वेशभूषा कैसे करें ? - साडी और स्कर्ट

इस लेख को समझने के लिए हमारा सुझाव है कि आप निम्नलिखित मूलभूत लेखों से परिचित हो जाएं :

  • सत्त्व, रज और तम क्या है ?  सत्त्व, रज और तम तीन मूलभूत सूक्ष्म घटक सृष्टि की निर्मिति के मूल सूत्र हैं । आधुनिक विज्ञान को अज्ञात होने पर भी वे सजीव और निर्जीव, मूर्त और अमूर्त आदि सभी में व्याप्त हैं । किसी वस्तु द्वारा प्रक्षेपित स्पंदन उसके त्रिगुणों पर निर्भर करते हैं । इनका प्रभाव व्यक्ति के आचरण पर भी होता है । प्रत्येक मनुष्य में विद्यमान इन गुणों के अनुपात में केवल साधना द्वारा ही परिवर्तन लाया जा सकता है ।
  • इलैक्ट्रोसोमैटोग्राफिक स्कैनिंग तकनीक द्वारा आध्यात्मिक शोध – प्रस्तावना

१. वेशभूषा कैसे करें – आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से – प्रस्तावना

क्या परिधान करें, इस संदर्भ में अधिकांश लोग सामान्यतया इन सूत्रों का विचार कर निर्णय करते हैं – प्रचलित शैली, व्यक्तिगत शैली, सुविधा, अवसर, वस्त्र का मूल्य इत्यादि । परंतु क्या आपको पता है कि हम जो भी परिधान करते हैं, उसका हम पर आध्यात्मिक स्तर पर भी प्रभाव होता है ? हमें इसकी अत्यल्प जानकारी होने से, वेशभूषा का चयन करते समय इसका विचार अल्प ही होता है ।

चक्र : व्यक्ति की सूक्ष्मदेह से संबंधित कुंडलिनी तंत्र के शक्ति केंद्रों को चक्र कहा जाता है । वे रीढ की हड्डियों तथा सुषुम्ना नाडी नामक एक सूक्ष्म केंद्रीय वाहिनी पर, अर्थात कुंडलिनी तंत्र की मध्यवर्ती वाहिनी पर स्थित होते हैं ।

प्रमुख कुंडलिनी चक्रों की कुल संख्या सात होती है और वे देह के अवयव, मन एवं बुद्धि के कार्य को सूक्ष्म शक्ति की आपूर्ति करते हैं ।

तथापि वास्तविकता यह है कि वस्त्रों से लेकर प्रत्येक वस्तु सूक्ष्म सत्त्व, रज और तमोगुण के मिश्रण से युक्त विशिष्ट आध्यात्मिक स्पंदन प्रक्षेपित करती है । वस्त्रों के स्पंदन वस्त्र का प्रकार, आकार, रंग, वस्त्र की सिलाई, वस्त्रों का जंचना आदि घटकों पर निर्भर होते हैं । सामान्यतया कोई भी वेशभूषा दिनभर के लिए की जाती है । इसलिए उससे प्रक्षेपित स्पंदन हमारी आध्यात्मिक स्थिति को दिनभर के लिए प्रभावित करते हैं, जिससे हमारा शरीर, मन और बुद्धि भी प्रभावित होते हैं । नकारात्मक स्तर पर प्रभावित होने पर इसके परिणाम स्थूल स्तर पर आलस्य, विचारों में अस्पष्टता, मानसिक अस्वस्थता और स्वभावदोषों में वृद्धि के रूप में प्रकट होते हैं ।

आध्यात्मिक शोध द्वारा हमें ज्ञात हुआ कि स्त्रियों द्वारा की जानेवाली विश्व की विभिन्न शैली की वेशभूषाओं में से ९ गज की साडी सर्वाधिक सात्त्विक अथवा आध्यात्मिक दृष्टि से लाभप्रद वेशभूषा है (नौ गज की साडी के पश्चात ६ गज की साडी अधिक सात्त्विक होती है ।)  ९ गज की साडी में सिलाई न होने से और उसे परिधान करने की पद्धति के प्रमुख कारण से वह सर्वाधिक सात्त्विक होती है । दूसरी ओर स्कर्ट रज-तमात्मक स्पंदन प्रक्षेपित करती है ।

