अनिष्ट शक्तियां (भूत, राक्षस, दानव आदि) व्यक्ति को विचारों के माध्यम से कैसे प्रभावित करती हैं ?

इस लेख को समझने के लिए, हमारा सुझाव है कि आप निम्न लेखों से परिचित हो जाएं :

  • मन की संरचना एवं कार्य
  • अनिष्ट शक्तियों के विविध प्रकारों का परिचय

१. परिचय

हमारे पूर्व के लेखों में, हमने समझा कि विश्व की अधिकांश जनसंख्या अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित है अथवा आनेवाले वर्षों में उनके प्रभाव को अनुभव करगी। हमने लेख में यह भी देखा कि कोई व्यक्ति अनिष्ट शक्तियों के प्रभाव को कैसे पहचाने तथा उसे आध्यात्मिक उपचार तथा साधना द्वारा कैसे न्यून करे ?

आध्यात्मिक उपचार तथा साधना का एक लाभ यह है कि, इससे हम अपने अवचेतन मन के विचार तथा अनिष्ट शक्तियों द्वारा दिए गए विचारों के मध्य अंतर करना समझ सकते हैं । इस अंतर को व्यावहारिक रूप से (practical) समझने के लिए यह अभ्यास करना होगा कि, आध्यात्मिक उपचार करने के उपरांत वे विचार रहते हैं कि चले जाते हैं अथवा उनकी तीव्रता घट जाती है ।

यद्यपि साधना की आरंभिक अवस्था में यह अंतर समझना कठिन हो सकता है । साथ ही, जब अनिष्ट सूक्ष्म-शक्तियों का प्रभाव अत्यधिक शक्तिशाली हो, तब विचार का स्रोत क्या है, यह समझने में कभी-कभी आध्यात्मिक उपचार तथा साधना करते हुए अनेक मास अथवा अनेक वर्ष लग जाते हैं ।

अनिष्ट शक्तियों द्वारा दिए जानेवाले विभिन्न प्रकार के विचार तथा वे विचार लोगों को कैसे प्रभावित करते हैं, इससे संबंधित कुछ उदाहरण हमने इस लेख में दिए हैं । लोगों पर तथा साधकों पर उनका प्रभाव कैसे अलग-अलग होता है, इसके संदर्भ में भी हमने विवेचन किया है । प्रत्येक उदाहरण के साथ कुछ प्रतिक्रियाएं तथा उपचारात्मक कृत्यों की भी अनुशंसा की है ।

२. अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, राक्षस, आदि) मन में इच्छाएं कैसे बढाती हैं ?

अनिष्ट शक्तियां प्रायः निम्नलिखित प्रक्रियाद्वारा मन में इच्छाएं बढाकर हमें प्रभावित करती हैं ।

अनिष्ट शक्ति अवचेतन मन के वासना और इच्छा केंद्र को लक्ष्य कर प्रत्यक्ष आदेश देती है । उदाहरणार्थ, अभी मद्यपान करो, अभी चॉकलेट खाओ, अभी सिनेमा देखो, अभी संगीत सुनो, अभी मादक पदार्थ (ड्रग्स) का सेवन करो, अभी संभोग करो। परिणामस्वरूप निर्देशित विचार के अनुसार कृत्य करने की इच्छा जागृत हो जाती है तथा व्यक्ति को वे कृत्य करने का मन करने लगता है ।

यदि व्यक्ति इस इच्छा को (resist)मानने से मना करता है अथवा उसे कोई ईश्‍वरीय सुरक्षा प्राप्त है अथवा व्यक्ति चैतन्य अथवा आनंद का अनुभव करता है, तब अनिष्ट शक्ति, आदेश की तीव्रता बढा देती है । उदाहरण के लिए – अत्यधिक मात्रा में भोजन करो; घर में उपलब्ध सारा खाना खा लो, ३० महिलाओंके साथ संभोग करो इत्यादि । (आवश्यक नहीं है कि अनिष्ट शक्तियों द्वारा दिए गए आदेश यहां बताए अनुसार ही हों; किंतु आदेश का सिद्धांत तथा मन में अनुभव हो रही भावना समान ही होंगे ।)

