आध्यात्मिक उपचार से निद्रा पक्षाघात का ठीक होना

SSRF द्वारा प्रकाशित प्रकरण – अध्ययनों (केस स्टडीस) का मूल उद्देश्य है, उन शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के विषय में पाठकों का दिशादर्शन करना, जिनका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक हो, तो यह ध्यान में आया है कि सामान्यतः आध्यात्मिक उपचारों का समावेश करने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं । SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को चालू जारी रखने का परामर्श देता है । पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचारी पद्धति का पालन करें ।

यह श्रीमती रुचि के साथ हुए साक्षात्कार की एक प्रतिलिपि है, जो पिछले ४ वर्षों से अधिक लंबे समय से निद्रा-पक्षाघात के आक्रमण अनुभव कर रही है । ऐसा होने का कारण क्या है इससे संबंधित विवरण के लिए कृपया संदर्भ लेख निद्रा-पक्षाघात में आध्यात्मिक शोध देखें ।

रुचि, आयु २५ वर्ष , मेलबाॅर्न, ऑस्ट्रेलिया में अणुजीव वैज्ञानिक (माइक्रोबायोलॉजिस्ट) जो निद्रा-पक्षाघात के आक्रमणों को ४ वर्षों के लंबे समय से अनुभव कर रही हैं । उनके साथ हुर्इ चर्चा की प्रतिलिपि निम्नलिखित है :

चर्चा करनेवाला साधक : रुचि क्या आप हमें बता सकती है कि पक्षाघात के ये प्रहार कब से आरंभ हुए ?

रुचि : मुझे सटीक दिनांक तो ज्ञात नहीं है; मुझे लगता है यह मार्च २००२ में आरंभ हुआ । इसके प्रथम बार होने को मैं स्पष्ट रूप से स्मरण कर सकती हूं । उस दिन मैंने घर में पका स्वादिष्ट भोजन कर बैठक कक्ष में पडे सोफे पर लेटी हुई थी । उस समय, मैं अपने माता-पिता के साथ यूके में रह रही थी । वह एक भयानक अनुभव था चूंकि मैं पूर्ण रूप से जागृत थी तथापि मैं अत्यधिक प्रयास करने पर भी अपने शरीर को हिला नहीं सकी । यहां तक कि मेरे पिता मेरे पास बैठे दूरदर्शन देख रहे थे, मैं उन्हें सहायता के लिए भी नहीं पुकार सकी । मुझे बाद में पता चला कि उन्हें लगा मैं सो रही थी क्योंकि मेरी आंखे बंद थीं । मैं तीव्र गति से हो रहे अपने रक्त संचार को अनुभव कर सकती थी एवं वहां उसके संचार की ध्वनि थी । मैंने सोचा मुझे ह्रदय आघात हो रहा था I

चर्चा करनेवाला साधक : वह कितने समय तक रहा ?

रुचि : लगभग एक घंटा

चर्चा करनेवाला साधक : रुचि, क्या इस इसे प्रेरित करने वाला ऐसा कोई संभावित कारण था ? मेरे कहने का अर्थ है कि क्या आप कोई उपचार ले रही थी, तनाव, निराशा में थी अथवा क्या पूर्व में कभी आपने एेसी ध्वनि सुनी है ?

रुचि : नहीं, मैं ठीक एक सामान्य व्यक्ति के समान नियमानुसार काम करती हूं; मुझे ऐसा अनुभव क्यों हुआ इसका मुझे कोई भी कारण समझ में नहीं आता ।

चर्चा करनेवाला साधक : क्या उसके पश्चात कभी यह पुनः हुआ ?

रुचि : हां, वर्ष २००४ में मेरे विवाह होने तक, पिछले कुछ वर्षों में यह छः से सात बार हुआ ।

चर्चा करनेवाला साधक : क्या इसके विषय में आपने किसी को बताया ?

रुचि : नहीं, मुझे लगा कि लोग सोचेंगे मैं पागल हो रही हूं I ।

चर्चा करनेवाला साधक : तो क्या विवाह के पश्चात यह कम हुआ ?