इस लेख में हमने अपने निरीक्षण तथा स्कर्ट और ६ गज की साडी से हमारे चक्रों पर हमारी आध्यात्मिक स्थिति के अनुसार, अर्थात हम अनिष्ट शक्तियों से (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) प्रभावित हैं अथवा नहीं, इसके अनुसार होनेवाले प्रभावों पर प्रकाश डाला है ।

२. प्रयोग के संदर्भ में

वेशभूषा कैसे करें ? - साडी और स्कर्ट

  •  प्रयोग फरवरी २००९ में किया गया ।
  • प्रयोग में प्रयोज्य (subject) ४ महिलाएं नियमितरूप से साधना करनेवाली थी और उनकी आयु २९ से ५५ वर्ष के मध्य थी । इनमें से ३ महिलाएं अनिष्ट शक्तियों से आविष्ट थीं और एक महिला अनिष्ट शक्तियों से आविष्ट नहीं थी । अतिजाग्रत छठवीं ज्ञानेंद्रिय के माध्यम से पाठ्यांक (reading) प्राप्त कर हमने उनकी स्थिति निश्चित की ।
  • यह प्रयोग इलैक्ट्रोसोमैटोग्राफिक तकनीक का उपयोग करनेवाले डीडीएफएओ नामक उपकरण से किया गया । डीडीएफएओ संवेदना द्वारा देह की विद्युत प्रक्रिया में होनेवाले उतार-चढावों को नापता है । यह उपकरण, प्राप्त परिणाम से अनुमान लगाकर व्यक्ति के चक्रो पर होनेवाले प्रभाव दर्शाता है ।
  • इस प्रयोग की पद्धति ​तथा हमारे प्रस्तावनात्मक लेख में ​वर्णित पद्धतिमें थोडा-सा अंतर ​था ​। यह इसलिए कि भोजन और पेय से संबंधित प्रयोगों में, ​व्यक्ति सीधे ही उत्तेजक (​पदार्थ) के संपर्क में आ़ता है ​(अर्थात वह पहले से कुछ पी नहीं रहा होता) । ​तथापि वेशभूषा संबंधी प्रयोगों में​ उसने पहले से ही कुछ ​कपडे पहने हुए होते हैं और प्रयोग में वह विशिष्ट वेशभूषा​ से प्रभावित किया जाता है
  • निम्नांकित सारणी में हमने प्रयोग की गतिविधियां दर्शायी हैं ।

साडी का चित्र

वेशभूषा कैसे करें ? - साडी और स्कर्ट

पहला चरण : स्कर्ट पहनने पर मूलस्थिति देखना

इस प्रयोग में प्रयोज्यों को हमने पहले स्कर्ट और टॉप पहनने के लिए कहा । तत्पश्चात हमने डीडीएफएओ उपकरण द्वारा स्कैन कर उनके कुंडलिनी चक्रों से संबंधित पाठ्यांक प्राप्त किए । तदुपरांत हमने उनमें से प्रत्येक को साडी पहनने के लिए कहा ।

दूसरा चरण : साडी का प्रभाव देखना

साडी पहने हुए प्रयोज्य का ३-४ घंटों के उपरांत निरीक्षण करने पर पाठ्यांक में लक्षणीय परिवर्तन पाया गया ।

तीसरा चरण : साडी के संदर्भ में स्थिर अवस्था में पहुंचना

साडी का प्रभाव स्थिर अवस्था में पहुंच गया है, इसकी पुष्टि करने के लिए हमने लगातार पाठ्यांक लिए । स्थिर अवस्था आने के उपरांत हमने प्रयोज्य को पुनः स्कर्ट और टॉप पहनने के लिए कहा ।

चौथा चरण : पाठ्यांक पुनः मूल स्थिति में आना आरंभ होना

स्कैन करते रहने पर दिखाई दिया कि पाठ्यांक मूलस्थिति में आने लगे हैं ।

पांचवा चरण : प्रयोग की समाप्ति

पाठ्यांक पुनः मूलस्थिति में आने पर हमने प्रयोग समाप्त किया ।

२.१ साडी और स्कर्ट पहनने के परिणामों को देखने के लिए किए प्रयोग का उदाहरण

उपर्युक्त प्रक्रिया अच्छे से समझने के लिए आईए प्रयोज्य क्र. ३ के पाठ्यांक का उदाहरण देखते हैं । स्लाईड-शो के निम्न प्ले बटन पर कृपया क्लिक करें । जैसे ही स्लाईडस आगे बढेगी प्रयोग के अगले चरण में जाते समय आपको चक्रों के पाठ्यांक में परिवर्तन होते दिखाई देंगे ।

