ब्रह्मांड के लोकों के अनुसार मानवीय अस्तित्त्व का प्रधान तत्त्व

हमारे पाठकों के लिए सुझाव : इस लेख को भली प्रकार से समझने के लिए मानव किन घटकों से बना है ? आप यह लेख पढें ।

जब हम आध्यात्मिक रूप से विकसित हो कर आगे-आगे के उच्च सूक्ष्म-लोकों में गमन करने लगते हैं, तब हमारे सूक्ष्म-देह का क्या होता है, यह हमने इस लेख में बताया है । साधना करने से हम स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाते हैं । अर्थात अपने अन्य देहों से अपना तादात्म्य क्षीण करते जाते हैं । जैसे-जैसे हम अधिक विकसित स्तरों के उच्च सकारात्मक लोकों में जाते हैं हमारी देह जिससे हमारा सर्वाधिक तादात्म्य रहता है, वह और अधिक सूक्ष्म होती जाती है ।

आगे दी गई सारणी में विविध देहों के अनुसार ब्रह्मांड के विभिन्न लोक दर्शाए गए हैं । यह दिखाता है कि जैसे-जैसे हम ब्रह्मांड के उच्च सकारात्मक लोकों में जाते हैं, हमारे स्थूल शरीर का लय होते जाता है ।

ब्रह्मांड के लोक स्थूल देह प्राण देह सूक्ष्म- ज्ञानेंद्रियां सूक्ष्म- कर्मेंद्रियां बाह्य मन चित्त कारण देह/बुद्धि सूक्ष्म-अहं कुल कौनसा देह प्रधान होगा ?
पृथ्वी २० इच्छा देह
निम्न स्वर्गलोक मनाेदेह
उच्च स्वर्गलोक कारण देह/बुद्धि
महर्लोक कारण देह/बुद्धि
जनलोक सूक्ष्म-अहं
तपोलोक सूक्ष्म-अहं
सत्यलोक सूक्ष्म-अहं

टिप्पणियां :

१. संख्या ५ प्राणदेह के पांच पहलुओं से संबंधित है ।

२. पंचज्ञानेंद्रिय तथा पंचकर्मेंद्रिय सूक्ष्म-देह से संबंधित है । निम्न आध्यात्मिक स्तर पर हमें आध्यात्मिक आयाम को समझने के लिए सूक्ष्म-ज्ञानेंद्रियों की आवश्यकता होती है । आगे हम सूक्ष्म-मन तथा सूक्ष्म-बुद्धि द्वारा आध्यात्मिक आयाम को समझने लगते हैं ।

३. चित्त अवचेतन मन तथा अचेतन मन से मिल कर बना होता है ।

४. यह स्तंभ ब्रह्मांड के विविध सूक्ष्म-लोकों में कौनसी देह प्रधान रहेगी, यह दर्शाता है । सकारात्मक लोक जितना उच्च होगा प्रधान देह उतनी अधिक सूक्ष्म अथवा अदृश्य होगी ।

५. अनेक बार हम मनोदेह के एक पहलू को इच्छादेह अथवा वासनादेह से संबंधित मानते हैं । यह मन का वह पहलू है जिसमें इच्छा के सभी संस्कार होते हैं । यदि पृथ्वीलोक में हमारी कोई इच्छा है तो भौतिक स्तर पर तो हम उसे पूरा कर ही सकते हैं । साथ ही यदि निम्न आध्यात्मिक स्तर पर हमारी मृत्यु हो जाए, तो हमारी इच्छा देह तब भी सक्रिय रहती है;किंतु उसे पूरा करने के लिए हमारे पास स्थूल देह नहीं रहती । इसी कारण से हमारे लगभग सभी पूर्वज किसी ना किसी प्रकार से भूलोक में फंसे रह जाते हैं । कुछ प्रकरणों में वे मर्त्यलोक में फंसे रह जाते हैं, वहां से आगे के सूक्ष्म-लोकों में जहां उन्हें मृत्यु के उपरांत जाना चाहिए था, उस ओर गमन करने में सक्षम नहीं रहते । मर्त्यलोक अथवा भुवर्लोक से भी मृत सूक्ष्म-देह अपने समान इच्छाएं रखनेवाले वंशजों अथवा अन्य लोगों को आविष्ट करती हैं, जिससे वे उनके माध्यम से अपनी इच्छाओं को तृप्त कर सके । अपने दिवंगत पूर्वजों से लेन-देन का हिसाब रहने के कारण वंशजों का आविष्ट होना अधिक सरल होता है । जीवन की समस्याओं के मूल आध्यात्मिक कारण पर आधारित हमारे पूर्वज खंड का संदर्भ लें । केवल अध्यात्म के छः मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित साधना करने से हम अपनी इच्छाओं से मुक्त हो सकते हैं ।

६. यहां मनोदेह से हमारा तात्पर्य है, किसी के विचारों से संबंधित मन का पहलू ।

७. यह हमारी अलग पहचान का अंतिम सूचक है । जब तक हम परमेश्वर से एकरूप होकर अपना पूरा कनिष्ठ मैं अर्थात पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि से अपना तादात्म्य समाप्त न कर दें, यह बना रहता है ।

८. जब हमारे मनोदह का लय हो जाता है, हम वैश्विक मन से जुड पाने में सक्षम हो जाते हैं । इसलिए जब हमारी कारण देह (बुद्धि)का लय हो जाता है, हम वैश्विक बुद्धि से जुड जाते हैं और उसी से कार्य करते हैं ।

यह लेख हम पर साधना करने की तथा भौतिक मृत्यु के उपरांत ब्रह्मांड के उच्च सकारात्मक लोकों में स्थान पाने की आवश्यकता पर बल देता है ।