प्रकरण अध्ययन – दत्त भगवान के नामजप से मुंह के छालों का उपचार

SSRF द्वारा प्रकाशित प्रकरण-अध्ययनों (केस स्टडीस) का मूल उद्देश्य है, उन शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के विषय में पाठकों का दिशादर्शन करना, जिनका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक हो, तो यह ध्यान में आया है कि सामान्यतः आध्यात्मिक उपचारों का समावेश करने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं । SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को जारी रखने का परामर्श देता है । पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचारी पद्धति का पालन करें ।

1.-Vmaratheमैं वर्ष १९९८ से SSRF के मार्गदर्शन में साधना कर रहा हूं । वर्ष २००१ में मुझे बारंबार मुंह के छाले होने लगे । वे प्रत्येक पंद्रह दिनों के उपरांत मेरे मुंह रिक्तिका के अलग-अलग स्थानों पर हो जाते । मैंने अनेक चिकित्सकों से परामर्श लिया । उनके द्वारा बी-कॉम्प्लेक्स तथा डोलोजेल (छालों पर लगाया जानेवाला एक स्थानीय एनेस्थेटिक द्रव) उपचार हेतु दिया जाता । मैंने होमियोपेथी चिकित्सक से भी परामर्श लिया; किंतु उसका भी कोर्इ लाभ नहीं हुआ । पांच वर्षों तक मैं मुंह के छालों से पीडित रहा ।

एक दिन मैंने अपनी समस्या को SSRF के सूक्ष्म-ज्ञान विभाग के एक साधक को बताया । उन्होंने मुझे बताया कि यह पितृदोष के कारण है । उस समय मैं दत्त भगवान का नामजप तीन माला (अर्थात ३ X १०८ = ३२४) करता था । उन्होंने मुझे इसे बढाकर ९ माला प्रतिदिन करने को कहा । बढे नामजप के लाभ को मैं शीघ्र ही अनुभव करने लगा । छालों की गंभीरता तथा उनके होने की बारंबारता भी घट गर्इ । लगभग दो माह के उपरांत वे पुनः नहीं हुए |

पूर्व की एक घटना जो मुझे यह कष्ट आध्यात्मिक होने का संकेत दे सकती थी, वह यह थी कि छाले प्राय: पूर्णिमा अथवा अमावस्या के दिन के आसपास होते थे |

संपादक की टिप्पणी :

SSRF के सूक्ष्म-ज्ञान विभाग में ऐसे साधक हैं, जो सूक्ष्म आयाम में देख सकते हैं, सूक्ष्म जगत के चित्र (सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित चित्र)बना सकते हैं तथा आध्यात्मिक उपचार बता सकते हैं । इस विभाग के कुछ साधकों को ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त होता है तथा कुछ साधक ईश्वरीय कला का अनुसरण कर रहे हैं । SSRF के शोधकार्य प्रधानता से इसी विभाग द्वारा किए जाते हैं ।

यद्यपि श्री मराठे SSRF के मार्गदर्शन में साधना आरंभ करने के समय से भगवान दत्त का नामजप प्रतिदिन ३ माला करते थे | परंतु जप की इतनी संख्या छालों के कष्ट का सामना करने में पर्याप्त नहीं थी | जब आवश्यक मात्रा में नामजप में वृद्धि की गई तभी कष्ट का पूर्णतः निवारण हुआ |