स्वयंसूचना : स्वयंसूचना का अर्थ है; आचरण, विचार, प्रतिक्रियाएं (दृष्टिकोण) अथवा शारीरिक स्थिति में सकारात्मक परिवर्तन लाने हेतु अपने मन को सुझाया गया एक उपचारात्मक वाक्य अथवा दृष्टिकोण ।

दूसरी पद्धति है रुचि-अरुचि केंद्र को लक्ष्य बनाना, इसमें स्वयंसूचना के रूप में विचार भेजे जाते हैं , जैसे – मुझे चॉकलेट पसंद है, मुझे मद्यपान करना अच्छा लगता है, मुझे मांसाहार पसंद है। तब व्यक्ति का रुचि केंद्र वैसा करने का विचार देता है । यद्यपि साधक का रुचि केंद्र इन पदार्थों के लिए विकसित नहीं होता, तथापि वैसी स्थिति में उसके अवचेतन मन में विद्यमान रुचि केंद्र वही अनुभव कर पाता है । इस पद्धति के लिए अनिष्ट शक्तियां (भूत,  प्रेत,  राक्षस आदि) अतिरिक्त प्रयास करती है; क्योंकि साधक के मन में सात्त्विक इच्छाओं का एक केंद्र होता है, जो उन अनिष्ट इच्छाओंके विरुद्ध लडता है ।

उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों द्वारा उत्पन्न की गई इच्छाओं का प्रभाव
नकारात्मक (तमप्रधान) व्यक्ति सहजता से प्रभावित, ऐसे व्यक्तियों के मन में वैसी इच्छाओंके संस्कार पूर्व से ही होते हैं; उनका मन स्फुरित होकर उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों (मांत्रिकों) द्वारा दिए जा रहे विचारों को सकारात्मक रूप से प्रतिसाद देता है । मांत्रिकों को कुछ अधिक करने की आवश्यकता नहीं होती ।
साधारण व्यक्ति उन इच्छाओंमें प्रसन्नतापूर्वक मग्न हो जाते हैं तथा उसके प्रभाव से अनभिज्ञ होते हैं । मांत्रिक समय के साथ-साथ (कई बार पूरे जीवनकाल)धीरज रख सूक्ष्म रूप से उन विचारों को बढाता जाता है, फलतः साधारण व्यक्ति बुरा बन जाता है ।
साधक उत्पन्न की गई इच्छाओंको पसंद न करनेवाले साधक साधक के अवचेतन मन में इस प्रकार की इच्छाओंमें रुचि रखनेवाले केंद्र नहीं हो ते, किंतु उन्हें उस केंद्र के होने का भान होगा । मांत्रिक और अधिक प्रयास करते हैं क्योंकि साधक के मन में सात्त्विक इच्छाओंका केंद्र होता है, जो इन निम्न स्तरीय इच्छाओंके विरुद्ध लडता है ।
साधक,  जो इस बात से अनभिज्ञ है कि अनिष्ट शक्ति विचार डाल रही है । इन विचारों के कारण साधक को अपराधबोध होता है प्राय: उन विचारों के अनुसार कृत्य करेगा । उसे स्वयं का आध्यात्मिक स्तर निम्न लगेगा ।
साधक, इस बात से परिचित होता है कि यह विचार अनिष्ट शक्तिद्वारा डाला गया है । वह उन विचारों के अनुसार काम नहीं के बराबर करता है । जब भी वैसे विचार आते हैं, वह आध्यात्मिक उपचार करने के लिए अधिक प्रयास करेगा ।

३. अनिष्ट शक्तियां (भूत, दानव, राक्षस इत्यादि) स्वयं के, अन्यों के तथा अध्यात्म के संदर्भ में नकारात्मक विचार कैसे बढाती हैं ?

