूपेण ज्ञात थी ।

एस.एस.आर.एफ. की टिप्पणी: महेश की यात्रा से जो तथ्य उजागर हुए हैं, वे आश्चर्यचकित करनेवाले हैं ।

  • घटना के दो दिन पूर्व महेश की पैंट पहनते समय बिना किसी कारण, अपने आप ही पीछे से फट गई, जैसे जानबूझकर फाडी गई हो । घटना के आध्यात्मिक शोध से यह विदित हुआ कि पैंट फटने का कारण एक उच्च अनिष्ट शक्ति के द्वारा किया गया सूक्ष्म स्तरीय आक्रमण था । कृपया अधिक जानकारी हेतु खंड – भयकारी असाधारण कटने एवं फटने की घटनाएं देखें ।
  • यह कितना विचित्र लगता है कि उस यात्रा के दो दिन पहले ही उसने स्वप्न में देखा कि वह पुणे में है तथा पुणे रेलवे स्टेशन से एक बस पकड रहा है । जब कोई स्वप्न जागृत अवस्था में सत्य हो जाता है तब यह इंगित होता है कि उसका कोई न कोई आध्यात्मिक महत्व है । अन्यथा अधिकतर स्वप्न मानसिक होते हैं तथा वे मन की कल्पना होते हैं ।
  • यद्यपि महेश कोई अभ्यस्त वाहन चालक नहीं था तथापि गोवा से पुणे की यात्रा उसने साढे सात घंटों में पूरी की जबकि अनुभवी वाहन चालक को इसके लिए साधारणतया दस घंटों का समय लगता है ।
  • वह गोवा-पुणे मार्ग से पूर्णतया अनभिज्ञ है तथा जाते समय उसे अनेक स्थानों पर पूछताछ करनी पडी होगी जिस कारण यात्रा में उसे और भी अधिक समय लगा होगा । उसे दिनांक १२ अगस्त को कलाभवन चित्रीकरण विभाग से जाने के उपरांत से उन कुछ दिनों के तथा पुणे यात्रा के संबंध में क्या हुआ इसका कुछ स्मरण ही नहीं है । जब वह इसका स्मरण करने का प्रयत्न करता है तो उसको अति कष्ट तथा बेचैनी होती है ।
  • उसके बटुए में उतनी पूर्ण राशि थी जो गोवा छोडने के समय उसके पास थी । यद्यपि उसके पास एक ए.टी.एम. कार्ड था किंतु अधिकोष (बैंक) का खाता देखने पर पता लगा कि उसने उस दिन कार्ड का उपयोग नहीं किया था ।
  • उसके वाहन के इंधन का स्तर गेज में उतना ही था जितना उसके गोवा से निकलने के पहले था ।
  • गोवा – पुणे मार्ग पर ७ -८ टोल नाके हैं, चूंकि उसने बटुए से एक भी पैसा खर्च नहीं किया, इसलिए उसने मार्ग में इंधन, भोजन एवं टोल नाकों पर कहां से खर्च किया होगा, यह प्रश्न ही रहा ।
  • पुणे के साधक उससे जब मिले तो उन्होंने बताया कि बाह्य रूप से वह पूर्णतः सामान्य था उसकी शारीरिक दशा को देखकर कोई यह नहीं कह सकता था कि वह इतने तीव्र वेग से वाहन चलाकर गोवा से पुणे आया है अथवा उसका स्मृतिलोप हो गया है । आध्यात्मिक परीक्षण से हमें ज्ञात हुआ कि इस पूरे समय वह एक सूक्ष्मस्तरीय मांत्रिक के नियंत्रण में था जो पूर्णरूप से महेश के शरीर में प्रकट था एवं महेश के स्थान पर महेश के रूप में वही था । सूक्ष्मस्तरीय मांत्रिक ने अपनी अलौकिक शक्ति का उपयोग कर गोवा से पुणे तक महेश के शरीर के माध्यम से वाहन चलाया था ।

४. महेश की अस्थायी विस्मरणावस्था पर उपचार

अध्यात्मिक शोध से हमें यह ज्ञात हुआ कि महेश की समस्या पूर्णरूपेण आध्यात्मिक स्वरूप की है एवं वह उसके सूक्ष्मस्तरीय मांत्रिक द्वारा आविष्ट किए जाने से हुई है । अगले कुछ सप्ताह में महेश को उसकी स्मरण शक्ति पुन: प्राप्त हो गई । उसकी स्मरण शक्ति प्राप्त होने के लिए किए गए आध्यात्मिक उपचारों के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं ।