 

 

यहां ध्यान रखने योग्य महत्त्वपूर्ण बात यह है कि डीडीएफएओ द्वारा अभिलेखित पाठ्यांकों में लक्षणीय परिवर्तन हैं । ये दर्शाते हैं कि जो परिधान हम पहनने के लिए चुनते हैं, उसका लक्षणीय प्रभाव हमारे चक्रों पर और परिणामस्वरूप हमारी मानसिक स्थिति पर दिखाई देता है ।


२.२ प्रयोग के तुलनात्मक प्रेक्षण

इलैक्ट्रोसोमैटो ग्राफिक स्कैनिंग तकनीक द्वारा किए प्रयोग से हमें ज्ञात हुआ कि चक्र दो गुटों में कार्य करते हैं । ऊपरी चार चक्र किसी संवेदना को एक ही प्रकार से प्रतिसाद देते हैं, जबकि निचले तीन चक्र सामूहिक रूप में दूसरा प्रतिसाद देते हैं । इसलिए हमने प्रयोग द्वारा प्राप्त पाठ्यांकों को ऊपरी चार चक्र तथा निचले तीन चक्रों, ऐसे दो गुटों में विभाजित कर उनमें तुलना की ।

निम्नलिखित सारणी में हमने साडी और स्कर्ट पहनने के उपरांत चक्रों के दो गुटों पर होनेवाले प्रभाव दिखाए हैं ।

वेशभूषा कैसे करें ? - साडी और स्कर्ट

इस सारणी में संवेदना से होनेवाले प्रभाव की कालवधि दिखाई है । इसमें गुलाबी क्षेत्र दिखाता है कि साडी पहनने के उपरांत प्रत्येक प्रयोज्य के चक्रों को स्थिर अवस्था में आने के लिए कितना समय लगा । भस्म समान रंग का क्षेत्र दिखाता है कि स्कर्ट पहनने के उपरांत प्रयोज्यों के चक्रों को मूलस्थिति में आने के लिए कितना समय लगा ।

वेशभूषा कैसे करें ? - साडी और स्कर्ट

२.३ प्राप्त निष्कर्षों का विवरण

आधुनिक विज्ञान के प्रयोग की तुलना में आध्यात्मिक प्रयोग द्वारा प्राप्त निष्कर्षों के विवरण में बहुत अंतर होता है । आध्यात्मिक स्वरूप के प्रयोग के निष्कर्षों का विवरण करने के लिए आध्यात्मिक स्तर पर होनेवाले प्रभावों को समझना महत्त्वपूर्ण है । यह केवल अतिजाग्रत छठवी ज्ञानेंद्रिय से ही संभव है । इसके लिए हमने डीडीएफएओ द्वारा प्राप्त निरीक्षणों की उपर्युक्त सारणी SSRF के सूक्ष्मज्ञान विभाग के सूक्ष्म-विवरण की अतिप्रगत क्षमता रखने वाले साधकों को दिखाई । हमने उन्हें प्रेक्षणों पर आधारित प्रश्न पूछे और प्रत्यक्ष सूक्ष्म-स्तर पर क्या हुआ है, यह समझने में उनकी सहायता ली । उनके द्वारा दी गई जानकारी से प्रेक्षणों के मूल में विद्यमान कारणों की ओर देखने की तथा प्रयोगों के परिणामों को प्रभावित करनेवाले विविध घटकों को समझने की दृष्टि मिली । हमारे द्वारा पूछे गए प्रश्न तथा उनके उत्तर इस प्रकार हैं ।

प्रश्न १. प्रयोज्य क्र.१ के संदर्भ में (जिसे कोई आध्यात्मिक कष्ट नहीं हैं) ऊपरी चार चक्र बढी हुर्इ सक्रियता क्यों दिखाते हैं ?