रुचि : नहीं, इसके विपरीत मेरे विवाह करने एवं ब्रिसबेन, ऑस्ट्रेलिया में बस जाने के पश्चात इसकी तीव्रता बढ गयी । एक दिन दोपहर में जब मेरे पति अपने मित्र के साथ अन्य कक्ष में कार्य कर रहे थे एवं मैं अपने शयनकक्ष में सो रही थी । ऐसा पुनः हुआ एवं लगभग तीन घंटे तक रहा । उन लोगों के बगल के कक्ष में होने पर भी, मैं सहायता के लिए नहीं पुकार सकी I

पिछले १ वर्ष से इसकी बारंबारता और तीव्रता में दोनों में वृद्धि हुई है । यह ऐसी स्थिति पर पहुंच गया कि यह हर दूसरे दिन हो रहा था । प्रत्येक पक्षाघात के प्रहार के समय, मुझे अपने शरीर पर दाब अनुभव होता । यह प्रायः छाती एवं गले के भाग तक सीमित था । कुछ प्रसंगों में मेरी छाती का दाब बढकर मेरे गले को घोटने लगता । प्रहार के समय, मुझे श्वास लेने में कठिनाई होती है एवं मुझे घुटन का अनुभव होता है । प्रहार कुछ मिनटों से लेकर कुछ प्रसंगों में ३-४ घंटों तक का होता है । प्रायः, यह दुर्गंध के साथ होता है ।

अन्य विशेषता है कि ऐसा अधिकतर पूर्णिमा एवं अमावस्या के दिनों में होता है ।

चर्चा करनेवाला साधक : ऐसा अधिकतर पूर्णिमा के दिन होने का कारण है कि उस दिन अनिष्ट शक्ति अधिक सक्रिय होते हैं ।

रुचि : अच्छा । रात्रि में मेरी नींद बहुत अस्तव्यस्त होती एवं मैं थकने तक कार्य करती रहती । मैं सदैव निद्राग्रस्त रहती किंतु मुझे सोने के लिए जाने से भय लगता था । अब तो इसके प्रकोप के कुछ क्षण पूर्व मैं किसी की उपस्थिति भी अनुभव कर सकती हूं ।

चर्चा करनेवाला साधक : तो आप इससे बाहर कैसे आती हैं ?

रुचि : वैसे तो, मैं अधिक कुछ नहीं कर सकती, जब मैं पक्षाघात की अवस्था में होती हूं । मैं अपने पति को पुकारने का प्रयास करती हूं । कभी कभी मेरे कंठ से कुछ गुरगुराहट की ध्वनि निकलती है, जो उन्हें मेरी स्थिति से सचेत करवाती है । उस समय वे मुझे हिलाते हैं एवं मैं पक्षाघात की अवस्था से मुक्त हो जाती हूं । अन्य दिनों में, मेरी अवस्था से मुक्त हो जाने तक मात्र प्रतीक्षा ही करनी पडती है ।

मेरे पति एक साधक हैं जो स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन के मार्गदर्शन में साधना कर रहे हैं । वे मुझे इस पक्षाघात को प्रभावहीन करने के लिए आध्यात्मिक उपचार करने का सुझाव देते हैं । वे मुझे बताते हैं कि ऐसा अनिष्ट शक्ति बाधा के कारण कारण हुआ है । आरंभ में, मैं इसमें विश्वास नहीं करती थी एवं आध्यात्मिक उपचारों को करने में लापरवाह थी, किंतु जब आक्रमण बढ गए तब मैं सुरक्षादायक आध्यात्मिक उपचारों को र्इमानदारी से करने लगी ।

चर्चा करनेवाला साधक : आध्यात्मिक सुरक्षादायक उपचार क्या थे एवं क्या उनसे लाभ हुआ ?