३.१ स्वयं के संदर्भ में नकारात्मक विचार

पहले दिए उदाहरण अनुसार, अनिष्ट शक्ति (भूत, दानव, राक्षस इत्यादि) नकारात्मक सूचना के माध्यम से उस प्रकार के विचार हमारे मन में डालती है । इसका भी समान सिद्धांत ही है, परंतु यह सूचना बुद्धि, पहचान तथा अभिव्यक्ति केंद्र पर आक्रमण करती है ।

उनके द्वारा मन में डाले गए विचार इस प्रकार के हो सकते हैं, जैसे -तुम एक बुरे साधक हो । तुम्हें तो दु:ख ही मिलने चाहिए। तुम अत्यंत बुरे हो और यहां से बाहर निकलने का कोई मार्ग नहीं है । केवल एक ही उपाय है, स्वयं के प्राण ले लो । वास्तव में तुम्हें साधना करना बंद कर देनी चाहिए क्योंकि तुम बहुत बुरे व्यक्ति हो । इससे साधक के मन में ये विचार आ सकते हैं कि मैं बुरा साधक हूं । मेरे भाग्य में दु:ख भोगना ही लिखा है । इससे बाहर निकलने का कोई मार्ग नहीं है । आत्महत्या ही एकमात्र उपाय है । मुझे साधना करना बंद कर देना चाहिए; क्योंकि मैं एक बुरा व्यक्ति हूं ।

उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों द्वारा स्वयं के संदर्भ में उत्पन्न किए गए नकारात्मक विचारों का प्रभाव

नकारात्मक (तमप्रधान) व्यक्ति अथवा अपराधी उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियां (मांत्रिक) इनके मन में इस प्रकार के विचार नहीं डालते । इसके स्थान पर मांत्रिक उनका अहं बढानेवाले विचार डालते हैं ।
अनिष्ट शक्ति (भूत, राक्षस, इत्यादि) द्वारा आविष्ट व्यक्ति इस प्रकार के विचारों के कारण इन्हें मानसिक रोग हो सकते हैं तथा अंततः वह आत्महत्या कर सकता है ।
साधारण व्यक्ति निराशा के भंवर में उलझ सकता है तथा मानसिक समस्याओंसे ग्रस्त हो सकता है ।
साधक साधक, जो इस बात से अनभिज्ञ है कि अनिष्ट शक्ति विचार डाल रही है । निराश तथा भावनाशील हो सकता है तथा उसकी साधना अवरुद्ध हो सकती है ।
साधक, जो इस बात से परिचित है कि यह विचार अनिष्ट शक्ति द्वारा डाला गया है । र्इश्वर की शरण जाता है तथा विचार आने पर आध्यात्मिक उपचार करने का प्रयास करता है ।

३.२ अन्यों के संदर्भ में नकारात्मक विचार

अन्यों के संदर्भ में अनिष्ट शक्ति (भूत, दानव, राक्षस इत्यादि) इस प्रकार के विचार डाल सकती है, जैसे यह व्यक्ति अत्यधिक नकारात्मक है, उसमें अत्यधिक अहं है, वह अभी जो भी कह रहा है, यह उसका अहं है, यह व्यक्ति झूठा है, वह तुमसे घृणा करता है और तुम्हें हानि पहुंचाना चाहता है । साधारणतया यह पूर्णरूप से गलत होता है । जो वास्तव में है ही नहीं उसकी ओर इंगित किया जाता है । हम उन दोषों तथा अहं को देखते हैं जो वहां है ही नहीं । परंतु अनिष्ट शक्ति उन विचारों को हमारे मन में डालती है और प्रभावित व्यक्ति अन्यों के संदर्भ में वैसे ही सोचने लगता है । इस प्रकार,  प्रभावित व्यक्ति के मन पर आवरण आ जाता है ।

उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों द्वारा अन्यों के संदर्भ में उत्पन्न किए गए नकारात्मक विचारों का प्रभाव