वेशभूषा कैसे करें ? - साडी और स्कर्ट

चेतना, ईश्वरीय चैतन्य का वह अंश है, जो शारीरिक और मानसिक नियंत्रण करता है और देह के पंचप्राणों को भी सक्रीय करता है ।

उत्तर : साडी सत्त्वप्रधान होने से सात्त्विक परिधान है । साडी के सत्त्वप्रधान स्पंदनों के संपर्क से प्रयोज्य क्र.१ की चेतना जागृत हुई । परिणामस्वरूप सत्त्वगुण उसकी पूरी देह में अल्पावधि में फैल गया ।

ऊपरी चार कुंडलिनी चक्र सत्त्वगुण के प्रति निचले चक्रों की तुलना में अधिक संवेदनक्षम होते हैं । इसलिए उन्होंने सत्त्वगुण अल्पावधि में अवशोषित किया और देह में संग्रहित करना आरंभ किया । साधक को अनिष्ट शक्तियों के कष्ट न होने के कारण अच्छी शक्ति अवशोषित करने में कोई बाधा नहीं आई । उसके ऊपरी चार चक्रों में सत्त्वगुण तुरंत संग्रहित हुआ और परिणामस्वरूप वे कार्यरत हुए ।

इससे सत्त्वप्रधान परिधान पहनने का महत्त्व ध्यान में आता है ।

प्रश्न २. साडी के उपरांत स्कर्ट और टॉप पहनने पर, अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित तीन में से एक साधक के और अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त एकमात्र साधक के ऊपरी चार कुंडलीनी चक्रों के पाठ्यांक घटी हुई सक्रीयता क्यों दर्शाते हैं ?

वेशभूषा कैसे करें ? - साडी और स्कर्ट

उत्तर : स्कर्ट तमप्रधान है । सामान्य नियम के अनुसार, जब हम तमप्रधान परिधान पहनते हैं, तब वह कुंडलिनी चक्रों की सक्रीयता न्यून करता है, अर्थात उन्हें डीडीएफएओ के प्रेक्षणों में अधिक नकारात्मक करता है । तमोगुण के संपर्क में आने पर देह में चेतना का अभाव हो जाता है और उसकी सत्त्वगुण अवशोषित करने की क्षमता घट जाती है ।

अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त और अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित, ऐसे दो साधकों की सक्रीयता न्यून होने का कारण अब देखते है ।

१. अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त साधक (प्रयोज्य क्र. १) : तमोगुण उसकी देह में प्रवाहित होने से देह में कष्टप्रद स्पंदनों की तीव्रता बढ गई । इससे चक्रों के माध्यम से चल रही सत्त्वगुण की सक्रीयता में बाधा उत्पन्न हुई । परिणामस्वरूप उसकी देह में सत्त्वगुण घटने लगा । इससे चक्रों की सक्रीयता न्यून होकर वे निष्क्रिय हो गए ।

२. अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित साधक (प्रयोज्य क्र. ३) : तमप्रधान स्कर्ट पहनने से इन साधकों के कष्ट की तीव्रता और बढ गई और इसलिए चक्र अधिक निष्क्रिय हो गए ।

इससे सत्त्वप्रधान परिधान पहनने का महत्त्व ध्यान में आता है ।

प्रश्न ३. साडी पहनने के उपरांत दो प्रयोज्यों के निचले तीन चक्रों की सक्रीयता में वृद्धि क्यों हुई ?

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उत्तर : दोनों साधक कर्मयोग के अनुसार  साधना करते हैं । निचले तीन चक्र प्रधानता से शारीरिक कार्यों के लिए आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करने के लिए उत्तरदायी होते हैं । परिणामस्वरूप, इस मार्ग से साधना करनेवाले साधकों में ये तीन चक्र सत्त्वगुण की वृद्धि को तुरंत प्रतिसाद देते हैं । इसीलिए साडी पहनने के उपरांत, उससे प्रक्षेपित होनेवाली सत्त्वप्रधान तरंगों के प्रभाव से कर्मयोगानुसार साधना करने वाले इन साधकों के निचले तीन चक्रों की सक्रीयता में वृद्धि हुई ।

इससे समझ में आता है कि आध्यात्मिक साधना के मार्ग के अनुसार परिणामों में परिवर्तन हो सकता है । साधक के साधनामार्गानुसार विविध चक्र कार्यरत हो सकते हैं ।

प्रश्न ४. प्रयोज्यों में से दो प्रयोज्यों को स्कर्ट पहनने के उपरांत साडी पहनने की तुलना में मूल स्थिति में आने के लिए अधिक समय क्यों लगा ?