रुचि : मैं कई आध्यात्मिक उपचार करती हूं ।

१. दिन में दो बार नमक पानी का उपचार: इसमें चुटकी भर विभूति को नमक के पानी में मिला कर उसे संरक्षात्मक बनाकर अपने पैरों को डुबाकर साथ में ईश्वर के नाम का जप एवं प्रार्थना करना कि मुझमें विद्यमान काली शक्ति नमक पानी में खींच ली जाए ।

२. सोने से पहले अपने बिछौने के चारों और तीर्थ (पवित्र जल) को छिडकना एवं अपने चारों आेर सुरक्षा कवच बनने हेतु प्रार्थना करना ।

३. चंदन के सुगंधवाली अगरबत्ती जलाना

४. दिन भर में सुरक्षा के लिए प्रार्थना करना

भगवान श्री गणेश ईश्वर के एक तत्व हैं । उनका एक कार्य अनिष्ट शक्ति (दानव, दैत्य, भूत इत्यादि) का उन्मूलन करना है ।

५. न्यूनतम २१ बार श्री गणेशजी की प्रतिमा की परिक्रमा करना

६. अपने कुलदेवता का नाम जप करना I

७. पूर्वजों के कष्टों से रक्षण हेतु दत्त भगवान का नाम जप करना

इस प्रकार के उपचार की कोई पृष्ठभूमि नहीं होने के कारण, मैं आरंभ में थोडी संशयी थी । तथापि कष्ट इतना अधिक था कि मैं इससे मुक्ति पाने के लिए कुछ भी करने को तत्पर थी । चूंकि इन उपचारों को करने के पश्चात मुझे आक्रमणों के अल्प होने का अनुभव हुआ, मेरा विश्वास जगा एवं मैं इन्हें और अधिक गंभीरता से करने लगी ।

इन उपचारों को करके अपने चारों ओर एक सुरक्षा कवच को सुनिश्चित करने जैसा है । जब मैं किसी दिन इन उपचारों को नहीं करती हूं तब निद्रा-पक्षाघात के आक्रमण होने की संभावना अधिक रहती हैI ।

चर्चा करनेवाला साधक : मुझे ज्ञात हुआ है कि परम पूज्य डॉ. आठवलेजी ने हाल ही आपको कुछ सुझाव दिएI ।

रुचि : जी हां, उन्होंने मुझे ‘न्यास’ करने को कहा है । मुझे अपनी अंगुलियों को जोडकर छाती की ओर कर अधिक से अधिक ‘श्री गुरुदेव दत्त’ का नाम जप करना है । जैसा मैंने पूर्व में बताया है यह उपचार अन्य सामान्य उपचारों के साथ करना है । (श्री गुरुदेव दत्त का नाम जप मृत पूर्वजों के द्वारा होने वाले कष्टों से रक्षण हेतु किया जाता है I)

मैंने त्वरित इन्हें करना आरंभ कर दिया एवं इसका प्रभाव भी शीघ्र हुआ । इस बात को अब तीन सप्ताह हो गए हैं एवं मुझे निद्रा-पक्षाघात की स्थिति नहीं हुई है । तीन सप्ताह में एक अथवा दो बार, कुछ क्षणों के लिए निद्रा-पक्षाघात हुआ । लंबी कालावधि के पश्चात, मैं अब रात्रि में अच्छी नींद ले पाती हूं ।

चर्चा करनेवाला साधक : आप कुछ और बताना चाहेंगी ?

रुचि : मुझे लगता है कि इस अनुभव से एक सकारात्मक बात सामने आई । अब मैं मानसिक रूप से बहुत शक्तिशाली अनुभव करती हूं क्योंकि मुझे पता है कि अपनी समस्या से लडने के लिए मेरे पास साधन है । मैंने नियमित साधना के महत्व एवं स्वयं को आध्यात्मिक रूप से सुरक्षित करने की आवश्यकता को भी समझा है ।

रूचि के विषय में उसके स्वयं के शब्दों को सुनने के लिए कृपया नीचे दी हुई मीडिया फार्इल पर क्लिक करें