  • उसकी यात्रा के तीन दिनों के उपरांत वह पुणे में वह साधकों के साथ रहा । यहां उसे आविष्ट करनेवाली शक्ति पूर्णरूप से प्रकट हुई एवं उसने महेश को उसके निवास स्थान से कई बार भाग जाने के लिए प्रवृत्त किया ।
  • वह बार-बार कह रहा था कि वह गोवा में ही है, पुणे में नहीं ।
  • पुणे में महेश अधिकतर ध्यान लगाकर बैठा रहता । अनेक बार उसे आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति ऐसे मंत्रों का उच्चार करती जिनसे महेश अनभिज्ञ था । पुणे के साधकों ने गोवा के आध्यात्मिक शोध  वेंâद्र में इन सर्व घटनाओं की जानकारी दी । यह ज्ञात हुआ कि   महेश को आविष्ट की हुई अनिष्ट शक्ति उसी समय मंत्रोच्चार करती जब गोवा में एस.एस.आर.एफ.का आध्यात्मिक उपचार सत्र चलता रहता ।
एस.एस.आर.एफ. की टिप्पणी: आध्यात्मिक उपचार सत्र से जनित चैतन्य सूक्ष्मस्तर पर सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक से संघर्ष करता था एवं इसी के फलस्वरूप स्वरक्षा के लिए मांत्रिक विशिष्ट मंत्रों का जप करता था । इससे यह तथ्य भी सत्यापित होता है कि ईश्वरीय चैतन्य दूर-दूर तक उसी समय पहुंच सकता है ।
  • वह पूरी रात जगा रहता एवं विविध मुद्राएं करता । जब उससे पूछा जाता कि वह क्या कर रहा है तो सूक्ष्म अनिष्ट शक्ति उत्तर देती; वह परम पूज्य डॉ.आठवलेजी से सूक्ष्म युद्ध कर रहा है ।
  • दिनांक १५ अगस्त २०१० को उसे मुंबई के समीप एक आश्रम (जहां साधक सामूहिक निवास करते हैं एवं सत्सेवा करते हैं ।) में स्थानांतरित किया गया जहां परम पूज्य परशराम पांडे महाराजजी रहते थे । परम पूज्य परशराम पांडे महाराजजी द्वारा संचालित आध्यात्मिक उपचार सत्र के समय अनिष्ट शक्ति, जिसने महेश को आविष्ट कर रखा था, पूर्णरूप से प्रकट हुई किंतु वह परम पूज्य परशराम पांडे महाराजजी की ओर देख नहीं सकी ।
एस.एस.आर.एफ. की टिप्पणी: किसी संत की आंख में आंख डालकर देखने के लिए प्रकट होनेवाली अनिष्ट शक्ति को अत्यधिक शक्ति व्यय करनी होती है, इसलिए वह अपनी दृष्टि हटाने का प्रयत्न करती है । नीचे दिए चित्र में अनिष्ट शक्ति परम पूज्य परशराम महाराज की ओर देखने में समर्थ है; क्योंकि उनकी आंखें बंद हैं तथा वे ध्यान लगाकर बैठे हैं ।

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सूक्ष्मस्तरीय मांत्रिक जो महेश (बांए) में प्रकट होता है वह परम पूज्य परशराम महाराजजी (दांए) के आध्यात्मिक उपचार सत्र के समय विभिन्न मुद्राएं करता है, वे ध्यानावस्था में हैं ।

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यहां पर महेश को आविष्ट करनेवाला सूक्ष्मस्तरीय मांत्रिक परम पूज्य परशराम महाराजजी पर शारीरिक आक्रमण करना चाहता है, किंतु वह ऐसा करने में असमर्थ है ।

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महेश के माध्यम से आविष्ट करनेवाली शक्ति उपचारक को भयभीत करने के लिए अनेक मुद्राएं तथा चुनौती देनेवाले संकेत करती है, जिससे आध्यात्मिक उपचार में बाधा उत्पन्न हो ।