नकारात्मक (तमप्रधान) व्यक्ति अथवा अनिष्ट शक्ति (भूत, राक्षस, इत्यादि) द्वारा आविष्ट व्यक्ति अन्य व्यक्ति के प्रति हिंसक हो सकता है तथा शाब्दिक अथवा शारीरिक रूप से उस पर आक्रमण कर सकता है ।
साधारण व्यक्ति बर्हिमुख होने के कारण यह विचार योग्य है अथवा नहीं, यह सोचे बिना उसी प्रकार से सोचता रहता है तथा अन्य व्यक्ति को दोषी ठहराता है । उस व्यक्ति से प्रत्यक्ष बातचीत न हो, इसके लिए वह प्रयास कर सकता है; किंतु उसके मन में कटुता तथा अन्यों के प्रति गलत विचार रहेंगे, अथवा पीठ के पीछे उनकी बुराई करेगा । वह उन लोगों के साथ झगडा कर सकता है ।
साधक साधक, जो इस बात से अनभिज्ञ है कि अनिष्ट शक्ति विचार डाल रही है । साधक के अंतर्मुख होने के कारण उसे भान रहता है कि ऐसे विचार गलत हैं । यदि साधक इस बात से अनभिज्ञ है कि ये विचार अनिष्ट शक्ति के कारण है, तो उसे स्वयं के बारे में बुरा लगने लगता है । उस साधक को अन्य साधक के संदर्भ में भी बुरी भावना पनप सकती है, अन्य साधकों से दूर रहने लगता है अथवा स्वयं को श्रेष्ठ समझने लगता है और उसकी साधना की हानि हो सकती है ।
साधक, जो इस बात से परिचित है कि यह विचार अनिष्ट शक्तिद्वारा डाला गया है । आध्यात्मिक उपचार तथा संबंधित स्वभावदोष को दूर करने हेतु अधिक प्रयास करेगा ।

३.३ अध्यात्म के संदर्भ में नकारात्मक विचार

साधना तथा सत्सेवा के संदर्भ में अनिष्ट शक्ति (भूत, दानव, राक्षस इत्यादि) इस प्रकार के विचार डाल सकती है, जैसे -साधना ढोंग है, ईश्‍वर नहीं है, ईश्‍वर तुमसे घृणा करते हैं, गुरु ढोंगी है और तुम्हें धोखा दे रहा है, गुरु/ईश्‍वर तुमसे अधिक अन्यों को पसंद करते हैं , तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जा रहा है, जो सत्सेवा तुम कर रहे हो, वह सत्सेवा नहीं है ।”, अध्यात्म प्रसार कभी नहीं हो सकता। अध्यात्मशास्त्र को निम्न दिखाने के लिए वे बौद्धिक शंकाएं भी उत्पन्न कर सकती हैं, उदाहरण के लिए मांसाहार अच्छा है क्योंकि उसमें लौह तत्त्व (आयरन) होता है । यदि तुम मांस नहीं खाओगे तो बीमार हो जाओगे । विज्ञान ने यह सिद्ध किया है, अध्यात्मशास्त्र गलत है ।

अनिष्ट शक्तियां (भूत, दानव, राक्षस इत्यादि) अध्यात्मशास्त्र को विकृत दिखाने तथा व्यक्ति से तामसिक व्यवहार करवाने के लिए, वैसे विचार डालती है जैसे -स्नान न करने से अथवा घर स्वच्छ न करने से अधिक कुछ भी नहीं होगा । ये सब स्थूल स्तर की बातें हैं । सूक्ष्म अधिक महत्त्वपूर्ण है, इसलिए तुम्हें ये सब करने की आवश्यकता नहीं है । अनुचति साधना करने हेतु भी कुछ ऐसे विचार डाले जा सकते हैं जैसे -तुम्हें सत्सेवा नहीं; अपितु बैठकर नामजप करना चाहिए क्योंकि नामजप अंतरंग कीसाधना है, जबकि सत्सेवा बाह्य साधना तथा स्थूल है । तुम्हें सत्सेवा करने की आवश्यकता नहीं है, तुम उसके आगे के स्तर पर चले गए हो । तुम आनंद तोअनुभव कर ही रहे हो ।