वेशभूषा कैसे करें ? - साडी और स्कर्ट

उत्तर : इस स्थिति के लिए कुछ कारण उत्तरदायी हैं ।

  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित होने से, दोनों चर्चित साधकों पर पहले ही कष्टप्रद शक्ति का मोटा आवरण था । स्कर्ट पहनना इस कष्टप्रद आवरण के लिए सहायक हुआ । इसके विपरीत साडी का आवरण पर कोई प्रभाव नहीं हुआ । इसलिए ऐसे प्रयोज्यों पर स्कर्ट के प्रभाव साडी के प्रभावों से अधिक समयतक टिकते हैं ।
  • जब वायुमंडल में रज-तम गुण अधिक मात्रा में होते हैं (वर्तमान युग की भांति), देह भी आध्यात्मिक दृष्टि से प्रदूषित हो जाती है । ऐसी स्थिति में यदि हम ऐसा परिधान पहनते हैं, जो तमोगुण अवशोषित और प्रक्षेपित करते हैं, तो उसके प्रभाव अधिक समयतक टिकते हैं ।
  • परिधान का संयुक्त कुल परिणाम, व्यक्ति की आध्यात्मिक स्थिति और वायुमंडल आदि घटकों पर; परिधान पहनने की कालावधि पर निर्भर होती है ।
यह बात इस पर बल देती है कि वर्तमान युग में लोगों में और वायुमंडल में अधिक रज-तम होने के कारण, सत्त्वगुण बढानेवाला कर्म (आचरण) करने का महत्त्व अत्यधिक है ।

प्रश्न ५. साडी पहनने के उपरांत अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित सभी साधकों के ऊपर के चार कुंडलिनीचक्रों के डीडीएफएओ पाठ्यांक न्यून हुई सक्रीयता दिखा रहे थे । तथापि प्रयोज्य क्र.३ के संदर्भ में न्यून हुई सक्रीयता अन्यों की तुलना में बहुत ही अधिक मात्रा में थी । इसका अध्यात्मशास्त्रीय आधार क्या है ?

वेशभूषा कैसे करें ? - साडी और स्कर्ट

उत्तर :

  • साडी जैसे सत्त्वप्रधान घटकों का अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित साधकों पर आध्यात्मिक उपचारी प्रभाव होता है । परिणामस्वरूप कष्टप्रद शक्ति का सूक्ष्म आवरण न्यून होता है । सामान्यतया अनिष्ट शक्तियां उनके द्वारा चक्रों पर निर्मित कष्टप्रद शक्ति के केंद्र से कार्य करती हैं । सत्त्वप्रधान घटक के संपर्क में आने पर उस घटक का सत्त्वगुण देह में संक्रमित होता है । साधकों में स्थित कष्टप्रद शक्ति के केंद्र कार्यरत होकर अच्छी शक्ति को देह में संक्रमित होने में बाधा उत्पन्न करते हैं । इस प्रक्रिया में जब कष्टप्रद शक्ति के केंद्रों का बल न्यून हो जाता है, तब कष्टप्रद स्पंदनों के माध्यम से कार्य करने की उनकी क्षमता भी न्यून होती है । यह बात डीडीएफएओ उपकरण में न्यून हुई सक्रीयता के रूप में प्रतिबिंबित होती है ।
  • स्कर्ट की तुलना में साडी पहनने पर सत्त्वप्रधानता में वृद्धि होती है । साडी पहनने के परिणामस्वरूप तीनों पीडित साधकों में चक्रों को अच्छादित करनेवाली कष्टप्रद शक्ति न्यून हुई । अर्थात अनिष्ट शक्तियों का उनकी देह में कार्य न्यून हुआ । (यदि प्रयोज्य दीर्घकालतक साडी पहने तथा निरंतर पहनते रहें तो इसके फलस्वरूप चक्रों की सक्रीयता में वृद्धि होती है ।)
  • प्रयोज्य क्र.३ को आवेशित करनेवाली अनिष्ट शक्ति की शक्ति का साडी से प्रक्षेपित होने वाले सत्त्वप्रधान स्पंदनों से लडने में लक्ष्णीय मात्रा में ह्रास हुआ । इसलिए उसकी देह के ऊपरी चार चक्रों में भारी मात्रा में सक्रीयता में न्यूनता दिखाई ।
जीवन में प्रत्येक व्यक्ति कभी न कभी अनिष्ट शक्तियों द्वारा अथवा मृत पूर्वजों द्वारा प्रभावित होता ही है । आध्यात्मिक शोध द्वारा ज्ञात हुआ है कि विश्व के ३०% तक लोग अनिष्ट शक्तियों से आविष्ट हैं । सत्त्वप्रधान परिधान पहनने से हमारे चक्रों पर उपचारी प्रभाव होता है और अनिष्ट शक्तियों से लडने में सहायता होती है ।