  • महेश का यह चित्र दिनांक १७ अगस्त २०१० को यात्रा के पांच दिन उपरांत लिया गया था । इस चित्र में उसे आविष्ट करनेवाली शक्ति पूर्णरूपेण प्रकट है ।

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एस.एस.आर.एफ. की टिप्पणी: महेश के नेत्रों की ओर देखें । बहुधा जब कोई भूत किसी व्यक्ति में प्रकट होता है तब उसकी आंखें प्रश्नवाचक एवं भूतग्रस्त हो जाती हैं, यह स्थिति दर्शाती है कि व्यक्ति आविष्ट  है ।
  • दिनांक २० अगस्त २०१० को महेश गोवा वापस आ गए थे, नीचे दर्शाया गया चित्र तब लिया गया था । यहां पर भी (बायीं ओर का चित्र) आविष्ट शक्ति पूर्ण रूप से प्रकट है । इसमें देखा जा सकता है कि जब वह पूर्ण चेतनावस्था में होते हैं (दायीं ओर का चित्र) उस समय उनकी आंखें तुलनात्मक रूप से पूर्णतः अलग दिखाई देती हैं

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५. सारांश – एस.एस.आर.एफ. का निष्कर्ष

  • महेश की अस्थायी विस्मरणावस्था के संदर्भ में एक मनोचिकित्सक परीक्षण के उपरांत मात्र इतना पाया गया कि उसकी स्मृति का लोप हो गया था, कोई अप्रत्याशित कारक अथवा तांत्रिक विकार स्पष्ट नहीं था ।
  • आपके किसी परिचित को भी महेश जैसे इडियोपैथिक एम्नेसिया (अज्ञातहेतुक (अज्ञात कारण) स्मृतिलोप) की पीडा तथा संबंधित परिस्थितियां अनुभव हो सकती हैं । एस.एस.आर.एफ. द्वारा किए गए शोध में हमने पाया कि जब अनिष्ट शक्ति व्यक्ति में तीव्र रूप में प्रकट होती है, तब व्यक्ति को समय का बोध नहीं होता एवं वह अस्थायी विस्मरण से ग्रस्त हो जाता है । व्यक्ति ने प्रकटीकरण के समय क्या किया अथवा क्या कहा इसका उसे भान नहीं रहता । इस अवस्था में व्यक्ति बहुधा असामान्य व्यवहार का प्रदर्शन करता है । जब आविष्ट करनेवाली शक्ति प्रकटीकरण रोक देती है असामान्य व्यवहार अकस्मात भी बंद हो जाता है । प्रकटीकरण के पश्चात आविष्ट की हुई शक्ति व्यक्ति में सुप्त होती है परंतु उसके विचार एवं व्यवहार पर नियंत्रण रखती है, बाह्यत: ऐसे लक्षण नहीं दिखाई देते जिससे अन्य को ज्ञात हो कि व्यक्ति आविष्ट है एवं भूतावेश का ज्ञान उसी को हो सकता है जिसकी छठवीं इंद्रिय जागृत हो । आविष्ट करनेवाली शक्ति की प्रकटावस्था के संबंध में अधिक जानकारी पढें ।
  • आध्यात्मिक शोध के माध्यम से हमने यह तथ्य जाना है कि सभी मानसिक रोगों में ९० प्रतिशत कारण आध्यात्मिक होते हैं ।
  • आध्यात्मिक शोध से एस.एस.आर.एफ. को यह ज्ञात है कि महेश के संदर्भ में उसकी अस्थायी विस्मरणावस्था का कारण न तो भौतिक था और ना ही मानसिक, अपितु केवल आध्यात्मिक था एवं वह उच्च स्तर की अनिष्ट शक्ति के प्रकटीकरण का परिणाम था । आपके कोई-परिचित यदि इडियोपेथिक एम्नेसिया से ग्रस्त  हों तो उनके प्रकरण में भी मूल कारण यही हो सकता है । जिन समस्याओं का मूल कारण आध्यात्मिक होता है उन्हें केवल साधना अथवा कुछ आध्यात्मिक उपचार जिसमें शारीरिक (औषधीय) तथा मानसिक उपाय भी (मानसोपचार) सम्मिलित हैं, से दूर किया जा सकता है ।