अध्यात्मशास्त्र को विकृत करने हेतु कुछ चरम प्रसंगों में, अनिष्ट शक्तियां (भूत, दानव, राक्षस इत्यादि) ऐसे विचार डाल सकती है जिससे व्यक्ति नकारात्मक कृत्य को सकारात्मक समझे, जैसे – तुम्हें अपना मार्गदर्शन स्वयं करना चाहिए । अन्यों का अनुसरण करने से तुम ईश्‍वर से नहीं अपितु व्यक्ति से जुडे रहोगे । प्रत्येक व्यक्ति को अपना मार्गदर्शक स्वयं होना चाहिए, अथवा मादक पदार्थ (ड्रग्स) आध्यात्मिक अनुभूति देते हैं तथा यह प्रगति का आध्यात्मिक साधन है । अन्यों को अध्यात्म के विषय में बताने के संदर्भ में भी अनिष्ट शक्तियां अनुचित विचार डाल सकती हैं कि कैसे अध्यात्म का प्रसार किया जाए । वे मानसिक स्तर पर सत्सेवा करने अथवा अध्यात्म प्रसार करने के विचार डाल सकती हैं; परंतु वास्तव में गलतियों की ओर अग्रसर कर रही होती हैं । वे किसी जिज्ञासु व्यक्ति के विषय में निर्णय लेते समय अनुचित विचार डाल सकती हैं (जैसे -कोई व्यक्ति जो साधक नहीं है; किंतु संदेश में साधक है, यह लिखकर भेजना अथवा इसके विपरीत कोई व्यक्ति जो साधक है; किंतु संदेश में साधक नहीं है, यह लिखकर भेजना)।

उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियोंद्वारा अध्यात्म के संदर्भ में उत्पन्न किए गए नकारात्मक विचारों का प्रभाव
नकारात्मक (तमप्रधान) व्यक्ति अथवा अनिष्ट शक्ति (भूत, राक्षस, इत्यादि) द्वारा आविष्ट व्यक्ति वह नास्तिक, कट्टर धार्मिक व्यक्ति अथवा अर्ध छद्म धार्मिक (क्वासी स्पिरिच्युअल) व्यक्ति की भांति व्यवहार करता है तथा साधना के ज्ञान पर आक्रमण कर सकता है अध्यात्म प्रसार में अवरोध उत्पन्न करने का प्रयास कर सकता है ।
साधक साधक, जो इस बात से अनभिज्ञ है कि अनिष्ट शक्ति विचार डाल रही है । साधना करना छोड सकता है, अयोग्य साधना कर सकता है तथा शंकाओं (अल्प भाव, अल्प शरणागति)के कारण उसकी साधना की गुणवत्ता घट सकती है ।
साधक, जो इस बात से परिचित है कि यह विचार अनिष्ट शक्तिद्वारा डाला गया है । आध्यात्मिक उपचार, प्रार्थना, सत्सेवा किस प्रकार से हो रही है, यह अंतर्मुख होकर देखना, सत्सेवा करने हेतु अन्यों से पूछना उनका मार्गदर्शन लेने इत्यादि हेतु और अधिक प्रयास करना ।

४. अनिष्ट शक्तियां (भूत, दानव, राक्षस इत्यादि) गर्व और अहं के विचार कैसे बढाती हैं

गर्व और अहं के विचार बढाने हेतु अनिष्ट शक्तियां (भूत, दानव, राक्षस इत्यादि) इस प्रकार के विचार डालती हैं, जैसे -तुमने ये अत्यधिक अच्छे ढंग से किया, सभी इसे देखेंगे, तुम्हारी प्रशंसा की जाएगी, सभी की दृष्टि तुम पर है, तुम अच्छे दिखते हो, तुम तीक्ष्ण बुद्धिवाले हो ।

ये विचार अलग-अलग विषयों से संबंधित हो सकते हैं, कुछ कृत्य छोटे एवं बिना महत्त्व के भी हो सकते हैं । साधकों के संदर्भ में, अनिष्ट शक्तियां अधिक शक्तिशाली सूचना दे सकती हैं, उदाहरण के लिए तुम सबसे अधिक शक्तिशाली हो, तुम सबसे अधिक तीक्ष्ण बुद्धिवाले हो, इसे तुमसे अच्छा इस संसार में कोई नहीं कर सकता।

उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों द्वारा गर्व और अहं के संबंध में उत्पन्न किए गए नकारात्मक विचारों का प्रभाव
नकारात्मक (तमप्रधान) व्यक्ति वह स्वयं को अन्यों से श्रेष्ठ समझना प्रारंभ करता है, यह भी सोचने लगता है कि वह अजेय है ।
साधारण व्यक्ति दैनिक जीवन में उसका व्यवहार अहं से भरा होगा तथा अपने अहं को छिपाने के लिए वह ढोंगी बनने का प्रयास करेगा ।
साधक साधक, जो इस बात से अनभिज्ञ है कि अनिष्ट शक्ति विचार डाल रही है । अपने बारे में अत्यधिक निम्न सोच सकता है, प्रयत्न करने पर भी अहं न्यून नहीं हो रहा है, इस विचार से वह अहं को क्षीण करने हेतु प्रेरक प्रयत्नों को छोड सकता है, जिससे अहं क्षीण करने के उसके प्रयास की गति धीमी हो सकती है ।
साधक, जो इस बात से परिचित है कि यह विचार अनिष्ट शक्तिद्वारा डाला गया है । आध्यात्मिक उपचार तथा अहं निर्मूलन करने हेतु और अधिक प्रयास करेगा ।