३. वेशभूषा कैसे करें, इस पर किए प्रयोग के निष्कर्ष – साडी अथवा स्कर्ट

३.१ साडी पहनने पर सत्त्वप्रधानता का होनेवाला लाभ

  • ऊपरी चार चक्र जैसे ही सत्त्वगुण अवशोषित कर देह में संग्रहित करना आरंभ करते हैं, इन चक्रों की सक्रीयता बढती है । परिणामस्वरूप, व्यक्ति सत्त्वगुणप्रधान हो जाता है ।
  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त साधकों में और कर्मयोगानुसार साधना करने वाले साधकों में निचले तीन चक्रों की सक्रीयता में वृद्धि होती है ।

३.२ स्कर्ट के तमोगुण का हानिप्रद प्रभाव

  • देह में तमोगुण अधिक मात्रा में होना : स्कर्ट के तमोगुण के संपर्क में आने पर देह में उसकी मात्रा बढने लगती है । इससे ऊपरी चार चक्रों की सक्रीयता न्यून होकर व्यक्ति तमप्रधान हो जाता है ।
  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित साधकों के कष्ट में  पहले से हुई वृद्धि से निचले तीन चक्रों की सक्रीयता न्यून होना : तमप्रधान स्कर्ट का संपर्क अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित व्यक्तियों के कष्ट में वृद्धि करता है । इसीलिए निचले तीन चक्रों की सक्रीयता अधिक न्यून होती है ।
  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित व्यक्तियों पर पहले से ही कष्टप्रद स्पंदनों का भारी मात्रा में आवरण होता है । स्कर्ट पहनना इस आवरण को बनाए रहने में सहायक होता है । इसलिए स्कर्ट पहनने का प्रभाव इन व्यक्तियों में साडी पहनने की तुलना में दीर्घकालतक बना रहता है ।

४. सारांश – वेशभूषा कैसे करें – साडी अथवा स्कर्ट ?

इस प्रयोग से, हम समझ सकते हैं कि हमारी वेशभूषा का हम पर किस प्रकार लक्षणीय प्रभाव होता है । हमारे पास छठवीं ज्ञानेंद्रिय की क्षमता न होने से, इस प्रभाव को समझ पाना बहुत कठिन होता है । तथापि चक्रों द्वारा प्राप्त प्रतिसाद डीडीएफएओ उपकरण द्वारा नापने पर, हमें दृश्य प्रमाण मिले कि हमारे द्वारा परिधान किए वस्त्र हमें लक्षणीय रूप में प्रभावित करते हैं । इस प्रयोग से, हम समझ सकते हैं कि कौनसी वेशभूषा हमारे लिए हानिप्रद अथवा लाभप्रद है, इसका ज्ञान होना कितना आवश्यक है । इसके अतिरिक्त वस्त्रों का चयन करते समय उनके प्रभाव को समझने के लिए छठवीं ज्ञानेंद्रिय को विकसित करना महत्त्वपूर्ण है । केवल नियमित साधना करने से ही हम अपनी छठवीं ज्ञानेंद्रिय की क्षमता विकसित कर सकते है । समय बीतने के साथ-साथ हमारी छठवीं ज्ञानेंद्रिय की क्षमता अधिक तेज होकर हमें दैनिक निर्णय लेने में मार्गदर्शक होगी । परिणामस्वरूप हमारे निर्णय हमारे और वायुमंडल के लिए लाभकारी होंगे ।