५. अनिष्ट शक्तियां (भूत, दानव, राक्षस इत्यादि) अत्यंत बुरे तथा आक्रमक विचार (वस्तुओंको तोडने, लोगों को पीटने, हत्या, बलात्कार अथवा इसके समान अन्य विचार) कैसे डालती हैं ?

लोगों को आक्रमक गतिविधियां करने हेतु प्रवृत करने के लिए अनिष्ट शक्तियां (भूत, दानव, राक्षस इत्यादि) व्यक्ति के मन में उस घटना को दृश्यस्वरूप में डालती है । वह व्यक्ति उस गतिविधि को अपने मन में होते देख उसे प्रत्यक्ष करने के लिए प्रेरित होता है ।

दृश्यस्वरूप घटना में इसके अतिरिक्त, अनिष्ट शक्तियां उस गतिविधि से मिल रहे सुख की झूठी अनुभूति भी डाल सकती है, अर्थात वे व्यक्ति को दृश्य में यह दिखाती हैं कि उस गतिविधि को करते हुए व्यक्ति को सुख मिलने का झूठा अनुभव हो रहा है ।

उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियोंद्वारा उत्पन्न किए गए आक्रमक विचारों का प्रभाव

नकारात्मक (तमप्रधान) व्यक्ति मारपीट, बलात्कार अथवा किसी की हत्या कर देता है ।
साधारण व्यक्ति आक्रमकता की तीव्रता थोडी अल्प होती है, वस्तुओंको तोडता है अथवा किसी के साथ झगडा करता है ।
साधक साधक, जो इस बात से अनभिज्ञ है कि अनिष्ट शक्ति विचार डाल रही है । किसी प्रकार से आक्रमक ढंग से कृत्य करने की अधिक संभावना होती है; किंतु ईश्‍वरीय सुरक्षा होने के कारण सीमित मात्रा में ।
साधक, जो इस बात से परिचित है कि यह विचार अनिष्ट शक्तिद्वारा डाला गया है । उन विचारों को रोकने हेतु प्रयास करेगा एवं उसके अनुसार कृत्य नहीं करेगा ।

६. सारांश – अनिष्ट शक्तियों (भूत, दानव, राक्षस इत्यादि) के मन पर डाले जानेवाले प्रभाव को क्षीण करने के लिए उपाय

वर्ष १९९३ से अच्छाई एवं बुराई के बीच महायुद्ध सूक्ष्म-लोकों में लडा जा रहा है, जिससे अधिकांश मानवजाति अनभिज्ञ है । कालांतर में, सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियों ने ब्रह्मांड में आसुरी राज्य स्थापित करने हेतु पर्याप्त मात्रा में आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त कर ली है । इस सूक्ष्म-युद्ध के माध्यम से मानवजाति को कष्ट देने के लिए उनका एक मार्ग यह है कि वे मनुष्यों के मन में अधर्माचरण के विचार डाल रही है, जिससे मनुष्य की आध्यात्मिक प्रगति करने की इच्छा समाप्त हो जाए तथा वायुमंडल में रज-तम में वृद्धि हो ।

चूंकि अधिकांश लोग इस युद्ध से अनभिज्ञ हैं, इसलिए उन्हें यह भान नहीं होता कि उनके मन में जो विचार आ रहे हैं, उसका स्रोत आध्यात्मिक आयाम की अनिष्ट सूक्ष्म-शक्तियां हैं । केवल नियमित साधना से ही इस प्रकार की घटना को पहचाना जा सकता है, उसके प्रभाव से निकला जा सकता है तथा उनसे रक्षा हो सकती है ।